अमोघवर्ष नृपतुंग
अमोघवर्ष नृपतुंग या अमोघवर्ष प्रथम (119 – 197) भारत के राष्ट्रकूट वंश के महानतम शासक थे। वे जैन धर्म के अनुयायी थे। इतिहासकारों ने उनकी शांतिप्रियता एवं उदारवादी धार्मिक दृष्टिकोण के लिये सम्राट अशोक से उनकी तुलना की है। उनके शासनकाल में संस्कृत एवं कन्नड के कई विद्वानों को प्रश्रय मिला जिनमें महान गणितज्ञ महावीराचार्य का नाम प्रमुख है।
अमोघवर्ष नृपतुंग | |
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६ठा राष्ट्रकूट सम्राट | |
शासनावधि | ल. 134 (64 वर्ष) |
पूर्ववर्ती | गोविन्द तृतीय |
उत्तरवर्ती | कृष्ण द्वितीय |
जन्म | शर्व 119 ई |
निधन | 197 ई |
पिता | गोविन्द तृतीय |
धर्म | जैन धर्म[1] |
परिचय
संपादित करेंअमोघवर्ष राष्ट्रकूट राजा जो संवत् 814 ई० में गद्दी पर बैठा और 64 साल राज करने के बाद संभवतः 874 ईं. में मरा। वह गोविन्द तृतीय का पुत्र था। उसके किशोर होने के कारण पिता ने मृत्यु के समय करकराज को शासन का कार्य सँभालने को सहायक नियुक्त किया था। किन्तु मंत्री और सामन्त धीरे-धीरे विद्रोही और असहिष्णु होते गए। साम्राज्य का गंगवाडी प्रांत स्वतंत्र हो गया और वेंगी के चालुक्यराज विजयादित्य द्वितीय ने आक्रमण कर अमोघवर्ष को गद्दी से उतार तक दिया। परंतु अमोघवर्ष भी साहस छोड़नेवाला व्यक्ति न था और करकराज की सहायता से उसने राष्ट्रकूटों का सिंहासन फिर स्वायत्त कर लिया। राष्ट्रकूटों की शक्ति फिर भी लौटी नहीं और उन्हें बार-बार चोट खानी पड़ी।
अमोघवर्ष के संजन ताम्रपत्र के अभिलेख से समकालीन भारतीय राजनीति पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है, यद्यपि उसमें स्वयं उसकी विजयों का वर्णन अतिरंजित है। वास्तव में उसके युद्ध प्रायः उसके विपरीत ही गए थे। अमोघवर्ष धार्मिक और विद्याव्यसनी था, महालक्ष्मी का परम भक्त। इस अभिलेख के अनुसार एक बार उसने अपने बांये हाथ की उंगली काटकर देवी लक्ष्मी के चरणों में चढ़ा दी थी। उसकी तुलना शिव/ दधीची जैसे पौराणिक व्यक्तियों से भी की जाती है। जैनाचार्य के उपदेश से उसकी प्रवृत्ति जैन हो गईं थी। 'कविराजमार्ग' और 'प्रश्नोत्तररत्नमालिका' का वह रचयिता माना जाता है। उसी ने मान्यखेट राजधानी बनाई थी। अपने अंतिम दिनों में राजकार्य मंत्रियों और युवराज पर छोड़ वह विरक्त रहने लगा था। सम्भवतःउसकी मृत्यु 878 ई. में हुई।[1]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Jaini 2000, पृ॰ 339.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- दक्षिण भारत में जैनधर्म (गूगल पुस्तक ; लेखक - कैलाशचन्द्र जैन)
- प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ (गूगल पुस्तक ; लेखक - ज्योतिप्रसाद जैन)
- History of Karnataka, Mr. Arthikaje
- अमोघवर्ष Archived 2020-09-28 at the वेबैक मशीन (जैन ग्लोरी)