पालागुम्मि साईनाथ
पालागम्मी साईनाथ् (जन्म १९५७) भारतीय पत्रकार हैं जिन्होंने अपनी पत्रकारिता को सामाजिक समस्याओं, ग्रामीण हालातों, गरीबी, किसान समस्या और भारत पर वैश्वीकरण के घातक प्रभावों पर केंद्रित किया है। वे स्वयं को ग्रामीण संवाददाता या केवल संवाददाता कहते हैं। वे अंग्रेजी अखबार द हिंदू और द वेवसाइट इंडिया के ग्रामीण मामलों के संपादक हैं। हिंदू में पिछले ६ वर्षों से वे अपने कई महत्वपूर्ण कार्यों पर लिखते रहे हैं। अमर्त्य सेन ने उन्हें अकाल और भूखमरी के विश्व के महानतम विशेषज्ञों में से एक माना है।
जीवन परिचय
संपादित करेंसाईनाथ ने मद्रास (चेन्नई) के एक प्रतिष्ठित परिवार में जन्म लिया। ये स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व राष्ट्रपति वी.वी. गिरि के पोते और कांग्रेस नेता वी. शंकर गिरि के भांजे है।[1] साईनाथ ने अपनी शिक्षा "लोयोला महाविद्यालय" से प्राप्त की है। सामाजिक समस्याओं में इनकी तल्लीनता और राजनीतिक दृश्य से प्रतिबद्धता महाविद्यालय के दिनों से ही शुरु हो गई थी। ये दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ग्रैजुएट है जहाँ ये एक सक्रिय विद्यार्थी आबादी का हिस्सा थे। अब इसी विश्वविद्यालय के कार्यकारिणी परिषद के सदस्य है। इन्होंने १९८० में "यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ़ इंडिया" में व्यवसाय की शुरुआत एक पत्रकार के रूप की और वहां का सर्वोच्च व्यक्तिगत पुरस्कार भी प्राप्त किया। इसके बाद दस वर्ष तक मुम्बई से प्रकाशित "ब्लिट्ज़" नामक एक मुख्य साप्ताहिक लघु समाचार-पत्र में पहले विदेश व्यवसाय संपादक के रूप में फिर उप संपादक के रूप में काम किया। पिछले पच्चीस सालो से " सोफ़िया पॉलिटेक्निक"[2] और चेन्नई की "एशियण कॉलेज ऑफ़ जर्नलिज्म" में एक अतिथि प्राध्यापक के रूप में एक पुरी नई पत्रकारों की पीढ़ी को प्रेरित करते आ रहे है।
विचारधारा
संपादित करेंपश्चिमी ओडीशा में अनावृष्टि और किसान आत्महत्या पर :
पिछेले कई दशकों से अनावृष्टि से ग्रसित पश्चिमी ओडिशा, खासकर कालाहांडी चर्चा का विषय रहा है। किन्तु, इन सनसनीखेज समाचार शीर्षकों और आपदा और भुखमरी के व्याख्यानों के पीछे छुपी हुई हैं। वहाँ के लोगों पर बीतती हुई त्रास्दी और उनके अधिकारों का निरंतर वंचन। चाहे लम्बी बेरोज़गारी हों, अनावृष्टि हो, बर्बाद होती हुई फसल हो, विस्थापन हो या फिर स्थायी हो, भारत के सबसे गरीब ज़िलों में से एक पर प्राकृतिक संसाधन धनी इस ज़िले में हर चीज़ एक बड़ा संघर्ष है।
विश्व व्यापार संघठन (डब्लू . टी . ओ), पूंजीवाद और समाजवाद पर :
विश्व व्यापार संगठन और जी . ए . टी .टी के अनुबंध बहुत ही अपराजातन्त्रवादी है। निगमित नेताओं ही नीती बनाते हैं, नाकि निर्वाचित प्रतिनिधियों। जब जिनेवा में लोग नियम बनाते हैं, तब वे कोइ लोकल पंचायत नेता के राय नहीं लेते और इसलिए वे उन्हें इन फैसलों के परिणामों को सामना करने के लिए नहीं कह सकते। अलग व्यवस्था का विचार छिछली है, खुले बाज़ार पूंजीवाद का सबसे विचित्र पक्ष यह है कि वह उन ही लोगों को लाभ दिया है जो समाजवाद से लाभ किये हैं। यह अनपेक्षित भी नहीं है। वैसे भी, उदारीकरण प्रक्रिया के नब्बे दिन पहले मनमोहन सिंह ने दक्षिण अयोग की प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर किया था, क्या वे वास्तव में अपने विचारों को उस समय में बदल सकते थे ? राजनीतिक अवसरवाद और मीडिया प्रबंधन ने दूसरे विकल्पों और व्यवस्थाओं को नया रूप दिखाया है, बिना किसी सार्थक परिवर्तन के।
मीडिया के बढ़ते बाजारीकरण पर :
पिछले 20 वर्षों में मीडिया का सबसे ज़्यादा बाज़ारीकरण हुआ है। मीडिया को जहां से पैसा मिलता है वह वहीं पर फ़ोकस करता है। आज एक भी संवाददाता श्रमिकों, मजदूरों के लिए नहीं है, रोज़गार बीट को कोई कवर ही नहीं करता।[3]
भारत के कानून और व्यवस्था की स्थिति पर :
उच्च न्यायलय के सारे न्यायध्यक्षों के पास एक अकेले पुलिस कांस्टेबल कि ताकत नहीं हैं। वह कांस्टेबल हमें बनता है या तोड़ता है। न्ययाध्यक्ष कानून को फिर से नहीं लिख सकते और उन्हें दोनों पक्षों के शिक्षित वकीलों को सुन्ना पड़ता हैं। यहाँ कांस्टेबल सरलता से खुद के कानून बना लेता है। वह लगभग कुछ भी कर सकता है। जब राज्य और समाज उसे आँख मारती है, तो वह अधिकतर कर सकता है।
एकाधिकार के खिलाफ सख्त कानून पर:
भारत में एक सख्त एंटी मोनोपोली क़ानून होना चाहिए। ऐसा लेजिस्लेशन सिर्फ नेगेटिव नहीं होना चाहिए। एक पॉजिटिव लेजिस्लेशन होना चाहिए जो भारतीय मीडिया में डाइवर्सिटी बढ़ा सकता हैं।[4]
गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी पर :
साईनाथ ने मोदी के ख्याति और गुजरात के मॉडल को "हमारे समय के सबसे बड़े सार्वजनिक संबंधों का धोखा " कहा है। उनके अनुसार, मोदी एक निगमित दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं।
पत्रकारिता
संपादित करेंसाईनाथ का मानना है कि मीडिया का ध्यान "खबर" से "मनोरानजन" तक बढ रहा है और शहरी अभिजात वर्ग के उप्भोक्तावाद और जीवन शैली को अखबारो में प्रमुखता मिली है जो शायद ही कभी भारत में गरीबी की हकीकत की खब्रर लेकर आई है। "मुझे लगता है कि अगर भारतीय प्रेस ने पाच प्रतिशत को कवर किया है, तो मुझे नीचे के पाच प्रतिशत को कवर करना चहिए" साईनाथ ने कहा।
१९९३ में साईनाथ ने भारत फैलोशिप के एक टाइम्स के लिए आवेदन दिया था। साक्षात्कार में उन्होने ग्रामीण भारत से रिपोर्ट करने के लिए अपनी योजनाओ के बारे में कहा। जब एक सम्पाद्क ने उस्से पूछा कि "मान लीजिए कि मेरे पाठ्क, इन सब चीज़ो मे दिलचस्पी नही लेते है" तब साइनाथ ने कहा कि "आप पिछ्ले बार अपने पाठ्को से कब मिले थे कि उनकी ओर से इस तरह का दावा कर रहे है?"।
वह अपने साहचर्यै को पाच राज्यो के द्स सबसे गरीब जिलो में पीछे वाले सड्को पर गए। इसका अर्थ पैदल ५००० किलोमीटर चलने के साथ- साथ १६ परिवाहन रूपो का उपयोग करके १०० ००० किलोमीटर का सफर था। उनहोने सहानुभूति समपाद्को का श्रैय टाइम्स में किया है और उनके लेख को मोजूदा स्वरूप में प्रकाशित करने के लिए उन्हे बहुत सफलता मिली है क्योकि वह उन अखबारो में से एक है जो स्थानातरण की जिम्मेदारी के ऊपर आरोप है। कागज में १८ महीने के लिए साईनाथ के ८४ रीपोर्ट थे। उनमे से कई उनके किताब "एवरीबोडी लावस ए गुड द्रोट" में पुनर्मद्रित किये गये हैं। दो से अधिक वषो के लिए, गेर-कथा, सबसे अच्छा विक्रेताओ में यह किताब नमबर १ था। अन्त में यह "पेगुइन" के रेन्क में प्रवेश किया जो भारत में सबसे अच्छा विक्रेताओ में है। अब यह पुस्तक अपने ३१ सन्स्करण में है और प्रिन्ट में अब भी है। केनेडीएन द्स्तावेज़ी फिल्म निर्माता "जोइ मालिन्स" ने साईनाथ के बारे में एक फिल्म बनाया जिस्का नाम "ए ट्राइब ऑफ हीज़ ओन" था। एड्मान्टन अन्तर्राट्रीय फिल्म समारोह में जब जूरी ने अपने एक विजेता चुना, साईनाथ और फिल्म के निर्माता को पुरस्कार मिला क्योकि यह एक "प्रेरणा के बारे मे पुरस्कार" था। एक और विचित्र फिल्म है, "नीरोस गेस्ट्स" जो असमानता के बारे में बताते है और इसमे साईनाथ विषय पर रिपोर्ट करते है। "नीरोस गेस्ट्स" ने २०१० में सर्वश्र वर्तचित्र के लिए भारतीय वर्तचित्र निर्माता एसोसिएशन का स्वर्ण पदक जीता। और देश के बाहर भी कई पुरस्कार जीते है। उनके लेखन में तमिलनाडू राज्य में सूखा प्रबन्धन कार्यक्रम के सुधार भी शामिल है कि प्रतिक्रियाओ छिड गई है, उडीसा में मलकानगिरी में स्वदेशी चिकित्सा प्रणालियो पर एक नीति का विकास और मध्य प्रदेश राज्य में जनजातीय लोगो के लिए क्षेत्र विकास कार्यक्रम के सुधार। टाइम्स ऑफ ईडिया ने उनके रिपोर्ट करने के तरीकों को सनस्थागत किया और साठ अन्य प्रमुख समाचार पत्रो ने गरीबी और ग्रामीण विकास पर कालम शुरू किया। उन्होने उनका पत्रकारिका ने ऊचा नाम किया और उन्हे राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार अर्जित हुए। उन्के पुरस्कारो ने उन्हे साख और स्वतनत्र जीने के लिये पैसे सुसज्जित किये।
उन्होने आध्र प्रदेश में क्रिषी आयोग कि स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और राज्य में क्रिषी सुधार के लिए तरीके का सुझाव दिया।
सन्कट राज्यो में आध्र प्रदेश, राजस्थान और उडीसा है। १९९७ और २००० के बीच आध्र प्रदेश में अनान्थपुर के एक जिले मे, १८०० से अधिक लोगो ने आत्म्हत्या कि थी लेकिन जब राज्य विधानसभा ने इन आकडो क अनुरोध किया तब केवल ५४ सचीब्ध किया गया था। क्योकि भरात में आत्महतया एक अपराध माना गया है, आत्महतया के लिये जिला अपराध अभिलेख ब्यूरो ने सूची श्रेणियो जारी की- एकतरफा प्यार, परीक्षा, पति और पत्नियो के व्यवहार आदि। अनान्थपुर में इन श्रेणियो में से कुल ५ % से कम था। सबसे बडी सन्ख्या १०६१ लोगो को क्योकि "पेट दर्द" की आत्महतया प्रतिबन्ध होने के रूप में सूचीबन्ध किया गया। इस घातक स्थिती सिबा गेईगी के कीट्नाशक लेने का परिणाम है और यह लगभग एक ही चीज़ है जो सरकार मुफ्त में वितरित करती है और ग्रामीण गरीबो आसानी से पा साकते ह।
उसकी अधिक हाल परीयोजनाओ में से एक दलितो पर, हिन्दू के लिए लगबग पूरा हो गया है और वह इस काम के आधार पर एक किताब की योजना बना रहे है। यह परीयोजना भारत में १५ राज्यो में एक विशाल क्षेत्र में शामिल किया गया है। इसने पहले से ही १५०,००० किलोमीटर कवर कर दिया है और पाच और राज्य बचे हुए हैं। जब समचार पत्र एक सीमा से ज्यादा निधि के लिए तैयार नहीं थे, तब साईनाथ ने अपने स्वय्म सन्साधनो, उनकी बचत, उसके भविष्य निधि, उसके ग्रेच्यूटी से ख्रर्च किया, कापोरेट प्रायोजको से परहेज करके।
साईनाथ ने पिछ्ले ३० वर्षो के लिए अपने रिपोर्टिग के साथ सभी तस्वीरे भी लिए है। उनके प्रदर्श्नी वीसीबल वर्क, इनतीसीबल वुमेन एन्ड वर्क इन रूराल इडिया अकेले भारत में ६००,००० से अधिक लोगो द्वारा देखा गया है। एक सार्वजनिक सथान प्रदर्शनी यह बल्कि विदेशो में जापान में एशिया न्यूयोर्क में सोसायटी और दूसरो को भी शामिल दीर्घाओ में कार्खाने, फाट्क, गाव चोराहो, बस और रेल्वे स्टेशनो, कालेजो और भारत में इसी तरह के सथानो पर दिकखाया गया है कनाडा और कई ओर।
पिछ्ले एक दशक से साइनाथ का साबसे महत्वपूर्ण कार्य लगभग २०० विशेष क्षेत्र की रिपोर्ट और समाचार विश्रेषण और तसवीरो के सैकडो के साथ भारत के क्रिषि सन्कट पर केन्द्रित है। [5]
पुस्तकें
संपादित करें- एवरी बडी लव्स अ गुड ड्राउट: स्टोरिज फ्रोम इंडियाज़ पुअरेस्ट डिस्ट्रिक (Everybody Loves a Good Drought: Stories from India's Poorest Districts), पेंग्विन बुक्स, आइएसबीएन 0-14-025984-8
- इस पुस्तक के बारे में उनका यह कहना है :
भारत में अक्सर गरीबों को आंकड़ों में बदलकर कम किया जाता है। विकास रिपोर्ट और आर्थिक अनुमानों की सूखी भाषा में, गरीब के सच्चे कष्ट खो जाते हैं। उन ३१२ मिलियन लोग, जो गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं, या उन २६ मिलियन जो किसी परियोजना के कारण विस्थापित हो गए हैं, या वे १३ मिलियन लोग जो यक्ष्मा से पीड़ित हैं, उन्हें अनदेखा किया जाता हैं। इस अध्ययन में हमने गरीब से गरीब का शोध किया है और हमने देखा कि वे कैसे जीते है और अपने आप को कैसे बनाये रखते है। हमने उनके लिए थोड़ी बहुत मदद करने की कोशिश की है। इस किताब में जिन लोगों के बारे में लिखा है, वे भारत के समाज के बड़े वर्ग के जीवन और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व है। उनकी कहानियाँ हमें भारत के विकास की सच्चा चेहरा दिखता है।और अब इनकी मृत्यु हो चुकी है जो की १०.९.१९९९ में हुई थी ,और यह बड़ा अच्छा आदमी थे और इन्हें चिन्मय बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम भी दर्ज कराया
पुरस्कार - सम्मान
संपादित करेंजून २०११ में "अलबर्टा यूनिवर्सिटी" ने साईनाथ को विश्वविद्यालय के सर्वोच्च सम्मान "आनरेरी डॉक्टर ऑफ़ लेटर्स डिग्री (D'Litt)" से सम्मानित किया।
साईनाथ उन कुछ भारतीयों में से है जिन्होंने पत्रकारिता, साहित्य और रचनात्मक संचार की श्रेणी में २००७ में "रेमन मैगसेसे अवार्ड" पुरस्कार प्राप्त किया। २००९ में "दि इंडियन एक्सप्रेस" द्वारा रामनाथ गोयनका " जर्नलिस्ट ऑफ़ दि इयर" का पुरस्कार मिला।
जनवरी २००९ में साईनाथ ने एक राज्य पुरस्कार को लेने से इनकार कर दिया। लेकिन अपने ३० साल की पत्रकारिता में उन्होंने चालीस (४०) के आस पास राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और फेलोशिप प्राप्त किए है। २००७ में "रेमन मैगसेसे जर्नलिज्म अवार्ड", १९९४ में यूरोपीय आयोग से नटाली (Natali) पुरस्कार[6], २००१ में संयुक्त राष्ट्र(UN) ए.फ.ए.ओ से "बोएर्मा जर्नलिज्म प्राइज"[7], २००० में मानवाधिकार पत्रकारिता के लिए "एमनेस्टी इंटरनेशनल ग्लोबल अवार्ड", [PUCL] मानवाधिकार पत्रकारिता पुरस्कार और २००० में पत्रकारिता के क्षेत्र में श्रेष्ठता के लिए बी.डी. गोयनका पुरस्कार भी प्राप्त किया है[8]। जून २००६ में समाचार पत्र की श्रेणी में साईनाथ ने न्यायाधीशों पुरस्कार और २००५ में "हैरी छपीं मीडिया अवार्ड्स"[9] प्राप्त किया।.[10] यह पुरस्कार वीदर्भा और अन्य क्षेत्रों में चल रहे कृषि संकट पर "द हिन्दू"[11] में लिखे गये अपने लेखों के लिये था। हैरी छपीं मीडिया अवार्ड्स उस प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के काम को संमान करता है जो भूख और गरीबी की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करें। इनमें आर्थिक ऊंच-नीच, बेकारी, आवासहीनता, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय नीतियाँ और उनका सुधार, समुदाय अधिकार प्रधान, विकास और खाद्य पैदावार भी सम्मिलित है।
२००९ में "इंडियन एक्सप्रेस" द्वारा रामनाथ गोयनका 'जर्नलिज्म ऑफ़ थे इयर' अवार्ड[12] प्राप्त किया।
१९८४ में "यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्टर्न ओंटारियो" में एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विद्वान और १९८८ में "मास्को यूनिवर्सिटी" में एक अतिथि अध्यापक थे। "आयोवा विश्वविद्यालय" में एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय प्रोफेशनल भी थे। ट्रिनिटी कॉलेज, कनेक्टिकट के पहले मैकगिल (McGill) फैलो और व्याख्याता और यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कले में अतिथि अध्यापक थे। उन्होंने यूनेस्को (युनेस्को) द्वारा अंतरराष्ट्रीय संचार पर आयोजित दूसरे और तीसरे "राउंड टेबल" में भाग लिया था।
उन्हें श्री राजा-लक्ष्मी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
ये ऐसे एकमात्र पत्रकार है जिनको देश के अन्य प्रतिद्वंद्वी समाचार पत्रों सें पुरस्कार मिला है। दिल्ली के "दि इंडियन एक्सप्रेस" से लेकर कोलकाता के "द स्टेटसमैन" तक सभी ने साईनाथ को सम्मानित किया है। "द टाइम्स ऑफ इंडिया" से फेलोशिप भी प्राप्त की है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Why Indian Farmers Kill Themselves; Why Lange's Photographs are Phony". Counterpunch.org. 4 अगस्त 2005. मूल से 7 अगस्त 2005 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2011.
- ↑ "Social Communications Media". Scmsophia.com. 22 नवम्बर 2011. मूल से 6 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2011.
- ↑ "राज्यसभा टीवी के जालस्थल में साईनाथ का इंटर्व्यू". मूल से 30 अप्रैल 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अप्रैल 2015.
- ↑ "मीडिया के एकाधिकार पर साईनाथ के विचार्". मूल से 7 अप्रैल 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अप्रैल 2015.
- ↑ P. Sainath (27 दिसम्बर 2010). "more than a quarter of a million". द हिन्दू. India. मूल से 23 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2011.
- ↑ "Natali Prize". Nataliprize2010.eu. मूल से 8 मई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2011.
- ↑ "Boerma Journalism Prize". Fao.org. मूल से 21 दिसंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2011.
- ↑ "award for excellence". द इंडियन एक्सप्रेस. 10 नवम्बर 2000. मूल से 11 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2011.
- ↑ "Judges' prize". मूल से 20 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 फ़रवरी 2014.
- ↑ "Award for Sainath". द हिन्दू. India. 12 जून 2006. मूल से 24 फ़रवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2011.
- ↑ "The swelling 'Register of Deaths'". द हिन्दू. India. 29 दिसम्बर 2005. मूल से 24 फ़रवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2011.
- ↑ "'Journalist of the Year' award". मूल से 4 सितंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 फ़रवरी 2014.
इन्हें भी देखें
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