पन्नालाल जैन

जैन विद्वान्

साहित्याचार्य डॉ. पंडित पन्नालाल जैन (१९११-२००१)एक विशिष्ट जैन विद्वान थे।[1][2][3][4] डॉ कस्तूरचंद कासलीवाल ने २० वीं शताब्दी के जैन विद्वानों के २० सबसे सम्मानित व्यक्ति के रूप में उन्हें माना है।[5]उनका शिक्षण सत्र १९३१ से २००१ तक ७० वर्षों तक रहा।[6]

साहित्याचार्य पंडित पन्नालाल जैन
पं पन्नालाल जैन जी की अर्धप्रतिमा नमकमंडी, सागर में
जन्म५ मार्च १९११
परगुवां सागर जिला, मध्यप्रदेश
मौत९ मार्च २००१
कुण्डलपुर, मध्यप्रदेश
भाषाप्राकृत, संस्कृत, हिंदी
उल्लेखनीय कामहिंदी अनुवाद - महापुराण
खिताबसाहित्याचार्य, पीएचडी

जीवन संपादित करें

पन्नालाल जी का जन्म सन १९११ में सागर के एक छोटे से गांव परगुवां में हुआ। इनके पिता एवं माता का नाम गल्लीलाल व जानकीबाई था। १९१९ में उनके पिता की मृत्यु के बाद वह सागर चले गए। पन्नालाल ने सागर में गणेशप्रसाद वर्णी द्वारा स्थापित प्रसिद्ध संस्थान "सत्तर्क सुधा तारांगिनी संस्कृत पाठशाला" में अध्ययन किया, जो कि वर्तमान में गणेश वर्णी संस्कृत विद्यालय के नाम से प्रचलित हैं। लंबे समय तक पन्नालाजी ने भी वहां पढ़ाया। उनका विवाह १९३१ में हुआ था। उनकी पत्नी का नाम सुंदरबाई था। उसी वर्ष उन्हें विद्यालय में शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में उन्होंने वाराणसी में स्याद्वाद महाविद्यालय में अध्ययन किया। उन्होंने १९३६ में साहित्याचार्य की पदवी अर्जित की। उन्होंने १९३३ से १९८३ तक सागर के मोराजी में सत्तर्क सुधा तारांगिनी संस्कृत पाठशाला में मार्गदर्शक के रूप में अपना अधिकांश जीवन व्यतीत किया, जिसे वर्तमान में गणेश वर्णी दिगंबर जैन संस्कृत महाविद्यालय के रूप में जाना जाता है। सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने ८ जनवरी २००१ तक जबलपुर में वर्णी दिगंबर जैन गुरुकुल मे अध्यापन का कार्य किया।

उन्होंने क्षुल्लक गणेशप्रसाद वर्णी द्वारा प्रसिद्ध आत्मकथा "मेरी जीवन गाथा" के दोनों खंडों को संपादित किया जो १९४९ और १९६० में प्रकाशित हुए थे।[7][8] उन्होंने १९७४ में श्री गणेशप्रसाद वर्णी स्मृति ग्रंथ भी संपादित किया।[9]

उन्होंने प्रमुख भिक्षुओं और तपस्विनों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य किया था। उन्होंने १९८० में सागर में धवला (धवला टीका) ग्रंथों पर व्याख्यान शुरू करने में आचार्य विद्यासागर की सहायता की। उन्होंने अक्सर सागर में महिलाश्रम की अध्यक्ष आर्यिका विशुद्धमती को संचालन हेतु सलाह दी। वह द्रोणागिरी और बड़ा मलहारा में जैन संस्थानों से भी जुड़े थे। १९५५ में उन्होंने ऐतिहासिक गजरथ को प्रचार मंत्री के रूप में व्यवस्थित करने में मदद की।[10] उन्होंने १९८१ में खजुराहो में गजरथ त्यौहार में भी सहायता की। वह १९४६ से १९८५ के दौरान विद्वानों की एक अग्रणी परिषद दिगंबर जैन विद्यापरिषद से जुड़े थे।

एक साधारण, सभ्य और निर्विवाद पारंपरिक विद्वान, उन्हें महाकवि हरिचंद पर उनके काम के लिए १९७३ में सागर विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी से सम्मानित किया गया था।[11]

उन्हें १९६९ में संस्कृत के शिक्षण में उनके शैक्षणिक योगदान के लिए भारत के राष्ट्रपति डॉ वी वी गिरी द्वारा सम्मानित किया गया था।

 
भारतीय राष्ट्रपति डॉ वी वी गिरी से राष्ट्रीय पुरूस्कार प्राप्त करते हुए पं पन्नालाल जी (१९६९)

कार्य संपादित करें

पन्नालाल जैन महापुराण, उत्तरपुराण और पद्मपुराण समेत संस्कृत पुराणिक साहित्य के अनुवाद और टिप्पणियों के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं। उन्होंने शास्त्रीय संस्कृत स्रोतों के आधार पर कई वृतोद्यापन ग्रंथ भी बनाये हैं। उन्हें १९७६ में सागर के श्रावकों द्वारा विद्या-वरिधि (अर्थात् सीखने का सागर) उपाधि दी गयी। वह एक अभूतपूर्व लेखक थे। उनके द्वारा विरचित मौलिक कृतियाँ-

क्रमांक ग्रन्थ प्रकाशक
सम्यक्त्वचिंतामणि (सानुवाद) वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट, वाराणसी १९८३
सज्ज्ञानचन्द्रिका (सानुवाद) वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट, वाराणसी १९८५
सम्यक्चारित्रचिंतामणि (सानुवाद) वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट, वाराणसी १९८५
महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन (शोध प्रबंध) भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली १९७५
जीवंधरचम्पू (संस्कृत टीका) भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली
गद्यचिंतामणि (संस्कृत टीका) भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली
पुरुदेवचंपू (संस्कृत टीका) भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली
क्षत्रचूडालंकार भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली
चौबीसी पुराण (हिंदी) जिनवाणी प्रेस, कलकत्ता
१० धर्म कुसमोद्यान (सानुवाद) जिनवाणी प्रेस, कलकत्ता
११ सहस्रनामांकित पूजा ज्ञानोदय प्रकाशन, जबलपुर १९८८
१२ पंचकल्याणक व्रतोद्यापन ज्ञानोदय प्रकाशन, जबलपुर १९९२
१३ रविवार व्रतोद्यापन शांतिवीर नगर, महावीर जी १९९१
१४ त्रैलोक्यातिलक व्रतोद्यापनम् जैन विजय प्रिन्टिंग प्रेस, सूरत
१५ अशोक रोहणी व्रतोद्यापन जैन विजय प्रिन्टिंग प्रेस, सूरत
१६ सामायिक पाठ गणेश वर्णी ग्रंथमाला, वाराणसी
१७ पंचबालयति पूजा स्वयं, १९९४
१८ आष्टाह्निक व्रतोद्यापन ज्ञानोदय प्रकाशन, जबलपुर १९९२
१९ श्रीपाल चरितम् (संस्कृत गद्य काव्य) अप्रकाशित

स्मारक और विरासत संपादित करें

८ मार्च २००१ को कुंडलपुर तीर्थ में, भगवान आदिनाथ बड़े बाबा की छाया में, पन्नालाल जी ने ध्यानमग्न होकर अपना शरीर को त्याग दिया। सागर में, नमक मंडी के मध्य से गुजरने वाले मार्ग को साहित्याचार्य पंडित पन्नालाल जैन मार्ग नाम दिया गया है, जिसमें सड़क के बीच में एक अर्ध-प्रतिमा है। उनकी मूर्ति नमक मंडी तिराहा पर एक तरह से रखी गई है।

अचल जैन, जिन्होंने संस्कृत साहित्य में उनके योगदान पर उनके शोध पत्रों को लिखा था, को इंदौर विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी से सम्मानित किया गया था।[12]

पन्नालाल जैन स्मारक समिति नामक संगठन सागर में संस्कृत विद्वानों का सम्मान करती है।.[13]जैन मुनी प्रतिशक्षगर उनके पोते थे।[14]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे साहित्याचार्य पं. पन्नालाल जैन. Matrix News, 4 March 2011, www.bhaskar.com/
  2. नर्इ पीढ़ी के लिए साहित्य में मिलने वाले सम्मान की तरफ इषारा, प्रतिमा अनावरण, 17.11.06 http://gyansagarji.com/?page_id=249[मृत कड़ियाँ]
  3. जयंती पर पंडितजी के व्यक्तित्व पर चर्चा, http://www.pradeshtoday.com/newsdetails.php?news=NSS-camp-concludes&nid=35143 Archived 2018-06-12 at the वेबैक मशीन
  4. http://www.bhaskar.com Archived 2016-07-12 at the वेबैक मशीन › Madhya Pradesh 16 July 2012 – राजेश जैन के बड़े भाई प्रकाशचंद जैन का रविवार की सुबह निधन
  5. Kasturchand Kasliwal, Jain Samaj ka Vrihad Itihas, Jain Itihas Prakashan Sansthan, Jaipur, 1969, p. 42
  6. Ratanchandra Jain, Svarnayuga ke pratinidhi ka mahaprayan, Jina Bhashita, April 2001, p. 1,
  7. Meri Jivan Gatha, Ganeshprasad Varni, 1949, Shri Ganeshprasad Varni Jain Granthmala, Varanasi.
  8. Meri Jivan Gatha, Dvitiya Bhag, Ganeshprasad Varni, 1960, Shri Ganeshprasad Varni Jain Granthmala, Varanasi
  9. Shri Ganeshprasad Varni Smriti Granth, Bharatiya Digambar jain Vidvatparishad, Ed. Pannalal Sahityacharya, Niraj Jain, 1974.
  10. Sahityacharya pannalal Jain Abhinandan Granth, p. 2.71
  11. Sahityacharya D. Pandit Pannalal Jain Abhinandan Deepika, Ed. Jain, Jyoti Prasad, Bhagchandfra Bhagendu, Bharatiya Shruti Darshana Kendra, Jaipur, 1989
  12. संस्कृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता है : ब्रह्मचारी डी. राकेश भैया, साहित्याचार्य डॉ. पंडित पन्नालाल जैन की 103वीं जन्म जयंती पर कटरा नमकमंडी स्थित कीर्ति स्तंभ के समीप प्रतिमा स्थल पर कार्यक्रम हुआ।Bhaskar News Network, 6 March 2014, http://www.bhaskar.com/article-srh/MAT-MP-SAG-c-25-380563-NOR.html Archived 2014-03-08 at the वेबैक मशीन
  13. आर्यिका संघ के सानिध्य में निकली श्रीजी की पालकी शोभायात्रा, Matrix News | 23 September 2013, पन्नालाल जैन साहित्याचार्य स्मारक समिति http://www.bhaskar.com/article/MAT-MP-SAG-c-25-349704-NOR.html Archived 2013-12-07 at the वेबैक मशीन
  14. समाधि साधना के लिए इंद्रियों पर काबू होना चाहिए, Apna Hindustan, http://jain.apnahindustan.com/?p=2204[मृत कड़ियाँ], मुनि श्री प्रत्यक्ष सागर जी महाराज के गृहस्थ जीवन के नाना पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य थे।