पुणे समझौता

डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर और महात्मा गांधी के बीच समझौता

समझौते में अछूत (दलित) वर्ग के लिए बिना अछूतो की सहमति, बिना अछूत संस्थाओ की सहमति , बिना विभिन्न प्रोविन्स अछूत सहमति, बिना रजवाड़ो अछूत सहमति पृथक निर्वाचक मंडल को त्याग दिया गया लेकिन दलित वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या प्रांतीय विधानमंडलों में 71 से बढ़ाकर 148 और केन्द्रीय विधायिका में कुल सीटों की 18% कर दीं गयीं। और

चित्र:M.R. Jayakar, Tej Bahadur Sapru and Dr. Babasaheb Ambedkar at Yerwada jail, in Poona, on 25 September 1932, the day the Poona Pact was signed.jpg
24 सितम्बर 1932 को यरवदा केंद्रीय कारागार में एम आर जयकर, तेज बहादुर व डॉ॰ आम्बेडकर (दाएँ से दूसरे)

पृष्ठभूमि

संपादित करें

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में हुए विचार विमर्श के सभी समुदाय के एकमत न होने के फल स्वरूप तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री जेम्स रामस्य मक्डोनल्ड ने समाधान स्वरूप 20 वर्षीय कम्युनल अवार्ड की घोषणा की गई। जिसके तहत महात्मा गाँधी और भीमराव आंबेडकर द्वारा उठाई गयी राजनीतिक अल्पसंख्यक अछूत  प्रतिनिधित्व की माँग को नकारते हुए कर लोथियन रिपोर्ट 1932 आधार पर अछूत (दलित वर्ग) को पृथक निर्वाचन और दो वोटों का अधिकार मिला। एक वोट से अछूत (दलित) अपना प्रतिनिधि चुनेंगे तथा दूसरी वोट से (ब्राह्मण, नॉन-ब्राह्मण, मुस्लिम, सिख, बौद्ध , भारतीय ईसाई , एंग्लो-भारतीय , युरोपियन) वर्गो का प्रतिनिधि चुनेंगे। इस प्रकार अछूत (दलित) प्रतिनिधि केवल अछूतों (दलितों) की ही वोट से चुना जाना था। दूसरे शब्दों में उम्मीदवार भी अछूत (दलित) वर्ग का तथा मतदाता भी केवल अछूत (दलित) वर्ग के ही।[1]

16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रेम्मजे मैक्डोनल्ड ने साम्र्पदायिक पंचाट की घोषणा की जिसमें अछूत (दलित) सहित 09 समुदायों को पृथक निर्वाचक मंडल प्रदान किया गया। महिला, मजदूर, यूनिवर्सिटी, लैंडलॉर्ड, उद्योग को आरक्षण दिया।  

अछूतों (दलितों) के लिए की गई अल्पसंख्यक अछूत  प्रतिनिधित्व पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था का गांधीजी ने लंदन और भारत में विरोध किया , और होरे को सामुदायिक पुरस्कार से पहले और रामस्य मक्डोनल्ड को सामुदायिक पुरस्कार के बाद पत्र  लिखे।  20 सितंबर 1932 को गांधी जी ने अनशन प्रारंभ कर दिया 24 सितंबर 1932 को राजेंद्र प्रसाद व मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से गांधी जी जबानी स्वीकृति और अंबेडकर लिखित और हस्ताक्षरित स्वीकृति से पूना समझौता हुआ जिसमें राजनीतिक अल्पसंख्यक अछूत  प्रतिनिधित्व खात्मा कर संयुक्त हिंदू निर्वाचन व्यवस्था के अंतर्गत अछूतों (दलितों) के लिए स्थान आरक्षित रखने पर सनातनी हिन्दू गाँधी और जन्मजात हिन्दू अम्बेडकर सहमति बनी इस समझौते को पूना पैक्ट भी कहा जाता है।[2] [3]

24 सितम्बर 1932 को साय पांच बजे यरवदा जेल पूना में गाँधी जबानी स्वीकृति और डॉ॰ अंबेडकर लिखित और हस्ताक्षरित स्वीकृति से समझौता हुआ, जो बाद में पूना पैक्ट के नाम से मशहूर हुआ। इस समझौते में डॉ॰ आम्बेडकर को कम्युनल अवॉर्ड में मिले 20 वर्षीय पृथक निर्वाचन और दो वोटों का अधिकार के अधिकार को छोड़ तथा संयुक्त निर्वाचन (जैसा कि आजकल है) पद्धति को स्वीकार किया , परन्तु साथ हीं कम्युनल अवार्ड से मिली 71 आरक्षित सीटों की बजाय 10 वर्षीय पूना पैक्ट में आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा कर 148 करवा ली। साथ ही अछूत लोगो के लिए प्रत्येक प्रांत में शिक्षा अनुदान में अनिश्चित पर्याप्त राशि नियत करवाईं और सरकारी नौकरियों से बिना किसी भेदभाव के अछूत (दलित) वर्ग के लोगों की भर्ती को सुनिश्चित किया। आम्बेडकर इस समझौते से असमाधानी थे, उन्होंने गांधी के इस अनशन को अछूतों को उनके राजनीतिक अधिकारों से वंचित करने और उन्हें उनकी माँग से पीछे हटने के लिये दवाब डालने के लिये गांधी द्वारा खेला गया एक नाटक करार दिया। 1942 में 10 वर्षीय पूना पैक्ट आरक्षण समाप्ति परआम्बेडकर ने खत्म हो चुके इस समझौते का धिक्कार किया, उन्होंने ‘स्टेट ऑफ मायनॉरिटी’ इस अपने ग्रंथ में भी पूना पैक्ट संबंधी नाराजगी व्यक्त की है।

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 9 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अगस्त 2018.
  2. Pritchett. "Rajah, Rao Bahadur M. C." University of Columbia. मूल से 30 जून 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-01-05.
  3. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Columbia नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।

इन्हें भी देखें

संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें