पूर्वोत्तर परिषद

उत्तर पूवरी राज्यो
(पूर्वोतर परिषद से अनुप्रेषित)

पूर्वोत्तर परिषद (एनईसी) भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए बनी एक आधारभूत संस्था है। इसकी स्थापना संसदीय अधिनियम के तहत भारत की केन्द्र सरकार ने सन् 1971 में की। इसके सदस्य भारत के पूर्वोत्तर के आठ राज्य अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैण्ड, सिक्किम और त्रिपुरा हैं और इनके मुख्यमंत्री राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसका मुख्यालय शिलांग में स्थित है एवं यह पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (भारत सरकार) के अन्तर्गत आता है।[1]

ज़ोनल परिषदों का भारत

पृष्ठभूमि

संपादित करें

क्षेत्र के संतुलित विकास के लिए पूर्वोत्तर परिषद ने कई कदम उठाए हैं, जिसमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  1. पूर्वोत्तर परिषद ने पूर्वोत्तर विजन 2020 को तैयार करने में अहम भूमिका निभाई है, जिसके अंतर्गत लक्ष्य, इनकी रूपरेखा, चुनौतियों की पहचान और विभिन्न क्षेत्रों में शांति, समृद्धि और विकास के लिए क्रियान्वयन रणनीति बनाई गई है। इससे पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए एकीकृत विकास की रूपरेखा बनाने में मदद मिली है।
  2. अपनी शुरूआत से पूर्वोत्तर परिषद ने क्षेत्र में 9800 किमी सड़क, 77 पुल और 12 अंतरराज्जीय बस टर्मिनल/ट्रक टर्मिनल को स्वीकृत और पूर्ण किया है। पूर्वोत्तर परिषद द्वारा सहयोग प्राप्त सड़क परियोजनाएं मुख्यत क्षेत्रीय प्रकार की हैं। परिषद ने भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के साथ मिलकर क्षेत्र में दस हवाईअड्डों जैसे गुवाहाटी, लीलाबारी, जोरहट, डिब्रुगढ़, दीमापुर, सिलचर, तेजपुर, इंफाल, अगरतला और उमरोई (मेघालय) को उन्नत किया है। अप्रैल 2000 में हस्ताक्षर किए गए सहमति-पत्र के अनुसार इस कार्य के लिए पूर्वोत्तर परिषद ने 60 प्रतिशत और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने 40 प्रतिशत की वित्तीय सहायता दी है। वर्ष 2012-13 के दौरान इस अनुसार पूर्वोत्तर परिषद ने 5 और हवाई अड्डो के विकास योजनाओं को स्वीकृत किया है। इसके अतिरिक्त तेजू और लेंगपूई हवाईअड्डों के विकास को भी परिषद ने स्वीकृति दी है। इसके अतिरिक्त क्षेत्र में हवाई सेवा को बढाने के लिए पूर्वोत्तर परिषद ने एलाइंस एयर को 2002 से दिसंबर 2011 तक निधि सहयोग भी दिया है।
  3. अपनी शुरूआत से ही पूर्वोत्तर परिषद ने क्षेत्र में स्थापित क्षमता के अतिरिक्त 694.50 मेगावाट का योगदान दिया है, इसमें 630 मेगावाट जल विद्युत और 64.50 तापीय विद्युत शामिल है। प्रणाली में सुधार के लिए 62 योजनाओं के अंतर्गत प्रेषण, उप-प्रेषण और वितरण और उप-केंद्र को उन्नत करने का कार्य किया गया। इसमें पूरे क्षेत्र में फैली 2022.52 सर्किट किलोमीटर लंबी प्रेषण/ वितरण लाइनें और 1494.80 एमवीए क्षमता के उप-केंद्र शामिल हैं। पूर्वात्तर परिषद ने पूर्वोत्तर क्षेत्र (सिक्किम सम्मिलत) में विद्युत प्रणाली में वितरण और उप-वितरण को मजबूत बनाने के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार के लिए पावर ग्रिड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के साथ भागीदारी की है। इसके साथ ही पूर्वोत्तर परिषद नवीनीकरण उर्जा के विभिन्न माध्यमों में निधि सहयोग भी कर रहा है।
  4. समुदाय आधारित दीर्धकालिक आजीविका परियोजना जिसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र समुदाय संसाधन प्रंबधन संवर्धन परियोजना (एनईआरसीओआरएमपी) सम्मिलित है को पूर्वोत्तर परिषद और कृषि विकास के लिए अंतराष्ट्रीय निधि द्वारा संयुक्त रूप से निधिबद्ध किया गया है। मई 1999 में शुरू हुई इस परियोजना के तहत पूर्वोत्तर क्षेत्र के सर्वाधिक दुर्गम जिलों में स्थित 860 गांवों के 39161 ग्रामीणों को लाभ मिला है। सिंतबर 2008 में परियोजना के पहले चरण में असम, मणिपुर और मेघालय के दो-दो जिलों को लाभ दिया गया। परियोजना के पहले चरण की सफलता के बाद 2010-11 में अनुमोदित दूसरे चरण में पहले चरण से जुड़े 466 गांवों में इसे लागू किया जाएगा।
  5. पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए मंत्रालय को क्षेत्र में विकास गतिवधियों के लिए भारत सरकार के व्यवसायिक नियमों में प्रदान किए गए मुद्दो पर अधिकृत किया गया है। इसमें अन्य बातों के साथ प्रमुख रूप से समाप्त न होने वाले केंद्रीय संसाधन का प्रशासन सम्मिलित है। यह मंत्रालय पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास से जुड़ी विभिन्न परियोजनाओं के लिए दूसरे मंत्रालयों और विभागों से समन्वय करता है। इसके साथ ही पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नीतियों में परिवर्तन के लिए विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों और विभागो के बीच समन्वय का कार्य भी करता है।
  6. पूर्वोत्तर परिषद, पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए मंत्रालय के अधीन एक विधायी संस्था है और पूर्वोत्तर परिषद अधिनियम, 1971, एनईसी (संधोधित) अधिनियम,2002 के अनुरूप कार्य करती है। पूर्वोत्तर परिषद का प्रमुख कार्य क्षेत्रीय योजना बनाना और विभिन्न प्राथमिकताओ और आवश्यकताओं के अनुरूप राज्य सरकारों और अन्य संस्थाओं की विभिन्न परियोजनाओं की निगरानी और इन्हें पूर्ण करना है।

इन्हें भी देखें

संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें