प्रवेशद्वार:स्वास्थ और आयुर्विज्ञान/चयनित लेख

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प्रवेशद्वार:स्वास्थ और आयुर्विज्ञान/चयनित लेख/1

 
मलेरिया फैलाने वाली मादा एनोफ़िलीज़ मच्छर

मलेरिया या दुर्वात एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोज़ोआ परजीवी द्वारा फैलता है। यह मुख्य रूप से अमेरिका, एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों के उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधी क्षेत्रों में फैला हुआ है। प्रत्येक वर्ष यह ५१.५ करोड़ लोगों को प्रभावित करता है तथा १० से ३० लाख लोगों की मृत्यु का कारण बनता है जिनमें से अधिकतर उप-सहारा अफ्रीका के युवा बच्चे होते हैं। मलेरिया को आमतौर पर गरीबी से जोड़ कर देखा जाता है किंतु यह खुद अपने आप में गरीबी का कारण है तथा आर्थिक विकास का प्रमुख अवरोधक है।

मलेरिया सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों में से एक है तथा भंयकर जन स्वास्थ्य समस्या है। यह रोग प्लास्मोडियम गण के प्रोटोज़ोआ परजीवी के माध्यम से फैलता है। केवल चार प्रकार के प्लास्मोडियम (Plasmodium) परजीवी मनुष्य को प्रभावित करते है जिनमें से सर्वाधिक खतरनाक प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम (Plasmodium falciparum) तथा प्लास्मोडियम विवैक्स (Plasmodium vivax) माने जाते हैं, साथ ही प्लास्मोडियम ओवेल (Plasmodium ovale) तथा प्लास्मोडियम मलेरिये (Plasmodium malariae) भी मानव को प्रभावित करते हैं। इस सारे समूह को 'मलेरिया परजीवी' कहते हैं। मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनोफ़िलेज़ मच्छर है। इसके काटने पर मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर के बहुगुणित होते हैं जिससे रक्तहीनता (एनीमिया) के लक्षण उभरते हैं (चक्कर आना, साँस फूलना, द्रुतनाड़ी इत्यादि)। इसके अलावा अविशिष्ट लक्षण जैसे कि बुखार, सर्दी, उबकाई और जुखाम जैसी अनुभूति भी देखे जाते हैं। गंभीर मामलों में मरीज मूर्च्छा में जा सकता है और मृत्यु भी हो सकती है। अधिक पढ़ें…


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सूक्ष्मजीवों से स्ट्रीक्ड एक अगार प्लेट

सूक्ष्मजैविकी उन सूक्ष्मजीवों का अध्ययन है, जो एककोशिकीय या सूक्ष्मदर्शीय कोशिका-समूह जंतु होते हैं। इनमें यूकैर्योट्स जैसे कवक एवं प्रोटिस्ट और प्रोकैर्योट्स, जैसे जीवाणु और आर्किया आते हैं। विषाणुओं को स्थायी तौर पर जीव या प्राणी नहीं कहा गया है, फिर भी इसी के अन्तर्गत इनका भी अध्ययन होता है। संक्षेप में सूक्ष्मजैविकी उन सजीवों का अध्ययन है, जो कि नग्न आँखों से दिखाई नहीं देते हैं। सूक्ष्मजैविकी अति विशाल शब्द है, जिसमें विषाणु विज्ञान, कवक विज्ञान, परजीवी विज्ञान, जीवाणु विज्ञान, व कई अन्य शाखाएँ आतीं हैं। सूक्ष्मजैविकी में तत्पर शोध होते रहते हैं एवं यह क्षेत्र अनवरत प्रगति पर अग्रसर है। अभी तक हमने शायद पूरी पृथ्वी के सूक्ष्मजीवों में से एक प्रतिशत का ही अध्ययन किया है। हाँलाँकि सूक्ष्मजीव लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व देखे गये थे, किन्तु जीव विज्ञान की अन्य शाखाओं, जैसे जंतु विज्ञान या पादप विज्ञान की अपेक्षा सूक्ष्मजैविकी अपने अति प्रारम्भिक स्तर पर ही है। अधिक पढ़ें…


प्रवेशद्वार:स्वास्थ और आयुर्विज्ञान/चयनित लेख/3 मातृ मृत्यु दर, गर्भावस्था के दौरान या शिशु के जन्म के कारण माँ की मृत्यु के दर को कहा जाता है। मातृ मृत्यु दर महिला एवं बाल स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। विभिन्न देशों और संस्कृतियों में मातृ मृत्यु के भिन्न-भिन्न कारण हैं, तथा इसका प्रभाव विभिन्न देशों/प्रदेशों के मातृ मृत्यु दरों में झलकता है। भारत में विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों तथा महिला जनसांख्यिकीय स्तर पर भी इन दरों में सार्थक भिन्नता है। 1980 से 2015 के बीच भारत में 1.5% मातृ मृत्यु का कारण एक्लंप्षण (इक्लेम्प्सिया) रहा है। यद्यपि इस बीमारी का अनुभव करने वाली महिलाओं की संख्या इस कालावधि में समान ही रही है, मगर इस कारन से मातृ मृत्यु की संख्या में हाल के समय में थोड़ी कमी आई है।

सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बुलेटिन - 2016 के अनुसार, भारत में 2013 से अनुपात मातृ मृत्यु के दरों में 26.9% की कमी दर्ज हुई है। यह दर 2011-2013 में 167 से घटकर 2014-2016 में 130 और 2015-17 में 122 दर्ज किया गया था। 2014-2016 के अंतिम सर्वेक्षण के आंकड़ों के बाद 6.15% की कमी दर्ज की गई। अधिक पढ़ें…


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