वामन दास बसु (1867-1930) सिविल सर्जन एवं प्रसिद्ध लेखक थे। उन्होंने उस काल में भी अनेकों विषयों पर पुस्तकें लिखी जिनके बारे मे अन्य लोगों ने एक दशक के बाद लेखन तथा शोध किये। श्रीश चंद्र वसु उनके बड़े भाई थे।

वामनदास वसु

कृतियाँ संपादित करें

  • ‘द सिद्धान्त कौमुदी ऑफ भट्टोजि दीक्षित’, पाणिनि अफिस, इलाहावाद, ई.सं. १९०४–१९०७)
  • History of education in India under the rule of the East India Company (Modern Review, Kolkata, 1922)
  • Story of Satara (1922)
  • Rise of Christian Power in India (1923)
  • The Colonization of India by Europeans (1925)
  • Ruin of Indian Trade and Industry (1930)
  • The Vedantasutras of Badarayan
  • The Bhakti ratnavali
  • The Brihajjatakam of Varah Mihir

इनमें से 'राइज़ ऑफ क्रिश्चियन पॉवर इन इण्डिया' अंग्रेजी शासन के विरोध की भावना से ओतप्रोत है। इसने अपने समय में तहलका मचा दिया था। इसी पुस्तक के आधार पर सुन्दर लाल ने हिन्दी में 'भारत में अंग्रेजी राज' लिखा। इस पुस्तक ने भी तहलका मचाया। स्वदेशी परंपरा के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के स्नातक एवं इतिहासकार जयचन्द्र विद्यालंकार ने अपनी पुस्तक वामनदास वसु को समर्पित की।

वामन दास बसु 1909 से 1919 तक पाणिनि प्रेस से भी जुड़े रहे। इस दौरान 38 पुस्तकें लिखी गयी। इन्होने वेदों का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी किया।

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें