जगजीवन राम
जगजीवन राम (5 अप्रैल 1908-6 जुलाई 1986)जिन्हें सहपूर्ण रूप से '''बाबूजी''' भी कहा जाता था, एक भारतीय राजनेता तथा भारत के प्रथम दलित उप-प्रधानमंत्री एवं एक महान स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता, संविधान सभा के सदस्य थे।
जगजीवन राम | |
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कार्यकाल 24 मार्च 1977-28 जुलाई 1979 | |
कार्यकाल 1977 - 1978 | |
कार्यकाल 1970 - 1974 | |
जन्म | 5 अप्रैल 1908 चांदवा, भोजपुर जिला, बिहार, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु | 6 जुलाई 1986 | (उम्र 78 वर्ष)
राजनीतिक दल | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
जीवन संगी | इन्द्रानी जगजीवन राम |
धर्म | बौद्ध धर्म |
परिचय
संपादित करेंबाबू जगजीवन राम के जीवन के कई पहलू हैं। उनमें से ही एक है भारत में संसदीय लोकतंत्र के विकास में उनका अमूल्य योगदान। 28 साल की उम्र में ही 1936 में उन्हें बिहार विधान परिषद् का सदस्य नामांकित कर दिया गया था। जब गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के तहत 1937 में चुनाव हुए तो बाबूजी डिप्रेस्ड क्लास लीग के उम्मीदवार के रूप में निर्विरोध एमएलए चुने गए। अंग्रेज़ बिहार में अपनी पिट्ठू सरकार बनाने के प्रयास में थे। उनकी कोशिश थी कि जगजीवन राम को लालच देकर अपने साथ मिला लिया जाए। उन्हे मत्री पद और पैसे का लालच दिया गया, लेकिन जगजीवन राम ने अंग्रेज़ों का साथ देने से साफ इनकार कर दिया। उसके बाद ही बिहार में काग्रेस की सरकार बनी, जिसमें वह मत्री बने। साल भर के अंदर ही अंग्रेज़ों के गैरजिम्मेदार रुख के कारण महात्मा गांधी की सलाह पर काग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया। बाबूजी इस काम में सबसे आगे थे। पद का लालच उन्हें छू तक नहीं गया था। बाद में वह महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में जेल गए। जब मुंबई में 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की तो जगजीवन राम वहीं थे। तय योजना के अनुसार उन्हें बिहार में आंदोलन को तेज करना था, लेकिन दस दिन बाद ही उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया।
उच्च शिक्षा
संपादित करेंबाबूजी ने वर्ष 1920 में आराह स्थित अग्रवाल विद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु प्रवेश लिया | आयु वृद्धि के साथ ही उनमें परिपक्वता का भी समावेश हो रहा था | उनकी विदेशी भाषाओं को समझने व सीखने की जिज्ञासा के बल पर उन्होंने अंग्रेज़़ी में निपुणता हासिल की, साथ ही माननीय श्री बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा रचित 'आनन्द मठ' की मूल पुस्तक (जो बांगाली में लिखित है) को पढ़ने के लिए बांगाली तक सीख गए | वे अंग्रेज़़ी व बांगाली के साथ-साथ हिन्दी व संस्कृत में भी माहिर थे | 1925 में पंडित मदन मोहन मालवीय जब आराह पधारे तो वे युवा जगजीवन के व्यापक ज्ञान व सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन को देखकर अचंभित रह गए तथा उन्हें तभी आभास हो गया कि ये किशोर भविष्य में देश की आज़ादी व राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभा सकता है | उन्होंने युवा जगजीवन से स्वयं मुलाकात की व बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय आने का निमंत्रण दिया | परन्तु जगजीवन राम को वहाँ जाति के आधार पर भेद भाव झेलना पड़ा | क्रांतिकारी स्वाभाव के जगजीवन ने इसका खुल कर विरोध किया और वे सफल भी हुए | आतंरिक विज्ञान परीक्षा में वे उत्तम अंकों से उत्तीर्ण हुए व वर्ष 1931 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक में उच्चतम अंकों से उत्तीर्ण हुए |
राजनीतिक जीवन का शंखनाद
संपादित करेंबाबू जगजीवन राम के राजनीतिक जीवन का आगाज़ कलकत्ता से ही हुआ | कलकत्ता आने के छः महीनों के भीतर ही उन्होंने विशाल मजदूर रैली का आयोजन किया जिसमें भारी तादाद में लोगों ने हिस्सा लिया | इस रैली से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी को भी बाबूजी की कार्यक्षमता व नेतृत्वक्षमता का आभास हो गया | इस काल के दौरान बाबूजी ने वीर चन्द्रशेखर आज़ाद तथा सिद्धहस्त लेखक मन्मथनाथ गुप्त जैसे विख्यात स्वतंत्रता विचारकों के साथ काम किया | वर्ष 1934 में जब सम्पूर्ण बिहार भूकंप की तबाही से पीड़ित था तब बाबूजी ने बिहार की मदद व राहत कार्य के लिए अपने कदम बढ़ाए | बिहार में ही पहली बार उनकी मुलाकात उस काल के सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रभावशाली व अहिंसावादी स्वतंत्रता सेनानी माननीय श्री मोहन दास करमचन्द गाँधी अर्थात् महात्मा गाँधी से हुई | महात्मा गाँधी ने बाबू जगजीवन राम के राजनीतिक जीवन में एक बहुत अहम भूमिका निभाई, क्योंकि बाबूजी यह जानते थे कि पूरे भारत वर्ष में केवल एक ही स्वतंत्रता सेनानी ऐसा था जो स्वतंत्रता व पिछड़े वर्गों के विकास, दोनों के लिए लड़ रहा था, और वे थे गांधीजी | अन्य सभी सेनानी दोनों में से किसी एक का चुनाव करते थे | जब अंग्रेज़़ 'फूट डालो राज करो' नीति अपनाते हुए दलितों को सामूहिक धर्म-परिवर्तन करने पर मजबूर कर रहे थे तब बाबूजी ने इस अन्यायपूर्ण कर्म को रोका | इस घटनाक्रम के पश्चात् बाबूजी दलितों के सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता के रूप में जाने गए व गांधीजी के विश्वसनीय एवं प्रिय पात्र बने व भारतीय राष्ट्रीय राजनीती की मुख्यधारा में प्रवेश कर गए | अपने विद्यार्थी जीवन में बाबूजी ने वर्ष 1934 में कलकत्ता के विभिन्न जिलों में संत रविदास जयन्ती मानाने के लिए अखिल भारतीय रविदास महासभा का गठन किया | उन्होंने दो अन्य संस्थानों का गठन किया – 1. खेतिहर मजदूर सभा 2. भारतीय दलित वर्ग संघ वर्ष 1935 में बाबू जगजीवन राम ने डॉ॰ बीरबल की सुपुत्री इन्द्रानी देवी से विवाह किया | डॉ॰ बीरबल कानपुर के एक प्रख्यात चिकित्सक थे वहीं इन्द्रानी देवी बाबू जगजीवन राम के विचारों से अति प्रभावित थीं | इस विवाहित जोड़े ने कुछ वर्षों के पश्चात् एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम 'सुरेश' रखा गया व एक पुत्री जिसका नाम रखा गया 'मीरा' | वर्ष 1935 में ही बाबूजी ने हैमंड कमिटी के समक्ष दलितों के मतदान करने की मांग की जिसे हैमंड कमिटी ने स्वीकार कर लिया |
विरोध का काल
संपादित करेंबाबूजी के लिए ये समय अत्यन्त परिश्रम का था और एक अनमोल मौका था भारतीय राजनीती में अपनी अमिट छाप छोड़ने का | वर्ष था 1936 व बाबूजी की आयु थी 28 वर्ष | अंग्रेज़़ बिहार में कांग्रेस को हराने के लिए एकजुट होकर प्रयास कर रहे थे | उन्होंने मोहम्मद युनुस के नेतृत्व में कठपुतली सरकार बनाने का निष्फल प्रयत्न किया | इन चुनावों में बाबूजी सहित अन्य 14 भारतीय दलित वर्ग संघ के सदस्य निर्वाचित हुए | बाबूजी की बढ़ती राजनैतिक शक्ति व लोकप्रियता के कारण अंग्रेज़ों ने उनके समक्ष बड़ी रकम के बदले समर्थन देने की बात रखी जिसे बाबूजी ने क्षण भर की भी देर न करते हुए तुरन्त ही ठुकरा दिया | इस घटना का पता चलते ही गाँधी जी का विश्वास बाबूजी पर और अधिक बढ़ गया और उन्होंने बाबूजी के लिए निम्नलिखित पंक्तियाँ कहीं – 'जगजीवन राम तपे कंचन की भांति खरे व सच्चे हैं | मेरा हृदय इनके प्रति आदरपूर्ण प्रशंसा से आपूरित है' कठपुतली सरकार का खेल ख़त्म हो चुका था व कांग्रेस ने सरकार का गठन किया | बाबूजी को इस सरकार में कृषि मंत्रालय, सहकारी उद्योग व ग्रामीण विकास मंत्रालय में संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया | वर्ष 1938 में अंदमान कैदियों के मुद्दे पर व द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेज़़ सरकार द्वारा भारतीय सैनिकों के इस्तेमाल से महात्मा गाँधी अति क्रोधित हुए व उनके एक आवाह्न पर सभी कांग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया | तत्पश्चात गांधीजी ने 9 अगस्त 1942 से उनके विख्यात आन्दोलन 'भारत छोड़ो आन्दोलन' को प्रारम्भ किया | उन्होने बाबूजी को बिहार व उत्तर पूर्वी भारत में इस आन्दोलन के तेज़ी से प्रचार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी जिसे बाबूजी ने बहतरीन रूप से निभाया | किन्तु प्रचार के दस दिन बाद ही बाबूजी गिरफ्तार कर लिए गए | 1943 में रिहा होने के पश्चात् बाबूजी ने भारत को आज़ाद करने के लिए पूरा ज़ोर लगाया | बाबूजी उन बारह राष्ट्रीय नेताओं में से एक थे जिन्हें अंतरिम सरकार के गठन के लिए लार्ड वावेल ने अगस्त 1946 को आमंत्रित किया था | सितम्बर 1946 में जेनेवा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मलेन में हिस्सा लेने के उपरांत स्वदेश लौट रहे बाबूजी का विमान इराक स्थित बसरा के रेगिस्तान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया | दुर्घटना में बाबूजी को ज्यादा नुकसान नहीं पहुँचा |
आज़ादी के पश्चात्
संपादित करेंवर्ष 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित प्रथम लोकसभा में बाबूजी ने श्रम मंत्री के रूप में देश की सेवा की व अगले तीन दशकों तक कांग्रेस मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ाई | इस महान राजनीतिज्ञ ने भारतीय राजनीति को अपने जीवन के 50 वसंत से भी अधिक दान में दिए हैं | संविधान के निर्माणकर्ताओं में से एक बाबूजी ने सदैव सामाजिक न्याय को सर्वोपरि माना है | पंडित नेहरू का बाबूजी के लिए एक विख्यात कथन कुछ इस प्रकार है – 'समाजवादी विचारधारा वाले व्यक्ति को, देश की साधारण जनता का जीवन स्तर ऊँचा उठाने में बड़े से बड़ा खतरा उठाने में कभी कोई हिचक नहीं होती | श्री जगजीवन राम उन में से एक ऐसे महान व्यक्ति हैं' श्रम, रेलवे, कृषि, संचार व रक्षा, जिस भी मंत्रालय का दायित्व बाबूजी को दिया गया हो उसका सदैव कल्याण ही हुआ है | बाबूजी ने हर मंत्रालय से देश को तरक्की पहुँचाने का अथक प्रयास किया है | स्वतंत्र देश घोषित होने के उपरान्त भारत के निर्माण की पूरी ज़िम्मेदारी नयी सरकार पर थी और इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान बाबूजी का रहा |
श्रम मंत्री के रूप में
संपादित करेंप्रथम सरकार में पूर्वी ग्रामीण शाहाबाद से निर्वाचित सांसद बाबू जगजीवन राम को श्रम मंत्रालय का दायित्व दिया गया | यह शुरु से ही उनका प्रिय विषय रहा क्योंकि चांदवा की माटी में पले-बढ़े बाबूजी का जन्म एक खेतिहर मजदूर के घर हुआ था जहाँ उन्होंने उन विलक्षण भरी परिस्तिथियों को स्वयं झेला है व कलकत्ता में वे मिल-मजदूरों की परिस्तिथि से भी वाकिफ़ थे | श्रम मंत्री के रूप में बाबूजी ने समय द्वारा जांचे-परखे कुछ महत्त्वपूर्ण कानूनों को लागू करने का अहम फैसला लिया | ये कानून मजदूर वर्ग की सबसे बड़ी उम्मीद व आज के युग में सबसे बड़े हथियार के रूप में देखे जाते हैं | ये क़ानून कुछ इस प्रकार थे – 1. इंडस्ट्रियल डिसप्यूट्स एक्ट, 1947 2. मिनिमम वेजेज़ एक्ट, 1948 3. इंडियन ट्रेड यूनियन (संशोधन) एक्ट, 1960 4. पेयमेंट ऑफ़ बोनस एक्ट, 1965
दो अति आवश्यक कानून जिनके बिना आज का व्यापारिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाता - 5. एम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट, 1948 6. प्रोविडेंट फण्ड एक्ट, 1952
दूसरा घर व संचार मंत्री
संपादित करेंबाबूजी संसद भवन को अपना दूसरा घर मानते थे | वर्ष 1952 में पंडित जवाहरलाल नेहरु ने सासाराम से निर्वाचित बाबू जगजीवन राम को संचार मंत्री की उपाधि दी | उस समय संचार मंत्रालय में ही विमानन विभाग भी शामिल था | बाबूजी ने निजी विमान कम्पनियों के राष्ट्रीयकरण की ओर कदम बढ़ाए | परिणामस्वरूप वायु सेना निगम, एयर इंडिया व इंडियन एयरलाइन्स की स्थापना हुई | इस राष्ट्रीयकरण योजना के प्रबल विरोध होने के कारण लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल भी इसे स्थगित करने के पक्ष में खड़े हो गए थे | परन्तु बाबूजी के समझाने पर वे मान गए व विरोध भी लगभग ख़त्म हो गया | गाँवों में डाकखानों का जाल बिछाने की बात भी उन्होंने कही व नेटवर्क के विस्तार का चुनौतीपूर्ण कार्य आरम्भ किया | बाबूजी के इस मेहनती अंदाज़ को भारत वर्ष के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने कुछ इस प्रकार बयान किया है – 'बाबू जगजीवन राम दृढ़ संकल्प कार्यकर्ता तो हैं ही, साथ ही त्याग में भी वे किसी से पीछे नहीं रहे हैं | इनमें धर्मोपासकों का सा उत्साह और लगन है'
रेल मंत्री के रूप में
संपादित करेंसासाराम से पुनर्निर्वाचित बाबूजी को वर्ष 1956-62 तक रेल मंत्रालय की ज़िम्मेदारी उठाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | उन्होंने रेल मंत्री के रूप में भारतीय रेलवेज़ का काया पलट ही कर दिया | बाबूजी ने भारतीय रेलवेज़ को आधुनिक दुनिया के सन्दर्भ में आधुनिक रेलवेज़ के निर्माण की बात कही | उन्होंने ने पांच सालों तक रेलवे किराया एक रुपया भी नहीं बढाया जो कि एक ऐतिहासिक घटना थी | उन्होंने रेलवे अधिकारियों, अफसरों व कर्मचारियों के विकास पर अधिक बल दिया | उपर्युक्त रेखाचित्र से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वर्ष 1956-62 तक का रेलमार्ग निर्माण कार्य किसी और वर्ष की तुलना में अधिक है.|
विविध मंत्रालयों में बाबूजी
संपादित करें1962 के आम चुनावों में सासाराम की जनता ने बाबूजी को पुनः विजय-वरदान दिया व उन्हें परिवहन एवं संचार मंत्रालय का दायित्व दिया गया | परन्तु बाबूजी ने कामराज योजना के तहत इस्तीफ़ा दे दिया व कांग्रेस पार्टी को मज़बूत करने में लग गए | 1966-67 के आम चुनावों में विजयी बाबू जगजीवन राम को उस सरकार में एक बार फिर श्रम मंत्रालय दिया गया | किन्तु एक वर्ष उपरांत ही उन्हें कृषि एवं खाद्य मंत्रालय का दायित्व दिया गया | चीन व पाकिस्तान से जंग के पश्चात भारत में गरीबी व भुखमरी के हालात पैदा हो गए थे तथा अमेरिका से पी.एल. - 480 के तहत मिलने वाला गेहूं व ज्वार खाद्य आपूर्ति का मुख्य स्रोत था | ऐसी कठिन परिस्थिति में बाबूजी ने डॉ॰ नॉर्मन बोरलाग की सहायता से हरित क्रान्ति की और रखी व मात्र दो वर्षों के उपरान्त ही भारत फ़ूड सरप्लस देश बन गया | कृषि एवं खाद्य मंत्रालय में रहते हुए बाबूजी ने देश को भीषण बाढ़ से भी राहत पहुँचाई व भारत को खाद्य संसाधनों में आत्मनिर्भर बनाया | 1970 के आम चुनावों में एक बार फिर बाबूजी की जीत हुई व उन्हें श्रीमती इन्दिरा गाँधी की सरकार में इस बार रक्षा मंत्रालय जैसे अहम् मंत्रालय को अपनी सेवाएँ प्रदान करने का मौका मिला | बाबूजी ने सर्वप्रथम भारत के राजनैतिक मानचित्र को पूर्णतया परिवर्तित कर दिया | भारत-पाकिस्तान की उस अभूतपूर्व जंग में बाबूजी ने देश की जनता से वायदा किया कि ये जंग भारतभूमि के एक सूई की नोक के बराबर तक भाग पर भी नहीं लड़ी जायेगी, और वे इस वायदे पर कायम रहे | उनकी इस महान सेवा के लिए श्री राजीव गाँधी ने कुछ इस प्रकार से अपने विचार व्यक्त किए हैं – 'राष्ट्र को आज़ाद करने में बाबूजी का योगदान बड़ा ही सराहनीय रहा है | देश को अनाज की दृष्टी से आत्म-निर्भर बनाने तथा बांग्लादेश की मुक्ति के युद्ध में उनका योगदान हमेशा याद रखा जायेगा' वर्ष 1974 में बाबूजी ने कृषि एवं सिंचाई विभाग की ज़िम्मेदारी ली व एक नयी प्रणाली 'सार्वजनिक वितरण प्रणाली' की नीव रखी जिसके द्वारा यह सुनिश्चित किया गया कि देश की आम जनता को पर्याप्त मात्रा व कम दाम में खाद्य पदार्थ उपलब्ध हों |
कांग्रेस के आधारस्तंभ
संपादित करेंबाबूजी ने दिसंबर 1885 में बनी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अपनी माँ के समान बताया है व इसकी सेवा में सदैव आगे रहे | बाबूजी वर्ष 1937-77 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे | स्वतन्त्रता प्राप्ति उपरान्त वे कांग्रेस के लिए अपरिहार्य हो गए थे | बाबू जगजीवन राम महात्मा गांधीजी के प्रिय तो थे ही साथ ही पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं श्रीमती इन्दिरा गाँधी जी के सबसे अहम सलाहकारों में से भी एक थे | वर्ष 1966 में माननीय डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद जी के निधनोपरांत कांग्रेस पार्टी का आपसी मतभेदों व सत्ता की लड़ाई के कारण बंटवारा हो गया | जहां एक तरफ नीलम संजीवा रेड्डी, मोरारजी देसाई व कुमारसामी कामराज जैसे दिग्गजों ने अपनी अलग पार्टी की रचना की वहीं श्रीमती इन्दिरा गाँधी, बाबू जगजीवन राम व फकरुद्दीन अली अहमद जैसे आधुनिक सोच के व्यक्ति कांग्रेस पार्टी के साथ खड़े रहे | वर्ष 1969 में बाबूजी निर्विरोध कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में स्वीकारे गए व बाबूजी ने पूरे देश में कांग्रेस पार्टी को मज़बूत करने व उसकी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए पूर्ण प्रयास किया जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी 1971 के आम चुनावों में ऐतिहासिक व प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई | श्रीमती इन्दिरा गांधी ने इस ऐतिहासिक घटना का श्रेय बाबूजी को देते हुए कहा – "बाबू जगजीवन राम भारत के प्रमुख निर्माताओं में से एक है | देश के करोड़ों हरिजन, आदिवासी, पिछड़े व अल्पसंख्यक लोग उन्हें अपना मुक्तिदाता मानते हैं"
आपातकाल व नयी शुरुआत
संपादित करें25 जून 1975 को श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा देश भर में आपातकाल की घोषणा कर दी गयी | इस आपातकाल ने संविधान के मौलिक अधिकारों को सवालों के घेरे में ला दिया | श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने 18 जनवरी 1977 को आम चुनाव की घोषणा तो कर दी थी किन्तु देश को आपातकाल का डर था | इस परिस्थिति से निपटने के लिए बाबूजी ने अपने पद का त्याग कर दिया व कांग्रेस पार्टी से भी इस्तीफ़ा दे दिया | उन्होंने उसी दिवस 'कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी' (सी.एफ़.डी.) नामक एक नयी पार्टी की रचना की | वर्ष 1977 के आम चुनावों में बाबूजी की विजय हुई व उन्हें रक्षा मंत्रालय का दायित्व दिया गया | 25 मार्च 1977 को कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी, जनता पार्टी में सम्मिलित कर ली गयी | जनवरी 1979 में बाबूजी भारत वर्ष के उपप्रधानमंत्री के रूप में घोषित किये गए | वर्ष 1980 में जनता पार्टी का आपसी मनमुटावों के कारण बंटवारा हो गया एवं बाबूजी ने मार्च 1980 में अंततः कांग्रेस (जे) का निर्माण किया | वर्ष 1984 के आम चुनावों में सासाराम की जनता ने अपने विश्वनीय प्रतिनिधि बाबू जगजीवन राम के लिए एक बार पुनः लोकसभा के द्वार खोल दिए |
व्यक्तिगत जीवन
संपादित करेंअगस्त 1933 में उनकी पहली पत्नी की संक्षिप्त बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। जून 1935 में उनका विवाह कानपुर के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. बीरबल की बेटी इंद्राणी देवी से हुआ। इस जोड़े के दो बच्चे थे, सुरेश कुमार जिसके बारे में मेनका गांधी के सूर्या अखबार में बदनामी हुई थी कि उसके 21 वर्षीय महिला के साथ विवाहेतर संबंध थे, सुषमा रानी जो चौधरी प्रीतम सिंह की बेटी थी[1] और मीरा कुमार, पांच साल की -बार संसद सदस्य, जिन्होंने 2004 और 2009 दोनों में अपनी पूर्व सीट सासाराम से जीत हासिल की, और 2009 में लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। सुरेश कुमार से जुड़े 1978 के सेक्स स्कैंडल को भारत का पहला राजनीतिक सेक्स स्कैंडल करार दिया गया था।[2]
अंतिम यात्रा
संपादित करें6 जुलाई 1986, को बाबूजी ने अपनी अंतिम श्वास ली | बाबूजी ने सदैव निडरतापूर्वक अन्याय का सामना किया एवं साहस, ईमानदारी, ज्ञान व अपने अमूल्य अनुभव से सदैव देश की भलाई की | वे स्वतंत्र भारत के उन महान नेताओं में से एक थे जिन्होनें दलित समाज की दशा बदल दी व एक नयी दिशा प्रदान की | इन्होनें सदा एक ही चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया व सदा अपराजित ही रहे | बाबू जगजीवन रामजी ने वर्ष 1936 से वर्ष 1986 तक अर्थात आधी शताब्दी तक राजनीति में सक्रिय रहने का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया |
सन्दर्भ
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- 1 श्री बिहारी लाल हरित की "जग जीवन ज्योति", प्रकाशन वर्ष :1978
- [[2. श्री के. एल. चंचरीक की 'दलित्स इन पोस्ट इंडिपेंडेंस एरा (अ न्यू आइडेंटिटी)', प्रकाशन वर्ष 2010, ISBN : 8183293464.]]
- [[3. डॉ॰ संजय पासवान की 'राष्ट्रनिष्ठ बाबू जगजीवन राम', प्रकाशन वर्ष 2012, ISBN : 8192373827.]]
- [[4. डॉ॰ अशोककुमार वर्मा की 'विजय के सूत्रधार : रक्षामंत्री श्री जगजीवन राम : व्यक्तिव एवं संस्मरण', प्रकाशन वर्ष 1972, ऑनलाइन पुस्तक कड़ी निम्नलिखित है : http://164.100.47.134/plibrary/ebooks/Jagjivan%20Ram/(sno%205)JJram5.pdf[मृत कड़ियाँ]]]
- [[5. डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद की 'श्री जगजीवन राम व उनके विचार', प्रकाशन वर्ष 1955, ऑनलाइन पुस्तक कड़ी निम्नलिखित है :
http://164.100.47.134/plibrary/ebooks/Jagjivan%20Ram/(sno%206)jagjivan%20ram%203.pdf[मृत कड़ियाँ]]]
- [[6. बाबू जगजीवन राम नेशनल फाउंडेशन, ऑनलाइन कड़ी निम्नलिखित है :
https://web.archive.org/web/20160715104523/http://jagjivanramfoundation.nic.in/]]
- [[7. बाबू जगजीवन राम नेशनल फाउंडेशन, 'बाबूजी की जीवनी', ऑनलाइन कड़ी निम्नलिखित है :
https://web.archive.org/web/20160715104656/http://jagjivanramfoundation.nic.in/bio-1.htm ]]
- [[8. बाबू जगजीवन राम नेशनल फाउंडेशन, 'बाबू जगजीवन राम : अ प्रोफाइल', ऑनलाइन कड़ी निम्नलिखित है :
- [[9. बाबू जगजीवन राम, जानकारी वेबसाइट, ऑनलाइन कड़ी निम्नलिखित है :
https://web.archive.org/web/20160807101244/http://www.jagjivanram.com/index.html]]
- [[10. सामाजिक न्याय और अधिकारिकता मंत्रालय, भारत सरकार, पिछड़े वर्गों का कल्याण, प्रभाग के अंतर्गत संगठन, बाबू जगजीवन राम नेशनल फाउंडेशन, ऑनलाइन कड़ी निम्नलिखित है :
https://web.archive.org/web/20160503185047/http://socialjustice.nic.in/babujagjivanram.php]]
- [[11. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, बाबू जगजीवन राम, ऑनलाइन कड़ी निम्नलिखित है :
- [[12. इमरजेंसी : मेमोरीज ऑफ़ द डार्क नाईट, द हिन्दू, बिज़नस लाइन, 25 जून 2005, ऑनलाइन कड़ी निम्नलिखित है :
http://www.thehindubusinessline.com/todays-paper/tp-opinion/article2181274.ece]]
- [[13. 'जगजीवन राम – अ प्रोफाइल', ऑनलाइन कड़ी निम्नलिखित है :
https://web.archive.org/web/20110409163027/http://babujagjivanram.com/PROFILE_Babu_Jagjvan_Ram_n.pdf]]
- [[14. 'भारतीय रेल', मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से, ऑनलाइन कड़ी निम्नलिखित है :
- [[15. बाबू जगजीवन राम का चित्र, 'वंचितों की बुलंद आवाज़', जागरण जंक्शन, 09 अप्रैल 2012, से लिया गया, ऑनलाइन कड़ी निम्नलिखित है :