पारमाण्विक सिद्धान्त के विकास में अनेक विचारकों ने भाग लिया है। प्राचीन विचारकों में डिमाक्राइटस और कणाद के नाम और आधुनिक विचारकों में न्यूटन, रदरफोर्ड और हाइज़न्बर्ग के नाम विशेष महत्व के हैं।

परमाणु का आधुनिक मॉडल यह है कि परमाणु के केन्द्र में नाभिक होता है जिसमें न्यूट्रॉन और प्रोटॉन होते हैं, नाभिक का आकार परमाणु के आकार की तुलना में बहुत छोटा होता है, नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉनों का बादल होता है।
रदरफोर्ड द्वारा प्रस्तुत किया गया परमाणु का मॉडल

दैमोक्रितोस के अनुसार परमाणु परिमाण, आकार और स्थान में एक दूसरे से भिन्न हैं, परंतु इनमें गुणभेद नहीं। संयोग वियोग में गति आवश्यक है और गति अवकाश में ही हो सकती है। इसलिये परमाणुओं के अतिरिक्त अवकाश भी सत्ता का अंतिम अंश है। बोझिल होने के कारण परमाणु नीचे गिरते हैं; भारी परमाणु अधिक वेग से गिरते हैं और नीचे के हलके परमाणुओं से आ टकराते हैं। इस तरह परमाणुओं में संयोग होता है।

न्यूटन ने परमाणुओं को भारी, ठोस और एकरस माना और उनमें गुणभेद को भी स्वीकार किया। परमाणु की सरलता चिरकाल तक मान्य रही; नवीन भौतिकी ने इसे अमान्य ठहराया है।

रदरफोर्ड के अनुसार परमाणु एक नन्हा सा सौरमंडल है, जिसमें अनेक इलेक्ट्रान अत्यधिक वेग से केंद्र के गिर्द चक्कर लगा रहे हैं। हाइज़न्बर्ग का अनिर्णीतता का नियम एक और पुराने विचार को ठोकर लगाता है, इस नियम के अनुसार परमाणुओं के समूहों की दशा में नियम का शासन प्रतीत होता है, परंतु व्यक्तिगत क्रिया में परमाणु नियम की उपेक्षा करते हैं; इनकी गति अनिर्णीत है।

कणाद ने परमाणुओं में गुणभेद देखा। भौतिक द्रव्यों में गुणभेद है और इस भेद के कारण हमें रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द का बोध होता है। संभवत:, सवेदनाओं के भेद ने उसे परमाणुओं में गुणभेद देखने को प्रेरणा की। नवीन विज्ञान कहता है कि कुछ तत्वों को छोड़ अन्य तत्वों के परमाणु अकेले नहीं मिलते, अपितु २, ३, ४ के समूहों में मिलते हैं। कणाद के विचार में परमाणुओं का मिलकर भी 'चतुरणुक' बनाना सृष्टि में मौलिक घटना है, इस संयोग का टूटना ही संहार या प्रलय है।

इतिहास संपादित करें

भारत में इस अवधारणा का आगमन कि द्रव्य अविभाज्य कणों से बना होता है, येशु के जन्म से पूर्व की अन्तिम शताब्दी में दार्शनिक चिन्तन के एक भाग की तरह हुआ । 600 ई°पू में जन्मे आचार्य कणाद जिनका वास्तविक नाम कश्यप था, पारमाण्विक सिद्धान्त के प्रस्तावक थे। उन्होंने अति सूक्ष्म अविभाज्य कणों के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इन कणों को उन्होंने परमाणु नाम दिया। उन्होंने 'वैशेषिक सूत्र' पुस्तक लिखी। उनके अनुसार सभी पदार्थ छोटी एककों का समूह हैं, जिन्हें परमाणु कहते हैं। यह अनादि - अनन्त, अविभाज्य, गोलाकार, अति-गुणग्राही तथा मूल अवस्था में गतिशील होते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस अकेली एकक का बोध मनुष्य की किसी भी ज्ञानेन्द्रिय द्वारा नहीं होता। कणाद ने यह भी बताया कि परमाणु अनेक प्रकार के होते हैं और पदार्थों के विभिन्न वर्गों के अनुसार इनमें भी भिन्नता होती है। उन्होंने कहा कि अन्य संयोजनों के अतिरिक्त दो या तीन परमाणु भी संयोजित हो सकते हैं। उन्होंने इस सिद्धान्त की अवधारणा जॉन डाल्टन से लगभग 2500 वर्ष पूर्व दे दी थी।

सन्दर्भ संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें