प्रवेशद्वार:विज्ञान/परिचय
विज्ञान प्रकृति का व्यवस्थित अध्ययन है जिसके माध्यम से परीक्षण योग्य स्पष्टीकरण और पूर्वानुमान प्राप्त होता है। अरस्तु द्वारा दी गयी विज्ञान की प्राचीन परिभाषा इसके वर्तमान अर्थ के समानार्थक है। इसके अनुसार "विज्ञान" विश्वसनीय ज्ञान का वह भाग है जो तार्किक और चेतन्य भाव से समझाया जा सकता हो। प्राचीनकाल में विज्ञान उस ज्ञान का एक प्रकार था जो दर्शनशास्त्र के बारीकी से जुड़ा हुआ है। पाश्चात्य देशों में आधुनिक काल के पूर्वार्द्ध तक शब्दों "विज्ञान" और "दर्शनशास्त्र" को एक दूसरे के स्थान पर काम में लिया जाता था। १७वीं सदी तक प्राकृतिक दर्शन ही दर्शनशास्त्र की अलग शाखा के रूप में विकसित होने लग गयी। इसे आज "प्राकृतिक विज्ञान" के नाम से जाना जाता है। "विज्ञान" निरंतर ज्ञान के विश्वसनीय तथ्यों को निरूपित करने लग गयी; अतः आधुनिककाल में भी राजनीति विज्ञान अथवा पुस्तकालय विज्ञान जैसे शब्द प्रचलन में हैं।
आज, "विज्ञान" शब्द केवल ज्ञान को नहीं बल्कि ज्ञान की खोज को निरूपित करता है। यह अक्सर "प्राकृतिक और भौतिक विज्ञान" के पर्याय के रूप में और भौतिक जगत एवं इसके नियमों के अनुसार घटित होने वाली घटनाओं की शाखाओं तक प्रतिबन्धित किया जाता है। यद्यपि इस शब्द के अनुसार इसमें विशुद्ध गणित को शामिल नहीं किया जा सकता लेकिन विभिन्न विश्वविद्यालय गणित विभाग को भी विज्ञान संकाय में शामिल करते हैं। साधारण रूप से प्रयुक्त शब्दों में "विज्ञान" शद्ब का प्रयोग बहुत ही संकीर्ण रूप से होता है। इसका विकास प्राकृतिक नियमावली को परिभाषित करने वाले कार्यों के एक भाग के रूप में हुआ; इसके शुरूआती उदाहरणों में केप्लर के नियम, गैलीलियो के नियम और न्यूटन के नियमों को शामिल किया जाता है। वर्तमान समय में प्राकृतिक दर्शन को भी प्राकृतिक विज्ञान के रूप में उल्लिखीत करना आम प्रचलन हो गया है। १९वीं सदी में विज्ञान मुख्य रूप से भौतिकी, रसायनिकी, भौमिकी और जीव विज्ञान सहित प्राकृतिक विश्व के नियमबद्ध अध्ययन से सम्बद्ध हो गयी।
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