पीताम्बर देव गोस्वामी
पीताम्बर देव गोस्वामी (10 जून 1885 – 20 अक्टूबर 1962), भारत के असम राज्य के एक आध्यात्मिक नेता, समाज सुधारक एवं हिन्दीसेवी[1] थे।
पीताम्बर देव गोस्वामी | |
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जन्म |
10 जून 1885 श्री श्री गड़मूर सत्र, माजुली |
मृत्यु | 20 अक्टूबर 1962 | (उम्र 77 वर्ष)
खिताब/सम्मान | माजुली के वैष्णव मठ के सत्राधिकार (प्रमुख) |
धर्म | हिन्दू |
दर्शन | मानवता |
पीताम्बर देव गोस्वामी का जन्म 10 जून, 1885 को माजुली में हुआ था। उनके पिता का नाम चित्रचंद्र देव गोस्वामी और माता का नाम दुर्गेश्वरी था। छः वर्ष की आयु में उन्होंने गड़मूड़ सत्र में प्रवेश लिया। उनकी शिक्षा संस्कृत में हुई। नित्यानन्ददेव भगवती विद्यावागीश उनके गुरु थे। जब योगचन्द्र देव सत्राधिकार गोस्वामी का देहान्त हुआ तो उन्हें गड़मूड़ सत्र का सत्राधिकार (मुख्य पुजारी) नियुक्त किया गया। उस समय वे २१ वष के थे।
संस्कृत व्याकरण, साहित्य, दर्शन, धर्मग्रन्थ आदि का अध्ययन करने के साथ-साथ उन्होने अंग्रेजी और असमिया साहित्य का भी अध्ययन किया।उन्होने आयुर्वेद का अध्ययन किया तथा शास्त्रीय संगीत (गायन एवं वाद्य) की भी शिक्षा ली। वे सितार, वायलिन और हार्मोनियम बजाना जनते थे। उन्होने कोलकाता से विशेषज्ञों को सत्र में आने के लिये आमंत्रित किया।
गोस्वामी ने समाजसुधार की दिशा में भी कार्य किया जिससे असम के सामाजिक जीवन पर प्रभाव पड़ा। शारीरिक शिक्षा में उन्होने सैन्य कलाओं और एक्रोबैटिक्स के साथ-साथ अनुशासन और आत्मरक्षा को सम्मिलित कराया। इसके अलावा कृषि में उन्होने ट्रैक्टर अपनाने का कार्य भी किया। गोस्वामी जी ने करप्रणाली, नियम-कानून और कर्तव्य में भी सुधार किया। वे कृषि के द्वारा आत्मनिर्भर बनने के पक्षधर थे। कीर्तनघर को उन्होने आम जनता के लिये खोल दिया, अकाल के समय उन्होने सहायता प्रदान की, भिक्षुओं को आजीवन ब्रह्मचारी रहने के प्रतिबन्ध को हटा दिया। उन्होने केवट/कैवर्त और कार्बी आदि असहाय आदिम जातियों के हित का पक्ष लिया। वे स्वराज के पक्षधर थे तथा १९४१ में उन्होने सत्याग्रह भी किया था। सन १९४३ में उन्हें गिरफ्तार करके दो वर्ष का कारावास दिया गया था।
जेल से छूटने के बाद वे वैष्णव धर्म की शिक्षा देते थे और वर्तमान समय के कार्बी अंगलांग जिले के कार्बी लोगों की हर प्रकार से सहायता करते थे। उन्होने २० प्राथमिक विद्यालय खोले। वे दूरस्थ स्थानों पर पैदल चलकर गये। उन्होने १९२२ में एक मिश्रित रंगमंच का निर्माण किया जिसमें लड़के और लड़कियों दोनों की भूमिका थी। इसके पहले केवल पुरुष ही इसमें भाग लेते थे।
इ महान सुधारक की स्मृति में सन २०१३ में 'युगद्रष्टा' नाम की लघु फिल्म का निर्माण किया गया। उनके स्मारक के रूप में माजुली में 'पीताम्बरदेव गोस्वामी कॉलेज' (डिब्रुगढ़ विश्वविद्यालय) और 'पीताम्बर देव गोस्वामी अस्पताल' कार्य कर रहे हैं।