सन् 1813 में ब्रिटिश संसद में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई , जिनमें से एक रिपोर्ट पाँचवी रिपोर्ट कहलाती थी। इस रिपोर्ट में भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन और क्रियाकलापों का वर्णन था।यह रिपोर्ट 1002 पृष्ठों में थी। इस रिपोर्ट में जमींदारों और रैयतों (किसानों) की अर्जियाँ तथा अलग-अलग जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्टें , राजस्व विवरणियों से सम्बन्धित सांख्यिकीय तालिकाएँ और अधिकारियों द्वारा बंगाल तथा मद्रास के राजस्व तथा न्यायिक प्रशासन पर लिखी हुई टिप्पणीया शामिल थीं। 1. जब कंपनी ने प्लासी के युद्ध 1757 ईसवी के बाद बंगाल में अपनी सत्ता स्थापित की तभी से इंग्लैंड में उसके क्रियाकलापों पर बारीकी से नजर रखी जा रही थी ब्रिटेन में ऐसे बहुत से व्यापारिक समूह थे जो कंपनी के भारत और चीन के साथ व्यापारिक एकाधिकार का विरोध कर रहे थे उनकी मांग थी कि उस फरमान को रद्द किया जाए जिसके अंतर्गत कंपनी को एक अधिकार दिया गया था कई राजनीतिक समूह का कहना था कि बंगाल पर मिली विजय का फायदा केवल ईस्ट इंडिया कंपनी को ही मिल रहा है संपूर्ण ब्रिटिश राष्ट्र को नहीं ईस्ट इंडिया कंपनी के कुशासन व्यवस्थित प्रशासन के विषय में प्राप्त सूचनाओं पर बैठे संसद में गरमागरम बहस छिड़ गई और कंपनी के अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण तथा लोभ लालच की घटनाओं को ब्रिटेन के समाचार पत्रों में खूब उछाला गया पांचवी रिपोर्ट के गुण -पांचवी रिपोर्ट में उपलब्ध साक्ष्य बहुमूल्य है 18वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में ग्रामीण बंगाल में क्या हुआ इसके बारे में हमारी अवधारणा लागू की डेट शताब्दी तक जांच रिपोर्ट के आधार पर ही बनती सुधरती रही रिपोर्ट का दोष -पांचवी रिपोर्ट में परंपरागत जमीदारी के पतन का वर्णन बहुत बड़ा चढ़ाकर लिखा गया और जिस पैमाने पर जमीदार लोग अपनी जमीनें खोते जा रहे थे उसके बारे में भी बढ़ा चढ़ाकर कहा गया है जब जमीदार या नीलाम होती थी तो जमीदार नए-नए हथकंडे अपनाकर अपनी जिम्मेदारी बचा लेते थे और बहुत कम मामलों में विस्थापित होते थे