पंच परमेष्ठी
पंच परमेष्ठी जैन धर्म के अनुसार सर्व पूज्य हैं। परमेष्ठी उन्हें कहते है हैं जो परम पद स्थित हों।[1] यह पंच परमेष्ठी हैं-
- अरिहन्त : जो दिव्य शरीर में स्थित रहते हैं। जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश कर दिया हो|[1]
- सिद्ध : जो शरीर रहित हैं जिन्होंने सभी कर्मों का नाश कर दिया है।[1] सिद्ध परमेष्ठी के मुख्य आठ गुण होते हैं।[2]
- आचार्य परमेष्ठी- मुनि संघ के नेता। इनके छत्तीस मूल गुण होते हैं।
- उपाध्याय परमेष्ठी- जो नए मुनियों को ज्ञान उपार्जन में सहयोग करते हैं।
- मुनि
णमोकार मंत्र
संपादित करेंजैन धर्म के सबसे मुख्य मंत्र 'णमोकार मंत्र' में पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया जाता है।
- णमो अरिहंताणं। णमो सिद्धाणं। णमो आइरियाणं।
- णमो उवज्झायाणं। णमो लोए सव्वसाहूणं॥
अर्थात अरिहंतों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार, सर्व लोक के साधुओं को नमस्कार।
सन्दर्भ
संपादित करेंसंदर्भ सूची
संपादित करें- जैन, विजय क. (२०१३), Ācārya Nemichandra's Dravyasaṃgraha, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788190363952, मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 28 फ़रवरी 2016,
Non-copyright
- प्रमाणसागर, मुनि (२००८), जैन तत्त्वविद्या, भारतीय ज्ञानपीठ, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-263-1480-5, मूल से 25 सितंबर 2015 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 10 जनवरी 2016
- जैन, विजय कुमार (१९९४), जैन धर्म: मंगल परिचय, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-85285-03-9