बंबई रक्त समूह
बम्बई रक्त समूह (Hh blood group), रक्त का एक अनूठा प्रकार है जो लगभग १०००० व्यक्तियों में १ व्यक्ति में पाया जाता है। इस रक्त समूह की खोज सबसे पहले बंबई (अब मुंबई) में १९५२ में डा. वाई एम भेंडे द्वारा की गई थी इसलिए इस रक्त समूह का नाम 'बंबई रक्त समूह' पड़ा। इस रक्त समूह को Hh और oh रक्त समूह भी कहते है। इस रक्त समूह में h प्रतिजन खुद को अभिव्यक्त नही कर पाता जो की O रक्त समूह में होता है| इसके कारण ही यह रक्त समूह अपनी लाल रक्त कोशिकओं में A और B प्रतिजन नहीं बनाता। A और B प्रतिजन न बनाने के कारण ही इस रक्त समूह के लोग किसी भी रक्त समूह के लोगो को अपना रक्त दे तो सकते है पर किसी और रक्त समूह से रक्त ले नही सकते।[1]
बंबई रक्त समूह उन लोगो में पाया जाता है जिन्हें विरासत में H अनुवांश के २ प्रतिसारी एलील मिलते है। इस रक्त समूह के मनुष्य H कार्बोहायड्रेट नही बना पाते जो की A और B प्रतिजन के अग्रगामी है। इसका यह मतलब है की इस रक्त समूह में A और B प्रतिजन के एलील मौजूद तो है पर वह खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाते। यह रक्त समुह उन बच्चों में देखने को मिलता है, जिन्हें वंश परम्परा से दोनों ही एलील ऐसे मिले जो की प्रतिसारी हो। [2]