बड़ो लोगों जिस धर्म का पालन करते हैं उसका नाम बाथौ है। 'बाथौ' शब्द का अर्थ है, 'पाँच सिद्धान्त' । ये पाँच सिद्धान्त ये हैं- 'बार' (वायु), 'सान' (सूर्य), 'हा' (पृथ्वी), 'दै' (जल) तथा 'अख्रां' (गगन)। वर्तमान काल में बोड़ो समाज अपने प्राचीन धर्म, दर्शन और परम्परा को मानते हुये अपनी संस्कृति को जीवित किये रखा है। 'बाथौ' या 'बाथौबोराइ' इनके प्रधान देवता हैं। कुछ अन्य देवता भी हैं किन्तु बाथौ को परमेश्वर माना जाता है।

बाथौ ध्वज

बाथौ धर्म के अन्तर्गत कई प्रकार के उत्सवों का आयोजन किया जाता है जिसमें से एक खेराई उत्सव है। खेराई उत्सव हो या अन्य उत्सव वेसारे कृषि से ही सम्बन्धित होते है। खेराई उत्सव बोड़ो ध्रर्म के अन्तर्गत मनाया जाने वाला एक विस्तृत एवं खर्चीला पूजा विधान है। खेराई उत्सव में नर्तकी, ओझा या पुरोहित, वाद्य यन्त्र, औजार आदि काफी चीजों की आवश्यकता होती है। उत्सव के आयोजन के दौरान उक्त सभी वस्तुयें अपनी भूमिका का निर्धारित करता है। खेराई एक बलि विधान से सम्बन्धित उत्सव है इसमें कई सारे जीव-जन्तुओं की देवताओं को प्रसन्न करने के फलस्वरुप उनकी बलि दी जाती है। ओझा (पुरोहित) इस उत्सव के समय दैवधुनि को विशेष प्रकार से प्रयोग में लाते है कि क्योकि ऐसी धारणा है कि दैवधुनि के माध्यम से वह (पुरोहित) देव-देवियों के साथ सम्वाद स्थापित करता है ताकि उन्हें धरती पर आवाहन कर समस्त मानव जाति में शांति और प्रसन्नता के वातावरण को प्रवाहित किया जा सके। यह उत्सव एक प्रकार से प्रकृति के साथ विशेष रुप से जुड़ा हुआ है। इस उत्सव के माध्यम से जिन-जिन देवताओं की पूजा की उनमें से प्रायः प्रकृति की शक्ति के रुप ग्रहण किया जा सकता है।

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