गर्भावस्था

महिलाओं के गर्भ का ठहरना

मादा के गर्भाशय में भ्रूण के होने को गर्भावस्था (गर्भ + अवस्था) कहते हैं। इसके बाद महिला शिशु को जन्म देती है। आम तौर पर यह अवस्था मां बनने वाली महिलाओं में ९ माह तक रहती है, जिसे गर्भवती महिला कहते हैं। कभी कभी संयोग से एकाधिक गर्भावस्था भी अस्तित्व में आ जाती है जिससे एक से अधिक जुडवाँ सन्तान की उपस्थिति होती है।

गर्भवती महिला

गर्भ धारण

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गर्भधारण की प्रक्रिया में पुरुष और स्त्री के सम्भोग के उपरान्त पुरुष द्वारा स्त्री की योनि के माध्यम से गर्भाशय में शुक्राणुओं को डालना होता है। गर्भाशय में शुक्राणु स्त्री के अंडाणु को निषेचित करते हैं। निषेचन की प्रक्रिया के बाद भ्रूण स्त्री के गर्भ में रहता है और अपने निश्चित समय पर बच्चे का जन्म होता है , जो कि आम तौर पर ४० हफ्ते़ माना जाता है।

गर्भावस्था आम तौर पर तीन भागों ( तिमाही) में बांटा गया है। पहली तिमाही में गर्भाधान से लेकर 12 से सप्ताह से है, गर्भाधान जब शुक्राणु अंडा निषेचित है। निषेचित अंडे तो फैलोपियन ट्यूब नीचे यात्रा और गर्भाशय के अंदर है, जहां यह भ्रूण और नाल आकार लेती है।पहली तिमाही में गर्भपात का सबसे ज्यादा खतरा (भ्रूण या भ्रूण की स्वाभाविक मृत्यु) माना जाता है। दूसरी तिमाही 13 सप्ताह से 28 सप्ताह है। जिसमें भ्रूण के आंदोलन को महसूस किया जा सकता है। 28 सप्ताह से अधिक समय के बच्चों को उच्च गुणवत्ता चिकित्सा देखभाल के ज़रिये 90% गर्भाशय के बाहर जीवित रखा जा सकता हैं। तीसरी तिमाही 29 सप्ताह से 40 सप्ताह का समय है।

 
गर्भवती होने की जाँच ; दो रेखाएँ दिखना गर्भ-धारण का सूचक है।

एक स्वस्थ महिला को प्रत्येक माह मासिक-स्राव (माहवारी) होती है। गर्भ ठहरने के बाद मासिक-स्राव होना बंद हो जाता है। इसके साथ-साथ दिल में अम्लिकोद्गार होना, उल्टी होना, बार-बार पेशाब का होना तथा स्तनों में हल्का दर्द बना रहना आदि साधारण शिकायतें होती है। इन शिकायतों को लेकर महिलाएं, स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास जाती है। डाक्टर महिला के पेट और योनि की जाँच करती है और बच्चेदानी की ऊंचाई को देखती है। गर्भधारण करने के बाद बच्चेदानी का बाहरी भाग मुलायम हो जाता है। इन सभी बातों को देखकर डाक्टर महिला को मां बनने का संकेत देता है। इसी बात को अच्छे ढंग से मालूम करने के लिए डाक्टर रक्त या मूत्र की जांच के लिए राय देता है।

महिलाओं के रक्त और मूत्र की जांच
 
प्रेगनेंसी जाँच करने का तरीका [1]

गर्भवती महिलाओं के रक्त और मूत्र में एच.सी.जी. होता है जो कौरिऔन से बनता है। ये कौरिऔन औवल बनाती है। औवल का एक भाग बच्चेदानी की दीवार से तथा की नाभि से जुड़ा होता है। इसके शरीर में पैदा होते ही रक्त और मूत्र में एच.सी.जी. आ जाता है। इस कारण महिला को अगले महीने के बाद से माहवारी होना रूक जाता है। एच.सी.जी. की जांच रक्त या मूत्र से की जाती है। साधारणतया डाक्टर मूत्र की जांच ही करा लेते है। जांच माहवारी आने के तारीख के दो सप्ताह बाद करानी चाहिए ताकि जांच का सही परिणाम मालूम हो सके। यदि जांच दो सप्ताह से पहले ही करवा लिया जाए तो परिणाम हां या नहीं में मिल जाता है। वह वीकली पजिटिव कहलाता है।

भ्रूण का विकास

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दस सप्ताह की गर्भावधि के तहत भ्रूण विकसित होता है जिसके बाद के भ्रूण चरण में गर्भपात का खतरा कम हो जाता है, इस चरण में भ्रूण की लंबाई लगभग 30 मि मी (1.2 इंच) होती है। जिसके अल्ट्रासाउंड से दिल की धड़कन एवम् अनैच्छिक गतियों को मेहसूस किया जा सकता है।भ्रूण चरण में स्थापित किए गए संरचना का जल्द ही  शरीर प्रणालियों में विकास होता है।भ्रूण का विकास दोनों ओर वजन और लंबाई में वृद्धि जारी रहता है। विद्युत मस्तिष्क गतिविधि पहली हमल के पांचवें और छठे सप्ताह के बीच क्रियात्मक होती है।

गर्भावस्था के दौरान पोषण

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एक महिला आठ माह की गर्भवती

भ्रूण पोषण के स्वस्थ विकास को सुनिश्चित करने के लिए गर्भावस्था के दौरान भ्रूण पोषण महत्वपूर्ण है, शिक्षा के ज़रिये महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान एक संतुलित ऊर्जा और प्रोटीन की मात्रा लेने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। कुछ महिलाओं को अपने आहार चिकित्सा की स्थिति, खाद्य एलर्जी, या विशिष्ट धार्मिक नैतिक विश्वासों के आधार पर पेशेवर चिकित्सक की सलाह की जरूरत हो सकती है। मुख्य रूप से पर्याप्त मात्रा में फोलिक एसिड एवम हरी पत्तेदार सब्जियां, फलियां, और खट्टे फलो का सेवन करना चाहिये।यह महत्वपूर्ण है कि महिला को गर्भावस्था के दौरान डीएचए की पर्याप्त मात्रा में उपभोग करना चाहिये,डीएचए ओमेगा -३ मस्तिष्क और रेटिना में एक प्रमुख संरचनात्मक फैटी एसिड होता है, और स्वाभाविक रूप से मां के दूध में पाया जाता है,यह नर्सिंग के दौरान शिशु के स्वास्थ्य का समर्थन करता है।साथ ही विटामिन (दी) और कैल्शियम भी आहार में लेना चाहिये।

गर्भावस्था के दौरान टेस्ट

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ज्यादातर दपंत्तियों को पता ही नहीं होता है कि प्रेगनेंसी में कौन-कौन से टेस्ट होते है। ऐसा माना जाता है कि प्रेगनेंसी के शुरुवात के तीन महीने बहुत नाजुक होते हैं क्योंकि इस समय मिसकैरेज का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। लेकिन ये तीन महीने सही से गुजर जाएं तो गर्भ ठहर जाता और गर्भावस्था में खतरा कम रहता है। यही वजह है कि गर्भावस्था की पहली तिमाही (First Trimester of Pregnancy) में अधिक सावधानी बरतने की जरुरत होती है और जरा सी लपरवाही भी बच्चे की जान को खतरे में डाल सकती है। गर्भ ठहरने और शिशु के स्वास्थ है या नहीं ये जानने के लिए कुछ ब्लड टेस्ट किए जाते है। इन निम्नलिखित में प्रेगनेंसी ब्लड टेस्ट नाम कुछ इस प्रकार से हैं-

  • आयरन और ब्लड शुगर टेस्ट

हीमोग्लोबिन लेवल चेक करने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है जिससे की पता चलता है कि शरीर में आयरन की कमी है या नहीं। गर्भवस्था के समय शरीर में पर्याप्त मात्रा में आयरन होना जरुरी होता है जिससे शरीर के सभी हिस्से और शिशु को ऑक्सीजन मिल सकें।

प्रेगनेंसी में ब्लड टेस्ट से आयरन की कमी का पता लगाया जा सकता है और डॉक्टर आपकी इस कमी को पूरा करने के लिए सप्लीमेंट देते हैं।  इसके अलावा ब्लड टेस्ट की मदद से आपका शुगर लेवल भी चेक किया जाता है। इस टेस्ट से जेस्‍टेशनल  डायबिटीज का पता लगाया जा सकता है।

  • हेपेटाइटिस बी और एचआईवी

प्रेगनेंसी ब्लड टेस्ट रिपोर्ट से पता चलता है कि हेपेटाइटिस बी और एचआईवी की समस्या है या नहीं। क्योंकि मां को हेपेटाइटिस बी है तो इससे बच्चे को भी होने का खतरा बन सकता है। इसकी वजह से बच्चे के लिवर को नुकसान पहुंच सकता है। इस टेस्ट के माध्यम से डॉक्टर बच्चे को हेपेटाइटिस बी की समस्या से बचाने के लिए प्रेगनेंट महिला को एंटीबॉडीज का इंजेक्शन लगाते हैं।

सभी प्रेगनेंट महिलाओं को एचआईवी और एड्स का टेस्ट जरुर करवाना चाहिए। जिससे अपने होने वाले बच्चे को पहले ही इस बीमारी को पहुंचने से रोका जा सकता है।

  • आरएच फैक्टर (RH Factor)

प्रेगनेंसी में होने वाले टेस्ट में आरएच टेस्ट बच्चे की सेहत के लिए सबसे महत्वपूर्ण टेस्ट होता है। इस टेस्ट में लाल रक्त कोशिका (Red Blood Cells) के सतह पर प्रोटीन पाया जाता है जो आरएच पॉजिटिव (RH Positive) कहलाया जाता है। अगर लाल रक्त कोशिका के सतह पर प्रोटीन नहीं पाया जाता है जो आरएच नेगेटिव (RH Negative) कहलाया जाता है।

आरएच नेगेटिव होना कोई बीमारी नहीं है पर यह गर्भावस्था को प्रभावित कर सकता है। अगर मां आरएच नेगेटिव है और बच्चा आरएच पॉजिटिव है तो आपकी गर्भावस्था को विशेष देखभाल की जरुरत है। या फिर डॉक्टर आपको प्रेगनेंट महिला को आरएच प्रोटीन का इंजेक्शन लगाते हैं।

  • थायराइड लेवल टेस्ट

गर्भावस्था की पहली तिमाही में डॉक्टर थायराइड लेवल की जांच करते है। अगर आपको हाइपरथायराइड और हाइपोथायराइड है तो प्रेगनेंसी के दौरान मां को मॉनिटर किया जाता है ताकि बच्चे के विकास पर कोई असर न पड़े।  

अन्य टेस्ट

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प्रेगनेंसी के दौरान सीबीसी टेस्ट (Complete Blood Test), सिकेल सेल डिसऑर्डर और थैलीसीमिया टेस्ट करवाना बेहद जरुरी है।

विटामिन-डी टेस्ट करवाना भी बहुत जरुरी है क्योंकि कमी होने के कारण हड्डियां कमजोर हो सकती हैं या बच्चे के विकास में दिक्‍कत आ सकती है और मां में भी प्रीक्‍लैंप्‍सिया का खतरा बढ़ सकता है।    

विटामिन-बी12 दिमाग और न्यूरोलॉजिकल विकास के लिए बेहद जरुरी है। इसकी कमी से बहुत गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती है जैसे बच्चे के दिमाग और नर्व्स का खराब विकास या फिर स्पाइना बिफिडा (Spina bifida) की समस्या होना।

प्रेगनेंसी के दौरान अल्ट्रासाउंड परिणामों की जांच करता है और बच्चे को सुरक्षित रखता है। आमतौर पर इन अल्ट्रासाउंड्स की सलाह दी जाती है-  

  • प्रांरभिक स्कैन: इस टेस्ट को शुरुवाती दिनों में किया जाता है जो बच्चे की धड़कन, एक्टोपिक प्रेगनेंसी, ब्लीडिंग क्यों नहीं हुई और कितने भ्रूण का पता लगाती है।
  • 11 से 13 हफ्ते में सोनोग्राफी: ये जरुरी है कि क्रोमोसोमल और जेनेटिक असमानताओं वाले मार्कर्स का पता लगाने में मदद करता है। इसमें भ्रूण की कमियों को पता लगाने में मदद मिलती है।
  • 19 हफ्ते में सोनोग्राफी: ये प्रेगनेंसी के दौरान की जाने वाली बेहद जरुरी सोनोग्राफी है जो बच्चे के सिर से पैर तक की संरचना को जांचता है।

28 से 36 में सोनोग्राफी: यह अल्ट्रासाउंड भ्रूण स्वास्थ्य स्कैन (fetal wellbeing scan) कहलाता है और ये जांचता है कि भ्रूण का विकास सही तरह से हो रहा है या नहीं, सहीं मात्रा में एम्नियोटिक फ्लूइड है या नहीं, कही भ्रूण को खराब ब्लड तो नहीं पहुंच रहा है। साथ ही जांच में पता चलता है कि गर्भ में बच्चा उल्टा तो नहीं है क्योंकि फिर डिलीवरी के समय बच्चे की जान को खतरा हो सकता है। इस समस्या में डॉक्टर समय से पहले ही सर्जरी भी कर सकते है।

गर्भावस्था के दौरान सावधानियां

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अभिनेत्री सस्किया बर्मेस्टर गर्भावस्था की हालत में इन-स्टाइल विमेन ऑफ़ स्टाइल पुरस्कार समारोह में भाग लेते हुए।

कुछ स्त्रियां माहवारी के न आने पर दवाइयों का सेवन करना शुरू कर देती है, इस प्रकार की दवा का सेवन महिलाओं के लिए हानिकारक होता है। इसलिए जैसे ही यह मालूम चले कि आपने गर्भाधारण कर लिया है तो अपने रहन-सहन और खानपान पर ध्यान देना शुरू कर देना चाहिए। गर्भधारण करने के बाद महिलाओं को किसी भी प्रकार की दवा के सेवन से पुर्व​ डाक्टरों की राय लेना अनिवार्य होता है। ताकि आप कोई ऐसी दवा का सेवन न करें जो आपके और होने वाले बच्चे के लिए हानिकारक होता है। यदि महिलाओं को शूगर का रोग हो तो इसकी चिकित्सा गर्भधारण से पहले ही करनी चाहिए। यदि मिर्गी, सांस की शिकायत या फिर टीबी का रोग हो तो भी इसके लिए भी डाक्टर की सलाह ले लेनी चाहिए।

यहीं नहीं, यह भी सत्य है कि आपके विचार और आपके कार्य भी गर्भाधारण के समय ठीक और अच्छे होने चाहिए ताकि होने वाले बच्चे पर अच्छा प्रभाव पड़े।

  • जैसे ही पुष्टि हो जाती है कि आप गर्भवती हैं उसके बाद से प्रसव होने तक आप किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ की निगरानी में रहें तथा नियमित रूप से अपनी चिकित्सीय जाँच कराती रहें।
  • गर्भधारण के समय आपको अपने रक्त वर्ग (ब्ल्ड ग्रुप), विशेषकर आर. एच. फ़ैक्टर की जांच करनी चाहिए। इस के अलावा रूधिरवर्णिका (हीमोग्लोबिन) की भी जांच करनी चाहिए।
  • यदि आप मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थाइराइड आदि किसी, रोग से पीड़ित हैं तो, गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से दवाईयां लेकर इन रोगों को नियंत्रण में रखें।
  • गर्भावस्था के प्रारंभिक कुछ दिनों तक जी घबराना, उल्टियां होना या थोड़ा रक्त चाप बढ़ जाना स्वाभाविक है लेकिन यह समस्याएं उग्र रूप धारण करें तो चिकित्सक से सम्पर्क करें।
  • गर्भावस्था के दौरान पेट में तीव्र दर्द और योनि से रक्त स्राव होने लगे तो इसे गंभीरता से लें तथा चिकित्सक को तत्काल बताएं।
  • गर्भावस्था में कोई भी दवा-गोली बिना चिकित्सीय परामर्श के न लें और न ही पेट में मालिश कराएं। बीमारी कितना भी साधारण क्यों न हो, चिकित्सक की सलाह के बगैर कोई औषधि न लें।
  • यदि किसी नए चिकित्सक के पास जाएं तो उसे इस बात से अवगत कराएं कि आप गर्भवती हैं क्योकि कुछ दवाएं गर्भस्थ शिशु पर बुरा प्रभाव छोडती है।
  • चिकित्सक की सलाह पर गर्भावस्था के आवश्यक टीके लगवाएं व लोहतत्व (आयर्न) की गोलियों का सेवन करें।
  • गर्भावस्था में मलेरिया को गंभीरता से लें, तथा चिकित्सक को तत्काल बताएं।
  • गंभीरता से चेहरे या हाथ-पैर में असामान्य सूजन, तीव्र सिर दर्द, आखों में धुंधला दिखना और मूत्र त्याग में कठिनाई की अनदेखी न करें, ये खतरे के लक्षण हो सकते हैं।
  • गर्भ की अवधि के अनुसार गर्भस्थ शिशु की हलचल जारी रहनी चाहिए। यदि बहुत कम हो या नहीं हो तो सतर्क हो जाएं तथा चिकित्सक से संपर्क करें।
  • आप एक स्वस्थ शिशु को जन्म दें, इस के लिए आवश्यक है कि गर्भधारण और प्रसव के बीच आप के वजन में कम से कम १० कि.ग्रा. की वृद्धि अवश्य हो।
  • गर्भावस्था में अत्यंत तंग कपडे न पहनें और न ही अत्यधिक ढीले।
  • इस अवस्था में ऊची एड़ी के सैंडल न पहने। जरा सी असावधानी से आप गिर सकती है
  • इस नाजुक दौर में भारी क्ष्रम वाला कार्य नहीं करने चाहिए, न ही अधिक वजन उठाना चाहिए। सामान्य घरेलू कार्य करने में कोई हर्ज नहीं है।
  • इस अवधि में बस के बजाए ट्रेन या कार के सफ़र को प्राथमिकता दें।
  • आठवें और नौवे महीने के दौरान सफ़र न ही करें तो अच्छा है।
  • गर्भावस्था में सुबह-शाम थोड़ा पैदल टहलें।
  • चौबीस घंटे में आठ घंटे की नींद अवश्य लें।
  • प्रसव घर पर कराने के बजाए अस्पताल, प्रसूति गृह या नर्सिगं होम में किसी कुशल स्त्री रोग विशेषज्ञ से कराना सुरक्षित रहता है।
  • गर्भावस्था में सदैव प्रसन्न रहें। अपने शयनकक्ष में अच्छी तस्वीरें लगाए।
  • हिंसा प्रधान या डरावनी फ़िल्में या धारावाहिक न देखें।[तथ्य वांछित]/;

शारीरिक विज्ञान

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उर्वरता और प्रजनन उन संबंधित क्षमताओं हैं जो गर्भधारण, नैदानिक गर्भावस्था और जीवित प्रसव की ओर ले जाती हैं।[2][3] बांझपन का अर्थ है नैदानिक गर्भावस्था स्थापित करने की अक्षमता, और बाँझपन का अर्थ है नैदानिक गर्भावस्था स्थापित करने में स्थायी असमर्थता।[4]

औसतन, उर्वरता तीस से बत्तीस वर्ष की आयु के बीच गिरना शुरू हो जाती है।[5] 30 साल की उम्र में, महिला के प्रति माह गर्भ धारण करने की संभावना लगभग 20% है।[6][7]

गर्भावस्था की शुरुआत का पता या तो महिला द्वारा लक्षणों के आधार पर या प्रेग्नेंसी टेस्टिंग द्वारा लगाया जा सकता है। हालांकि, गंभीर स्वास्थ्य परिणामों के साथ एक महत्वपूर्ण स्थिति, जो काफी आम है, वह है गर्भवती महिला द्वारा गर्भावस्था से इनकार करना। लगभग 1 में से 475 अस्वीकृतियों का अनुभव लगभग गर्भावस्था के 20 वें सप्ताह तक होता है। जन्म तक बने रहने वाले मामलों में से लगभग 1 में से 2500 हैं। और इसके विपरीत, कुछ नॉन-फीमेल महिलाएं कुछ शारीरिक परिवर्तनों के साथ यह मानने के लिए बहुत दृढ़ता से विश्वास करती हैं कि वे गर्भवती हैं। इस स्थिति को झूठी गर्भावस्था के रूप में जाना जाता है।

निषेचन (संयोग) से कभी-कभी गर्भावस्था की शुरुआत के रूप में उपयोग किया जाता है, जिसमें भ्रूण संबंधी आयु को निषेचन की आयु कहा जाता है।[8]

महामारी विज्ञान

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2012 में लगभग 213 मिलियन गर्भधारण हुए, जिनमें से 190 मिलियन विकासशील देशों में और 23 मिलियन विकसित देशों में थे।[9] यह 15 से 44 वर्ष की आयु की 1,000 महिलाओं में लगभग 133 गर्भधारण के बराबर है। लगभग 10-15% पहचानी गई गर्भावस्थाएं गर्भपात के साथ समाप्त होते हैं। [2] दुनिया भर में 44% गर्भधारण अनियोजित हैं। अनियोजित गर्भावस्थाओं में से आधे से अधिक (56%) समाप्त कर दिए जाते हैं। उन देशों में जहां गर्भपात निषिद्ध हैं या केवल उन परिस्थितियों में किए जाते हैं जब母亲 की जान को खतरा हो, अनियोजित गर्भावस्थाओं में से 48% अवैध रूप से गर्भपात कर रहे हैं। कानून द्वारा गर्भपात की अनुमति वाले देशों में 69% के स्तर की तुलना में।[10]

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. https://zealthy.in (2020-09-01), English: इस चित्र के माध्यम से जानें की आप कैसे प्रेगनेंसी टेस्ट किट का इस्तेमाल कर के, बस 5 मिनट में अपने प्रेगनेंसी के बारे में सुनिश्चित हो सकते है, अभिगमन तिथि 2021-01-19
  2. "Fertility and infertility: Definition and epidemiology". dial.uclouvain.be. अभिगमन तिथि 2024-09-13.
  3. "Fertility and causes of infertility". www.tommys.org. अभिगमन तिथि 2024-09-13.
  4. "The International Glossary on Infertility and Fertility Care, 2017". www.fertstert.org. अभिगमन तिथि 2024-09-13.
  5. "Your Chances of Getting Pregnant at Every Age". www.parents.com. अभिगमन तिथि 2024-09-13.
  6. "What are your chances of getting pregnant at different ages?". www.babycenter.com. अभिगमन तिथि 2024-09-13.
  7. "Fertility". conceiveplus.asia. अभिगमन तिथि 2024-09-13.
  8. "What is Fertilization?". www.allthescience.org. अभिगमन तिथि 2024-09-13.
  9. "Intended and Unintended Pregnancies Worldwide in 2012 and Recent Trends". www.ncbi.nlm.nih.gov. अभिगमन तिथि 2024-09-13.
  10. "Global, regional, and subregional trends in unintended pregnancy and its outcomes from 1990 to 2014: estimates from a Bayesian hierarchical model". www.ncbi.nlm.nih.gov. अभिगमन तिथि 2024-09-13.