बांग्लादेश का सर्वोच्च न्यायालय
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बांग्लादेश की सर्वोच्च न्यायालय(बंगला: বাংলাদেশ সুপ্রীম কোর্ট, बांग्लादेश सूप्रीम कोर्ट), गणप्रजातंत्री बांग्लादेश की सर्वोच्च अदालत है और बांग्लादेश की न्यायिक व्यवस्था का शीर्षतम् निकाय है और देश की न्यायिक क्रम का शिखर बिंदू है। यह कानूनी और संवैधानिक मामलों में फैसला करने वाली अंतिम मध्यस्थ भी है। संविधान की धारा १०० के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय का आसन, राजधानी ढाका में अवस्थित है। इसे बांग्लादेश के संविधान की षष्ठम् भाग के चतुर्थ पाठ के द्वारा स्थापित किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय, पाकिस्तान को कई संवैधानिक व न्यायिक विकल्प प्राप्त होते हैं, जिनकी व्याख्या बांग्लादेश के संविधान में की गई है।
बांग्लादेश की सर्वोच्च न्यायालय বাংলাদেশ সুপ্রীম কোর্ট | |
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प्रतीकचिन्ह | |
अधिकार क्षेत्र | गणप्रजातंत्र बांग्लादेश |
स्थान | रमना, ढाका 1000, बांग्लादेश |
निर्देशांक | 23°43′51″N 90°24′09″E / 23.730777°N 90.402458°Eनिर्देशांक: 23°43′51″N 90°24′09″E / 23.730777°N 90.402458°E |
प्राधिकृत | बांग्लादेशी संविधान |
जालस्थल | supremecourt.gov.bd |
बांग्लादेश के मुख्य न्यायाधीश | |
वर्तमान | सैयद रेफ़ात आहमद[1] |
कार्य प्रारम्भ | 26 सितम्बर 2023[2] |
इस संसथान के दो "विभाग" है: अपीलीय विभाग और उच्च न्यायलय विभाग, तथा यह बांग्लादेश के मुख्य न्यायाधीश व अपीलीय विभाग व उच्च न्यायालय विभाग के न्यायाधीशों का भी स्थायी कार्यालय की भी मेज़बानी भी करता है। अगस्त २०२४ की स्थिति अनुसार, अपीलीय विभाग में ६ और उच्च न्यायालय विभाग में ७८ न्यायाधीश हैं, जिनमें ७६ स्थायी और २ अस्थायी हैं। इस न्यायालय को सामान्य बोलचाल में अक्सर हाई कोर्ट भी कहा जाता है, क्योंकि स्वतंत्रता पूर्व, अर्थात् १९७१ से पहले तक, इस भवन में पूर्वी पाकिस्तान की उच्च न्यायालय वास करती थी।
इतिहास
संपादित करेंभारतीय उपमहाद्वीप की वर्त्तमान न्यायिक व्यवस्था की नीव को १७२६ के महाराज जॉर्ज प्रथम के शाही आदेश तक ले जाया जा सकता है, जिसमे कलकत्ता, बम्बई और मद्रास जैसे प्रेसीडेंसी नगरों की न्यायिक प्रणाली को ब्रिटिश मुकुट के अंतर्गत लाया गया, तथा इस प्रकार भारत में अंग्रेजी साधारण न्यायिक पद्धति की परिकाष्ठा हुई। इस शाही आदेश के तहत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत लाया गया एवं सारे प्रेसीडेंसी नगरों में स्थापित न्यायिक व्यवस्थापिका को ब्रिटेन में स्थापित न्यायिक प्रणाली में सम्मिलित किया गया। साथ ही, इसी सिलसिले में, न्यायिका के सर्वोच्च न्यायालय को फोर्ट विलियम(कलकत्ता) में स्थापित करने का प्रावधान भी दिया गया। इस अदालत को २६ मार्च १७७४ में स्थापित किया गया। इस अदालत को बंगाल प्रेसीडेंसी में ब्रिटिश हुक़ूमत के अंदर आने वाले सारे शहरियों पर समस्त न्यायिक क्षेत्रों में, सर्वोच्च न्यायिक अधिकार था। १८६१ के भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम के तहत, ब्रिटिश भारत में प्रचलित न्यायिक व्यवस्था को पुनर्संगठित कर, बम्बई, मद्रास और कलकत्ता के "सर्वोच्च न्यायालयों" को रद्द कर, उच्च न्यायालयों को स्थापित किया गया, जिनके पास, मूल तथा अपीलीय न्यायदिकर था।[3]
स्वतंत्रता-प्राप्ति तथा विभाजन के पश्चात्, भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, १९४७ के अंतर्गत, बंगाल को विभाजित कर, पूर्वी बंगाल को पाकिस्तान अधिराज्य के अंतर्गत कर दिया गया। इसी अधिनियम के बंगाल उच्च न्यायालय आदेश के तहत पूर्वी बंगाल की न्यायिका के उच्च न्यायालय को ढाका में, पूर्वी पाकिस्तान पर न्यायाधिकार के लिए एक भिन्न अदालत के तौर पर स्थापित किया गया। इस अदालत को ढाका हाई कोर्ट भी कहा जाता था।[3] इसे अपीलीय एवं मूल न्यायाधिकार से सबल किया गया था। पाकिस्तान के १९५६ के संविधान के परवर्तन के पश्चात् पाकिस्तान की सर्वोच्चन्यायालय को पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान युक्त देश की शीर्ष न्यायालय के रूप में स्थापित किया गया। इस व्यवस्था में, ढाका उच्च न्यायालय पूर्वी पाकिस्तान की उच्चतम अदालत थी। तत्पश्चात् बांग्लादेश की स्वतंत्रता एवं बांग्लादेश के संविधान की पराकाष्ठा के बाद, संविधानिक प्रावधानों के तहत, बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई, जिसे संविधान के अनुसार, बांग्लादेश की शीर्ष अदालत होने का पद प्राप्त है।
निर्णयात्मक प्रभाव
संपादित करेंबांग्लादेश के संविधान के अनुच्छेद 111 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के समस्त निर्णय बाध्यकारी प्रभाव रखते है। इस अनुछेद का लेख यह प्रदान करता है कि अपीलीय विभाग द्वारा घोषित निर्णय, उच्च न्यायालय विभाग पर बाध्यकारी होते हैं। तथा, दोनों में से किसी भी प्रभाग द्वारा घोषित निर्णय, सर्वोच्च न्यायालय के अधीनस्थ सभी अदालतों पर बाध्यकारी होते हैं।
सार निर्णय, आम तौर पर बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के निर्णयसंग्रह में, संगृहीत रहते हैं। कई कानूनी पत्रिकाएँ, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और निर्णयों को प्रकाशित भी करते हैं। ये सभी पत्रिकाएँ, मुद्रित मात्रा में संगृहीत रहते हैं। केवल चांसरी लॉ क्रॉनिकल्स, बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की ऑनलाइन सेवा प्रदान करते हैं।
संरचना
संपादित करेंबांग्लादेशी संविधान के षष्ठम् अध्याय की धरा १४ सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना के सम्बन्ध में, कानूनी विधानों को व्याख्यित करती है। इस धरा के अनुछेद १ में कहा गया है की "बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट" के नाम से बांग्लादेश के एक सर्वोच्च अदालत होगी एवं अपीलीय विभाग व उच्च न्यायालय विभाग सहित, इसे गठित किया जाएगा। इस धीरे के अनुछेद में कहा गया है की "मुख्य न्यायाधीश एवं प्रत्येक विभाग में, राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत संख्यक न्यायाधीशों के योग से सर्वोच्च न्यायालय गठित होगी"; तथा यह भी कहा गया है की, सुप्रीमकोर्ट के प्रमुख न्याधीश, "बांग्लादेश के प्रधान विचारपति(বাংলাদেশের প্রধান বিচারপতি) के नाम से जाने जाएंगे। अगले अलुछेद में बोला गया है की, "मुख्य न्यायाधीश एवं अपीलीय विभाग के न्यायाधीश, केवल उक्त विभाग में, तथा, अन्य न्यायाधीश केवल उच्च न्यायालय विभाग में ही आसन ग्रहित करेंगे"; एवं चतुर्थ अतुछेद में कहा गया है की:"संविधान के उपबंधों के अधीन, मुख्य न्यायाधीश व अपीलीय विभाग के अन्य न्यायाधीश, निर्णय पर विचार करने के क्षेत्र में स्वाधीन रहेंगे।[4]
संविधान की धारा 100 के विधानों के अनुसार देश का राजधानी ढाका में सर्वोच्च न्यायालय की स्थायी कार्यालय अवस्थित होगी। बहरहाल,संविधान में यह भीविधान है की राष्ट्रपति की अनुमति से, मुख्य न्यायाधीश, समस-समय पर अन्य निर्धारित स्थानों पर भी उच्च न्यायालय विभाग के सत्र को अनुष्ठानित कर सकते हैं।
क्षेत्राधिकार
संपादित करेंसंवैधानिक विधानानुसार, बांग्लादेशी सुप्रीम कोर्ट के दो वुभाग हैं: अपीलीय विभाग तथा उच्च न्यायालय विभाग। संविधान की धारा 101 में उच्च न्यायालय विभाग के क्षेत्राधिकार को, तथा, धारा 107 में, अपीलीय के संबंध में क्षेत्राधिकार को वर्णित किया गया है। उच्च न्यायालय विभाग, अधीनस्थ न्यायालयों तथा न्यायाधिकरणों की अपील पर सुनवाई करनें में सक्षम है। इसके अतिरिक्त, अनुछेद 102 के तहत, रिट अवेदन, एवं कंपनी व सेनाविभाग संबंधित विषय में भी सीमित, मूल अधिकार रखता है। उच्च न्यायालय वाभाग की अपीलों पर सुनवाई करने का अधिकार अपीलीय विभाग के अधिकारक्षेत्र में हैं।[5][6] तथा, सुप्रीम कोर्ट को कार्यपालिका से स्वाधीन, एवं राजनीतिक तौर पर स्वतंत्र रखा गया है, एवं वह, विकट स्थितियों में, सरकार के विरूद्ध भी निर्णय ले सकती है। [7]
न्यायपीठ गठन
संपादित करेंविशेष मकदमों पर सुनवाई करने हेतु, सर्वोच्च न्यायालय, न्यायपीठों को भी गठित करती है। इन में,आम तौर पर मुख्य न्यायाधीश समेत कुछ अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों को भी शामिल किया जाता है।
न्यायमूर्तियों की नियुक्ति
संपादित करेंसुप्रीम कोर्ट में, नुख्य न्यायाधीसह अवं अन्य न्यायाधीओं की नियुक्ति, प्रधानमंत्री की अनिवार्यात्मक सलाह पर बांग्लादेश के राष्ट्रपति द्वारा होती है। सर्वोच्च न्यायालय के उच्च न्यायालय विभाग में जज के रूप में नियुक्ति का प्रवेशद्वार है, एडिशनल जज का पद, जिन्हें, सर्वोच्च न्यायालय की विधिज्ञ परिषद् के अधिवक्ताओं में से अनुच्छेद ९५ के आधार पर दो वर्ष की अवधी के लिए नियुक्त किया जाता है। इस कालावधि के समापन के पश्चात्, मुख्य न्यायाधीश के सिफारिश पर, एक अस्थायी जज को स्थायी रूप से राष्ट्रपति द्वारा अनुछेद ९५ के प्रावधानों के अंतर्गत नियुक्त कर दिया जाता है। ऐसे नियुक्तियों की वर्त्तमान अनुपात, ८:२ है, अर्थात्, ८०% न्यायाधीश, स्थायी होते है, जबकि २०% अस्थायी होते है। अपीलीय विभाग के न्यायाधीशों को भी कथित अनुछेद के प्रावधानों के तहत ही नियुक्त किया जाता है। अनुछेद १४८ के प्रावधानों के अनुसार यह सारी नियुक्तियाँ शपथ-ग्रहण की तिथि से प्रभाव में आतें हैं।[8]
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशगण १३वि संशोधन अधिनियम, २००४ के प्रभाव में आने के बाद से, ६७ वर्ष की आयु तक पदस्थ रहते है। तथा, विधिनुसार, प्रत्येक सेवानिवृत न्यायाधीश, गणराज्य के सेवा में किसी भी न्यायिक या अर्धन्यायिक लाभकारी पद या मुख्य सलाहकार या सलाहकार के पद की सेवा करने से अक्षम करार है। तथा न्यायाधीशों को सेवाकाल के बीच निलंबन से प्रतिरक्षा निहित की गयी है। न्यायाधीश को केवल अनुछेद ९६ के अनुसार, सर्वोच्च न्यायिक परिषद् द्वारा सुनवाई के बाद ही निलंबित किया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायिक परिषद् मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा रचित होता है।[8]
न्यायाधीशगण
संपादित करेंअपीलीय विभाग के पदस्थ न्यायाधीशों
संपादित करेंनाम | अपीलीय डिवीजन में नियत तारीख | अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में उच्च न्यायालय डिवीजन में नियत तारीख | अनिवार्य सेवानिवृत्ति | उच्च न्यायालय डिवीजन में राष्ट्रपति की नियुक्ति | प्रधानमंत्री ने उच्च न्यायालय डिवीजन में नियुक्ति के समय | न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति से पहले न्यायिक स्थिति | कानून स्कूल |
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मुख्य न्यायमूर्ति सैयद रेफ़ात आहमद [2] | 10 अगस्त 2024 | 27 अगस्त 2003 के | 27 दिसम्बर 2025 | इयाजुद्दीन अहमद (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) | खालिदा ज़िया (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) | सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता | ढाका विश्वविद्यालय |
न्यायमूर्ति मोहम्मद आशफकुल इस्लाम [3] | 9 जनवरी 2022 | 27 अगस्त 2003 के | 14 फरवरी 2026 | इयाजुद्दीन अहमद (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) | खालिदा ज़िया (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) | सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता | ढाका विश्वविद्यालय |
न्यायमूर्ति ज़ुबैयिर रहमान चौधरी [4] | 13 अगस्त 2024 | 27 अगस्त 2003 के | 27 फरवरी 2024 | इयाजुद्दीन अहमद (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) | खालिदा ज़िया (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) | सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता | ढाका विश्वविद्यालय |
न्यायमूर्ति सैयद मोहम्मद ज़ियाउल करीम | 13 अगस्त 2024 | 27 अगस्त 2003 के | 11 फरवरी 2024 | इयाजुद्दीन अहमद (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) | खालिदा ज़िया (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) | सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता | ढाका विश्वविद्यालय |
न्यायमूर्ति मोहम्मद रेज़ाउल हक | 13 अगस्त 2024 | 27 अगस्त 2003 के | 23 फरवरी 2027 | इयाजुद्दीन अहमद (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) | खालिदा ज़िया (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) | सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता | ढाका विश्वविद्यालय |
न्यायमूर्ति एस एम एमदादुल हक | 13 अगस्त 2024 | 27 अगस्त 2003 के | 06 नवम्बर 2030 | इयाजुद्दीन अहमद (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) | खालिदा ज़िया (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) | सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता | ढाका विश्वविद्यालय |
उच्च न्यायालय डिवीजन के पदस्थ स्थायी न्यायाधीशों
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उच्च न्यायालय डिवीजन के पदस्थ अस्थायी न्यायाधीशों
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मुख्य न्यायाधीश सुरेन्द्र कुमार सिन्हा बिष्णुप्रिय मणिपुरी सोसायटी या बांग्लादेश में किसी भी अल्पसंख्यक जातीय समूहों से नियुक्त पहली न्याय है। न्यायमूर्ति भावनी प्रसाद सिन्हा को एक ही समुदाय से भी है।
मैडम न्यायमूर्ति नाज़मन आरा सुल्ताना पहले कभी महिला न्याय है, और मैडम जस्टिस कृष्णा देबनाथ बांग्लादेश की पहली महिला हिंदू न्याय है। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में छह महिला न्यायाधीशों रहे हैं।
विवाद
संपादित करेंसर्वोच्चच न्यायलय के अनेक नियनय विवाद व आलोचना का पात्र रहे हैं। तथा बीते वर्षों में, अनेन न्यायाधीशों पर दुराचार तथा विवादस्पद काराओं के आरोप लगते रहे हैं। इस के अलावा, अनेक न्यायाधीशों की कियुक्ति या पदोन्नति भी विवाद का विषय बन चुकी है।[17]
२०१० में, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, मो. फज़लुल करीम ने, मो. रुहुल कुद्दूस के शपथ ग्रहण पर, उनके आरोपित, जमाते इस्लामी समर्थक असलम नामक एक छात्र कार्यकर्ता की हत्या में शामिल होने के आरोप के कारण, रोक लगा दी थी, तथा, न्यायमूर्ति मोहम्मद खोसरुज़्ज़मान पर न्यायालय की अवमानना का आरोप लगाया गया था। इसके अलावा १९७५ में शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के एक आरोपी, कप्तान किस्मत हाशिम के परामर्शदाता होने का आरोप, न्यायमूर्ति नज़रुल इस्लाम तालुकदार पर उस समाय लगाया गया था।[18] [19][20][मृत कड़ियाँ]
१८ मई २०११ को न्यायमूर्ति शाह अब नईम मोमीनूर रहमान, एक अपीलीय विभाग के न्यायाधीश, जो की तत्कालीन वरिष्ठताम् न्यायाधीश थे, ने अपने पद से, अतिक्रमण के आरोप पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, १८ मई को उन्हें मुख्यन्यायाधीश बन्ने की बात थी। [21] ११ दिसंबर २०१२ को न्यायमूर्ति मो. निज़मूल हक़ ने, अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था जब स्काइप पर उनके एक देशनिष्काशीत बांग्लादेशी न्यायिक विशेषज्ञ से उनकी वार्ता की बात सामने आये थी।[22] २०१३ में बांग्लादेश के राष्ट्रपति के न्यायमूर्ति मिज़ानूर रहमान भुइयाँ के कथित दुराचार के मामले पर जांच के लिए सर्वोच्च न्यायिक परिषद् के गठन के आदेश दिए थे, क्योंकि उनपर कथन तौर पर २०१३ के शभह विद्रोह के सम्बन्ध में एक पत्रिका को बांटने का आरोप लगा था।[23]
तीन उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को के समय अतिक्रमण कर अपीलीय विभाग में नियुतक कर दिया गया था। इस कांड में, न्यायमूर्ति सिद्दिकुर रहमान मियां ने 3 जजों को और हसन फैज़ सिद्दीकी और ए यह एम् शम्सुद्दीन चौधरी ने 40 वरिष्ठ जजों पर अतिक्रमित हो कर अपीलीय विभाग में नियुक्त हुए थे। ऐसा माना गया था की ये सारी नियुक्तियाँ राजनीतिक माहत्वाकांश के प्रभाव में किये गए थे।[24]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ न्यायाधीशों की सूची Archived 2015-08-01 at the वेबैक मशीन; SupremeCourt.gov.bd
- ↑ "Justice SK Sinha takes over as CJ". द डैली स्टार. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जून 2016.
- ↑ अ आ [1] Archived 2016-07-11 at the वेबैक मशीन
- ↑ "বাংলাদেশের সংবিধান". मूल से 16 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 जून 2016.
- ↑ Supreme Court of Bangladesh Archived 2013-07-25 at the वेबैक मशीन, Ministry of LPAP, Justice and Parliamentary Affairs of Bangladesh
- ↑ First Bangladesh Online Case Law Database Archived 2006-12-14 at the वेबैक मशीन, Chancery Law Chronicles- Database of Judgements of Appellate Division of Supreme Court
- ↑ Bangladesh Archived 2012-09-10 at the वेबैक मशीन, "Jurist Legal News and Research", University of Pittsburgh School of Law
- ↑ अ आ बांग्लादेश का संविधान