प्रतिहार कला शैली
प्रतिहार राजपूत शैली
प्रतिहार राजपूत कला शैली मध्यकालीन मूर्ति शैली है, इस शैली की प्रतिमाओं में गुप्त काल की अनेक विशेषताएँ समाहित हैं। प्रतिहार राजपूत कला शैली की प्रतिमाएँ मध्यकालीन शैली की अन्य कला शैलियों की तुलना में सबसे अधिक प्रभावशाली एवं सुन्दर हैं। इस शैली की प्रतिमाओं के मुख पर प्रसन्नता का भाव प्रदर्शित हुआ है। इन प्रतिमाओं के शरीर की सुडौलता पर विशेष ध्यान दिया गया है तथा अलंकरणों का कम प्रयोग हुआ है। उत्तर-प्रदेश के जिला झाँसी स्थित बरुआ सागर का विशाल मन्दिर प्रतिहार कला शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मन्दिर के प्रवेश द्वार पर अनेक सुन्दर मूर्तियाँ उकेरी गईं हैं। इस मन्दिर की कलाकृतियों को देखने से स्पष्ट होता है कि उस समय के कलाकार मूर्तियों के अंग-प्रत्यंग की सुडौलता के प्रति अत्यन्त सजग थे तथा इनके निर्माण में सिद्धहस्त थे।[1]
प्रतिहार राजपूत कला दीर्घा
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तेली का मंदिर के चार प्रवेश द्वारों में से एक। यह हिंदू मंदिर महाराजाधिराज श्रीमद् आदि वराह मिहिर भोज प्रतिहार (राजपूत) द्वारा बनाया गया था।[2]
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तेली का मंदिर, ग्वालियर किला के पास मूर्तियां।
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जैन धर्म से संबंधित गुफा स्मारकों और मूर्तियों को सिद्धांचल गुफाओं, ग्वालियर किले के अंदर रॉक फेस में उकेरा गया है।
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बरौली मंदिरों में घाटेश्वर महादेव मंदिर. गुर्जरा प्रतिहार (राजपूत) द्वारा निर्मित आठ मंदिरों का परिसर चारदीवारी के भीतर स्थित है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ डॉ॰ एस०डी० त्रिवेदी, बुन्देलखण्ड की मूर्ति सम्पदा, "उत्तर-प्रदेश" पत्रिका, सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग, उत्तर-प्रदेश, लखनऊ, संस्करण 1981, पृष्ठ-107
- ↑ K. D. Bajpai (2006). History of Gopāchala. Bharatiya Jnanpith. पृ॰ 31. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-263-1155-2.