मिहिर भोज

गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के शासक

मिहिर भोज (अनु. 836 ई. - 885 ई.), अथवा प्रथम भोज, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के राजा थे[1][2] जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में लगभग 49 वर्षों तक शासन किया और इनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान में उत्तर प्रदेश में) थी। इनके राज्य का विस्तार नर्मदा के उत्तर में और हिमालय की तराई तक, पूर्व में वर्तमान बंगाल की सीमा तक माना जाता है।

मिहिर भोज
आदिवाराह
6वें गुर्जर-प्रतिहार राजा
शासनावधिल. 836
पूर्ववर्तीरामभद्र
उत्तरवर्तीमहेन्द्रपाल प्रथम
निधन885
नर्मदा नदी
संतानमहेन्द्रपाल प्रथम
पितारामभद्र

भोज को प्रतिहार वंश का सबसे महान शासक माना जाता है और अरब आक्रमणों को रोकने में इनकी प्रमुख भूमिका रही थी। स्वयं एक अरब इतिहासकार के मुताबिक़ इनकी अश्वसेना उस समय की सर्वाधिक प्रबल सेना थी।

इनके पूर्ववर्ती राजा इनके पिता रामभद्र थे। इनके काल के सिक्कों पर आदिवाराह की उपाधि मिलती है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि ये विष्णु के उपासक थे। इनके बाद इनके पुत्र प्रथम महेंद्रपाल राजा बने।


नाम एवं उपाधि

मिहिर भोज का सबसे आम नाम भोज है।[3] इसी नाम के अन्य राजाओं से विभेदित करने के लिए उसे प्रथम भोज (भोज I) कहा जाता है। इतिहासकार सतीशचंद्र के मुताबिक़ उसे उज्जैन के शासक "भोज परमार से भिन्न दिखाने के लिए कभी-कभी मिहिर भोज भी कहा जाता है।"[4] हालाँकि, रमा शंकर त्रिपाठी ग्वालियर से प्राप्त अभिलेख के हवाले से लिखते हैं कि इस इसमें में उसका प्रथम नाम (अभिधान) "मिहिर" लिखा गया है[2] जो सूर्य का पर्यायवाची शब्द है। उपाधि के बारे में सतीश चन्द्र का कथन है कि "भोज विष्णुभक्त था और उसने 'आदि वाराह' की उपाधि धारण की जो कि उसके कुछ सिक्कों पर भी अंकित मिलती है"।[3]

शासनकाल

ग्वालियर किले के समीप तेली का मंदिर में स्थित मूर्तियाँ
ग्वालियर किले के समीप तेली का मंदिर में स्थित मूर्तियाँ
तेली का मंदिर जिसे मिहिर भोज द्वारा बनवाया गया माना जाता है।[5]

भोज का शासनकाल भारतीय इतिहास के मध्यकाल का वह दौर है जिसे "तीन साम्राज्यों के युग" के नाम से जाना जाता है। यह वह काल था जब पश्चिम-उत्तर भारत (इसमें वर्तमान पाकिस्तान के भी हिस्से शामिल हैं) क्षेत्र में गुर्जर-प्रतिहारों का वर्चस्व था, पूर्वी भारत पर बंगाल के पाल राजाओं का आधिपत्य था और दक्कन में राष्ट्रकूट राजा प्रभावशाली थे। इन तीनों राज्यक्षेत्रों के आपसी टकराव का बिंदु कन्नौज पर शासन था। इतिहासकार इसे कन्नौज त्रिकोण के नाम से भी बुलाते हैं।

भोज के आरंभिक समय में कन्नौज प्रतिहारों के आधिपत्य में नहीं था। अतः भोज के वास्तविक शासनकाल की शुरूआत उसकी कन्नौज विजय से माना जाता है जो 836 ईसवी में हुई। इसके पश्चात उसने 885 ईसवी तक (49 साल) यहाँ राज्य किया।

एक इतिहासकार के अनुसार भोज ने अपने पिता रामभद्र की हत्या करने के बाद नेतृत्व अपने हाथ में लिया[6] और इसके उपरांत अपने राज्य के वो इलाके पहले हस्तगत करके सुदृढ़ किये जो उस समय उनके हाथ से निकल गये थे या जिनपर नियंत्रण कमजोर हो चुका था। इसके उपरान्त उसने कन्नौज पर आधिपत्य स्थापित किया और दक्षिण की ओर राज्य का विस्तार करना चाहा। दक्षिण विजय राष्ट्रकूट शासकों द्वारा विफल कर दी गयी और उसके पश्चात भोज ने पूर्व की ओर विस्तार करना चाहा जिसे बंगाल के पाल शासक देवपाल ने रोक दिया।

हालिया विवाद

मिहिर भोज को लेकर हाल में कई विवादित घटनायें घटित हुई हैं जिनमें इनके गुर्जर होने अथवा राजपूत होने को लेकर कई जगहों पर विवाद का मुद्दा बनाया गया है। जहाँ गुर्जर समुदाय के लोगों का दावा है कि मिहिर भोज गुर्जर थे वहीं राजपूत समुदाय के लोग यह दावा करते हैं कि ये राजपूत क्षत्रिय थे और गुर्जर नाम केवल गुर्जरादेश के, एक क्षेत्र के नाम, के कारण प्रयोग किया जाता है।

उपरोक्त दोनों ही दावों को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों के मतों का प्रमाण हाल में उद्धृत किया गया है।[7] और वर्तमान में यह दोनों समुदायों के बीच एक कटु संघर्ष का मुद्दा बना हुआ है।[8]

संदर्भ

  1. त्रिपाठी 2014, पृ॰ 321.
  2. त्रिपाठी 1989, पृ॰ 237.
  3. सतीश चन्द्र 2007, पृ॰ 16.
  4. सतीश चन्द्र 2007, पृ॰प॰ 15-17.
  5. के. डी. वाजपेयी 2006, पृ॰ 31.
  6. डेविडसन 2004.
  7. "सम्राट मिहिरभोज कौन हैं, जिन्हें लेकर आमने-सामने हैं राजपूत और गुर्जर?". BBC News हिंदी. अभिगमन तिथि 23 सितम्बर 2021.
  8. सिद्धार्थ, राय (23 सितम्बर 2021). "गुर्जर बनाम राजपूत: राजा मिहिर भोज मूर्ति अनावरण समारोह में मंच पर विधायक के साथ धक्कामुक्की". जनसत्ता. अभिगमन तिथि 23 सितम्बर 2021.

स्रोत ग्रंथ