गोंड समुदाय, भारत की एक प्रमुख जातीय समुदाय हैं| भारत के कटि प्रदेश - विंध्यपर्वत,सिवान, सतपुड़ा पठार, छत्तीसगढ़ मैदान में दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम - में गोदावरी नदी तक फैले हुए पहाड़ों और जंगलों में रहनेवाली आस्ट्रोलायड नस्ल तथा द्रविड़ परिवार की एक जनजाति, जो संभवत: पाँचवीं-छठी शताब्दी में दक्षिण से गोदावरी के तट को पकड़कर मध्य भारत के पहाड़ों में फैल गई। आज भी मोदियाल गोंड जैसे समूह हैं जो गोंडों की जातीय भाषा गोंडी है जो द्रविड़ परिवार की है और तेलुगु, कन्नड़, तमिल आदि से संबन्धित है। परिचय

बड़ादेव (सृजन करने वाली शक्ति), दुल्हा देव (शादी विवाह सूत्र में बाँधने वाला देव), पंडा पंडिन (रोग दोष का निवारण करने वाला देव), बूड़ादेव (बूढाल पेन) कुलदेवता या पुरखा, जिसमे उनके माता पिता को भी सम्मिलित किया जाता है, नारायण देव (सूर्य) और भीवासू गोंडों के मुख्य देवता हैं। इनके अतिरिक्त ग्रामों में ग्राम देवता के रूप में खेरमाई (ग्राम की माता), ठाकुर देव, खीला मुठ्वा, नारसेन (ग्राम की सीमा पर पहरा देने वाला देव), ग्राम के लोगों की सुरक्षा, फसलों की सुरक्षा, पशुओं की सुरक्षा, बीमारियों और वर्षा आदि के भिन्न भिन्न देवी देवता हैं। इन देवताओं को बकरे और मुर्गे आदि की बलि देकर प्रसन्न किया जाता है। गोंडों का भूत प्रेत और जादू टोने में अत्यधिक विश्वास है और इनके जीवन में जादू टोने की भरमार है। किंतु बाहरी जगत्‌ के सम्पर्क के प्रभावस्वरूप इधर इसमें कुछ कमी हुई है। अनेक गोंड लंबे समय से हिन्दू धर्म तथा संस्कृति के प्रभाव में हैं और कितनी ही जातियों तथा कबीलों ने बहुत से हिन्दू विश्वासों, देवी देवताओं, रीति रिवाजों तथा वेशभूषा को अपना लिया है। पुरानी प्रथा के अनुसार मृतकों को दफनाया जाता है, किंतु बड़े और धनी लोगों के शव को जलाया जाने लगा है। स्त्रियाँ तथा बच्चे दफनाए जाते हैं। अधिक पढ़ें…