क्षेपण विज्ञान या प्राक्षेपिकी (Ballistics, यूनानी भाषा में βάλλειν ('ba'llein') = "throw") यांत्रिकी की एक शाखा है जिसके अन्तर्गत प्रक्षेपकों (projectiles) की गति, व्यवहार एवं उनके प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। प्रक्षेपकों में भी मुख्यतः गोलियों, गुरुत्व बमों, रॉकेट आदि का बारे में अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन से प्रक्षेपकों की डिजाइन एवं उनको त्वरित करने की युक्तियों की डिजाइन में मदद मिलती है ताकि वे अभीष्ट परफार्मेंस प्राप्त कर सकें।

प्रक्षेपिकी

बन्दूक का क्षेपण विज्ञान (Gun ballistics) संपादित करें

 
समान कोण (70°) पर फेंके गये तीन पिण्डों के पथ। काला पिण्ड किसी प्रकार का विकर्ष (drag) अनुभव नहीं करता और इस कारण इसका पथ परवलयाकार है। नीले पिण्ड पर स्टोक्स विकर्ष (वेग के समानुपाती विकर्ष) लग रहा है जबकि हरे पिण्ड पर न्यूटनीय विकर्ष (वेग के वर्ग के समानुपती विकर्ष) लग रहा है।
 
न्यूटन की तोप

बन्दूक के क्षेपण विज्ञान में क्षेपक (गोली, गोला, स्फोट आदि) को दागने से लेकर लक्ष्य पर प्रहार करने एवं उसके प्रभाव का विश्लेषण किया जाता है। स्थूलत: इस विषय के अध्ययन को चार प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है:

  • 1. आभ्यन्तर क्षेपण विज्ञान (Internal ballistics)
  • 2. माध्यमिक क्षेपण विज्ञान (Transition or Intermediate Ballistics)
  • 3. बाह्य क्षेपण विज्ञान (External ballistics)
  • 4. अन्तस्थ क्षेपण विज्ञान (Terminal ballistics)

आभ्यन्तर क्षेपण विज्ञान - इसमें गोले की गति तथा प्रक्षेप्य वस्तु के बंदूक या तोप की नाल के भीतर रहने तक गति की नियामक परिस्थितियों के संबंध में अध्ययन किया जाता है। गोले को इसी अवधि में अधिकांश उर्जा प्राप्त होती है।

माध्यमिक क्षेपण विज्ञान - इसके अन्तर्गत प्रक्षेप की वह अवस्था का अध्ययन करते हैं जब वह बन्दूक की नाल से बाहर निकलता है और प्रक्षेप के आगे-पीछे का दबाव तेजी से समान हो जाता है।

बाह्य क्षेपण विज्ञान - बाह्य क्षेपण विज्ञान वह शास्त्र है जिसमें प्रक्षेप के मोहरी छोड़ देने के पश्चातवाली गति का विचार किया जाता है। यह तो सभी को ज्ञात है कि यदि वायु का प्रतिरोध न हो तो प्रक्षेप का मार्ग परवलय के रूप में होगा। किन्तु वायु में गतिमान प्रक्षेप की गति के लिये अधिक जटिल गणितीय समीकरणों का सहारा लिया जाता है।

अंतस्थ क्षेपण विज्ञान - यह क्षेपण विज्ञान की यह शाखा है जिसमें इस बात पर विचार किया जाता है कि जब गोला लक्ष्य को बेधता है तो क्या होता है।

आभ्यंतर क्षेपण विज्ञान संपादित करें

इसमें गोले की गति तथा प्रक्षेप्य वस्तु के बंदूक या तोप की नाल के भीतर रहने तक गति की नियामक परिस्थितियों के संबंध में अध्ययन किया जाता है। जब कक्ष में रखा हुआ प्रणोदक (बारूद) जलता है, गैसें निकलती हैं। गैसों के निकलने से उत्पन्न दाब गोले को आगे ढकेलती है आर अंत में वे तोप की मोहरी के सिरे से वेग से निकलते हैं। इस वेग को मोहरी वेग (मज़ल वेलॉसिटी) कहते हैं। नाल के भीतर गोले की गति के संबंध में विचार करने की दो पद्धतियां प्रचलित हैं। 1. अमरीकन पद्धति और 2. ब्रिटिश (अंग्रेज) पद्धति।

अमरीकन पद्धति निम्नलिखित प्रयोगसिद्ध सूत्र पर निर्भर है जिसे लडुक का (Le Duc's) सूत्र कहते हैं

V= ax/b+x

यहाँ V गोले की गति, x नाल के भीतर गोले द्वारा पार की हुई दूरी तथा a और b दो नियतांक हैं। यह सरलता से दिखाया जा सकता है कि इस निकाय में दाब P तथा महत्ता दाब Pmax निम्नलिखित सूत्र से प्राप्त होते हैं:

P= Wa2bx/gA(b+x)3
Pmax= 4Wa2/27gAb

यहाँ W स्फोट के गोले का भार, A नाल की अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल तथा g पृथ्वी का साधारण गुरूत्वाकर्षण है।


ब्रिटिश पद्धति में नाल के भीतर प्रक्षेप की गति के नियामक निम्नलिखित चार समीकरण हैं :

F Cz/A1 = p (1+x/1- Bz)+ l-1/2A1 W1v2
D df/dt +- bpa W1 dv/dx = Ap
z = (1-f) (1+qf)

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

क्षेपकों की तुलना संपादित करें