बालमनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है, जिसमें गर्भावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक के मनुष्य के मानसिक विकास का अध्ययन किया जाता है। जहाँ सामान्य मनोविज्ञान प्रौढ़ व्यक्तियों की मानसिक क्रियाओं का वर्णन करता है तथा उनको वैज्ञानिक ढंग से समझने की चेष्टा करता है, वहीं बालमनोविज्ञान बालकों की मानसिक क्रियाओं का वर्णन करता और उन्हें समझाने का प्रयत्न करता है।

बालमनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक एकीकृत शाखायी विधा है। यद्यपि 19वीं शताब्दी में भी बालकों के भली प्रकार से लालन पालन और शिक्षण के लिए बालमनोविज्ञान की आवश्यकता संसार के प्रमुख विद्वानों ने अनुभव की थी, तथापि इसका अधिक विकास 20वीं शताब्दी में ही, बालशिक्षण के महत्व के साथ-साथ, हुआ है। हरबर्ट स्पेन्सर ने इस बात पर जोर दिया है कि प्रत्येक नागरिक की शिक्षा में बालमनोविज्ञान की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। बालमनोविज्ञान के ज्ञान के बिना सफल गृहस्थ जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता। इसके पूर्व रूसो ने भी 18वीं शताब्दी में बालक की योग्य शिक्षा के लिए बालमनोविज्ञान की आवश्यकता बताई थी और कुछ अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर बालक के मनोविकास के संबंध में अपनी "एमील" नामक पुस्तक में लिखा है, परंतु रूसो जैसे विद्वानों के विचार वैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित नही थे। बालकों के शारीरिक और मानसिक विकास का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन पिछले 80 वर्षों से ही हो रहा है।

बालमनोविज्ञान का प्रारंभिक अध्ययन फ्रांस में हुआ। पेरिस के पीकाट महाशय ने बालमनोविज्ञान के लिए "थॉट ऐंड लैंगुएज ऑव दी चाइल्ड" नामक पुस्तक के रूप में अपनी मौलिक देन दी। इसी समय मंदबुद्धि बच्चों की परख करने के लिए डॉ॰ विने ने बुद्धिमापक परीक्षाएँ निकालीं। बिने ने जिस काम की शुरुआत की वह बालमनोविज्ञान और शिक्षा के विकास के लिए बड़ा महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। बुद्धिमापक परीक्षाओं का अनेक प्रकार का विकास संसार के भिन्न भिन्न देशों में हुआ और इनका उपयोग अब संसार के प्राय: सभी देशों में होने लगा है।

जर्मनी के विद्वानों ने बालक के सीखने की प्रक्रियाओं पर अनेक प्रयोग किए और सीखने की क्रिया के गूढ़ रहस्य को समझाने के मौलिक सिद्धांतों का अन्वेषण किया। इन विद्वानों ने बालमन और पशुमन की सीखने की प्रणाली में समानता दिखलाने की चेष्टा की है और यह बताने का प्रयास किया है कि जो मानसिक विकास बंदर और बनमानुष से प्रारंभ होता है, वह मानव जीवन में जारी रहता है।

यूरोप के विद्वानों की अधिकतर खोजों का उपयोग इंग्लैंड की शिक्षा के क्षेत्र में किया गया है। यहाँ बुद्धिमापक परीक्षाओं का विशेष विकास हुआ। बालक की भिन्न भिन्न योग्यताओं में आपसी संबंध क्या है, यह जानने की चेष्टा की गई। इस दिशा में सीयरमैन और टॉमसन के प्रयोग अत्यंत महत्व के है। इसके अतिरिक्त असाधारण बालकों के विषय में जानकारी की गई और उनकी उचित शिक्षा तथा सुधार के लिए महत्व के सिद्धांत निर्धारित किए गए। डॉ॰ सिल्डवर्ट का अपराधी बालकों का अध्ययन महत्व की देन है। डॉ॰ होमरलेन के अपराधी बालकों के सुधार संबंधी प्रयोग भी महत्व के हैं।

बाल मनोविज्ञान संबंधी व्यापक कार्य अमरीका के विद्वानों के प्रयास से हुआ है। जो काम सीमित रूप से दूसरे दशों में किया गया, वह सुसंगठित और विस्तृत ढंग से अमरीका में हुआ है। अमरीका में आज भी सैकड़ों, विद्वान् बालक के विकास की भिन्न भिन्न दशाओं का अध्ययन अनेक वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में कर रहे हैं। डॉ॰ स्टेनले हाल ने किशोर बालकों का जैसा अध्ययन किया है, वैसा संसार में दूसरी जगह नहीं हुआ। उनकी "ऐडोलेसेंस" नामक पुस्तक बालमनोविज्ञान के लिए महत्व की देन है। आज मैकार्थों, गुडएनफ़, आदि विद्वान् बच्चों के क्रियाकलापों पर अनेक पकार के अध्ययन कर रहे हैं।

बालमनोविज्ञान की विधियाँ

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बालमनोविज्ञान की विधियाँ प्राय: वे ही हैं जो सामान्य मनोविज्ञान की हैं। बालमनोविज्ञान में वाह्य निरीक्षण को अधिक महत्व दिया जाता है। बालकों के व्यवहार का एक निरीक्षण अनायास ढंग से किया जाता है और दूसरा विशेष नियमों के अनुसार। बालमनोविज्ञान के आँकड़ों को प्राप्त करने के लिए जिन उपायों को काम में लाया जाता है उनमें प्रमुख हैं : सुव्यवस्थित वैज्ञानिक निरीक्षण, प्रयोग, जीवनियों का अध्ययन, डायरी लेखन, प्रश्नावली, अंतर्दर्शन और मनोविश्लेषण। बालकों के व्यवहार से संबंधित बाते कई स्थानों से प्राप्त होती हैं- माता पिता और शिक्षक बालकों के व्यवहारों को प्रतिदिन देखते हैं, अतएव उनसे उनके विकास के बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है। यदि उन्हें बालव्यवहार के निरीक्षण की ट्रेनिंग दे दी जाए, तो उनका कथन बहुत उपयोगी हो जाता है। बालमनोविज्ञान के विशेषज्ञ अपने बच्चों के वयवहारों की बचपन से दिनचर्या लिखते रहते हैं। इनकी ये डायरियाँ बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई हैं। कुछ महापुरुषों ने अपने बालकाल संबंधी अनुभव अपनी जीवनियों में लिखे हैं और कुछ लोगों के बचपन की बातें उनके मित्रों ने, अथवा उनपर श्रद्धा या स्नेह करनेवालों ने, लिखी हैं। इन जीवनियों से भी अच्छी सामग्री इकट्ठी हो जाती हैं। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने प्रश्नावलियाँ बनाकर माता पिता तथा शिक्षकों से उपयोगी जानकारी प्राप्त की है। बहुत सी बातें बालकों से प्रश्न पूछकर भी ज्ञात की जाती है। इसके अतिरिक्त विशेष मनोवैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा महत्व के दत्त इकट्ठा किए जाते हैं। मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के लिए विशेष प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता होती है। वर्तमान समय में बालकों की सीखने की प्रक्रिया, उनकी स्मरणशक्ति और बुद्धि के विकास पर अनेक महत्व के प्रयोग हो रहे हैं। बालव्यवहार और बालविकास संबंधी अनेक उपयोगी बातें बच्चों के डाक्टरों से तथा बाल सुधार गृहों से भी मिलती हैं। बच्चों के शारीरिक विकास की बातें विशेषकर डाक्टरों से ही ज्ञात होती हैं।

यह स्पष्ट है कि बालमनोविज्ञान के निर्माण में शिक्षकों, डाक्टरों, समाजशास्त्रियों द्वारा, सभी की सहायता की आवश्यकता होती है। मनोवैज्ञानिकों ने बालकों की योग्यताओं, रुचियों, जीवन के मूल्यों तथा सामाजिकता की बातों की जानकारी करने के लिए विशेष प्रकार के परीक्षण बनाए हैं। बालकों के क्रियाकलापों का विशेष निरीक्षण करने के लिए एक ऐसे कमरे का भी उपयोग किया जाता है जिसमें पारदर्शकता केवल एक ओर होती है। इससे मनोवैज्ञानिक बालक की क्रियाओं को बालक का जानकारी के बिना देखता रहता है। इस प्रकार का देखना बालक के स्वाभाविक व्यवहार के अध्ययन के लिए आवश्यक होता है। बालव्यवहार और उसके भाषाविकास के अध्ययन के लिए चलचित्रों और टेप रिकार्डों का भी उपयोग किया जाता है। इनसे मनोवैज्ञानिक बालक की एक बार की हुई क्रियाओं का, अथवा एक समय की बातचीत का, अपनी फुरसत में अध्ययन कर लेता है। इन प्रयुक्तियों के कारण याददाशत की सामान्य भूलें नहीं होतीं।

बालमनोविज्ञान में बालकों का अध्ययन दो प्रकार से होता है। एक व्यक्तिगत बालकों का, शैशवावस्था से लेकर किशोरावस्था तक विभिन्न परिस्थितियों में और दूसरा कई बालकों का एक ही परिस्थिति में विभिन्न समय में निरीक्षण करके। पहले प्रकार का अध्ययन अक्षांश अध्ययन कहा जाता है और दूसरा दशांश। पहले प्रकार के अध्ययन से जो दत्त इकठ्ठा किए जाते हैं, वे अधिक विश्वसनीय होते हैं, परंतु अनेक बालकों के विकासमय जीवन की बातों की व्यक्तिगत जानकारी करना अत्यंत कठिन होता है। जिन बालकों का अध्ययन किया जाता है, उनका स्थानपरिवर्तन प्राय: हो जाता है, अतएव इस प्रकार दत्त इकठ्ठा करना कठिन होता हैं। अतएव दूसरे प्रकार से ही अध्ययन करके मनोविज्ञान की विशेष प्रगति हुई है। अनेक प्रकार के प्रयोग कई बालकों को एक ही जगह पर लेकर किए जाते हैं। विभिन्न अवस्थाओं में बालकों का निरीक्षण तथा उनपर प्रयोग करके वैज्ञानिक दत्त इकठ्ठे किए जाते हैं। इस प्रकार संपूर्ण बालविकास का चित्र हमारे सामने आता है। कुछ अधूरी बातों की पूर्ति कल्पना से कर ली जाती है।

विकासात्मक मनोविज्ञान

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विकासात्मक मनोविज्ञान के अंतर्गत मानव विकास की आरंभिक प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है। जी. स्टेनली हाल, ज्याँ पियाज एवं अन्ना फ्रायड प्रभृति बालमनोवैज्ञानिकों की सामान्य धारणा है कि बालकों के मनोभावों पर परिवेश का महत्वपूर्ण एवं निर्णायक प्रभाव रहता है। बच्चे विचारों से कहीं ज्यादा आचार से प्रभावित होते हैं और आचार परिवेशगत भौतिक स्थितियों से।

बालविकास

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विस्तृत लेख बालविकास बाल मनोविज्ञान की उपयोगिता एवम महत्व (Utility and Importance of Child Psychology) 1- बाल मनोविज्ञान के द्वारा बालकों के स्वभाव एवम विकास को समझने के बाद उनको शिक्षित करने की प्रक्रिया सरल हो जाती है | बाल मनोविज्ञान बालकों के व्यक्तित्व-विकास को समझने में सहायक होता है| 2-बच्चों को समय समय पर निर्देशन (Direction)की आवश्यक्ता होती है |इस निर्देशन के द्वारा ही बालकों में उनकी रुचियों के अनुरूप विभिन्न कौशलों का विकास किया जा सकता है| बाल मनोविज्ञान की सहायता के बिना बाल निर्देशन संभव नही है | 3-बाल मनोविज्ञान के जरिये बालक के व्यक्तित्व का अध्ययन कर उसके भविष्य के बारे में बताया जा सकता है, एवम आवश्यकता पड़ने पर उसे बेहतर भविष्य के लिए सलाह दी जा सकती है |बाल मनोविज्ञान का अध्ययन प्राथमिक शिक्षकों के लिए अति आवश्यक है,ताकि वे बालकों को सही तरीके से पढ़ा सकें|

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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