वे सभी प्राणी या वनस्पति, जो जल में जलतरंगों या जलधारा द्वारा प्रवाहित होते रहते हैं, प्लवक (प्लवक = प्लवन करने वाले ; Plankton / एकबचन: plankter) कहलाते हैं। प्लवकों में गति के लिए चलन अंग (locomotive organs) बहुत कम विकसित होते हैं, या उनका पूर्ण अभाव होता है। जल में गोता लगाने, या ऊपर उठने, की क्षमता उनमें अवश्य विद्यमान होती है। प्लवक में जलधारा के प्रतिकूल गति करने की क्षमता नहीं होती है। मछली इत्यादि के शिशु भी प्लवक ही हैं, क्योंकि ऐसी अवस्था में उनकी भी गति जलधारा पर ही निर्भर करती है। प्लवक सूक्ष्मदर्शी से देखे जानेवाले से लेकर बड़े बड़े जेलीफिश के आकार तक के होते हैं।

कुछ प्लवक

प्लवकों की निम्न विशेषताएँ होती हैं :

  • प्लवकों का शरीर न्यूनाधिक पारदर्शी होता है।
  • ये प्राय: रंग विहीन, या पीत, बैंगनी, या गुलाबी रंग के होते है, यद्यपि कुछ जेलीफिश बहुत भड़कीले रंग के भी होते हैं। नियमत: रंग पर्यावरण (environment) से मिलता जुलता होता है।
  • उनमें अपारदर्शी अस्थिरचनाओं का पूर्णत: अभाव होता है। केवल कुछ-कुछ में मृदु कैल्सियमी का काचनुमा कवच होता है।
  • साधारण प्लवक त्रिज्यात: (radially) सममित होते हैं।

समुद्री प्लवकों का क्षैतिज प्रसार

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समुद्री प्लवकों का क्षैतिज प्रसार समुद्र की धाराओं के कारण होता है और समुद्र की धाराएँ प्लवकों को एक झुंड में रखती हैं। जैसा ऊपर कहा गया है, प्लवकों में गोता लगाने और ऊपर उठने की क्षमता होती है। प्लवक बुरे मौसम में विपरीत परिस्थितियों से बचने और अँधेरे या शांति के लिए जल की गहराई में गोता लगा लेते हैं। रात्रि में, अथवा जब समुद्र शांत होता है, सतह पर आ जाते हैं। इस प्रकार इनमें से अधिकांश दिन में ५० से लेकर १५० फैदम तक की गहराई में चले जाते हैं और शांत रात्रि में सतह पर उठ जाते हैं।

विभिन्न प्रकार

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प्लवक के अंतर्गत प्राणी और वनस्पति दोनों ही होते हैं। अतएव प्राणियों को प्राणिप्लवक (zooplankton) और वनस्पतियों को पादपप्लवक (phytoplankton) कहते हैं।

सागरों में पाए जानेवाले प्लवक समुद्री प्लवक या हैलोप्लैक्टन (Haloplankton) कहलाते हैं। इनकी संख्या बहुत बड़ी है और ये नाना प्रकार के होते हैं। अलवण जल में पाए जानेवाले प्लवक अलवण जलप्लवक या सरोवरप्लवक (Limnoplankton) कहलाते है। ये प्राय: सभी झीलों और नदियों में पाए जाते हैं।

प्लवक जीवों के अंतर्गत प्रोटोज़ोआ श्रेणी के असंख्य फोरैमिनिफेरा और रेडियोलेरियन तथा हाइड्रोज़ोआ श्रेणी के जेलीफिश और मेड्यूसी के झुंड तथा वनस्पति में डाइऐटम इत्यादि शांत समुद्रों में मिलते हैं। अनेक मोलस्क (molluse), जैसे टेरोपॉड (Pteropods) या हेटरोपॉड (Heteropods), भी संमिलित हैं, जो ह्वेलास्थि ह्वेल (Whalebone whales) के मुख्य आहार होते है। इनके छोटे आकार के कारण ह्वेल इनका बहुताधिक संख्या में भक्षण करते हैं।

सिंधुपंक (oozes) का अधिकांश फोरैमिनिफेरा, रेडियोलेरिया तथा टेरोपॉड के रिक्त कवचों एवम् डाइऐटम जैसे प्लवकों का बना होता है। यह सिंधुपंक हजारों वर्ग मीलों में समुद्रतल को आच्छादित किए हुए है।प्वलक पेट्रोलियम के जनक होते हैं। (फोरैमिनिफेरा , देखें)।

इस प्लवक जीव के मृत और मरते हुए अवशेष निरंतर समुद्रतल की ओर अग्रसर हेते रहते हैं। इनमें से बहुत से रास्ते में ही समुद्र के गहरे तल में निवास करनेवाले दूसरे प्लवकों के आहार बन जाते हैं। अतएव प्राणिप्लवक केवल समुद्र की ऊपरी सतह में ही सीमित नहीं होते, बल्कि गहरे तल में भी पाए जाते हैं; किंतु पादप्लवक सूर्य की रोशनी पर निर्भर रहते हैं, अत: वे केवल सूर्य की रोशनी प्राप्त होनेवाली गहराई तक ही पाए जाते हैं और शेष समुद्र तल पर वर्षा की बूदों की भाँति निरंतर समुद्री तल पर गिरते रहते हैं। ऊपर से मृत प्लवकों की निरंतर झड़ी को खाने के लिए समुद्रतल के नाना भाँति के प्राणी भोजन को एकत्र करनेवाले उपकरणों से सज्जित होते हैं। ऐसे कुछ प्राणियों का शरीर पृथ्वी में गड़ा होता है, इनकी बाहें वृक्ष की शाखा या छाते जैसी फैली होती है और ये देखने में वनस्पति प्रतीत होते हैं। अनेक कवच प्राणियों (shell fishes) में छलनी जैसी रचनाएँ हेती हैं। समुद्र के सभी प्राणी इन्हीं सूक्ष्म प्लवक वनस्पतियों पर निर्वाह करते हैं।

प्लवक जीव स्पष्ट 'मंडल', या समुदायों में पाए जाते हैं, यद्यपि स्थैतिक (static) नहीं होते। मंडल की प्रकृति और रचना निरंतर बदलती रहती है। यह इसलिए नहीं कि इनमें तीव्र गति से वृद्धि अथवा कमी होती है, बल्कि ऋतुपरिवर्तन के अनुसार इनके वातावरण में परिवर्तन होता रहता है और जीवों के बीच परस्पर जटिल परिक्रियाओं के कारण, शिकार और शिकारी का अनुपात विभिन्न भोजन शृंखला में सर्वदा एक समान नहीं रहता। किसी किसी ऋतु में प्लवक प्राय: बहुत गहरे चले जाते हैं और ऊपरी सतह से अदृश्य हो जाते हैं। इनका स्थान दूसरे ले लेते हैं। एक निश्चित अवधि के बाद अनुकूल वातावरण होने पर वे पुन: प्रकट होते हैं।

जे. मूलर (Johannes Muller) ने जब समुद्र की सतह से प्लवकों को प्रथम बार इकट्ठा किया था, तब से लेकर आज तक मूलर की सरल विधि में कुछ परिवर्तन हो गया है। आजकल प्लवकों को इकट्ठा करने के लिए दो अन्य यंत्रों, 'प्लवक सूचक' (Plankton Indicator), और सतत प्लवक रेकार्डर (Continuous Plankton Recorder) का प्रयोग किया जाता है।

यद्यपि कुछ वर्षों से प्लवकों का आर्थिक दृष्टि से महत्व अनुभव किया गया है, किंतु इनके व्यावहारिक अनुप्रयोग का विकास १९३० ई. से प्रारंभ हुआ है। मछलियों और प्लवकों का परस्पर संबंध अटूट है, अतएव प्लवकों की संख्या में वृद्धि या न्यूनता पर मछलियों की जनसंख्या भी निर्भर करती है।

वर्गीकरण

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प्राणिप्लवक तथा पादपल्वक दोनों प्रकार के प्लवकों का और भी विभाजन निम्न प्रकार से किया जा सकता है:

वास्तविक प्वलक (Real Plankton) - वे सभी प्लवक, जो जल की सह पर जीवन के प्रारंभ से मृत्युपर्यंत प्लवक जीवन व्यतीत करते हैं, वास्तविक प्लवक कहलाते हैं। इनका वर्णन ऊपर हुआ है।

डिंभ प्लवक (Meroplankton) - इस पारिभाषिक शब्द का प्रयोग हेकेल (Haeckel) ने नितलीय जीवों (benthonic animals) के लिए किया था, जिनके बच्चों में स्वतंत्र रूप से तैरने की गति तो होती है, किंतु लार्वा अवस्था (larval stage) में प्लवक होते हैं। डिंभ प्लवक नियमत: बहुत ही सूक्ष्म होते हैं। इनकी गति की शक्ति बहुत ही कम होती है और ये प्राय: सूक्ष्म सूत्रों (cilia) द्वारा गति करते हैं। ऐसे प्लवकों की संख्या इतनी विशाल है कि समुद्र की ऊपरी सतह इनसे ठसाठस भरी होती है और ये आक्रमणकारी प्राणियों के आहार होते हैं। ये समुद्र में बहुत बडी संख्या में अल्प समय तक तैरते रहते हैं, तत्पश्चात् शीघ्र या देर में समुद्रतल में चले जाते हैं। संयोग से वे यदि अनुकूल अधस्तर (substratum) पर गिर जाते हैं, तो नितलीय वयस्क (benthonic adult) में विकसित हो जाते हैं, किंतु दुर्भाग्य से यदि प्रतिकूल तल पर, अथवा जिस स्थान पर भोजन की कमी होती है, वहाँ पहुँच गए तो वे नष्ट हो जाते हैं।

कूट प्लवक (Pseudoplankton) - यह पारिभाषिक शब्द उन जीवों, जैसे सारगैसम (Sargasum) या गल्फ सी बीड (Gulf Sea Weed), के लिए व्यवहृत होता है जो साधारणत: या जीवन के प्रारंभिक काल में स्थावर और नितलीय जीव (benthonic organisms) होते हैं, किंतु बाद में प्लवक हो जाते हैं। इस शब्द के अंतर्गत ऐसे वनस्पति या प्राणिशैवाल (algae), हाइड्रॉएड्स (hydroids), या ब्रायोजोऑन (bryozoans) आते हैं, जो स्वयं दूसरे तैरनेवले सारगैसम, क्रस्टेशिया (crustacea), मोलस्कों या अन्य प्राणियों से चिपके होते हैं और स्थावर (sedentary) या विचरनेवाले नितल जीवसमूह (benthos) होते हैं।

सन्दर्भ ग्रन्थ

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  • आर.एस. लाल : ऑर्गेनिक इवोल्यूशन;
  • सर ऐलिस्टर हार्डी : दि ओपेन सी।