विक्रम संवत

चंद्रमा की गतिविधियों के आधार पर चलने वाला पंचाग

चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य द्वारा प्रवर्तित विक्रम संवत् ही हमारा राष्ट्रीय संवत् कहलाता है। यह सर्वथा शुद्ध और वैज्ञानिक है। यह हमारी अस्मिता और स्वाधीनता के अनुरक्षण तथा शत्रुओं पर विजय का प्रतीक भी है। इसी संवत् के अनुसार ही हमारे सभी धार्मिक अनुष्ठान, तीज त्यौहार जैसे – होली, दीवाली, दशहरा आदि मनाए जाते है। विक्रम संवत् सभी काल गणना से प्राचीन तो है ही वैज्ञानिक भी है। और यहीं विक्रम संवत् की वैज्ञानिकता है।[1] विक्रम संवत् या विक्रमी भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित हिंदू पंचांग है।भारत में यह अनेकों राज्यों में प्रचलित पारम्परिक पञ्चाङ्ग है। नेपाल के सरकारी संवत् के रुप मे विक्रम संवत् ही चला आ रहा है। इसमें चान्द्र मास एवं सौर नाक्षत्र वर्ष (solar sidereal years) का उपयोग किया जाता है। प्रायः माना जाता है कि विक्रमी संवत् का आरम्भ ५७ ई.पू. में हुआ था। (विक्रमी संवत् = ईस्वी सन् + ५७) ।

इस संवत् का आरम्भ गुजरात में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से और उत्तरी भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत् से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चन्द्रमा की गति पर रखा जाता है। यह बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं। पूर्णिमा के दिन, चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है, इसीलिए प्रत्येक 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है (अधिमास, देखें)।

जिस दिन नव संवत् का आरम्भ होता है, उस दिन के वार के अनुसार वर्ष के राजा का निर्धारण होता है।

आरम्भिक शिलालेखों में ये वर्ष 'कृत' के नाम से आये हैं। 8वीं एवं 9वीं शती से विक्रम संवत् का नाम विशिष्ट रूप से मिलता है। संस्कृत के ज्योतिष ग्रन्थों में शक संवत् से भिन्नता प्रदर्शित करने के लिए सामान्यतः केवल 'संवत्' नाम का प्रयोग किया गया है ('विक्रमी संवत्' नहीं)।

'विक्रम संवत' के उद्भव एवं प्रयोग के विषय में विद्वानों में मतभेद है। मान्यता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व ५७ में इसका प्रचलन आरम्भ कराया था।

फ़ारसी ग्रंथ 'कलितौ दिमनः' में पंचतंत्र का एक पद्य 'शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनम्' का भाव उद्धृत है। विद्वानों ने सामान्यतः 'कृत संवत' को 'विक्रम संवत' का पूर्ववर्ती माना है। किन्तु 'कृत' शब्द के प्रयोग की सन्तोषजनक व्याख्या नहीं की जा सकी है। कुछ शिलालेखों में मालवगण का संवत उल्लिखित है, जैसे- नरवर्मा का मन्दसौर शिलालेख। 'कृत' एवं 'मालव' संवत एक ही कहे गए हैं, क्योंकि दोनों पूर्वी राजस्थान एवं पश्चिमी मालवा में प्रयोग में लाये गये हैं। कृत के २८२ एवं २९५ वर्ष तो मिलते हैं, किन्तु मालव संवत के इतने प्राचीन शिलालेख नहीं मिलते। यह भी सम्भव है कि कृत नाम पुराना है और जब मालवों ने उसे अपना लिया तो वह 'मालव-गणाम्नात' या 'मालव-गण-स्थिति' के नाम से पुकारा जाने लगा। किन्तु यह कहा जा सकता है कि यदि 'कृत' एवं 'मालव' दोनों बाद में आने वाले विक्रम संवत की ओर ही संकेत करते हैं, तो दोनों एक साथ ही लगभग एक सौ वर्षों तक प्रयोग में आते रहे, क्योंकि हमें ४८० कृत वर्ष एवं ४६१ मालव वर्ष प्राप्त होते हैं।

 
'कलकाचार्य कथा' नामक पाण्डुलिपि में वर्णित जैन भिक्षु कलकाचार्य और राजा शक (छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय, मुम्बई)

महीनों के नाम

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महीनों के नाम पूर्णिमा के दिन नक्षत्र जिसमें चन्द्रमा होता है अवधि शुरुआत की तिथि (ग्रेगोरियन)
चैत्र चित्रा, स्वाति ३०/३१ २२ मार्च से २१ अप्रैल
वैशाख विशाखा, अनुराधा ३० २२ अप्रैल से २२ मई
ज्येष्ठ जेष्ठा, मूल ३० २३ मई से २२ जून
आषाढ़ पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, सतभिषा ३० २३ जून से २३ जुलाई
श्रावण श्रवण, धनिष्ठा ३० २४ जुलाई से २३ अगस्त
भाद्रपद पूर्वाभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद ३० २४ अगस्त से २३ सितंबर
आश्विन अश्विनी, रेवती, भरणी ३१ सितंबर से अक्टूबर
कार्तिक कृत्तिका, रोहिणी ३१ अक्टूबर से ५ नवंबर
मार्गशीर्ष मृगशिरा, आर्द्रा ३१ ६ नवंबर से ४ दिसंबर
पौष पुनर्वसु, पुष्य ३१ ५ दिसंबर से जनवरी
माघ मघा, आश्लेशा ३१ जनवरी से फरवरी
फाल्गुन पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त ३१ फरवरी से मार्च

प्रत्येक माह में दो पक्ष होते हैं, जिसे कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष कहते हैं।

०८ अप्रैल २०२४ (दिन सोमवार) को विक्रम संवत २०८० का अंतिम दिन है, और ०९ अप्रैल २०२४ (दिन मंगलवार) से हिन्दू नववर्ष यानि नव संवत्सर २०८१ प्रारंभ हो रहा है।

अन्य संवत

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इन्हें भी देखें

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  1. Bhanwar Singh, Thada (2023-08-11). "विक्रम संवत् की प्रमाणिकता एवं सटीक गणना विज्ञान से भी आगे". सनातन (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-07-10.