नेपाल में होली
नेपाल में होली को फाल्गुन पूर्णिमा (नेपालभाषा में फागु पुन्हि) भी कहते है। नेपाल के अलग अलग स्थानों पर होली[मृत कड़ियाँ] के रीति रिवाज़ों में थोड़ी बहुत विभिन्नता है। काठमांडू में इस अवसर पर एक सप्ताह के लिए प्राचीन दरबार और नारायणहिटी दरबार मैं चीर (बाँस का स्तम्भ) गाड़ा जाता है[1]। इस चीर मैं विभिन्न रंग के कपड़े लटकाए जाते हैं। यह बाँस का स्तंभ भगवान श्रीकृष्ण द्वारा तालाब में स्नान कर रही ग्वाल-बालाओं के कपडे वृक्ष पर लटका देनेवाली कथा की स्मृति में प्रतीक स्वरूप खड़ा किया जाता है। स्तंभ गाड़ने के बाद आधिकारिक रूप से होली का आरम्भ होता है। काठमांडू में होली मैं रंग के साथ साथ मैं पानी का भी बहुत प्रयोग होता है। नेपाल के हिमाल और पहाड़ी इलाके में मुख्य होली भारत से एक दिन पहले मनाई जाती है। परंतु तराई में होली भारत की होली के दिन ही मनाई जाती है। तराई की होली का रूप बिहार की फगुआ से मिलता जुलता है। होली एक हिन्दू त्यौहार है परन्तु नेपाल में हिन्दू और बौद्ध धर्मावलम्बी (प्रायः नेवार जाति) दोनों ही इस त्यौहार को हर्षोल्हास से मनाते है।