बनारसी दास गुप्ता
बनारसी दास गुप्ता (जन्म- 5 नवम्बर 1917, हरियाणा; मृत्यु- 29 अगस्त 2007) एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनीतिज्ञ, और समाज सेवी थे। वे 1 दिसम्बर 1975 से 30 अप्रैल 1977 तक तथा पुनः 22 मई 1990 से 12 जुलाई 1990 तक हरियाणा राज्य के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी होते हुए सामाजिक, राजनीतिक एवं सार्वजनिक जीवन को अपने अंदाज में जिया। बनारसी दास गुप्ता हिन्दी भाषा के पक्षधर और यथार्थवादी आदर्श जननायक थे। उन्होंने राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को मजबूत बनाकर हरियाणा की प्रगति में अपना बहुमूल्य योगदान दिया था।
बनारसी दास गुप्ता | |
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कार्यकाल 1 दिसम्बर 1975 से 30 अप्रैल 1977 | |
पूर्वा धिकारी | बंसी लाल |
उत्तरा धिकारी | राष्ट्रपति शासन, देवी लाल |
कार्यकाल 22 मई 1990 से 12 जुलाई 1990 | |
पूर्वा धिकारी | ओमप्रकाश चौटाला |
उत्तरा धिकारी | ओमप्रकाश चौटाला |
कार्यकाल 1987 | |
कार्यकाल 1989 | |
कार्यकाल 3 अप्रैल 1972 से 15 नवम्बर 1973 | |
कार्यकाल 1972 | |
विधायक - भिवानी
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कार्यकाल 1968, 1972 | |
जन्म | 5 नवम्बर 1917 मानेहरु गांव, भिवानी जिला, पंजाब (अब हरियाणा में) |
मृत्यु | 29 अगस्त 2007 |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शैक्षिक सम्बद्धता | बिड़ला कॉलेज, पिलानी |
धर्म | हिंदू |
आपनेने 'अपना देश', 'हरियाणा केसरी' और 'हरियाणा कांग्रेस पत्रिका' के द्वारा राजनैतिक जागृति तथा समाज सुधार के क्षेत्र में योगदान किया।
जीवन परिचय
संपादित करेंबाबू जी के नाम से मशहूर बनारसी दास गुप्ता जी का जन्म जन्म 5 नवम्बर 1917 को तत्कालीन पंजाब के जींद जिले के मानेहरु गांव में लाला रामसरुप दास जी के घर हुआ। आपकी शिक्षा कितलाना, चरखी दादरी एवं पिलानी में हुई। 'बिड़ला कॉलेज', पिलानी में शिक्षा प्राप्त की थी। पंडित जवाहरलाल नेहरु के प्रेरणादायी भाषण से प्रभावित होकर आप अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और संघर्ष समिति की स्थापना की। स्वतंत्रता आंदोलन में आपको कई बार जेल भी जाना पड़ा।
बनारसी दास गुप्ता जी की गतिविधियां देखकर जींद रियासत में उन्हें 1941 ई. में गिरफ्तार करके फरीदकोट जेल में बंद कर दिया था। भारत छोड़ो आंदोलन में भी बनारसी दास गुप्ता ने भाग लिया और 1942 से 1944 ई. तक जेल में बंद रहे।
आजादी के पश्चात बनारसी दास जी ने जींद को भारत में शामिल करने के लिए आंदोलन किया और वहां समानांतर सरकार बनाई। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल द्वारा जींद को पंजाब में सम्मिलित करने के समझौते के बाद ही यह आंदोलन समाप्त हुआ। 1968 के मध्यावधि चुनावों में वे भिवानी विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। 1972 में फिर से विधायक बने एवं सर्वसम्मति से विधानसभा अध्यक्ष चुने गए[1]। गुप्ता जी बिजली एवं सिंचाई, कृषि, स्वास्थ्य आदि विभिन्न विभागों के मंत्री रहे। 1975 में इन्हें हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया। 1987 में एक बार फिर भिवानी से विधायक बने और उप-मुख्यमंत्री चुने गए। 1989 में एक बार फिर हरियाणा के उपमुख्यमंत्री रहे। सितम्बर 1990 में आप पर एक जानलेवा हमला भी हुआ। 1996 में आप राज्य सभा के लिये चुने गए।
बनारसी दास जी द्वारा अनेक धार्मिक संस्थाओं की स्थापना की गई। आप अस्पृश्यता के घोर विरोधी थे। आपके योग प्रेम एवं प्रकृति प्रेम के फलस्वरुप ही भिवानी में प्राकृतिक चिकित्सालय की स्थापना हुई। आपके सहयोग से भिवानी में कई शैक्षणिक संस्थाएं अस्तित्व में आई। एक जननेता, समाजसेवी और शिक्षाविद होने के साथ ही आपका एक रूप पत्रकार का भी रहा हे जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। शिक्षा और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी बनारसी दास गुप्ता का विशेष योगदान रहा था। उन्होंने कई शिक्षण संस्थाएं स्थापित कीं। श्रमिकों को संगठित करके उन्हें अपने अधिकार प्राप्त कराने में भी बनारसी दास गुप्त सहायक रहे। आप कई वषो तक साप्ताहिक 'अपना देश' और ‘हरियाणा केसरी’ के सम्पादक रहे। ‘पंचायती राज – क्यों और कैसे' के नाम से आपने एक पुस्तक लिखी, जो बहुत लोकप्रिय हुई। विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से भी आप जुडे रहे। आपकी अध्यक्षता में हरियाणा प्रदेश साहित्य समिति ने कई ऊल्लेखनीय कार्य किए। 89 वर्ष की आयु में 10 मई 2007 को हरियाणा का यह सपूत चिरनिद्रा में लीन हो गया।[2]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 13 मई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 सितंबर 2014.
- ↑ "Banarsi Das Gupta dead". टाइम्स ऑफ़ इंडिया. August 30, 2007.