बहारें फिर भी आएंगी

हिन्दी भाषा में प्रदर्शित चलवित्र

बहारें फिर भी आएंगी १९६६ में बनी एक हिन्दी भाषा की फ़िल्म है जो गुरु दत्त द्वारा निर्मित और शहीद लतीफ द्वारा निर्देशित है। इस फ़िल्म के कलाकार माला सिन्हा, धर्मेंद्र, तनुजा और रहमान हैं। फ़िल्म अभी भी ओ पी नैय्यर के संगीत, अज़ीज़ कश्मीरी, कैफ़ी आज़मी, अंजान और एस. एच. बिहारी के गीत और के जी प्रभाकर के द्वारा भावनात्मक छायांकन के लिए याद की जाती है।[1]

बहारें फिर भी आएंगी
निर्देशक शहीद लतीफ
लेखक अब्रार अलवी
निर्माता गुरु दत्त
अभिनेता

माला सिन्हा
धर्मेंद्र
तनुजा

रहमान
छायाकार के जी प्रभाकर
संपादक वाई जी चव्हाण
संगीतकार ओ पी नैय्यर
वितरक यश राज फ़िल्म्स
प्रदर्शन तिथि
1966
लम्बाई
१५० मिनट
देश भारत
भाषा हिन्दी

जीतेन्द्र गुप्ता (धर्मेंद्र) एक ग़रीब आदमी है जो अपनी विधवा बड़ी बहन और भांजी सुषमा के साथ कोलकाता में रहता है। वह एक पत्रिका जागृति के संपादकीय विभाग में कार्यरत है। वह अनधिकृत रूप से एक खदान में काम की खतरनाक दशा का भंडाफोड़ करता है। इस खदान के मालिक का सम्बन्ध अखबार बोर्ड के एक निदेशक से है। फटकार के बाद उसे काम से निकाल दिया जाता है। जब खदान में वाकई हादसा होता है तो उसे पत्रिका के मृत मालिक की बेटी अमिता सिन्हा (माला सिन्हा), जो अब प्रबन्ध निदेशक हो गई है, द्वारा फिर से नौकरी पर रख लिया जाता है और मुख्य सम्पादक बना दिया जाता है। अमिता जीतेन्द्र से प्रेम करने लगती है। वह अपनी छोटी बहन सुनीता के साथ एक सम्पन्न जीवन शैली व्यतीत कर रही होती है और जब वह सुनीता को अपने प्यार के बारे में बताने का निर्णय लेती है तो उसे पता चलता है कि सुनीता भी जीतेन्द्र से प्रेम करती है। अमिता अपनी बहन की ख़ातिर जीतेन्द्र का ख़्वाब छोड़ देने का फ़ैसला लेती है। कुछ समय बाद उसे सुनीता के लिए एक अय्याश अमीर आदमी विक्रम वर्मा (देवेन वर्मा), जो कि अखबार के एक निदेशक (रहमान) का भाई है, से शादी का प्रस्ताव मिलता है। अमिता जीतेन्द्र को पाने के लिए सुनीता का हाथ विक्रम को सौंपना पसन्द नहीं करती लेकिन सुनीता को पता चल जाता है कि अमिता जीतेन्द्र को चाहती है। सुनीता अपनी बड़ी बहन की इज़्ज़त करती है और ख़ुशी-ख़ुशी विक्रम से शादी करने के लिए राज़ी हो जाती है और घर से भागकर जीतेन्द्र को कहती है कि वह विक्रम से शादी कर रही है। अमिता यह बर्दाशत नहीं कर पाती है और बदहवास सुनीता को ढूंढने निकल पड़ती है। उसके ऊपर कर्ज़ है और वह उससे भी काफ़ी दबाव में है। आख़िर में अमिता की मृत्यु हो जाती है और गुरु दत्त की सारी फ़िल्मों की तरह इस फ़िल्म में भी दर्शक को ही अनुमान लगाना होता है कि आगे क्या होगा।

फ़िल्म में ओ पी नैय्यर का संगीत है और कैफ़ी आज़मी, शेवेन रिज़वी तथा अज़ीज़ कश्मीरी के गीत हैं।

# गीत गायक
आपके हसीन रुख़ पे मोहम्मद रफ़ी
कोई कह दे आशा भोंसले
दिल तो पहले से मदहोश है मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले
बदल जाए अगर माली महेन्द्र कपूर
सुनो सुनो मिस चैटर्जी मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले
वो हँसके मिले हमसे आशा भोंसले

रोचक तथ्य

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पहले गुरु दत्त इस फ़िल्म में हीरो की भूमिका अदा कर रहे थे और कुछ फ़िल्म शूट भी हो गई थी लेकिन उनकी अकाल मृत्यु के कारण धर्मेंद्र के साथ फिर से पूरी शूटिंग की गई। इस फ़िल्म में प्रसिद्ध गुरु दत्त दल ने आख़िरी बार एक साथ काम किया।

नामांकन और पुरस्कार

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बाहरी कड़ियाँ

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