परमाणु क्रमांक

किसी तत्व के नाभिक में स्थित प्रोटॉनों की संख्या

रसायन विज्ञान एवं भौतिकी में सभी तत्वों का विभिन्न परमाणु क्रमांक है जो एक तत्व को दूसरे तत्व से अलग करता है। किसी तत्व का परमाणु क्रमांक उसके तत्व के नाभिक में स्थित प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होता है। इसे Z प्रतीक से प्रदर्शित किया जाता है और प्रत्येक तत्व को उसके विशेष चिन्ह से प्रदर्शित किया जाता है। किसी आवेशरहित परमाणु पर इलेक्ट्रॉनों की संख्या भी परमाणु क्रमांक के बराबर होती है। रासायनिक तत्वों को उनके बढते हुए परमाणु क्रमांक के क्रम में विशेष रीति से सजाने से आवर्त सारणी का निर्माण होता है जिससे अनेक रासायनिक एवं भौतिक गुण स्वयं स्पष्ट हो जाते हैं।[1][2]

हिलियम के परमाणु में दो प्रोटोन होते हैं इसलिए उसका परमाणु क्रमांक भी 2 है। इसके अलावा इस परमाणु में दो न्यूट्रॉन भी होते हैं जिसके कारण इसकी द्रव्यमान संख्या 4 होती है (दो प्रोटोन और दो न्यूट्रॉन)

परमाणु क्रमांक के लिए इस्तेमाल किया जानें वाला पारंपरिक प्रतीक Z जर्मन शब्द Zahl यानि 'संख्या' से आता है। रसायन शास्त्र और भौतिकी के आधुनिक समेकन से पहले Z का प्रयोग केवल आवर्त सारणी में किसी तत्व की जगह दिखाने के लिए किया जाता था, जिनका क्रम अधिकांश समय उनके परमाणु भार के क्रम के अनुरूप था। ये केवल १९१५ के बाद ही हुआ, जब यह सुझाव और प्रमाण दिया गया कि Z संख्या किसी परमाणु का आवेश और उसका भौतिक गुण है, कि Atomzahl (और इसके अंग्रेजी समकक्ष atomic number) का उपयोग इस संदर्भ में सामान्य रूप से किया जाने लगा।

 
रूसी रसायन-शास्त्री द्मीत्री मेन्देलीब़, आवर्त सारणी के निर्माता।

द्मीत्री मेन्देलीब़ के अनुसार उन्होंने अपनी पहली आवर्त सारणियों (६ मार्च, १८६९ में प्रकाशित) को परमाणु भार ("atomgewicht") के क्रम मे व्यवस्थित किया था।‌

समस्थानिक

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कुछ रासायनिक तत्व ऐसे भी हैं जिनके नाभिक में प्रोटॉनों की संख्या (अर्थात परमाणु क्रमांक) तो समान होता है किन्तु उनके नाभिक में न्युट्रॉनों की संख्या अलग-अलग होती है। ऐसे परमाणु समस्थानिक (isotope) कहलाते हैं। इनके रासायनिक गुण तो प्रायः समान होते हैं किन्तु कुछ भौतिक गुण भिन्न होते हैं। पाठ 195

इन्हें भी देखें

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  1. The Periodic Table of Elements Archived 2015-09-10 at the वेबैक मशीन, American Institute of Physics
  2. The Development of the Periodic Table Archived 2012-07-26 at the वेबैक मशीन, Royal Society of Chemistry