विष्णुपुराण की एक कथा के अनुसार जिस समय असुर संस्कृति शक्तिशाली हो रही थी, उस समय असुर कुल में एक अद्भुत, प्रह्लाद नामक बालक का जन्म हुआ था। उसका पिता, असुर राज हिरण्यकश्यप [तथा मां कयाधु ] | वह हिरण्यकशिपु और कयाधु के चार पुत्रों में सबसे बड़ा था | [[1]] देवताओं से वरदान प्राप्त कर के निरंकुश हो गया था। उसका आदेश था, कि उसके राज्य में कोई विष्णु की पूजा नही करेगा। परंतु प्रह्लाद विष्णु भक्त था और ईश्वर में उसकी अटूट आस्था थी। इस पर क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्यु दंड दिया। हिरण्यकशिपु की बहन, होलिका, जिस को आग से न मरने का वर था, प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई, परंतु ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद को कुछ न हुआ और वह स्वयं भस्म हो गई। इस दिन को होलिका दहन के नाम से मनाया जाता है।

भगवान नृसिंह रुपी भगवान विष्णु द्वारा हिरण्यकशिपु का वध और हाथ जोड़े हुए प्रह्लाद और कयाधु

अगले दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का पेट चीर कर उसे मार डाला और सृष्टि को उसके अत्याचारों से मुक्ति प्रदान की। इस ही अवसर को याद कर होली मनाई जाती है। इस प्रकार प्रह्लाद की कहानी होली के पर्व से जुड़ी हुई है।हमें भी प्रह्लाद की तरह बनना चाहिए।प्रियरंजन


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