भारतीय धर्मों में, जब किसी मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की जाती है तब मंत्र द्वारा उस देवी या देवता का आवाहन किया जाता है कि वे उस मूर्ति में प्रतिष्ठित (विराजमान) हों। इसी समय पहली बार मूर्ति की आँखें खोली जाती हैं। मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा में महत्व मूर्ति की शिल्पगत सुंदरता का नहीं होता । अगर कोई साधारण- सा पत्थर भी रख दिया जाए और उसकी प्राण प्रतिष्ठा हो जाए तब वह भी उतना ही फलदायक रहता है, जितनी कि कोई सुंदर कलाकार द्वारा निर्मित की गई मूर्ति होती है। बहुत से पवित्र देवस्थानों में हम यही देखते हैं। बारह ज्योतिर्लिंग हजारों वर्ष पहले किसी महान सत्ता के द्वारा प्राणप्रतिष्ठा से जागृत किए गए थे । उनमें स्थापित मूर्तियाँ शिल्प की दृष्टि से बहुत सुंदर नहीं कही जा सकती हैं । केदारनाथ में तो हम जिस मूर्ति की उपासना करते हैं, वह एक अनगढ़ चट्टान का टुकड़ा अथवा पाषाण मात्र है । लेकिन उसकी दिव्यता अद्भुत है। मूर्ति का मूल्य उसके पत्थर की कीमत से अथवा उसकी सुंदरता से नहीं आंका जाता । यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस स्थान विशेष की परिधि में पहुँचते ही साधक को दिव्यता का अनुभव होने लगता है तथा ईश्वर के साथ उसका संपर्क तत्काल जुड़ने लगता है। प्राण प्रतिष्ठा एक असाधारण और अद्भुत कार्य है । कोई-कोई  ही हजारों वर्षों में जन्म लेता है , जो मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा कर सकने में समर्थ होता है। हजारों साल पहले बारह ज्योतिर्लिंग किसी महापुरुष ने प्राणप्रतिष्ठित कर दिए और वह अभी तक चले आ रहे हैं।

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