पिंजर (फ़िल्म)
पिंजर 2003 में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य फिल्म है। यह चंद्र प्रकाश द्विवेदी द्वारा निर्देशित है। फिल्म भारत के विभाजन के दौरान हिंदुओं और मुसलमानों की समस्याओं के बारे में है। फिल्म अमृता प्रीतम द्वारा लिखित इसी नाम के एक पंजाबी उपन्यास पर आधारित है। उर्मिला मातोंडकर, मनोज बाजपेयी और संजय सूरी प्रमुख भूमिकाओं में हैं। आलोचकों की प्रशंसा के अलावा, फिल्म ने राष्ट्रीय एकता पर सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार जीता था।[1]
पिंजर | |
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पिंजर का पोस्टर | |
निर्देशक | चंद्र प्रकाश द्विवेदी |
पटकथा | चंद्र प्रकाश द्विवेदी |
कहानी | अमृता प्रीतम |
निर्माता | ट्वेंटिएथ सेंचुरी फ़ॉक्स |
अभिनेता |
उर्मिला मातोंडकर, मनोज बाजपेयी, संजय सूरी, ईशा कोपिकर, कुलभूषण खरबंदा, फरीदा ज़लाल, संदली सिन्हा, प्रियांशु चटर्जी |
संगीतकार | उत्तम सिंह |
प्रदर्शन तिथियाँ |
24 अक्तूबर, 2003 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
संक्षेप
संपादित करेंयह कहानी 1947 के विभाजन के समय की है। पिंजर पूरो (उर्मिला मातोंडकर) की कहानी है, जो अपने परिवार के साथ एक सुंदर जीवन जी रही होती है। पूरो का रिश्ता एक प्यारे जवान लड़के, रामचन्द (संजय सूरी) के साथ तय हो जाता है जो एक होनहार परिवार से है। पूरो की खुशियाँ तब बिखर जाती है जब वह अपनी छोटी बहन रज्जो (ईशा कोपिकर) के साथ एक इत्मीनान यात्रा पर जाती है और एक रहस्यमय मुस्लिम आदमी, रशीद (मनोज बाजपेयी), उसका अपहरण कर लेता है। रशीद के परिवार और पूरो के परिवार के बीच एक पुश्तैनी विवाद है। पूरो के परिवार ने रशीद के परिवार की संपत्ति लेकर उन्हे बेघर कर दिया था। और तो और पूरो के भव्य चाचा ने रशीद की भव्य चाची का अपहरण कर लिया और फिर उसे अपवित्र कर के उसे छोड़ दिया था। रशीद के परिवार ने उसे वह बदला चुकाने के लिये पूरो का अपहरण करने कि कसम खिलायी थी। लेकिन उसके मन मे पूरो के प्रति बहुत इज्जत और प्रेम भी होता है। यह स्पष्ट है कि रशीद पूरो के लिए कुछ भी करने को तैयार है। एक रात, पूरो भागने और अपने माता - पिता के पास वापस जाने में सफल होती है। उसके घर वाले उसे नही अपनाते, यह कहकर की उसके कारण उनकी समाज मे इज़्ज़त नहीं रहेगी। जब वह जिन्दगी से हारकर अपनी जान देने जाती है तब राशिद उसे रोक लेता है। बिना किसी सहारे के पूरो रशीद के पास वापस आ जाती है। रशीद उसके भागने से अच्छी तरह से वाकिफ था, क्योंकी उसे पता था कि उसके माता पिता उसे अपनायेंगे नहीं और इसलिये वह पास ही इंतजार कर रहा था।
कुछ ही महीनों के बाद पूरो का परिवार रज्जो की शादी रामचंद के चचेरे भाई से करा देते हैं और रामचंद की छोटी बहन, लाजो (संदली सिन्हा) की शादी उनके पुत्र त्रिलोक (प्रियांशु चटर्जी) से। इस बीच रशीद पूरो जिसका नाम अब हमीदा है से निकाह कर लेता है और वे सड़क पर मिले एक बच्चे को अपना कर उसे बहुत स्नेह और प्यार से पालते हैं। जब गांव के लोगों को पता चलता है कि बच्चा हिन्दू पृष्ठभूमि से है तो वे उसे दोनों से दूर ले जाते हैं। ब्रिटिश सरकार भारत छोड़ जाती है और भारत विभाजन के प्रभाव से जूझ रहा होता है। रामचंद के चाचा, चचेरे भाई और रज्जो भारत के लिए पहले निकल जाते हैं और सुरक्षित हैं। रामचंद और उसके माता पिता और लाजो दंगों में फंस जाते हैं। रामचंद के पिता पहले से ही गायब हैं और रामचंद तुरंत अपनी छोटी बहन लाजो और माँ के साथ भारत के लिए निकल जाता है। कुछ ही समय बाद, गुंडे लाजो का अपहरण कर लेते हैं। पूरो रामचंद से मिलती है, जो उसे लाजो का दुखड़ा सुनाता है। पूरो लाजो का पता ढूंढती है और उसे रशीद की सहायता से भागने में मदद करती है। वे उसे लाहौर ले जाते हैं जहाँ त्रिलोक और रामचंद उसे लेने के लिए आते हैं।
त्रिलोक और उसकी बहन पूरो का पुर्नमिलन होता है और वह उसे बताता है कि रामचंद अब भी उसे स्वीकार करने के लिए तैयार है और वह नए सिरे से जिंदगी शुरू कर सकती है। पूरो मना करके उसे आश्चर्यचकित कर देती है और कहती है कि वह वहीं है जहाँ उसे होना चाहिये। यह देखकर कि पूरो ने रशीद को स्वीकार कर लिया है, रामचंद पूरो को जबरदस्त सहानुभूति के साथ बढ़ावा देता है। पूरो को अपने लोगों के साथ आसानी से छोड़ने के लिए राशीद धीरे-धीरे गायब होने की कोशिश करता है, लेकिन उसका दिल टूट जाता है क्योंकि वह उसे दिलो-जान से चाहता है। फिर भी पूरो रशीद को ढूँढ लेती है और दोनों डबडबाई आँखों से हमेशा के लिए रामचंद, त्रिलोक और लाजो को विदा कर देते हैं।
मुख्य कलाकार
संपादित करें- उर्मिला मातोंडकर - पूरो/हमीदा
- मनोज बाजपेयी - रशीद
- संजय सूरी- रामचंद
- संदली सिन्हा - लाजो
- प्रियांशु चटर्जी - त्रिलोक
- ईशा कोपिकर - रज्जो
- लिलेट दुबे - तारा, पूरो की माँ
- कुलभूषण खरबंदा - मोहनलाल
- फरीदा ज़लाल - रामचंद की माँ
- आलोक नाथ - श्यामलाल
- सीमा बिस्वास - पागल औरत
- सुधा शिवपुरी - रशीद की माँ
- दीना पाठक - रहीम की आंटी
- रोहिताश गौड़ - रशीद का भाई
संगीत
संपादित करेंसभी उत्तम सिंह द्वारा संगीतबद्ध।
क्र॰ | शीर्षक | गीतकार | गायक | अवधि |
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1. | "शबा नि शबा" | गुलज़ार | साधना सरगम, उदित नारायण, कविता कृष्णमूर्ति | 5:41 |
2. | "मार उदारी" | गुलज़ार | जसपिंदर नरुला, प्रीति उत्तम सिंह, अमय डेट | 5:27 |
3. | "हाथ छूटे" | गुलज़ार | जगजीत सिंह | 6:54 |
4. | "वतना वे" | गुलज़ार | रूप कुमार राठोड़ | 5:32 |
5. | "दर्द मरया" | गुलज़ार | वदाली बंधु, जसपिंदर नरुला | 6:33 |
6. | "चरखा चलाती माँ" | अमृता प्रीतम | प्रीति उत्तम सिंह | 4:57 |
7. | "सीता को देखें" | ज़हरा निगाह | सुरेश वाडकर, साधना सरगम | 3:11 |
8. | "शब्द" | पारंपरिक | प्रीति उत्तम सिंह | 3:37 |
9. | "वारिस शाह नूँ" | अमृता प्रीतम | वदाली बंधु, प्रीति उत्तम सिंह | 9:05 |
नामांकन और पुरस्कार
संपादित करें- राष्ट्रीय एकता पर सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "नफरत में जन्मे मासूम प्रेम की कहानी पिंजर". दैनिक जागरण. 1 मार्च 2013. मूल से 11 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितम्बर 2018.