परक्राम्य लिखत अधिनियम १८८१

Negotiable Instruments Act, 1881

परक्राम्य लिखत अधिनियम १८८१ या 'विनिमय साध्य विलेख अधिनियम १८८१' (Negotiable Instruments Act,1881) भारत का एक कानून (enactment/statute) है जो पराक्रम्य लिखत (प्रॉमिजरी नोट, बिल्ल ऑफ एक्सचेंज तथा चेक आदि) से सम्बन्धित है।

पूरे भारत में कार्य करने वाले वित्तीय संस्थान, उद्योग संगठन और यहां तक कि सामान्य जन भी अपने लेन-देन अधिकतर चेक के माध्यम से करते हैं। चेक के माध्यम से वित्तीय कारोबार में होने वाली सुविधाओं के साथ-साथ समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। चेक के माध्यम से कारोबार में होने वाली शिकायतों को दर्ज कराने की व्यवस्था ‘परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881’ में प्रदान की गई है।

परक्राम्य लिखत (संशोधन) अध्यादेश, 2015 संपादित करें

परक्राम्य लिखत अधिनियम १८८१ की ‘धारा 138’ चेक बाउंस होने की स्थिति में वाद दायर करने से संबंधित है। लेकिन धारा 138 में वाद दायर करने के क्षेत्राधिकार को स्पष्ट नहीं किया गया था। वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881’ की धारा 138 के तहत यह व्यवस्था दी थी कि ‘चेक बाउंस होने की स्थिति में वाद उसी स्थान पर दायर होगा जिस स्थान से चेक को जारी किया गया है।’ सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से चेक बाउंस होने की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति (चेक प्राप्त करने वाला) को अपने मुकदमे के लिए बार-बार आने-जाने में होने वाले व्यय तथा समय दोनों का नुकसान होता था तथा न्यायालयों में लगातार मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही थी। मुकदमों की बढ़ती हुई संख्या तथा वित्तीय संस्थानों एवं संगठनों की समस्याओं पर ध्यान देते हुए केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय (परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत) को बदलने एवं लोकोपकारी बनाने हेतु ‘परक्राम्य लिखत (संशोधन) अध्यादेश, 2015’ जारी किया। इस अध्यादेश में यह प्रावधान किया गया है कि चेक बाउंस होने के मामले में मुकदमा उसी स्थान पर (क्षेत्राधिकार में) दायर होगा जहां चेक को प्रस्तुत किया जाएगा। परक्राम्य लिखत (संशोधन) अध्यादेश, 2015 लोक सभा में पारित हो गया था लेकिन राज्य सभा में पारित न हो पाने के कारण सरकार को अध्यादेश जारी करना पड़ा।

लाभ संपादित करें

  • क्षेत्राधिकार के मुद्दे पर स्पष्टीकरण होने से चेक बाउंस के मामलों में चेक की विश्वसनीयता बढ़ेगी तथा चेक इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा।
  • वाद का क्षेत्राधिकार पीड़ित व्यक्ति के क्षेत्र में होने से उसके समय एवं व्यय दोनों की बचत होगी।
  • वित्तीय संस्थानों तथा संगठनों को यह खतरा नहीं रहेगा कि कर्ज चुकाने के लिए चेक बाउंस की घटना से उन्हें उपभोक्ता के क्षेत्र में जाकर वाद दायर करना होगा।
  • कारोबारी लेन-देन का निपटान निश्चित और समय से होगा।

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