पशु महामारी या रिंडरपेस्ट (Rinderpest) पशुओं को लगने वाला एक विषाणुजनित संक्रामक रोग था जो अब विश्व से समाप्त हो चुका है। यह भैंस एवं कुछ अन्य पशुओं को लगता था। इस रोग से ग्रसित पशु को ज्वर, अतिसार (पोंकनी या डायरिया), मुंह से लार टपकना आदि लक्षण देखने को मिलते थे।

यह रोग भी एक विषाणु से पैदा होने वाला छूतदार रोग है जोकि जुगाली करने वाले लगभग सभी पशुओं को होता है। इसमें पशु को तीव्र दस्त अथवा पेचिस लग जाते हैं। यह रोग स्वस्थ पशु को रोगी पशु के सीधे संपर्क में आने से फैलता है। इसके अतिरिे वर्तनों तथा देखभाल करने वाले व्यिे द्वारा भी यह बीमारी फैल सकती है। इसमें पशु को तेज बुखार होजाता है तथा पशु बेचैन होजाता है। दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है और पशु की आंखें सुर्ख लाल होजाती हैं। 2-3 दिन के बाद पशु के मुंह में होंठ, मसूड़े व जीभ के नीचे दाने निकल आते हैं जो बाद में घाव का रूप ले लेते हैं। पशु के मुंह से लार निकलने लगती हैतथा उसे पतले व बदबूदार दस्त लग जाते हैंजिनमें खून भी आने लगता है। इसमें पशु बहुत कमजोर होजाता है तथा उसमें पानी की कमी होजाती है। इस बीमारी में पशु की 3-9 दिनों में मृत्यु हो जाती है। इस बीमारी के प्रकोप से विश्व भर में लाखों की संख्या में पशु मरते थे लेकिन अब विश्व स्तर पर इस रोग के उन्मूलन की योजना के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा लागू की गयी रिन्डरपेस्ट इरेडीकेशन परियोजना के तहत लगातार शत प्रतिशत रोग निरोधक टीकों के प्रयोग से अब यह बीमारी प्रदेश तथा देश में लगभग समाप्त होचुकी है।

पशु महामारी और शाकाहार आन्दोल संपादित करें

विश्व भर के शाकाहारियों को एक स्थान पर लाने और खुरपका-मुँहपका तथा मैड काओ जैसे रोगों से लोगों को बचाने के लिए उत्तरी अमेरिका के कुछ लोगों ने 70 के दशक में नॉर्थ अमेरिकन वेजिटेरियन सोसाइटी का गठन किया।[1]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 11 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 31 मार्च 2014.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें