पांचवें आदित्य पूषा हैं जिनका निवास अन्न में होता है। समस्त प्रकार के धान्यों में ये विराजमान हैं। इन्हीं के द्वारा अन्न में पौष्टिकता एवं ऊर्जा आती है। अनाज में जो भी स्वाद और रस मौजूद होता है वह इन्हीं के तेज से आता है।

देवता पूषा का रथ बकरों द्वारा खींचा जाता है। उनके हाथ में लौहदंड होता है। उनको घी मिले जौ के सत्तू का भोग लगाया जाता है। ( ऋग्वेद षष्ठम मंडल सूक्त 57)