चेतना
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (फरवरी 2016) स्रोत खोजें: "चेतना" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
चेतना (conciousness) कुछ जीवधारियों में स्वयं के और अपने आसपास के वातावरण के तत्वों का बोध होने, उन्हें समझने तथा उनकी बातों का मूल्यांकन करने की शक्ति का नाम है। विज्ञान के अनुसार चेतना वह अनुभूति है जो मस्तिष्क में पहुँचनेवाले अभिगामी आवेगों से उत्पन्न होती है। इन आवेगों का अर्थ तुरंत अथवा बाद में लगाया जाता है।
बहुत पुराने काल से प्रमस्तिष्क प्रांतस्था (cerebral cortex) चेतना की मुख्य इंद्रिय, अथवा प्रमुख स्थान, माना गया है। इसमें से भी पूर्वललाट के क्षेत्र को विशेष महत्व दिया गया है। परंतु पेनफील्ड और यास्पर्स चेतना को नए तरीके से ही समझाते हैं। उनके मतानुसार चेतना का स्थान चेतक (thalamus), अधश्चेतक (hypothalamus) और ऊपरी मस्तिष्क के ऊपरी भाग के आसपास है। वे लोग मस्तिष्क के इन भागों को और उनके संयोजनों को स्नायुओं के संगठन का सर्वोच्च स्तर मानते हैं। पूर्व ललाट क्षेत्र तथा अधश्चेतक के बीच बहिर्गामी नाड़ियों द्वारा संयोजन है। संयोजन प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष है। परोक्ष संयोजन पृष्ठ केंद्रक के द्वारा होता है। इन नाड़ियों का संबंध पौंस (Pons) से भी है।
चेतना मनुष्य की वह विशेषता है जो उसे जीवित रखती है और जो उसे व्यक्तिगत विषय में तथा अपने वातावरण के विषय में ज्ञान कराती है। इसी ज्ञान को विचारशक्ति (बुद्धि) कहा जाता है। यही विशेषता मनुष्य में ऐसे काम करती है जिसके कारण वह जीवित प्राणी समझा जाता है। मनुष्य अपनी कोई भी शारीरिक क्रिया तब तक नहीं कर सकता जब तक कि उसको यह ज्ञान पहले न हो कि वह उस क्रिया को कर सकेगा। कोई भी मनुष्य किसी विघातक पदार्थ अथवा घटना से बचने के लिए अपने किसी अंग को तब तक नहीं हिला सकता, जब तक कि उसको यह ज्ञान न हो कि कोई घातक पदार्थ उसके सामने है और उससे बचने के लिए वह अपने अंगों को काम में ला सकता है। उदाहरणार्थ, हम एक ऐसे मनुष्य के बारे में सोच सकते हैं जो नदी की ओर जा रहा है। यदि वह चलते-चलते नदी तक पहुँच जाता है और नदी में घुस जाता है तो वह डूबकर मर जाएगा। वह अपना चलना तब तक नहीं रोक सकता और नदी में घुसने से अपने को तब तक नहीं बचा सकता जब तक कि उसकी चेतना में यह ज्ञान उत्पन्न नहीं होता कि उसके समने नदी है और वह जमीन पर तो चल सकता है, परंतु पानी पर नहीं चल सकता। मनुष्य की सभी क्रियाओं पर उपर्युक्त नियम लागू होता है चाहे, ये क्रियाएँ पहले कभी हुई हों अथवा भविष्य में कभी हों। मनुष्य केवल चेतना से उत्पन्न प्रेरणा के कारण कोई काम कर सकता है।
== चेतना और चरित्र male female और मनुष्य के चरित्र में मौलिक संबंध है। चेतना वह विशेष गुण है जो मनुष्य को जीवित बनाती है और चरित्र उसका वह संपूर्ण संगठन है जिसके द्वारा उसके जीवित रहने की वास्तविकता व्यक्त होती है तथा जिसके द्वारा जीवन के विभिन्न कार्य चलाए जाते हैं।
किसी मनुष्य की चेतना और चरित्र केवल उसी की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं होते। ये बहुत दिनों के सामाजिक प्रक्रम के परिणाम होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने वंशानुक्रम को स्वयं में प्रस्तुत करता है। वह विशेष प्रकार के संस्कार पैत्रिक संपत्ति के रूप में पाता है। वह इतिहास को भी स्वयं में निरूपित करता है, क्योंकि उसने विभिन्न प्रकार की शिक्षा तथा प्रशिक्षण को जीवन में पाया है। इसके अतिरिक्त वह दूसरे लोगों को भी अपने द्वारा निरूपित करता है, क्योंकि उनका प्रभाव उसके जीवन पर उनके उदाहरण, उपदेश तथा अवपीड़न के द्वारा पड़ा है।
जब एक बार मनुष्य की चेतना विकसित हो जाती है, तब उसकी प्राकृतिक स्वतंत्रता चली जाती है। वह ऐसी अवस्था में भी विभिन्न प्रेरणाओं (आवेगों) और भीतरी प्रवृत्तियों से प्रेरित होता है, परंतु वह उन्हें स्वतंत्रता से प्रकाशित नहीं कर सकता। वह या तो उन्हें इसलिए सर्वथा दबा देता है जिससे कि समाज के दूसरे लोगों की आवश्यकताओं और इच्छाओं में वे बाधक न बनें, अथवा उन्हें इस प्रकार चपेट दिया जाता है, या कृत्रिम बनाया जाता है, जिसमें उनका प्रकाशन समाजविरोधी न हो।
इस प्रकार मनुष्य की चेतना अथवा विवेकी मन उसके अवचेतन, अथवा प्राकृतिक, मन पर अपना नियंत्रण रखता है। मनुष्य और पशु में यही विशेष भेद है। पशुओं के जीवन में इस प्रकार का नियंत्रण नहीं रहता, अतएव जैसा वे चाहते हैं वैसा करते हैं। मनुष्य चेतनायुक्त प्राणी है, अतएव कोई भी क्रिया करने के पहले वह उसके परिणाम के बारे में भली प्रकार सोच लेता है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से चेतना
संपादित करेंमनोविज्ञान की दृष्टि से चेतना मानव में उपस्थित वह तत्व है जिसके कारण उसे सभी प्रकार की अनुभूतियाँ होती हैं। चेतना के कारण ही हम देखते, सुनते, समझते और अनेक विषय पर चिंतन करते हैं। इसी के कारण हमें सुख-दु:ख की अनुभूति भी होती है और हम इसी के कारण अनेक प्रकार के निश्चय करते तथा अनेक पदार्थों की प्राप्ति के लिए चेष्टा करते हैं।
मानव चेतना की तीन विशेषताएँ हैं। वह ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक होती है। भारतीय दार्शनिकों ने इसे सच्चिदानंद रूप कहा है। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के विचारों से उक्त निरोपज्ञा की पुष्टि होती है। चेतना वह तत्व है जिसमें ज्ञान की, भाव की और व्यक्ति, अर्थात् क्रियाशीलता की अनुभूति है। जब हम किसी पदार्थ को जानते हैं, तो उसके स्वरूप का ज्ञान हमें होता है, उसके प्रति प्रिय अथवा अप्रिय भाव पैदा होता है और उसके प्रति इच्छा पैदा होती है, जिसके कारण या तो हम उसे अपने समीप लाते अथवा उसे अपने से दूर हटाते हैं।
चेतना को दर्शन में स्वयंप्रकाश तत्व माना गया है। मनोविज्ञान अभी तक चेतना के स्वरूप में आगे नहीं बढ़ सका है। चेतना ही सभी पदार्थो को, जड़ चेतन, शरीर मन, निर्जीव जीवित, मस्तिष्क स्नायु आदि को बनाती है, उनका स्वरूप निरूपित करती है। फिर चेतना को इनके द्वारा समझाने की चेष्टा करना अविचार है। मेगडूगल महाशय के कथनानुसार जिस प्रकार भौतिक विज्ञान की अपनी ही सोचने की विधियाँ और विशेष प्रकार के प्रदत्त हैं उसी प्रकार चेतना के विषय में चिंतन करने की अपनी ही विधियाँ और प्रदत्त हैं। अतएव चेतना के विषय में भौतिक विज्ञान की विधियों से न तो सोचा जा सकता है और न उसके प्रदत्त इसके काम में आ सकते हैं। फिर भौतिक विज्ञान स्वयं अपनी उन अंतिम इकाइयों के स्वरूप के विषय में निश्चित मत प्रकाशित नहीं कर पाया है जो उस विज्ञान के आधार हैं। पदार्थ, शक्ति, गति आदि के विषय में अभी तक कामचलाऊ जानकारी हो सकी है। अभी तक उनके स्वरूप के विषय में अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। अतएव चेतना के विषय में अंतिम निर्णय की आशा कर लेना युक्तिसंगत नहीं है। चेतना को अचेतन तत्व के द्वारा समझाना, अर्थात् उसमें कार्य-कारण संबंध जोड़ना सर्वथा अविवेकपूर्ण है।
चेतना को जिन मनोवैज्ञानिकों ने जड़ पदार्थ की क्रियाओं के परिणाम के रूप में समझाने की चेष्टा की है अर्थात् जिन्होंने इसे शारीरिक क्रियाओं, स्नायुओं के स्पंदन आदि का परिणाम माना है, उन्होंने चेतना की उपस्थिति को ही समाप्त कर दिया है। उन्होंने चेतना की उपस्थिति को ही समाप्त कर दिया है। पैवलाफ और वाटसन महोदय के चिंतन का यही परिणाम हुआ है। उनके कथनानुसार मन अथवा चेतना के विषय में मनोविज्ञान में सोचना ही व्यर्थ है। मनोविज्ञान का विषय मनुष्य का दृश्यमान व्यवहार ही होना चाहिए।
चेतना के शरीर में संबंध के विषय में मनोवैज्ञानिकों के विभिन्न मत हैं। कुछ के अनुसार मनुष्य के बृहत् मस्तिष्क में होनेवाली क्रियाओं, अर्थात् कुछ नाड़ियों के स्पंदन का परिणाम ही चेतना है। यह अपने में स्वतंत्र कोई तत्व नहीं है। दूसरों के अनुसार चेतना स्वयं तत्व है और उसका शरीर से आपसी संबंध है, अर्थात् चेतना में होनेवाली क्रियाएँ शरीर को प्रभावित करती हैं। कभी-कभी चेतना की क्रियाओं से शरीर प्रभावित नहीं होता और कभी शरीर की क्रियाओं से चेतना प्रभावित नहीं होती। एक मत के अनुसार शरीर चेतना के कार्य करने का यंत्र मात्र हैं, जिसे वह कभी उपयोग में लाती है और कभी नहीं लाती। परंतु यदि यंत्र बिगड़ जाए, अथवा टूट जाए, तो चेतना अपने कामों के लिए अपंग हो जाती है। कुछ गंभीर मनोवैज्ञानिक विचारकों द्वारा विज्ञान की वर्तमान प्रगति की अवस्था में उपर्युक्त मत ही सर्वोत्तम माना गया है।
चेतना के स्तर
संपादित करेंचेतना के तीन स्तर माने गए हैं : चेतन, अवचेतन और अचेतन। चेतन स्तर पर वे सभी बातें रहती हैं जिनके द्वारा हम सोचते समझते और कार्य करते हैं। चेतना में ही मनुष्य का अहंभाव रहता है और यहीं विचारों का संगठन होता है। अवचेतन स्तर में वे बातें रहती हैं जिनका ज्ञान हमें तत्क्षण नहीं रहता, परंतु समय पर याद की जा सकती हैं। अचेतन स्तर में वे बातें रहती हैं जो हम भूल चुके हैं और जो हमारे यत्न करने पर भी हमें याद नहीं आतीं और विशेष प्रक्रिया से जिन्हें याद कराया जाता है। जो अनुभूतियाँ एक बार चेतना में रहती हैं, वे ही कभी अवचेतन और अचेतन मन में चली जाती हैं। ये अनुभूतियाँ सर्वथा निष्क्रिय नहीं होतीं, वरन् मानव को अनजाने ही प्रभावित करती रहती हैं।
चेतना का विकास
संपादित करेंचेतना सामाजिक वातावरण के संपर्क से विकसित होती है। वातावरण के प्रभाव से मनुष्य नैतिकता, औचित्य और व्यवहारकुशलता प्राप्त करता है। इसे चेतना का विकास कहा जाता है। विकास की चरम सीमा में चेतना निज स्वतंत्रता की अनुभूति करती है। वह सामाजिक बातों को प्रभावित कर सकती है और उनसे प्रभावित होती है, परंतु इस प्रभाव से अपने आपको अलग भी कर सकती है। चेतना को इस प्रकार की अनुभूति को शुद्ध चैतन्य अथवा प्रमाता, आत्मा आदि शब्दों से संबोधित किया जाता है। इसकी चर्चा चाल्र्स युंग, स्पेंग्ल, विलियम ब्राउन आदि विद्वानों ने की है। इसे देशकाल की सीमा के बाहर माना गया है।
चेतना की जटिल समस्या[1]
संपादित करेंचेतना की जटिल समस्या ( हार्ड प्रॉब्लम ऑफ कॉन्शियसनेस) एक दार्शनिक और वैज्ञानिक समस्या है जिसका संबंध इस बात से है कि कैसे भौतिक तत्वों से चेतना उत्पन्न होती है। यह समझना कठिन है कि कैसे न्यूरॉन्स और सिनेप्सेस जैसे भौतिक प्रक्रियाओं से अनुभव, संवेदना और जागरूकता जैसी अमूर्त चीजें उत्पन्न होती हैं।
इस समस्या के कई पहलू हैं:
1. सुबोधता समस्या: यह समझना कठिन है कि मस्तिष्क की भौतिक गतिविधियां कैसे सुबोध अनुभवों का निर्माण करती हैं।
2. एकीकरण समस्या: कैसे मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों द्वारा संसाधित सूचना एकीकृत होकर एक संपूर्ण अनुभव बनाती है।
3. आत्म-चेतना समस्या: हम अपने आप को कैसे जानते और अनुभव करते हैं? आत्म-चेतना का भौतिक आधार क्या है?
4. अनैच्छिक अनुभव समस्या: कैसे अनैच्छिक भावनाएं और अनुभव उत्पन्न होते हैं जिनका हम नियंत्रण नहीं कर सकते?
वैज्ञानिक और दार्शनिक चेतना के भौतिक आधार को समझने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह एक जटिल और अभी भी हल न की गई समस्या बनी हुई है। इसके विभिन्न सिद्धांत और दृष्टिकोण हैं, लेकिन कोई भी पूर्ण रूप से स्वीकार्य समाधान नहीं मिला है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Baars, B. (1997)। In the Theater of Consciousness: The Workspace of the Mind. New York, NY: Oxford University Press. 2001 reprint: ISBN 978-0-19-514703-2
- Baars, Bernard J and Stan Franklin. 2003. How conscious experience and working memory interact. Trends in Cognitive Science 7: 166–172.
- Yaneer Bar-Yam (2003). Dynamics of Complex Systems, Chapter 3.
|title=
में बाहरी कड़ी (मदद) - Blackmore, S. (2003)। Consciousness: an Introduction. Oxford: Oxford University Press. ISBN 978-0-19-515343-9
- Blackmore, S. (2005) "Conversations on Consciousness". Oxford: Oxford University Press. ISBN 978-0-19-280623-9
- Block, N. (2004). The Encyclopedia of Cognitive Science.
- Carter, Rita. (2002) Exploring Consciousness. UC Berkeley Press. ISBN 0-520-23737-4
- Chalmers, D. (1996)। The Conscious Mind: In Search of a Fundamental Theory. New York: Oxford University Press. ISBN 978-0-19-511789-9
- Chalmers, D.(2002) The puzzle of conscious experience. Scientific American, Jan 2002. [1]
- Charlton, Bruce G. "Evolution and the Cognitive Neuroscience of Awareness, Consciousness and Language"
- Cleermans, A. (Ed.) (2003)। The Unity of Consciousness: Binding, Integration, and Dissociation. Oxford: Oxford University Press. ISBN 978-0-19-850857-1
- Rodney M. J. Cotterill (1998). Enchanted Looms : Conscious networks in brains and computer. Cambridge University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0521794626.
- Crick, F.H.C. (1994) "The Astonishing Hypothesis". London Simon & Schuster Ltd. ISBN 0-671-71295-0
- Damasio, A. (1999)। The Feeling of What Happens: Body and Emotion in the Making of Consciousness. New York: Harcourt Press. ISBN 978-0-15-601075-7
- Dennett, D. (1991)। Consciousness Explained, Boston: Little & Company. ISBN 978-0-316-18066-5
- Eccles, J.C. (1994), How the Self Controls its Brain, (Springer-Verlag)।
- Franklin, S, B J Baars, U Ramamurthy, and Matthew Ventura. 2005. The role of consciousness in memory. Brains, Minds and Media 1: 1–38, pdf.
- Halliday, Eugene, Reflexive Self-Consciousness, ISBN 0-872240-01-1
- Harnad, S. (2005) What is Consciousness? New York Review of Books 52(11)।
- Harnad, S. (2008) What It Feels Like To Hear Voices: Fond Memories of Julian Jaynes
- James, W. (1902) The Varieties of Religious Experience
- Immanuel Kant (1781). Critique of Pure Reason. Trans. Norman Kemp Smith with preface by Howard Caygill. Pub: Palgrave Macmillan.
- Koch, C. (2004)। The Quest for Consciousness. Englewood, CO: Roberts & Company. ISBN 978-0-9747077-0-9
- John Locke (1689). An Essay Concerning Human Understanding[मृत कड़ियाँ]
- Libet, B., Freeman, A. & Sutherland, K. ed. (1999)। The Volitional Brain: Towards a neuroscience of free will. Exeter, UK: Short Run Press, Ltd.
- Llinas R.,Ribary,U. Contreras,D. and Pedroarena, C. (1998) "The neuronal basis for consciousness" Phil. Tranns. R. Soc. London, B. 353:1841-1849
- Llinas R. (2001) "I of the Vortex. From Neurons to Self" MIT Press, Cambridge
- Metzinger, T. (2003)। Being No One: the Self-model Theory of Subjectivity. Cambridge, MA: MIT Press.
- Metzinger, T. (Ed.) (2000)। The Neural Correlates of Consciousness. Cambridge, MA: MIT Press. ISBN 978-0-262-13370-8
- Morgan, John H. (2007. In the Beginning: The Paleolithic Origins of Religious Consciousness. Cloverdale Books, South Bend. ISBN 978-1-929569-41-0
- Morsella, E. (2005)। The Function of Phenomenal States: Supramodular Interaction Theory. Psychological Review, 112, 1000-1021.
- Neumann, Erich. The origins and history of consciousness, with a foreword by C.G. Jung. Translated from the German by R.F.C. Hull. New York : Pantheon Books, 1954.
- Penrose, R., Hameroff, S. R. (1996), 'Conscious Events as Orchestrated Space-Time Selections', Journal of Consciousness Studies, 3 (1), pp. 36–53.
- Pharoah, M.C. (online)। Looking to systems theory for a reductive explanation of phenomenal experience and evolutionary foundations for higher order thought Retrieved Dec.14 2007.
- Sanz, R., López, I., Rodríguez, M. and Hernández, C. (2007) 'Principles for Consciousness in Integrated Cognitive Control'. Neural Networks, 20, pp. 938–946.
- Scaruffi, P. (2006)। The Nature Of Consciousness. Omniware.
- Searle, J. (2004)। Mind: A Brief Introduction. New York: Oxford University Press.
- Sternberg, E. (2007) Are You a Machine? The Brain, the Mind and What it Means to be Human. Amherst, NY: Prometheus Books.
- Velmans, M. (2000) Understanding Consciousness. London: Routledge/Psychology Press.
- Velmans, M. and Schneider, S. (Eds.)(2006) The Blackwell Companion to Consciousness. New York: Blackwell.
- शैणणिक जर्नल
- Anthropology of Consciousness
- Journal of Consciousness Studies
- Consciousness and Cognition
- Psyche
- Science & Consciousness Review
- ASSC e-print archive containing articles, book chapters, theses, conference presentations by members of the ASSC.
- दार्शनिक स्रोत
- Publications of the Tufts Center for Cognitive Studies, including Daniel Dennett
- David Chalmers' directory of online papers on consciousness
- Intuitions about Consciousness: Experimental Studies an article describing the folk intuitions about what is a conscious agent
- Stanford Encyclopedia of Philosophy:
- Internet Encyclopedia of Philosophy:
- विविध जालघर
- History of Consciousness Graduate Program, ("consciousness as forms of human expression and social action manifested in historical, cultural, and political contexts") at the University of California, Santa Cruz, headed by Dr. Angela Davis* Online lecture videos, from an undergraduate course taught by Christof Koch at Caltech on the neurobiological basis of consciousness in 2004.
- Piero Scaruffi's annotated bibliography on the mind
- Anesthesia and Drug effects on consciousness
- Brain Atlas, Brain Maps, Neuroinformatics
- Online course in consciousness at University of Virginia
- A survey course at University of Florida
- Edinburgh thesis[मृत कड़ियाँ] (.ps) on consciousness including up-to-date reviews
- Consciousness-Related Engineering Anomaly Princeton
- Thy Mystery of Consciousness TIME.com
- Helen Keller Language and Consciousness
- Theory of the Red Blood Cells
वीडियो