नेपोलियन के युद्ध

नेपोलियन बोनापार्ट द्वारा लड़े गए युद्ध ( 1803- 1815)
(नेपोलियाई युद्ध से अनुप्रेषित)

नेपोलियन बोनापार्ट जब तक सत्ता में रहा युजिन choda रहारा यूरोप त्रस्त था। इन युद्धों को सम्मिलित रूप से नेपोलियन के युद्ध (Napoleonic Wars) कहा जाता है। १८०३ से लेकर १८१५ तक कोई साठ युद्ध उसने लड़े थे जिसमें से सात में उसकी पराजय (अधिकांशतः अपने अन्तिम दिनों में)।

नैपोलियन, बर्लिन में ; जेना में प्रशा की सेनाओं को परास्त करने के बाद फ्रान्सीसी सेना २७ अक्टूबर १८०६ को बर्लिन नगर में प्रवेश की

इन युद्धों के फलस्वरूप यूरोपीय सेनाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। परम्परागत रूप से इन युद्धों को १९७२ में फ्रांसीसी क्रांति के समय शुरू हुए क्रांतिकारी युद्धों की शृंखला में ही रखा जाता है। आरम्भ में फ्रांस की शक्ति बड़ी तेजी से बढ़ी और नैपोलियन ने यूरोप का अधिकांश भाग अपने अधिकार में कर लिया। १८१२ में रूस पर आक्रमण करने के बाद फ्रांस का बड़ी तेजी से पतन हुआ।

फ्रांस के विरूद्ध तीसरे गुट का निर्माण

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तृतीय गुट युद्ध के पहले 1805 में यूरोप की रणनीतिक स्थिति

यूरोप में अन्य देशों पर नेपोलियन के आधिपत्य स्थापित करने के प्रयासों को निष्फल करने के लिए यूरोप के मुख्य राज्यों ने 1805 ई. में नेपोलियन और फ्रांस के विरूद्ध तृतीय गुट बना लिया। इसका नेतृत्व इंग्लैण्ड ने किया। इस गुट में इंग्लैण्ड, आस्ट्रिया, रूस, स्वीडन आदि देश थे जबकि आस्ट्रिया के विरोधी दक्षिण जर्मनी के राज्यों ने इस गुट के विरूद्ध नेपोलियन का साथ दिया।

फ्रांस और इंग्लैण्ड के युद्ध

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मई 1803 में फ्रांस और इंग्लैण्ड में परस्पर युद्ध छिड़ गया। नेपोलियन ने इटली के पीडमांड राज्य को फ्रांस में सम्मिलित कर लिया, हालैण्ड को अपने अधिकार में करके वहां के एण्टवर्प बंदरगाह को जल सेना के लिए विस्तृत करना प्रारंभ कर दिया। उसके ये कार्य इंग्लैण्ड के हितों के विरूद्ध थे, इसलिए 18 मई 1803 को इंग्लैण्ड ने फ्रांस के विरूद्ध युद्ध घोषित कर दिया।

ट्रफलगार का युद्ध

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21 अक्टूबर 1805 को फ्रांस और स्पेन की संयुक्त जल सेना और नेलसन के नेतृत्व वाली अंग्रेज जलसेना के मध्य ट्रफलगार के समीप समुद्र में भयंकर युद्ध हुआ। इसे ट्रफलगार का युद्ध कहते हैं। यद्यपि इस युद्ध में नेलसन वीरगति को प्राप्त हुआ, पर इंग्लैण्ड की जलसेना ने फ्रांस और स्पेन की संयुक्त जल सेना को ट्रफलगार के युद्ध में परास्त कर दिया। फ्रांस की इस पराजय से नेपोलियन द्वारा समुद्र की ओर से इंग्लैण्ड पर आक्रमण करने का भय समाप्त हो गया।

फ्रांस और आस्ट्रिया के युद्ध

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उल्म (Ulm) नगर का समर्पण (२० अक्टूबर, १८०५)

नेपोलियन ने मेक के सेनापतित्व में आस्ट्रिया की सेना पर आक्रमण कर उसे 20 अक्टूबर 1805 के उल्म के युद्ध में परास्त कर दिया। इस विजय के बाद नेपालियन ने वियना पर अधिकार कर लिया। आस्ट्रिया का शासक फ्रांसिस द्वितीय वियना छोड़कर पूर्व की ओर चला गया।

ऑस्टरलिट्ज का युद्ध

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नेपोलियन ने रूस और आस्ट्रिया की संयुक्त सेनाओं को अक्टूबर 1805 को आस्टरलिट्ज के युद्ध में परास्त कर दिया। यह विजय नेपोलियन की महत्वपूर्ण विजयों में से थी। रूस ने इस पराजय के बाद अपनी सेनाएँ पीछे हटा लीं और आस्ट्रिया ने नेपोलियन के साथ 26 दिसम्बर 1805 ई. को प्रेसवर्ग की संधि कर ली।

फ्रांस और रूस का युद्ध

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नेपोलियन के विरूद्ध जो तीसरा गुट (थर्ड कोलिएशन) निर्मित हुआ था उसमें अब इंग्लैण्ड और रूस ही शेष बचे थे, बाकी सदस्य देश नेपोलियन के हाथों परास्त हो चुके थे। फलतः नेपोलियन रूस की ओर आगे बढ़ा और 8 जनवरी 1807 को आइलो नामक स्थान पर दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ। 14 जून 1807 को फ्रीडलैण्ड के युद्ध में नेपोलियन ने रूस को परास्त कर दिया। इस पराजय के बाद रूस के सम्राट जार एलेक्जेंडर ने नीमेन नदी में एक शाही नाव में नेपोलियन से भेंट की। इस अवसर पर नेपोलियन ने अपने आकर्षक प्रभावशाली व्यक्तित्व और मधुर शिष्टाचार से जार को प्रसन्न कर लिया। अंत में टिलसिट नगर में फ्रांस, रूस और प्रशास के प्रतिनिधियों में टिलसिट की संधि हो गई।

टिलसिट की संधि (8 जुलाई 1807 ई.)

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इस संधि में सार्वजनिक और गुप्त शर्तें थीं, जो निम्नलिखित हैं-

सार्वजनिक शर्तें:

  • (1) रूस और फ्रांस में परस्पर प्रभाव क्षेत्र निर्दिष्ट हो गया। अपने प्रभाव के विस्तार के लिए रूस को पूर्वी क्षेत्र और फ्रांस को पश्चिमी क्षेत्र प्राप्त हुआ। रूस को फिनलैंड तथा तुर्की की ओर अपने राज्य के विस्तार के लिए छूट दी गयी।
  • (2) फ्रांस, रूस से क्षतिपूर्ति के लिए कोई धनराशि या प्रदेश नहीं लेगा।
  • (3) प्रशा में एल्बा नदी के पश्चिमी क्षेत्र को अन्य जर्मन प्रदेशों से मिलाकर वेस्टफेलिया नामक नवीन राज्य निर्मित किया गया और नेपोलियन ने इस राज्य का शासक अपने भाई जेरोम बोनापार्ट को नियुक्त किया।
  • (4) पोलैण्ड ने प्रशा के अधिकांश क्षेत्र को लेकर 'ग्रेण्ड डची ऑफ वारसा' नामक राज्य निर्मित किया गया और यहाँ सेक्सनी के ड्यूक को राजा की उपाधि देकर शासक बनाया गया।
  • (5) रूस के सम्राट जार एलेक्जेंडर ने नेपोलियन द्वारा नवनिर्मित राज्यों को मान्यता दे दी तथा नेपोलियन द्वारा जीते गये इटली, जर्मनी और हालैण्ड के राज्यों को भी मान्यता दे दी।

गुप्त शर्तें:

  • (1) जार ने वचन दिया कि वह फ्रांस और इंग्लैण्ड में मध्यस्थ बनकर उनमें परस्पर मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने में सहायता करेगा। यदि एक मास की अवधि में इंग्लैण्ड समझौता करने के लिए सहमत नहीं हो तो रूस फ्रांस के साथ मिलकर इंग्लैण्ड के विरूद्ध युद्ध करेगा।
  • (2) डेनमार्क, स्वीडन और पुर्तगाल पर भी इंग्लैण्ड के विरूद्ध युद्ध करने तथा उसके साथ व्यापारिक संबंध तोड़ने और इंग्लैण्ड की जल शक्ति के विनाश करने के लिए दबाव डाला जाएगा।
  • (3) नेपोलियन, तुर्की और रूस में परस्पर मतभेदों के निवारण में और समझौता कराने में सहायता देगा। यदि तुर्की, समझौते के लिए सहमत नहीं हुआ तो फ्रांस और रूस मिलकर तुर्की साम्राज्य को परस्पर बांट लेंगे।

टिलसिट की संधि के परिणाम और महत्व

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  • (1) इस संधि से आस्ट्रिया और प्रशा दोनों यूरोपीय राज्यों की शक्ति क्षीण हो गयी। प्रशा से राइनलैंड और पोलैण्ड के प्रदेश छीनकर उसका राज्य आधा कर दिया गया। अब वह यूरोप में तृतीय शक्ति बनकर रह गया। युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए भी उससे भारी धनराशि वसूल की गयी। इससे नेपोलियन के प्रति प्रशावासियों का घोर असंतोष बढ़ा।
  • (2) टिलसिट की संधि के समय से फ्रांस के राज्य की सीमाओं का खूब विस्तार हुआ। यूरोप के छोटे-छोटे राज्य नेपोलियन की सत्ता और शक्ति से भयभीत हो गये। रूस जैसा शक्तिशाली देश भी नेपोलियन का मित्र बन गया। इंग्लैण्ड को छोड़कर यूरोप के सभी देश नेपोलियन की शक्ति का लोहा मानने लगे।

इन्हें भी देखें

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