फाल्गुन शुक्ल द्वादशी
फाल्गुन शुक्ल द्वादशी भारतीय पंचांग [1] के अनुसार बारहवें माह की बारहवी तिथि है, वर्षान्त में अभी १८ तिथियाँ अवशिष्ट हैं।
पर्व एवं उत्सव
संपादित करेंजय श्री श्याम महाभारत के युद्ध के पूर्व इस दिन (फाल्गुन शुक्ला द्वादशी) पवनपुत्र भीमसेन के पौत्र वीर बर्बरीक ने श्री कृष्ण को अपना शीश दान में दिया था जिसके साहस और वीरता को देख कर श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक जी को अपना नाम "श्याम" दे दिया, और कलयुग में अपनी सारी शक्तियां उन्हें वरदान स्वरूप दे दी, कलयुग में राजस्थान की खाटू नाम के गांव में एक गाय अपने आप एक स्थान पर रोज़ चली जाती थी और उसका मालिक को दूध नही मिल पाता था, एक दिन उस मालिक ने उसका पीछा किया और उसने देखा कि गाय अपने आप उस स्थान पे दूध दे रही है और सारा दूध जमीन के नीचे जा रहा है,राजा द्वारा वहाँ की खुदाई होने पर पता चला वहाँ पर एक शालिग्राम रूपी शीश है,जिसने स्वयं अपने आप को वीर बर्बरीक और कलयुग के श्याम बाबा बताया। इस दिन समस्त श्याम प्रेमी फाल्गुन उत्सव मनाकर अपने बाबा श्याम के सृष्टि के कल्याण के लिए दिए इस बलिदान की और वर्तमान में सृष्टि के कल्याण की कामना करते। जय श्री श्याम!
जन्म
संपादित करेंनिधन
संपादित करेंइन्हें भी देखें
संपादित करेंबाह्य कड़ीयाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 1 फ़रवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 अक्तूबर 2016.