पोजीट्रॉन

परमाणु में पाया जाने वाला एक मौलिक कण है
(पॉजिट्रॉन से अनुप्रेषित)

पाजीट्रोन (e+) या पोजीटिव इलेक्ट्रोन (धन आवेश युक्त इलेक्ट्रोन) परमाणु में पाया जाने वाला एक मौलिक कण है। यह धन आवेश युक्त इलेक्ट्रोन है। इसके गुण इलेक्ट्रोन के समान होते किन्तु दोनो में अंतर यह है कि इलेक्ट्रोन ऋण आवेश युक्त कण है तथा पोजीट्रोन धन आवेश युक्त कण है। इसका द्रव्यमान इलेक्ट्रोन के द्रव्यमान के समान होता है। इसकी खोज सन १९३२ में कार्ल डी एंडरसन ने की थी। इसका विद्युत आवेश +1.602176487(40)×10−19 कूलाम्ब होता है। इसकी घूर्णन गति आधी होती है। पोजिट्रोन को β+ चिन्ह से भी दर्शाते है। जब पोजिट्रोन तथा इलेक्ट्रोन की टक्कर होती है तो दोनो नष्ट हो जाते हैं और दो गामा किरण फोटान उत्पन्न होती है।

चिकित्सालय में उपयोग होने वाले एक्स किरण में न्यूट्रोन, गामा किरण, प्रोटोन, न्यूट्रिनो, के साथ पोजिट्रोन भी शामिल रहता है।

पॉज़िट्रॉन का प्रयोगात्मक आविष्कार १९३२ ई. में हुआ। ऐंडर्सन ने देखा कि विल्सन अभ्रकोष्ठ (Wilson's cloud chamber) में चुंबकीय क्षेत्र लगाकर यदि अंतरिक्ष किरणों के फोटो लें, तो प्राय: इलेक्ट्रॉन जैसे दो पथ (tracks) दृष्टि में आते हैं, जिनकी वक्रता उल्टी दिशाओं में होती है। वक्रता कण के आवेश पर निर्भर करती है। इसलिये इन प्रयोगों से स्पष्ट है कि इन कणों का आवेश उल्टा होगा। अब पॉज़िट्रॉन का अस्तित्व अन्य परीक्षणों से भी स्थापित हो चुका है।

पॉज़िट्रॉन के प्रयोगात्मक आविष्कार से चार वर्ष पहले डिरैक ने एक समीकरण दिया था, जिससे इलेक्ट्रॉन के सब ज्ञात गुणधर्मों का वर्णन हो जाता था, किंतु साथ ही इसके अनुसार एक ऐसे कण का मानना भी अनिवार्य था जिसकी संहति और ऊर्जा ऋणात्मक हों। यह बात अजीब थी। इस अवांछनीय स्थिति से बचने के लिये डिरैक ने प्रस्ताव रखा कि साधारणतया ऋणात्मक ऊर्जा की सब अवस्थाएँ इलेक्ट्रॉनों से भरी रहती हैं। अत: हम धनात्मक ऊर्जा की अवस्थाओं (अर्थात् साधारण इलेक्ट्रॉनों) को ही देख पाते हैं। पर कभी कभी जब विद्युतच्चुंबकीय क्षेत्र द्वारा प्रबल, परस्पर क्रियाएँ (interactions) होती हैं तब ऋणात्मक ऊर्जा की अवस्थाओं में से एक इलेक्ट्रॉन बाहर निकल आता है तथा बाहर आकर ऐसे व्यवहार करता है जैसे धन ऊर्जा इलेक्ट्रॉन करते हैं। पर साथ ही ऋण ऊर्जावाली एक अवस्था खाली हो जाती है। इसे हम ऋण ऊर्जा के समुद्र में एक छिद्र (hole) से चित्रित कर सकते हैं। यह छिद्र ऐसे ही आचरण करता है जैसे धन आवेशवाला कण, जिसकी संहति इलेक्ट्रॉन के बराबर हो। पहिले डिरैक ने इस कण को प्रोटॉन मानने का प्रयत्न किया, पर ऐंडर्सन के परिणाम का पता चलने पर उन्होंने इस कण को प्रोटॉन नहीं, परंतु पॉज़िट्रॉन माना।

डिरैक का छिद्र सिद्धांत (hole theory) बहुत संतोषजनक नहीं है। इलेक्ट्रॉन और पॉज़िट्रॉन का आधुनिक सिद्धांत डिरैक समीकरण के द्वितीय क्वांटीकरण (Second quantisation) पर निर्भर है। इसमें पॉज़िट्रॉन के गुणधर्म प्राकृतिक विधि से निकल आते हैं। इलेक्ट्रॉन और पॉज़िट्रॉन को 'कण' और 'प्रतिकण' (antiparticle) कह सकते हैं। यह विचारधारा भौतिकी में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई है।