त्रिपुरा
त्रिपुरा उत्तर-पूर्वी सीमा पर स्थित भारत का एक राज्य है।[2]यह भारत का तीसरा सबसे छोटा राज्य है जिसका क्षेत्रफल १०,४९१ वर्ग किमी है। इसके उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में बांग्लादेश स्थित है जबकि पूर्व में असम और मिजोरम स्थित हैं।[3]सन २०११ में इस राज्य की जनसंख्या लगभग ३६ लाख ७१ हजार थी। अगरतला त्रिपुरा की राजधानी है। बंगाली और त्रिपुरी भाषा (कोक बोरोक) यहाँ की मुख्य भाषायें हैं।
भारत का राज्य | |
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राजधानी | अगरतला |
सबसे बड़ा शहर | अगरतला |
जनसंख्या | ३६,७३,९१७ |
- घनत्व | ३५० /किमी² |
क्षेत्रफल | १०,४९२ किमी² |
- ज़िले | ८ |
राजभाषा | बंगाली, ककबरक, अंग्रेज़ी[1] |
गठन | २१ जनवरी १९७२ |
सरकार | त्रिपुरा सरकार |
- राज्यपाल | रमेश बैस |
- मुख्यमंत्री | माणिक साहा (भाजपा) |
- विधानमण्डल | एकसदनीय विधान सभा (६० सीटें) |
- भारतीय संसद | राज्य सभा (१ सीट) लोक सभा (२ सीटें) |
- उच्च न्यायालय | त्रिपुरा उच्च न्यायालय |
डाक सूचक संख्या | ७९९ |
वाहन अक्षर | TR |
आइएसओ 3166-2 | IN-TR |
tripura |
आधुनिक त्रिपुरा क्षेत्र पर कई शताब्दियों तक त्रिपुरी राजवंश ने राज किया।
त्रिपुरा की स्थापना १४वीं शताब्दी में माणिक्य नामक इण्डो-मंगोलियन आदिवासी मुखिया ने की थी, जिसने हिंदू धर्म अपनाया था। १८०८ में इसे ब्रिटिश साम्राज्य ने जीता, यह स्व-शासित शाही राज्य बना।[4][5]१९५६ में यह भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ और १९७२ में इसे राज्य का दर्जा मिला। त्रिपुरा का आधे से अधिक भाग जंगलों से घिरा है, जो प्रकृति-प्रेमी पर्यटकों को आकर्षित करता है, किन्तु दुर्भाग्यवश यहाँ कई आतंकवादी संगठन पनप चुके हैं जो अलग राज्य की माँग के लिए समय-समय पर राज्य प्रशासन से लड़ते रहते हैं। हैण्डलूम बुनाई यहाँ का मुख्य उद्योग है।
नाम
- ऐसा कहा जाता है कि राजा त्रिपुर, जो ययाति वंश का ३९वाँ राजा था के नाम पर इस राज्य का नाम त्रिपुरा पड़ा।जिसके वंशज अहीरो ने यहाँ प्राचीन काल में शासन किया था![6]एक मत के मुताबिक स्थानीय देवी त्रिपुर सुन्दरी के नाम पर यहाँ का नाम त्रिपुरा पड़ा। यह हिन्दू पन्थ के ५१ शक्ति पीठों में से एक है।[7]इतिहासकार कैलाश चन्द्र सिंह के मुताबिक यह शब्द स्थानीय कोकबोरोक भाषा के दो शब्दों का मिश्रण है - त्वि और प्रा। त्वि का अर्थ होता है पानी और प्रा का अर्थ निकट। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में यह समुद्र (बंगाल की खाड़ी) के इतने निकट तक फैला था कि इसे इस नाम से बुलाया जाने लगा।[8]
उल्लेख
त्रिपुरा का उल्लेख महाभारत, पुराणों तथा अशोक के शिलालेखों में मिलता है। आज़ादी के बाद भारतीय गणराज्य में विलय के पूर्व यह एक राजशाही थी। उदयपुर इसकी राजधानी थी जिसे अठारहवीं सदी में पुराने अगरतला में लाया गया और उन्नीसवीं सदी में नये अगरतला में। राजा वीर चन्द्र माणिक्य महादुर देववर्मा ने अपने राज्य का शासन ब्रिटिश भारत की तर्ज पर चलाया। गणमुक्ति परिषद द्वारा चलाए गए आन्दोलनों से यह सन् १९४९ में भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ।
सन् १९७१ में बांग्लादेश के निर्माण के बाद यहाँ सशस्त्र संघर्ष आरम्भ हो गया। त्रिपुरा नेशनल वॉलेंटियर्स, नेशनल लिबरेशन फ़्रण्ट ऑफ़ त्रिपुरा जैसे संगठनों ने स्थानीय बंगाली लोगों को निकालने के लिए मुहिम छेड़ रखी है।
इतिहास
त्रिपुरा का बड़ा पुराना और लम्बा इतिहास है। इसकी अपनी अनोखी जनजातीय संस्कृति तथा दिलचस्प लोकगाथाएँ है। इसके इतिहास को त्रिपुरा नरेश के बारे में ‘राजमाला’ गाथाओं तथा मुसलमान इतिहासकारों के वर्णनों से जाना जा सकता है। महाभारत और पुराणों में भी त्रिपुरा का उल्लेख मिलता है। राजमाला के अनुसार त्रिपुरा के शासकों को ‘फा’ उपनाम से पुकारा जाता था जिसका अर्थ ‘पिता’ होता है।[9]
१४वीं शताब्दी में बंगाल के शासकों द्वारा त्रिपुरा नरेश की मदद किए जाने का भी उल्लेख मिलता है।[10] त्रिपुरा के शासकों को मुगलों के बार-बार आक्रमण का भी सामना करना पड़ा जिसमें आक्रमणकारियों को कमोबेश सफलता मिलती रहती थी। कई लड़ाइयों में त्रिपुरा के शासकों ने बंगाल के सुल्तानों कों हराया।
१९वीं शताब्दी में महाराजा वीरचन्द्र किशोर माणिक्य बहादुर के शासनकाल में त्रिपुरा में नए युग का सूत्रपात हुआ। उन्होने अपने प्रशासनिक ढांचे को ब्रिटिश भारत के नमूने पर बनाया और कई सुधार लागू किए। उनके उत्तराधिकारों ने १५ अक्टूबर, १९४९ तक त्रिपुरा पर शासन किया। इसके बाद त्रिपुरा भारत संघ में शामिल हो गया।[11] शुरू में यह भाग-सी के अन्तर्गत आने वाला राज्य था और १९५६ में राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह केन्द्र शासित प्रदेश बना। १९७२ में इसने पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त किया। त्रिपुरा बांग्लादेश तथा म्यांमार की नदी घाटियों के बीच स्थित है। इसके तीन तरफ बांग्लादेश है और केवल उत्तर-पूर्व में यह असम और मिजोरम से जुड़ा हुआ है।
भारत में विलय
मुख्य भाषा
बंगाली और त्रिपुरी भाषा (कोक बोरोक) यहां मुख्य रूप से बोली जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि राजा त्रिपुर, जो ययाति वंश का ३९ वें राजा थे, उनके नाम पर ही इस राज्य का नाम त्रिपुरा पड़ा। इसके साथ ही एक मत के अनुसार स्थानीय देवी त्रिपुर सुन्दरी के नाम पर इसका नाम त्रिपुरा पड़ा। यह हिन्दू धर्म की ५१ शक्ति पीठों में से एक है। इस राज्य के इतिहास को 'राजमाला' गाथाओं और मुसलमान इतिहासकारों के वर्णनों से जाना जा सकता है।
महाभारत और पुराणों में भी मिलता है उल्लेख
महाभारत और पुराणों में भी त्रिपुरा का उल्लेख मिलता है। आज़ादी के बाद भारतीय गणराज्य में विलय के पूर्व यह एक राजशाही थी। उदयपुर इसकी राजधानी थी जिसे १८वीं सदी में पुराने अगरतला में लाया गया और १९वीं सदी में नये अगरतला में। राजा वीर चन्द्र माणिक्य महादुर देववर्मा ने अपने राज्य का शासन ब्रिटिश भारत की तर्ज पर चलाया।
पूर्वी पाक में विलय चाहता था त्रिपुरा
गणमुक्ति परिषद द्वारा चलाए गए आन्दोलनों से यह सन् १९४९ में भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ। लेकिन इतिहासकारों के मुताबिक भी त्रिपुरा शाही परिवार का एक धड़ा राज्य का विलय पूर्वी पाकिस्तान के साथ चाहता था। लेकिन त्रिपुरा के आखिरी राजा बीर बिक्रम किशोर माणिक्य (१९२३-१९४७) ने अपने मौत के पहले भारत में विलय की इच्छा जाहिर की थी। जिसके बाद भारत सरकार ने त्रिपुरा को अपने कब्जे में ले लिया।
संघर्ष का आरंभ
लेकिन सन् १९७१ में बांग्लादेश के निर्माण के बाद यहां सशस्त्र संघर्ष आरंभ हो गया। त्रिपुरा नेशनल वॉलेंटियर्स, नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा जैसे संगठनों ने स्थानीय बंगाली लोगों को निकालने के लिए मुहिम छेड़ रखी है। १४वीं शताब्दी में बंगाल के शासकों द्वारा त्रिपुरा नरेश की मदद किए जाने का भी उल्लेख मिलता है। त्रिपुरा के शासकों को मुगलों के बार-बार आक्रमण का भी सामना करना पडा जिसमें आक्रमणकारियों को कमोबेश सफलता मिलती रहती थी। कई लड़ाइयों में त्रिपुरा के शासकों ने बंगाल के सुल्तानों कों हराया।
त्रिपुरा में नए युग की शुरूवात
१९वीं शताब्दी में महाराजा वीरचंद्र किशोर माणिक्य बहादुर के शासनकाल में त्रिपुरा में नए युग की शुरूवात हुई। उन्होने अपने प्रशासनिक ढांचे को ब्रिटिश भारत के नमूने पर बनाया और कई सुधार लागू किए। उनके उत्तराधिकारों ने १५ अक्तूबर, १९४९ तक त्रिपुरा पर शासन किया। इसके बाद त्रिपुरा भारत संघ में शामिल हो गया। शुरू में यह भाग-सी के अंतर्गत आने वाला राज्य था और १९५६ में राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह केंद्रशासित प्रदेश बना और इसके बाद १९७२ में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ। आपको बता दें त्रिपुरा बांग्लादेश तथा म्यांमार की नदी घाटियों के बीच स्थित है। इसके तीन तरफ बांग्लादेश है और उत्तर-पूर्व में यह असम और मिजोरम से जुड़ा हुआ है
भूगोल
त्रिपुरा पूर्वोत्तर भारत में स्थित एक स्थलरुद्ध राज्य है, जहां यह और इसके छः निकटवर्ती राज्य - अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम तथा नागालैंड - सामूहिक रूप से "सात बहनें" कहलाते हैं। १०,४८१.६९ वर्ग किमी (४,०५०.८६ वर्ग मील) के क्षेत्रफल में फैला त्रिपुरा गोवा और सिक्किम के बाद भारत के २९ राज्यों में तीसरा सबसे छोटा राज्य है। इसका विस्तार २२°५६' उ° से २४°३२' उ° और ९१°०९' पू° से ९२°२०' पू° तक है। [12] राज्य की सीमा उत्तर से दक्षिण तक लगभग १७८ किमी (१११ मील) लम्बी है, और पूर्व से पश्चिम तक १३१ किमी (८१ मील) चौड़ी है। त्रिपुरा की सीमा पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में बांग्लादेश से लगती है; जबकि इसके पूर्वोत्तर में असम और पूर्व में मिजोरम स्थित हैं। [12] राज्य में केवल असम के करीमगंज जिले और मिजोरम के ममित जिले से आने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों द्वारा ही पहुंचा जा सकता है।[13]
स्थलाकृति
त्रिपुरा भौगोलिक रूप से विविध है; यहां पहाड़ी श्रृंखलाएँ, घाटियाँ और मैदान पाये जाते हैं। राज्य में उत्तर से दक्षिण तक अपनत पहाड़ियों की पांच श्रेणियां हैं, जिनका विस्तार पश्चिम में बोड़ोमुड़ा पहाड़ियों से लेकर, अठारामुरा, लोंगथाराई और शाखान से होते हुए पूर्व में जाम्पुई पहाड़ियों तक हैं।[14] इन पहाड़ियों की मध्यवर्ती अभिनतियों में अगरतला-उदयपुर, खोवाई-तेलियामुरा, कमलपुर-अम्बासा, कैलाशहर-मनु और धर्मनगर-कंचनपुर घाटियाँ स्थित हैं।[14] जम्पुई श्रंखला की बेत्लिंगछिप, जो ९३९ मीटर (३,०८१ फीट) ऊंची है, राज्य की सबसे ऊंची चोटी है।[12] उपरोक्त श्रंखलाओं के अलावा पूरे राज्य में कई अलग-अलग पहाड़ियां हैं, जिन्हें टिल्ल कहा जाता है। राज्य में कई संकीर्ण उपजाऊ जलोढ़ घाटियाँ भी हैं, जिनमें से अधिकतर राज्य के पश्चिमी शेत्र में स्थित हैं। ये डूंग/लुंग कहलाती हैं।[12] त्रिपुरा की पहाड़ियों से कई नदियाँ निकलती हैं, जो बांग्लादेश की ओर बहती हैं। इनमें खोवाई, धलाई, मनु, जुरी और लोंगाई नदियाँ उत्तर की ओर; गोमती नदी पश्चिम की ओर; और मुहुरी और फेनी नदियाँ दक्षिण पश्चिम की ओर बहती हैं।.[14]
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित शैल-स्तरिकी डेटा के अनुसार राज्य में स्थित चट्टानों को भूवैज्ञानिक समय-मान के पैमाने पर दो विभिन्न समयकालों में वर्गीकृत किया जा सकता है; पहली लगभग ३४ से २३ मिलियन वर्ष पुरानी ओलिगोसीन युग की चट्टानें और दूसरी १२,००० वर्ष पहले शुरू हुए नूतनतम युग की चट्टानें।[14] राज्य की पहाड़ियों में छिद्रपूर्ण लाल लैटेराइट मृदा पायी जाती है। इसके अतिरिक्त पूरभूमि और संकरी घाटियों में जलोढ़ मृदा पायी जाती है, और राज्य की अधिकांश कृषि भूमि पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्र में स्थित इन्हीं मैदानों व घाटियों में हैं।[12] भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार राज्य भूकंपीय क्षेत्र ५ में आता है।[15]
जलवायु
राज्य की जलवायु उष्णकटिबन्धीय सवाना है, जिसे कोपेन जलवायु वर्गीकरण के कोपेन जलवायु वर्गीकरण के अनुसार एड्ब्ल्यू (अर्थात शुष्क शीत) श्रेणीबद्ध किया गया है राज्य की असमतल स्थलाकृति के कारण जलवायु में स्थानीय तौर पर कई विविधताएं हैं, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में।[16] मुख्यतः चार ऋतुएँ हैं : दिसंबर से फरवरी तक शीत ऋतु; मार्च से अप्रैल तक ग्रीष्म ऋतु; मई से सितंबर तक वर्षा ऋतु; और अक्टूबर से नवंबर तक शरद ऋतु।[17] वर्षा ऋतु के दौरान, भारतीय मानसून राज्य में भारी बारिश लाता है, जिससे बार-बार बाढ़ आती है।[12][14] १९९५ और २००६ के बीच औसत वार्षिक वर्षा १,९७९.६ से २,७४५.९ मिमी (७७.९४ से १०८.११ इंच) के बीच थी।[18] गर्मियों के दौरान, तापमान २४ और ३६ डिग्री सेल्सियस (७५ और ९७ डिग्री फारेनहाइट) के बीच होता है, जबकि सर्दियों में यह १३ से २७ डिग्री सेल्सियस (५५ से ८१ डिग्री फारेनहाइट) के बीच गिर जाता है।[17] संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य हवा और चक्रवातों के कारण "बहुत अधिक क्षति जोखिम" क्षेत्र में है।[19]
त्रिपुरा की राजधानी, अगरतला के जलवायु आँकड़ें | |||||||||||||
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माह | जनवरी | फरवरी | मार्च | अप्रैल | मई | जून | जुलाई | अगस्त | सितम्बर | अक्टूबर | नवम्बर | दिसम्बर | वर्ष |
औसत उच्च तापमान °C (°F) | 25.6 (78.1) |
28.3 (82.9) |
32.5 (90.5) |
33.7 (92.7) |
32.8 (91) |
31.8 (89.2) |
31.4 (88.5) |
31.7 (89.1) |
31.7 (89.1) |
31.1 (88) |
29.2 (84.6) |
26.4 (79.5) |
30.52 (86.93) |
औसत निम्न तापमान °C (°F) | 10 (50) |
13.2 (55.8) |
18.7 (65.7) |
22.2 (72) |
23.5 (74.3) |
24.6 (76.3) |
24.8 (76.6) |
24.7 (76.5) |
24.3 (75.7) |
22 (72) |
16.6 (61.9) |
11.3 (52.3) |
19.66 (67.43) |
औसत वर्षा मिमी (इंच) | 27.5 (1.083) |
21.5 (0.846) |
60.7 (2.39) |
199.7 (7.862) |
329.9 (12.988) |
393.4 (15.488) |
363.1 (14.295) |
298.7 (11.76) |
232.4 (9.15) |
162.5 (6.398) |
46 (1.81) |
10.6 (0.417) |
2,146 (84.487) |
स्रोत: [20] |
वनस्पतियाँ तथा जीव-जंतु
त्रिपुरा के राज्य चिन्ह[21] | |
'राज्य पशु | फ़ेयरे बंदर |
राज्य पक्षी | हरा शाही कबूतर |
'राज्य वृक्ष | अगर |
'राज्य पुष्प | नाग केसर |
'राज्य फल | रानी अनानास |
अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप की ही तरह त्रिपुरा भी इंडोमलायन जैवभूक्षेत्र में स्थित है। भारत के जैव-भौगोलिक वर्गीकरण के अनुसार, राज्य "पूर्वोत्तर" जैव-भौगोलिक क्षेत्र में आता है।[22] २०११ में राज्य का ५७.७३% भाग वनों से घिरा था।[23] त्रिपुरा में तीन अलग-अलग प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र हैं: पहाड़, जंगल और ताज़ा पानी।[24] पहाड़ी ढलानों और रेतीले नदी तटों पर सदाबहार जंगलों में डिप्टरोकार्पस, आर्टोकार्पस, अमुरा, एलेओकार्पस, सिज़ीगियम और यूजेनिया जैसी प्रजातियों का प्रभुत्व है।[25] अधिकांश वनस्पतियाँ दो प्रकार के आर्द्र पर्णपाती वनों में शामिल हैं: नम पर्णपाती मिश्रित वन और साल के वन।[25] पर्णपाती और सदाबहार वनस्पतियों के साथ-साथ बाँस और बेंत के जंगलों का मिश्रण त्रिपुरा की वानस्पतिक विविधता की एक विशेषता है।[25] राज्य में कई घासभूमियाँ तथा दलदल भी स्थित हैं, विशेषकर मैदानी इलाकों में। अल्बिज़िया, बैरिंगटनिया, लेगरस्ट्रोमिया और मैकरंगा जैसी जड़ी-बूटियों वाले पौधे, झाड़ियाँ और पेड़ त्रिपुरा के दलदलों में पनपते हैं। झाड़ियों और घासों में शुमानियानथस डाइकोटोमा (शीतलपति), फ्राग्माइट्स और सैचरम (गन्ना) शामिल हैं।[25]
१९८९-९० के एक सर्वेक्षण के अनुसार, त्रिपुरा में ६५ वंशों और १० गणों की ९० स्तनपायी प्रजातियां पायी जाती हैं,[26] जिनमें हाथी (एलिफस मैक्सिमस), भालू (मेलर्सस उर्सिनस), बिन्तुरोंग (आर्कटिक्टिस बिन्तुरोंग), जंगली कुत्ते (कुओन अल्पाइनस), साही (आर्थेरुरस असामेन्सिस), भौंकने वाला हिरण (मंटियाकस मुंटजैक), सांभर (सर्वस यूनिकोलर), जंगली सूअर (सुस स्कोर्फा), गौर (बोस गौरस), तेंदुआ (पैंथेरा पार्डस), क्लाउडेड तेंदुआ (नियोफेलिस नेबुलोसा), और छोटी बिल्लियों और नरवानर गणों की कई प्रजातियाँ शामिल हैं।[26] भारत के १५ मुक्त नरवानर गणों में से सात त्रिपुरा में पाए जाते हैं, जो किसी भी भारतीय राज्य में पायी जाने वाली नरवानर गण प्रजातियों में सबसे अधिक है।[26] जंगली भैंसा (बुबलस आर्नी) अब विलुप्त हो चुका है।[27] राज्य में पक्षियों की लगभग ३०० प्रजातियाँ हैं।[28]
सिपाहीजाला, गोमती, रोवा और तृष्णा राज्य के वन्यजीव अभयारण्य हैं।[29] राज्य के राष्ट्रीय उद्यान क्लाउडेड लेपर्ड नेशनल पार्क और राजबारी नेशनल पार्क हैं।[29] ये संरक्षित क्षेत्र कुल ५६६.९३ वर्ग किमी (२१८.८९ वर्ग मील) क्षेत्रफल में फैले हैं।[29] गोमती एक महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र भी है,[30] सर्दियों में हजारों प्रवासी जलपक्षी गोमती और रुद्रसागर झीलों में एकत्र होते हैं।[31]
प्रशासनिक प्रभाग
जनवरी २०१२ में त्रिपुरा के प्रशासनिक प्रभागों में बड़े बदलाव किए गए। राज्य में पहले चार जिले थे - धलाई (मुख्यालय: आमबासा), उत्तर त्रिपुरा (मुख्यालय: कैलाशहर), दक्षिण त्रिपुरा (मुख्यालय: उदयपुर), और पश्चिम त्रिपुरा (मुख्यालय: अगरतला)। जनवरी २०१२ में इन चार जिलों में से चार नए जिले बनाए गए - खोवाई, उनाकोटी, सिपाहीजाला और गोमती।[32] छह नए उपखंड और पांच नए विकास खंड भी जोड़े गए।[33]
प्रत्येक जिला एक कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा शासित होता है, जिसे आमतौर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा द्वारा नियुक्त किया जाता है। प्रत्येक जिले के उपखंड एक उपजिलाधिकारी द्वारा शासित होते हैं और प्रत्येक उपखंड को विकास खंडों में विभाजित किया जाता है। विकास खंड में पंचायतें और नगर पालिकाएँ शामिल होती हैं। २०१२ तक, राज्य में आठ जिले, २३ उपमंडल और ५८ विकास खंड थे।[34] मार्च २०१३ तक सभी नए प्रशासनिक प्रभागों के लिए राष्ट्रीय जनगणना और राज्य सांख्यिकीय रिपोर्ट उपलब्ध नहीं हैं।
अगरतला त्रिपुरा राज्य की राजधानी है, और साथ ही राज्य का सर्वाधिक जनसंख्या वाला नगर भी है। १०,००० या उससे अधिक की जनसंख्या वाले अन्य प्रमुख नगर (२०११ की जनगणना के अनुसार) सबरूम, धर्मनगर, जोगेन्द्रनगर, कैलाशहर, प्रतापगढ़, उदयपुर, अमरपुर, बेलोनिया, गाँधीग्राम, कुमारघाट, खोवाई, रानीरबाज़ार, सोनामूड़ा, बिशालगढ़, तेलियामुरा, मोहनपुर, मेलाघर, आमबासा, कमलपुर, बिश्रामगंज, कथलिया, शांतिरबाज़ार और बक्सानगर हैं।
परिवहन
- सडकें
त्रिपुरा में विभिन्न प्रकार की सड़कों की कुल लम्बाई १५,२२७ कि॰मी॰ है, जिसमें से मुख्य जिला सड़कें ४५४ कि.मी., अन्य जिला सड़कें १,५३८ कि॰मी॰ हैं।
- रेलवे
राज्य में रेल मार्गो की कुल लम्बाई ६६ कि॰मी॰ है। रेलवे लाइन मानूघाट तक बढा दी गई है तथा अगरतला तक रेलमार्ग पहुँचाने का काम पूरा किया जा च्हुका है। मानू अगरतला रेल लाइन (८८ कि.मी.) को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर दिया गया था।
सिंचाई और बिजली
त्रिपुरा राज्य का भौगोलिक क्षेत्र १०,४९,१६९ हेक्टेयर है। अनुमान है कि २,८०,००० हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है। ३१ मार्च २००५ तक ८२,००५ हेक्टेयर भूमि क्षेत्र में लिफ्ट सिंचाई, गहरे नलकूप, दिशा परिवर्तन, मध्यम सिंचाई व्यवस्था, शैलो ट्यूबवैल और पम्पसेटों के जरिए सुनिश्चित सिंचाई के प्रबन्ध किए गए हैं। यह राज्य की कृषि योग्य भूमि का लगभग २९.२९ प्रतिशत है। १,२६९ एल.आई. स्कीम, १६० गहरे नलकूप, २७ डाइवर्जन स्कीमें पूरी हो चुकी हैं तथा ३ मध्यम सिंचाई योजनाओं (१) गुमती (२) खोवई और (३) मनु के जरिए कमान एरिया के कुछ भाग को सिंचाई का पानी उपलब्ध कराया जा रहा है क्योंकि नहर प्रणाली का कार्य पूरा नहीं हुआ है।
इस समय राज्य की व्यस्त समय की बिजली की माँग लगभग १६२ मेगावाट है। राज्य में अपनी परियोजनाओं से ७० मेगावाट बिजली पैदा की जा रही है। लगभग ५० मेगावाट बिजली पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित केन्द्रीय क्षेत्र के विद्युत उत्पादन केन्द्रों से राज्य के लिए आवण्टित हिस्से से प्राप्त की जाती है। इस प्रकार कुल उपलब्ध बिजली लगभग १२० मेगावाट है और व्यस्त समय में ४२ मेगावाट बिजली की कमी पड़ जाती है। इस कमी की वजह से पूरे राज्य में शाम को डेढ़ घण्टे क्रमिक रूप से बिजली की आपूर्ति बन्द कर दी जाती है।
पर्यटन
महत्वपूर्ण पर्यटन केंद्र इस प्रकार हैं :
- पश्चिमी-दक्षिणी त्रिपुरा पर्यटन-मण्डल
- अगरतला,
- कमल सागर
- सेफाजाला
- नील महल
- उदयपुर
- पिलक
- महामुनि
- पश्चिमी-उत्तरी त्रिपुरा पर्यटन-मण्डल
- अगरतला,
- उनोकोटि
- जामपुई हिल
त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर
त्रिपुरा सुन्दरी मन्दिर - तलवाडा ग्राम से ५ किलोमीटर दूर स्थित भव्य प्राचीन त्रिपुरा सुन्दरी का मन्दिर हैं, जिसमें सिंह पर सवार भगवती अष्टादश भुजा की मूर्ति स्थित हैं। मूर्ति की भुजाओं में अठारह प्रकार के आयुध हैं। इस मन्दिर की गिनती प्राचीन शक्तिपीठों में होती हैं। मन्दिर में खण्डित मूर्तियों का संग्रहालय भी बना हुआ हैं जिनकी शिल्पकला अद्वितीय हैं। मन्दिर में प्रतिदिन दर्शनार्थियों का ताँता लगा रहता हैं। प्रतिवर्ष नवरात्र में यहाँ भारी मेला भी लगता हैं।
पर्यटन समारोह
- आरेंज एण्ड टूरिज्म फ़ेस्टिवल वांगमुन
- उनोकेटि टूरिज्म फ़ेस्टिवल
- नीरमहल टूरिज्म फ़ेस्टिवल
- पिलक टुरिज्म फ़ेस्टिवल।
संस्कृति
त्रिपुरा में हिन्दुओं की संख्या लगभग ८४ प्रतिशत है। दुर्गापूजा यहाँ का प्रमुख त्यौहार है। बांग्ला यहाँ की प्रमुख भाषा है।[35]
सन्दर्भ
- ↑ "Report of the Commissioner for linguistic minorities: 50th report (July 2012 to June 2013)" (PDF). Commissioner for Linguistic Minorities, Ministry of Minority Affairs, Government of India. मूल (PDF) से 8 जुलाई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 जुलाई 2017.
- ↑ Wells, John C. (2008). Longman Pronunciation Dictionary (3rd संस्करण). Longman. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781405881180.
- ↑ "Rohingya crisis: Security tightened along India-Myanmar border". मूल से 15 September 2017 को पुरालेखित.
- ↑ "Hill Tippera – Encyclopædia Britannica 1911". मूल से 10 सितंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 मार्च 2019.
- ↑ "Tippera – Encyclopedia". मूल से 10 सितंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 मार्च 2019.
- ↑ Das, J.K. (2001). "Chapter 5: old and new political process in realization of the rights of indigenous peoples (regarded as tribals) in Tripura". Human rights and indigenous peoples. APH Publishing. पपृ॰ 208–9. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7648-243-1.
- ↑ Debbarma, Sukhendu (1996). Origin and growth of Christianity in Tripura: with special reference to the New Zealand Baptist Missionary Society, 1938–1988. Indus Publishing. पृ॰ 20. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7387-038-5. मूल से 29 April 2016 को पुरालेखित.
- ↑ Acharjya, Phanibhushan (1979). Tripura. Publications Division, Ministry of Information and Broadcasting, Government of India. पृ॰ 1. ASIN B0006E4EQ6. मूल से 15 May 2016 को पुरालेखित.
- ↑ Rahman, Syed Amanur; Verma, Balraj (5 August 2006). The beautiful India – Tripura. Reference Press. पृ॰ 9. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8405-026-4. मूल से 17 June 2016 को पुरालेखित.
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