बालकृष्ण भगवन्त बोरकर
बालकृष्ण भगवन्त बोरकर (कोंकणी: बाळकृष्ण भगवन्त शेणय बोरकार) (1910–1984) भारत के गोवा राज्य के एक कवि थे। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह ससया के लिये उन्हें सन् १९८१ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कोंकणी) से सम्मानित किया गया।[1] उन्हें 'बा-कि-बाब' नाम से भी जाना जाता है।
बालकृष्ण भगवन्त बोरकर | |
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जन्म | बोरिम 30 नवम्बर 1910 |
मौत | 8 जुलाई 1984 |
पेशा | स्वतन्त्रता सेनानी, कवि, लेखक, भाषाई कार्यकर्ता |
भाषा | मराठी, कोंकणी |
नागरिकता | भारतीय |
खिताब | पद्मश्री |
बा भा बोरकर ने कम आयु से ही कविताएँ लिखना आरम्भ कर दिया था। वी सा खाण्डेकर, बोरकर की कविताओं के एक प्रारम्भिक समर्थक थे। बोरकर ने 1950 के दशक में गोवा के स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़े और पूना चले गए जहाँ उन्होंने रेडियों सेवा में काम किया। उनका अधिकांश साहित्य मराठी में लिखा हुआ है लेकिन कोंकणी भाषा में भी उन्होंने बहुत साहित्य लिखा था। उन्होंने कहा कि साथ ही एक गद्य लेखक के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। वे गद्य लेखक के रूप में भी उत्कृष्ट लेख रहे थे।
उनके द्वारा लिखी गई कविताएँ महात्मायन (गाँधी जी को समर्पित एक अधूरी कविता) और तमहस्तोत्र (मधुमेह और बुढ़ापे के कारण अन्धेपन की सम्भावना पर) प्रसिद्ध हैं।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Readings of Borkar's poetry (अंग्रेज़ी)
- Recital of Borkar's poetry by his nephew Dr. Ghanashyam Borkar (अंग्रेज़ी)
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.