पेइंग गेस्ट (1957 फ़िल्म)
पेइंग गेस्ट 1957 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।
पेइंग गेस्ट | |
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पेइंग गेस्ट का पोस्टर | |
निर्देशक | सुबोध मुखर्जी |
निर्माता | सशाधर मुखर्जी |
अभिनेता |
देव आनन्द, नूतन, गजानन जागीरदार, साजन, शुभा खोटे, दुलारी, राजेन्द्र, चमन पुरी, याकूब, |
संगीतकार |
सचिन देव बर्मन (संगीत) |
प्रदर्शन तिथि |
1957 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
संक्षेप
संपादित करेंरमेश (देव आनन्द) एक नाकाबिल वकील हैं जो हर घर का किराया न दे पाने के कारण निकाला जाता है। एक दिन वह एक बूढ़े का वेश बनाकर किसी घर में किरायेदार बनने में सफल हो जाता है और मकान मालिक की लड़की शान्ति (नूतन) से प्यार भी हो जाता है। शान्ति की सहेली चंचल (शुभा खोटे) पैसों की ख़ातिर अपने पिता की उम्र के एक मशहूर वकील दयाल (गजानन जागीरदार) से शादी कर लेती है। शादी के बाद चंचल शान्ति की पड़ोसी बन जाती है। अपनी शादी से नाख़ुश चंचल शान्ति और रमेश के प्रेम से जलने लगती है। शान्ति का शराबी और गुण्डा जीजा प्रकाश शान्ति के पिता को धमकी देता है कि उसे पैसे भेजें नहीं तो वो ख़ुद उनके घर रहने के लिए चला आयेगा। जब रमेश किराया चुकाने में असमर्थ रहता है तो चुपके से शान्ति उसे अपने पिता द्वारा दिये गये महावार ख़र्च के पैसों में से कुछ पैसे यह कहकर देती है कि रमेश इनसे किराया चुका दे। जब रमेश शान्ति के पिता को वो पैसे देता है तो शान्ति के पिता वो पैसे अपने दामाद को भेजने के लिए निकल पड़ते हैं, लेकिन शान्ति उन्हें यह कहकर रोक लेती है कि वह ख़ुद ये पैसे अपने जीजा को मनी ऑर्डर कर देगी। लेकिन शान्ति पैसे भेजने में असमर्थ रहती है और इसी बीच प्रकाश अपने परिवार के साथ आ धमकता है। शान्ति के पिता बीमार रहते हैं और एक दिन प्रकाश से झगड़े के दौरान अपने प्राण गवाँ देते हैं। इसी बीच शान्ति की बड़ी बहन की भी तबियत ख़राब हो जाती है और शान्ति अपने जीजा को अपने कंगन देकर दवा लेने भेजती है लेकिन प्रकाश सारा पैसा शराब में उड़ाकर ख़ाली हाथ घर आ जाता है। चंचल शान्ति को कोई नौकरी तलाशने को कहती है और शान्ति को एक रंगमंच में नौकरी मिल जाती है। चंचल रमेश पर डोरे डालने की कोशिश करती है। प्रकाश चंद रुपयों की ख़ातिर रमेश और शान्ति को अलग करने की साज़िश में चंचल का सहभागी बन जाता है। एक पार्टी में चंचल रमेश को ज़बर्दस्ती शराब पिलाती है और दयाल चंचल और रमेश को अपने ही घर में साथ-साथ आते हुये देखकर धोके में आ जाता है और अपनी वसीयत से चंचल का नाम निकाल देता है। इसी बीच प्रकाश चुपके से चंचल के घर में दाख़िल होता है और दयाल द्वारा लिखी गई नई वसीयत को चुरा लेता है।
दयाल चंचल पर बदचलनी का इल्ज़ाम लगाता है लेकिन किसी तरह चंचल उसे अपने साथ एक झील के किनारे आरामगृह में छुट्टियाँ बिताने के लिए मना लेती है। चंचल प्रकाश के साथ दयाल को रास्ते से हटाने का षड्यंत्र रचती है और दयाल को झील में डुबा देती है। प्रकाश अब वसीयत तथा दयाल के ख़ून के लिये चंचल को ब्लैकमेल करने लगता है और इसी एक मीटिंग के दौरान शान्ति चंचल के घर में परछाई देखती है कि कोई किसी औरत का गला दबा रहा है। एक अच्छे पड़ोसी होने के नाते शान्ति पता लगाने चंचल के घर जाती है तो देखती है कि प्रकाश ही चंचल का गला दबाने जा रहा है। शान्ति को देखकर प्रकाश उसपर गोलियां चलाने लगता है लेकिन शान्ति किसी तरह प्रकाश से पिस्तौल छीन लेती है और उस को मारने की धमकी देती है। एक गोली चलती है और प्रकाश की मौत हो जाती है। शान्ती अपने जुर्म का इक़बाल कर लेती है और अदालत में उसके ख़िलाफ़ मुकद्दमा चलने लगता है। शहर के सारे नामी वक़ील शान्ति का केस लेने से इन्कार कर देते हैं क्योंकि सबको यक़ीन होता है कि शान्ति को मौत की सज़ा ही होगी। अन्त में रमेश शान्ति का वक़ील बनकर उसकी तरफ़ से पैरवी करता है। क्या रमेश शान्ति को फांसी के फंदे से बचा पायेगा?
चरित्र
संपादित करेंमुख्य कलाकार
संपादित करें- देव आनन्द - रमेश कुमार
- नूतन - शान्ति
- गजानन जागीरदार
- साजन
- शुभा खोटे - चंचल
- दुलारी - उमा
- राजेन्द्र
- चमन पुरी
- याकूब - प्रकाश
दल
संपादित करेंसंगीत
संपादित करें# | गीत | गायक/गायिका | चित्रित |
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1 | "ओ निगाहें मस्ताना" | किशोर कुमार, आशा भोंसले | देव आनन्द, नूतन |
2 | "चांद फिर निकला" | लता मंगेशकर | नूतन |
3 | "चुपके चुपके रुकते रुकते" | लता मंगेशकर | नूतन |
4 | "छोड़ दो आँचल ज़माना क्या कहेगा" | किशोर कुमार, आशा भोंसले | देव आनन्द, नूतन |
5 | "माना जनाब नें पुकारा नहीं" | किशोर कुमार | देव आनन्द |
6 | "हाय हाय हाय ये निगाहें" | किशोर कुमार | देव आनन्द |