पराठे[1] वाली गली य़ा गली पराठे वाली, एक सकरी गली चाँदनी चौक नामक प्रसिद्ध बाज़ार मे जो की दिल्ली में स्थित है। वहां काफी पुरानी पराठे बनाने वाली दुकाने हैं। यह एक भारतीय रोटी का विशिष्ट रूप है। यह व्यंजन उत्तर भारत में जितना लोकप्रिय है, लगभग उतना ही दक्षिण भारत में भी है, बस मूल फर्क ये है, कि जहां उत्तर में आटे का बनता है, वहीं दक्षिण में मैदे का बनता है। माना जाता है यहाँ के दुकानदार मुगलों के समय से पराठे बेच रहे हैं।[2][3][4]

पराठे वाली गली जो कि प्रसिद्ध है सिर्फ परांठा के लिये Dec 2006.

इतिहास के अनुसार सन १६५० में मुगल के बादशाह शाहजहाँ ने लाल किले कि स्थापना कि तभी चांदनी चौक भी बनवाया गया।[2] पुराने समये मे ये चाँदी के बर्तनो के लिये प्रसिद्ध रह चुकी है। पराठे कि दुकाने यहाँ सन १८७० मे लाई गयी। यहा का जायका विश्व मे प्रसिद्ध है। हालांकि मुम्बई मे एक भोजनालय है जो कि सिर्फ पराठे बेचता है और अमेरिका का एक मेला नामक भोजनालय दिल्ली की इस प्रसिद्ध गली के माहौल की प्रतिलिपि बनाने की कोशिश की।

सन १९६० मे यहाँ करीब २० दुकानें थी (सभी एक ही परिवार के लोग थे) अब सिर्फ ३ ही दुकानें रह गयी हैं: पं॰ कन्हैयालाल दुर्गा प्रसाद दीक्षित (१८७५ estd), पं॰ दयानंद शिव चरण (१८८२ estd), पं॰ बाबूराम देवी दयाल पराठे वाले (१८८६ estd)। १९११ से, इस क्षेत्र को छोटा दरीबा या दरीबा कलां के रूप में जाना जाता है।

आजादी के बाद के वर्षों में, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और विजया लक्ष्मी पंडित इस गली में उनके पराठे खाने के लिए आया करते था। "पंडित दयानंद शिव चरण" दुकान गर्व से नेहरू परिवार की तस्वीर दिखाता है। स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण उनके एक नियमित आगंतुक थे।

यहाँ पुराने जमाने कि तर्ज पर पारंपरिक रूप से भोजन पकाया जाता है जो कि शुद्ध शाकाहारी होता है और उसमे प्याज या लहसुन शामिल नहीं होता है। ऐसा इसलिये है क्योंकि इन दुकानों के मालिक ब्राह्मण हैं और पारंपरिक रूप से ग्राहकों के पड़ोस में जैन रहते थे। यहा पर विभिन्न किस्मों के काजू परांठा, बादाम परांठा, मटर परांठा, मिक्स परांठा, रबड़ी परांठा, खोया परांठा, गोभी परांठा, परत परांठा परोसे जाते हैं। परांठा आम तौर पर मीठी इमली की चटनी, पुदीना की चटनी, अचार और मिश्रित सब्जी, पनीर की सब्जी, आलू और मेथी की सब्जी और कद्दू की सब्जी (सीताफल) के साथ परोसा जाता है।

आमतौर पर यहां लोग पराठे के साथ लस्सी का उपयोग करते हैं। इस जगह की एक विशेष बात यह है कि, लस्सी परंपरागत तरीके में एक मिट्टी के कुल्हड़ में परोसी जाती है।

  1. "Official name". मूल से 5 सितंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 मार्च 2012.
  2. "Paranthe Wali Gali". मूल से 21 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 मार्च 2012.
  3. "Parathe Wali gali". मूल से 15 फ़रवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 मार्च 2012.
  4. "India Street Food". मूल से 22 जुलाई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 मार्च 2012.