बलौदा बाज़ार जिला

छत्तीसगढ़ का जिला
(बलौदा बाज़ार ज़िला से अनुप्रेषित)

बलौदा बाज़ार ज़िला (Baloda Bazar district) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य का एक ज़िला है। इसका मुख्यालय बलौदा बाज़ार है, और ज़िला रायपुर मण्डल का भाग है। बलौदा बाज़ार ज़िला पहले रायपुर ज़िले का भाग हुआ करता था, और सन् 2012 में इसे एक अलग ज़िला बना दिया गया।[1][2]

बलौदा बाज़ार ज़िला
Baloda Bazar district
छत्तीसगढ़ का ज़िला
गिरौदपुरी धाम
गिरौदपुरी धाम
छत्तीसगढ़ में स्थिति
छत्तीसगढ़ में स्थिति
देश भारत
राज्यछत्तीसगढ़
स्थापना2012
मुख्यालयबलौदा बाज़ार
तहसीलबलौदा बाज़ार, पलारी, कसडोल, भाटापारा, सिमगा
क्षेत्रफल
 • कुल3733.87 किमी2 (1,441.66 वर्गमील)
जनसंख्या (2011)
 • कुल10,78,911
 • घनत्व290 किमी2 (750 वर्गमील)
भाषा
 • प्रचलितहिन्दी, छत्तीसगढ़ी
जनसांख्यिकी
 • साक्षरता70.63%
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)
मुख्य राजमार्गNH-30, NH-130, NH-130बी, राज्य राजमार्ग 10

बलौदा बाज़ार ज़िले में आने वाली तहसीलें इस प्रकार हैं:7

सन् 2021 में सारंगढ़-बिलाईगढ़ ज़िले के गठन से पहले बिलाईगढ़ भी ज़िले की एक तहसील था।

जिला परिचय

संपादित करें

बलौदा बाजार नगर की भौगोलिक स्थिति 21.300 54' से 31.450 14' उत्तरी अक्षांश तथा 42.020 17' से 82.290 07' पूर्वी देशांतर के मध्य समुद्र तल से 270मी. की ऊँचाई पर सिथत है। रायपुर संभाग में सिथत बलौदा बाजार जिले की सीमा बेमेतरा, मुंगेली, बिलासपुर, जाजगीर, रायगढ़, महासमुंद, व रायपुर जिले को स्पर्श करती है। बलौदा बाजार का नामकरण के संबंध में प्रचलित किवदंती अनुसार पूर्व में यहाँ गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बरार आदि प्रांतों के व्यापारी बैल, भैंसा (बोदा) का क्रय विक्रय करने नगर के भैंसा पसरा में एकत्र होते थे। जिसके फल स्वरूप इसका नाम बैलबोदा बाजार तथा कालांतर में बलौदा बाजार के रूप में प्रचलित हुआ।

ब्रिटिश राज के दौरान 1854 से 1864 तक बलौदा बाजार व तरेंगा (भाटापारा) रायपुर जिले का अंग था। पश्चात 1864 में इन इलाकों को बिलासपुर जिले में शामिल कर लिया गया। प्रशासनिक दृषिटकोण से उत्पन्न हो रही दिक्कतों के पश्चात दूरदर्शिता पूर्वक अंग्रेज अधिकारियों के द्वारा 1903 में सिमगा स्थित तहसील मुख्यालय को बलौदा बाजार में स्थानांतरित कर इसे जिला का दर्जा दिया गया। उस वक्त से ही विकासखंड सिमगा, भाटापारा, बलौदा बाजार, पलारी, कसडोल व बिलाईगढ़ इसके अन्र्तगत शामिल थे। जिन्हें 1982 में पृथक तहसील का दर्जा दिया गया। प्रशासनिक दृषिटकोण से अंग्रेजों द्वारा बलौदा बाजार से 2 किमी दूर सिथत ग्राम परसाभदेर (मिशन) में विश्राम गृह, चर्च, अस्पताल व निवास निर्मित कराया गया। 1920 में सेनीटेशन एक्ट लागू कर बलौदा बाजार में पंचायत का गठन किया गया। स्वतंत्रता पश्चात 1949 में स्थानीय शासन अधिनियम के तहत बलौदा बाजार को ग्राम पंचायत बनाया गया। पश्चात 1955 में ग्राम पंचायत हेतु आम चुनाव कराये गये। जिनमें से 11 कांग्रेस के तथा 4 प्रजा सोसिलस्ट पार्टी के सदस्य चुनकर आये। क्षेत्रीय व्यवस्था संचालन हेतु गठित लोकल बोर्ड स्वतंत्रता पश्चात 1947 में जनपद सभा के रूप में परिवर्तित हो गया। 1952 में भाटापारा-सीतापुर द्विसदस्यीय विधानसभा में बाजीराव बिहारी व चक्रपाणी शुक्ल, 1957 में बलौदा बाजार द्विसदस्यीय विधानसभा में नैनदास तथा बृजलाल वर्मा विजयी हुए। पश्चात 1962 में मनोहर दास, 1963 के उपचुनाव व 1967 के चुनाव में बृजलाल वर्मा, 1972 में दौलत राम वर्मा, 1977 में वंशराज तिवारी, 1980 में गणेश शंकर वाजपेयी, 1985 में नरेन्द्र मिश्रा, 1990 में सत्यनारायण केशरवानी, 1993 में करूणा शुक्ला, 1998 व 2003 में गणेश शंकर वाजपेयी तथा 2008 में श्रीमती लक्ष्मी बघेल विधायक पद पर सुशोभित हुई। 1952 के प्रथम आम चुनाव में रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग को शामिल कर द्विसदस्यीय लोकसभा सीट से भूपेन्द्रनाथ मिश्र व आगमदास विजयी हुए। पश्चात 1957 में द्विसदस्यीय बलौदा बाजार लोकसभा सीट पर विधाचरण शुक्ल व मिनीमाता को निर्वाचित घोषित किया गया। पश्चात रायपुर लोकसभा अंतर्गत शामिल कर लिया गया। 1973 में बलौदा बाजार को नगर पालिका का दर्जा दिया गया।

यातायात सुविधा

संपादित करें

जिले में यातायात का प्रमुख साधन सड़क मार्ग है। जिले की भाटापारा तहसील में रेल सुविधा उपलब्ध है। राष्ट्रीय राजमार्ग सिमगा तहसील में सिमगा से लिमतरा तक गुजरता है। जबकि राज्यमार्ग क्रमांक 9 (रायपुर से कोरबा) का 79.4 कि.मी. भाग इस जिले से गुजरता है। वहीं राज्य मार्ग क्रमांक 10 (कोटा से बलौदा बाजार) का 42 कि.मी., राज्य मार्ग क्रमांक 13 (पामगढ़ से सोहेला उडि़सा सीमा) का 42 कि.मी., राज्य मार्ग क्रमांक 14 (पिथौरा से कसडोल) का 46 कि.मी., राज्य मार्ग क्रमांक 16 (झिलमीली से पदमपुर सरायपाली) का 9.2 कि.मी. व राज्य क्रमांक 20 (तिल्दा से मगरलोड) का 15.3 कि.मी. भाग बलौदा बाजार जिले से गुजरता है। जिला मार्गों में लवन-खरतोरा 40.6 कि.मी., बलौदा बाजार-रिसदा-हथबंध 48.6 कि.मी., भाटापारा-निपनिया 47.6 कि.मी., भाटापारा-जरौद-सुहेला 28.8 कि.मी. के अलावा कुछ प्रमुख मार्ग बड़े ग्रामों से जुडे़ हुये हैं। आवागमन के दृषिटकोंण से बलौदा बाजार जिले से रायपुर मार्ग पर प्रतिदिन 90 बसें (टाईमिंग), भाटापारा मार्ग पर 30, गिधौरी-बिलाईगढ़ -भटगांव-सरसीवां-सारंगढ़ मार्ग पर 60, सिमगा-सुहेला मार्ग पर 10, बिलासपुर मार्ग पर 15, बसना, पिथौरा मार्ग पर 2-2, आरंग मार्ग पर 5 व कोरबा मार्ग पर 1 बस संचालित होती है। इसके अलावा रायपुर-झारसुगडा व्हाया बलौदा बाजार रेलमार्ग को 12वी योजना में शामिल किया गया है।

कृषि व सिंचाई

संपादित करें

बलौदा बाजार जिले की छ: तहसीलों के अंतर्गत कृषि का कुल रकबा 269888 हेक्टेअर है। जिले में धान की फसल प्रमुखता से बाई जाती है। जिले के 970 गांव की 10 लाख से ज्यादा आबादी में से अधिकांशत: लोग कृषि पर ही आश्रित है। समर्थन मूल्य पर 86 सहकारी समितियों के माध्यम से धान क्रय किया जाता है। जिले में 4 कृषि उपज मंडिया भी है, जिनमें भाटापारा सिथत मंडी वर्ष भर फसल क्रय विक्रय के लिए प्रसिद्ध है। सिंचाई हेतु जिले में अनेक नदी, नाले सिथत है, जिनमें महानदी, शिवनाथ, जोंक प्रमुख नदियां है। सहायक नदियों में बालमदेयी है वहीं जमुनिया व खोरसी नाला भी प्रमुख है। बि्रटिश काल में सिंचाई सुविधा को विकसीत करने हेतु 1935-36 में लगभग 200 कि.मी. नहरों का जाल बिछाया गया। बलौदा बाजार शाखा नहर व लवन शाखा नहर के माध्यम से गंगरेल बांध का पानी आज भी खेतों मेें पहुंचाया जाता है। शासन द्वारा औसत वर्षा में कमी के चलते बलौदा बाजार को वृषिटछाया क्षेत्र घोषित किया गया है। केवल पलारी तहसील ही सिंचीत क्षेत्र है शेष तहसीलों में सिंचीत क्षेत्र का रकबा कम है। कसडोल क्षेत्र में विशालकाय बलारडेम के अलावा जल संसाधन विभाग द्वारा नदियाें में एनिकेट व कुछ अन्य छोटे बांध भी निर्मित कराये गये हैं। भाटापारा नहर का निर्माणकार्य विगत कई वर्षो सें जारी है, जिसके पूर्ण होने से जिले का भाटापारा तहसील भी सिंचाई सुविधा से परिपूर्ण हो जावेगा।

जिले की कसडोल तहसील वनाच्छादित है। जिसमें जिले का 875.27 हेक्टेअर वन क्षेत्र है। जहां वनस्पतियों एवं पशु-पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां बड़ी संख्या में पाई जाती है। कसडोल तहसील के अंतर्गत ही बारनवापारा अभ्यारण सिथत है, जहां पर्यटन विभाग द्वारा मोटल का निर्माण कराने के अलावा जंगल सफारी की व्यवस्था भी की गई है। इसके अलावा सोनबरसा, खैरवारडीह (बलौदा बाजार), धमनी, धाराशिव (पलारी), कचलोन (सिमगा), सुमा (भाटापारा) के सुरक्षित वन है।

खनिज एवं उधोग

संपादित करें

बलौदा बाजार जिले में चुना-पत्थर ही प्रमुख खनिज है। सिमगा तथा बलौदा बाजार तहसील में यह खनिज पाया जाता है। इसके कारण यहां सिमेन्ट संयंत्रों की बहुतायत है, जिनमें ग्राम हिरमी व रावन में अल्ट्राटेक, ग्राम रवान में अम्बुजा, ग्राम सोनाडीह में लाफार्ज जैसे अन्तरराष्ट्रीय संयंत्र स्थापित है। इसके अलावा ग्राम रिसदा में इमामी तथा भूरूवाडीह में श्री सिमेन्ट संयंत्र प्रस्तावित है। कसडोल तहसील सिथत सोनाखान के बघमरा गांव में स्वर्ण चूर्ण पाये जाने की पुषिट भी हुई है, किंतु उत्पादन लागत अधिक होने के चलते इस दिशा में आपेक्षित प्रगति नहीं हुई। बिलाईगढ़, कसडोल तहसील तथा सिमगा में बुनकरों द्वारा हथकरघा से साडि़यों व अन्य वस्त्रों का निर्माण भी किया जाता है। बलौदा बाजार, भाटापारा में अनेक राईस मिल, दाल मिल, पोहा मिल संचालित है। यहां का चावल विदेशों में भी निर्यात किया जाता है साथ ही पावर प्लांट, पीतल कारखाना व अन्य लघु व मध्यम उधोग भी संचालित है। जिला निर्माण पश्चात औधोगिक पार्क की स्थापना से नए उधोग की संभावना बलवती हुई है।

पर्यटन, संस्कृति एवं भाषा

संपादित करें

पर्यटन की दृषिट से बलौदा बाजार जिला अत्यन्त समृद्ध है। कसडोल में बारनवापारा अभ्यारण्य, तुरतुरिया (बालिमकी आश्रम), गिरौधपुरी में सतनाम पंथ के प्रर्वतक गुरू घासीदास की जन्म भूमि तथा यहां पर कुतुबमिनार से ऊंचा जैतखम्भ, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह की जन्म भूमि, सोनाखान, पलारी के बालसमुंद तालाब के किनारे सिद्धेश्वर महादेव मंदिर, लवन के चंगोरी पैसर में शिवनाथ, महानदी व लीलागर नदी का संगम, सिमगा के सोमनाथ में शिवनाथ व खारून नहीं का संगंम प्रमुख स्थल है। जिले की मूल भाषा हिन्दी व छत्तीसगढ़ी है तथा प्राचिन परम्पराओं व संस्कृति का दर्शन यहां के सुआ, राऊत नांचा, कर्मा, पंथी, गौरा-गौरी पूजन आदि में दृषिटगोचर होता है। कसडोल में बारनवापारा अभ्यारण्य, तुरतुरिया (बालिमकी आश्रम), गिरौधपुरी में सतनाम पंथ के प्रर्वतक गुरू घासीदास की जन्म भूमि तथा यहां पर कुतुबमिनार से ऊंचा जैतखम्भ, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह की जन्म भूमि, सोनाखान, पलारी के बालसमुंद तालाब के किनारे सिद्धेश्वर महादेव मंदिर, लवन के चंगोरी पैसर में शिवनाथ, महानदी व लीलागर नदी का संगम, सिमगा के सोमनाथ में शिवनाथ व खारून नहीं का संगंम प्रमुख स्थल है। जिले की मूल भाषा हिन्दी व छत्तीसगढ़ी है तथा प्राचिन परम्पराओं व संस्कृति का दर्शन यहां के सुआ, राऊत नांचा, कर्मा, पंथी, गौरा-गौरी पूजन आदि में दृषिटगोचर होता है।

नारायणपुर शिव मन्दिर

संपादित करें

नारायणपुर के इस प्राचीन शिव मंदिर के 10वीं-11वीं शताब्दी में निर्मित होने का अनुमान लगाया जाता है क्योंकि खरौद में पाए गए शिलालेख (1181 ई.) के अनुसार हैहयवंशीय राजाओं ने यहां पर एक भव्य उद्यान का निर्माण कराया था। मंदिर का निर्माण रात के समय किया गया ग्राम नारायणपुर एवं आसपास के बड़े बुजुर्गों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण रात्रि के समय किया गया तथा निर्माण कार्य लगभग 6 महीने तक लगातार चला. इस मंदिर के निर्माणकर्ता प्रधान शिल्पी का नाम ग्रामीण नारायण बताते हैं जो जनजाति समुदाय का था तथा उसी के नाम इस गांव का नामकरण भी किया गया। किसी भी हिन्दू देवालय एवं मंदिर की पूर्णता तभी मानी जाती है जब उसके कंगूरे पर कलश स्थापित हो जाए, परंतु इस मामले में नारायणपुर का प्राचीन शिव मंदिर अलग है। क्योंकि इस मंदिर के कंगूरे में आज तक कलश स्थापित नहीं हो पाया है। इस संबंध में किवदंति के अनुसार प्रधान शिल्पी नारायण रात्रि के समय पूर्णत: निर्वस्त्र होकर मंदिर निर्माण का कार्य करते थे तथा उसके लिए उनकी पत्नी भोजन लेकर निर्माण स्थल पर आती थी। मंदिर का शिखर निर्माण अंतिम आ गया था तभी एक दिन किसी कारणवश उनकी पत्नी के स्थान पर उसकी बहन भोजन लेकर आ गई जिसे देखकर पूर्णत: नग्न अवस्था में नारायण का सिर शर्म से झूक गया और उसने मंदिर के कंगूरे से नीचे कूदकर अपना प्राणोत्सर्ग कर दिया।

गांव में प्रचलित किंवदंति के अनुसार मंदिर के प्रधान शिल्पी नारायण एवं उसकी बहन के किस्से सुनने के बाद इस प्राचीन मंदिर में पूजन दर्शन हेतु भाई-बहन एक साथ नहीं जाते. भाई-बहन का एक साथ नहीं जाने का प्रमुख कारण दीवारों पर उकेरी गई मैथुन मूर्तियों को भी माना जाता है। आदिवासी समाज का लगता है 3 दिनी मेला ऐतिहासिक-पुरातात्विक एवं धार्मिक महत्व के इस गांव में शिल्पकार नारायण को अपने पूर्वज मानने वाले कंवर (पैकरा) आदिवासी समाज द्वारा यहां पर प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तक तीन दिवसीय मेला लगता है जिसमें बलौदाबाजार, रायपुर, महासमुंद, बिलासपुर, जांजगीर-चांपा एवं रायगढ़ जिले के कंवर समाज के लोग आते हैं। इस मेले में करमा, ददरिया, सुआ नृत्य सहित आदिवासी संस्कृति से जुड़े नृत्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मेले में शिक्षा, चिकित्सा या अन्य गतिविधियों में सर्वोकृष्ट कार्य करने वालों को समाज द्वारा सम्मानित किया जाता है।

व्यवहार न्यायालय

संपादित करें

जिले के सभी छ: तहसीलों में व्यवहार न्यायालय कार्यरत है जहां द्वितीय श्रेणी न्यायधीश हैं वहीं बिलाईगढ़ के भटगांव तहसील में भी व्यवहार न्यायालय स्थापित है तथा पलारी तहसील में प्रस्तावित है।

बिलाईगढ़, कसडोल, लवन, पलारी, बलौदा बाजार, भाटापारा, सिमगा, भटगांव में महाविधालय एवं बलौदा बाजार, कसडोल, हथबंध, भटगांव में आईटीआई संचालित है।

जिले में पुलिस प्रशासन के सेटप में 3 पुलिस अनुविभाग बलौदा बाजार, भाटापारा, बिलाईगढ़ है, जिसके अंतर्गत 12 थाने व 10 चौकियां शामिल है। जिला अन्तर्गत 3 राजस्व अनुविभाग भाटापारा, बलौदा बाजार, बिलाईगढ़ है तथा 6 तहसीलों के अलावा 5 उप तहसील भी शामिल है। बलौदा बाजार एवं भाटापारा नगर पालिका है जबकि सिमगा, भटगांव, बिलाईगढ़, कसडोल, टुण्ड्रा, लवन, पलारी नगर पांचायत हैं। चिकित्सा की दृषिट से सभी तहसीलों में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र है तथा प्रमुख स्थानों पर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र सिथत है। आज से असितत्व में आने वाला बलौदा बाजार जिला को सड़क एवं परिवहन सुविधा, कृषि व सिंचाई सुविधा, शिक्षा, उधोग धंधे व पर्यटन के मामले में नवगठित अन्य जिलों की अपेक्षा अग्रणी कहा जाना अतिश्योकित नहीं होगा।

अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां

संपादित करें

1860 में पुलिस थाने की स्थापना, 1914 में अनुविभागिय अधिकारी राजस्व, िंचाई व मुंसीफ न्यायालय की स्थापना, 1919 में व्यवहार न्यायालय की स्थापना, 1920 में कोआपरेटिव बैंक की स्थापना, 1928 में दशहरा मैदान में अंग्रेजों द्वारा आफिसर्स क्लब का निर्माण, 26 नवम्बर 1933 में कृषि उपज मंडी प्रांगण में महात्मा गांधी का आगमन, पूर्व वायुसेना अध्यक्ष श्री अनिल यशवंत टिपनिस का 1940 में बलौदा बाजार में जन्म, 1940-41 में प्राथमिक बालक शाला की स्थापना, 1946 में किसान राईसमिल की स्थापना, 1952 में शासकीय (लाल) औषधालय का शुभारंभ तात्कालीन स्वास्थ्य मंत्री रानी पदमावति द्वारा,1953 में शासकीय बहुउद्वेशीय उ.मा.शाला, 1956 में नगर का विधुतीयकरण, 1958 में बालविहार शाला भवन का शिलान्यास तात्कालीन कृषि एवं उधोग मंत्री तखतमल जैन द्वारा किया गया। कालान्तर में यहां शासकीय कन्याशाला व औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान प्रारम्भ हुआ। 1962-63 में महाविधालय की स्थापना जो बाद में दाऊ कल्याण सिंह महाविध़ालय के नाम से संचालित हो रहा है। 1 मार्च 1964 से कृषि उपज मंडी समिति प्रारम्भ, 21 फरवरी 1991 को उपजेल का लोकार्पण, 30 नवम्बर 1991 से जिला सत्र न्यायालय का शुभारंभ, 31 अगस्त 1998 से अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक व अतिरिक्त जिलाधीश की पदस्थापना की गई। प्रथम जिलाधीश श्री राजेश सुकुमार टोप्पो, प्रथम पुलिस अधीक्षक श्री ए.एम. जूरी।

इन्हें भी देखें

संपादित करें