बहुमत
बहुमत (plurality या majority) शब्द का प्रयोग मतदान (वोंटिंग) के सन्दर्भ में किया जाता है। सामान्यतः जो प्रत्याशी सर्वाधिक मत प्राप्त करता है उसे 'बहुत मिला है' कहते हैं।
- (१) सामान्य बहुमत – उपस्थित सदस्यॉ तथा मतदान करने वालॉ के 50% से अधिक सदस्य ही सामान्य बहुमत है इस बहुमत का सदन की कुल सदस्य संख्या से कोई संबंध नहीं होता है
भारतीय संविधान के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव, विश्वास प्रस्ताव, कामरोको प्रस्ताव, सभापति, उपसभापति तथा अध्यक्षॉ के चुनाव हेतु सदन के यदि संविधान संशोधन का प्रस्ताव राज्य विधायिकाओं को भेजना हो, सामान्य बिल, धन बिल, राष्ट्रपति शासन, वित्तीय आपातकाल लगाने हेतु सामान्य बहुमत को मान्यता प्राप्त है यदि बहुमत के प्रकार का निर्देश न होने पर उसे सदैव सामान्य बहुमत समझा जाता है
- (२) पूर्ण बहुमत – सदन के 50% से अधिक सदस्यॉ का बहुमत [खाली सीटे भी गिनी जाती है] लोकसभा मे 273, राज्यसभा मे 123 सदस्यॉ का समर्थन . इसका राजनैतिक मह्त्व है न कि वैधानिक महत्व
- (३) प्रभावी बहुमत- मतदान के समय उपस्थित सदन के 50% से अधिक सदस्यॉ [खाली सीटॉ को छोडकर] यह तब प्रयोग आती है जब लोक सभा अध्यक्ष उपाध्यक्ष या राज्यसभा के उपसभापति को पद से हटाना हो या जब राज्यसभा उपराष्ट्रपति को पद से हटाने हेतु मतदान करे
- (४) विशेष बहुमत – प्रथम तीनो प्रकार के बहुमतॉ से भिन्न होता है इसके तीन प्रकार है
- (क) अनु 249 के अनुसार- उपस्थित तथा मतदान देने वालॉ के 2/3 संख्या को विशेष बहुमत कहा गया है
- (ख) अनु 368 के अनुसार – संशोधन बिल सदन के उपस्थित तथा सदन मे मत देने वालो के 2/3 संख्या जो कि सदन के कुल सदस्य संख्या का भी बहुमत हो [लोकसभा मे 273 सदस्य]इस बहुमत से संविधान संशोधन, न्यायधीशॉ को पद से हटाना तथा राष्ट्रीय आपातकाल लगाना, राज्य विधान सभा द्वारा विधान परिषद की स्थापना अथवा विच्छेदन की मांंग के प्रस्ताव पारित किये जाते है
- (ग) अनु 61 के अनुसार – केवल राष्ट्रपति के महाभियोग हेतु सदन के कुल संख्या का कम से कम 2/3 (लोकसभा मे 364 सदस्य होने पर)[1]
इन्हें भी देखें
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 17 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 मई 2020.