मनोविज्ञान वह शैक्षिक और अनुप्रयोगात्मक विद्या है जो प्राणी (मनुष्य, पशु आदि) के मानसिक प्रक्रियाओं, अनुभवों तथा व्यक्त व अव्यक्त दोनों प्रकार के व्यवहार का एक क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक अध्ययन करती है।[1] दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो क्रमबद्ध रूप से प्रेक्षणीय व्यवहार का अध्ययन करता है तथा प्राणी के भीतर के मानसिक एवं दैहिक प्रक्रियाओं जैसे - चिन्तन, भाव आदि तथा वातावरण की घटनाओं के साथ उनका संबंध जोड़कर अध्ययन करता है। इस परिप्रेक्ष्य में मनोविज्ञान को व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन का विज्ञान कहा गया है। 'व्यवहार' में मानव व्यवहार तथा पशु व्यवहार दोनों ही सम्मिलित होते हैं। मानसिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत संवेदन, अवधान, प्रत्यक्षण, सीखना (अधिगम), स्मृति, चिन्तन आदि आते हैं।

मनोविज्ञान अनुभव का विज्ञान है। इसका उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया के तत्त्वों का विश्लेषण, उनके परस्पर संबंधों का स्वरूप तथा उन्हें निर्धारित करनेवाले नियमों का पता लगाना है।

परिभाषाएँ

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मनोविज्ञान की परिभाषाएँ :-

  • वाटसन के अनुसार, मनोविज्ञान, व्यवहार का निश्चित या शुद्ध विज्ञान है।
  • मैक्डूगल के अनुसार, मनोविज्ञान, आचरण एवं व्यवहार का यथार्थ विज्ञान है
  • वुडवर्थ के अनुसार, मनोविज्ञान, वातावरण के सम्पर्क में होने वाले मानव व्यवहारों का विज्ञान है।
  • क्रो एण्ड क्रो के अनुसार, मनोविज्ञान मानव–व्यवहार और मानव सम्बन्धों का अध्ययन है।
  • बोरिंग के अनुसार, मनोविज्ञान मानव प्रकृति का अध्ययन है।
  • स्किनर के अनुसार, मनोविज्ञान, व्यवहार और अनुभव का विज्ञान है।
  • मन के अनुसार, आधुनिक मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यवहार की वैज्ञानिक खोज से है।
  • गैरिसन व अन्य के अनुसार, मनोविज्ञान का सम्बन्ध प्रत्यक्ष मानव – व्यवहार से है।
  • गार्डनर मर्फी के अनुसार, मनोविज्ञान वह विज्ञान है, जो जीवित व्यक्तियों का उनके वातावरण के प्रति अनुक्रियाओं का अध्ययन करता है।
  • स्टीफन के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षणिक विकास का क्रमिक अध्ययन है।
  • ब्राउन के अनुसार, शिक्षा के द्वारा मानव व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है तथा मानव व्यवहार का अध्ययन ही मनोविज्ञान कहलाता है।
  • क्रो एण्ड क्रो के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान, व्यक्ति के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक के अनुभवों का वर्णन तथा व्याख्या करता है।
  • स्किनर के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत शिक्षा से सम्बन्धित सम्पूर्ण व्यवहार और व्यक्तित्व आ जाता है।
  • कॉलसनिक के अनुसार, मनोविज्ञान के सिद्धान्तों व परिणामों का शिक्षा के क्षेत्र में अनुप्रयोग ही शिक्षा मनोविज्ञान कहलाता है।
  • सारे व टेलफोर्ड के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य सम्बन्ध सीखने से है। यह मनोविज्ञान का वह अंग है जो शिक्षा के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की वैज्ञानिक खोज से विशेष रूप से सम्बन्धित है।
  • किल्फोर्ड के अनुसार, बालक के विकास का अध्ययन हमें यह जानने योग्य बनाता है कि क्या पढ़ायें और कैसे पढाये।
  • स्किनर के अनुसार, मानव व्यवहार एवं अनुभव से सम्बंधित निष्कर्षो का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग शिक्षा मनोविज्ञान कहलाता है।
  • जे.एम. स्टीफन के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक विकास का क्रमिक अध्ययन है।
  • ट्रो के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों के मनोविज्ञान पक्षों का अध्ययन है।
  • बी एन झा के अनुसार, शिक्षा की प्रकिया पूर्णतया मनोविज्ञान की कृपा पर निर्भर है।
  • हिमबाला के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिवेश में व्यक्ति के विकास का व्यवस्थित अध्ययन है।
  • पेस्टोलोजी के अनुसार, शिक्षा मनुष्य की क्षमताओं का स्वाभाविक, प्रगतिशील तथा विरोधहीन विकास है।
  • जॉन डीवी के अनुसार, शिक्षा मनुष्य की क्षमताओं का विकास है , जिनकी सहायता से वह अपने वातावरण पर नियंत्रण करता हुआ अपनी संभावित उन्नति को प्राप्त करता है।
  • जॉन एफ.ट्रेवर्स के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान वह विज्ञान है ,जिसमे छात्र , शिक्षण तथा अध्यापन का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है।
  • स्किनर के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान का उद्देश्य शैक्षिक परिस्थति के मूल्य एवं कुशलता में योगदान देना है।
  • बलविंदर के अनुसार , किसी मानव मस्तिष्क में किसी जीव या प्राणी के संदर्भ में आए विचारों का मानव मस्तिष्क द्वारा निकाले गए निष्कर्षों को परिभाषित करना मनोविज्ञान कहलाता हैं

प्राक्-वैज्ञानिक काल (pre-scientific period) में मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र (Philosophy) की एक शाखा था। जब विल्हेल्म वुण्ट (Wilhelm Wundt) ने १८७९ में मनोविज्ञान की पहली प्रयोगशाला खोली, मनोविज्ञान दर्शनशास्त्र के चंगुल से निकलकर एक स्वतंत्र विज्ञान का दर्जा पा सकने में समर्थ हो सका।

मनोविज्ञान पर दर्शनशास्त्र का प्रभाव

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मनोविज्ञान पर वैज्ञानिक प्रवृत्ति के साथ-साथ दर्शनशास्त्र का भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। वास्तव में वैज्ञानिक परंपरा बाद में आरंभ हुई पहले तो प्रयोग या पर्यवेक्षण के स्थान पर विचारविनिमय तथा चिंतन समस्याओं को सुलझाने की सर्वमान्य विधियाँ थीं मनोवैज्ञानिक समस्याओं को दर्शन के परिवेश में प्रतिपादित करनेवाले विद्वानों में से कुछ के नाम उल्लेखनीय हैं।

डेकार्ट (1596 - 1650) ने मनुष्य तथा पशुओं में भेद करते हुए बताया कि मनुष्यों में आत्मा होती है जबकि पशु केवल मशीन की भाँति काम करते हैं। आत्मा के कारण मनुष्य में इच्छाशक्ति होती है। पिट्यूटरी ग्रंथि पर शरीर तथा आत्मा परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। डेकार्ट के मतानुसार मनुष्य के कुछ विचार ऐसे होते हैं जिन्हे जन्मजात कहा जा सकता है। उनका अनुभव से कोई संबंध नहीं होता। लायबनीत्स (1646 - 1716) के मतानुसार संपूर्ण पदार्थ "मोनैड" इकाई से मिलकर बना है। उन्होंने चेतनावस्था को विभिन्न मात्राओं में विभाजित करके लगभग दो सौ वर्ष बाद आनेवाले फ्रायड के विचारों के लिये एक बुनियाद तैयार की। लॉक (1632-1704) का अनुमान था कि मनुष्य के स्वभाव को समझने के लिये विचारों के स्रोत के विषय में जानना आवश्यक है। उन्होंने विचारों के परस्पर संबंध विषयक सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए बताया कि विचार एक तत्व की तरह होते हैं और मस्तिष्क उनका विश्लेषण करता है। उनका कहना था कि प्रत्येक वस्तु में प्राथमिक गुण स्वयं वस्तु में निहित होते हैं। गौण गुण वस्तु में निहित नहीं होते वरन् वस्तु विशेष के द्वारा उनका बोध अवश्य होता है। बर्कले (1685-1753) ने कहा कि वास्तविकता की अनुभूति पदार्थ के रूप में नहीं वरन् प्रत्यय के रूप में होती है। उन्होंने दूरी की संवेदना के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अभिबिंदुता धुँधलेपन तथा स्वत: समायोजन की सहायता से हमें दूरी की संवेदना होती है। मस्तिष्क और पदार्थ के परस्पर संबंध के विषय में लॉक का कथन था कि पदार्थ द्वारा मस्तिष्क का बोध होता है। ह्यूम (1711-1776) ने मुख्य रूप से "विचार" तथा "अनुमान" में भेद करते हुए कहा कि विचारों की तुलना में अनुमान अधिक उत्तेजनापूर्ण तथा प्रभावशाली होते हैं। विचारों को अनुमान की प्रतिलिपि माना जा सकता है। ह्यूम ने कार्य-कारण-सिद्धांत के विषय में अपने विचार स्पष्ट करते हुए आधुनिक मनोविज्ञान को वैज्ञानिक पद्धति के निकट पहुँचाने में उल्लेखनीय सहायता प्रदान की। हार्टले (1705-1757) का नाम दैहिक मनोवैज्ञानिक दार्शनिकों में रखा जा सकता है। उनके अनुसार स्नायु-तंतुओं में हुए कंपन के आधार पर संवेदना होती है। इस विचार की पृष्ठभूमि में न्यूटन के द्वारा प्रतिपादित तथ्य थे जिनमें कहा गया था कि उत्तेजक के हटा लेने के बाद भी संवेदना होती रहती है। हार्टले ने साहचर्य विषयक नियम बताते हुए सान्निध्य के सिद्धांत पर अधिक जोर दिया।

हार्टले के बाद लगभग 70 वर्ष तक साहचर्यवाद के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ। इस बीच स्काटलैंड में रीड (1710-1796) ने वस्तुओं के प्रत्यक्षीकरण का वर्णन करते हुए बताया कि प्रत्यक्षीकरण तथा संवेदना में भेद करना आवश्यक है। किसी वस्तु विशेष के गुणों की संवेदना होती है जबकि उस संपूर्ण वस्तु का प्रत्यक्षीकरण होता है। संवेदना केवल किसी वस्तु के गुणों तक ही सीमित रहती है, किंतु प्रत्यक्षीकरण द्वारा हमें उस पूरी वस्तु का ज्ञान होता है। इसी बीच फ्रांस में कांडिलैक (1715-1780) ने अनुभववाद तथा ला मेट्री ने भौतिकवाद की प्रवृत्तियों की बुनियाद डाली। कांडिलैंक का कहना था कि संवेदन ही संपूर्ण ज्ञान का "मूल स्त्रोत" है। उन्होंने लॉक द्वारा बताए गए विचारों अथवा अनुभवों को बिल्कुल आवश्यक नहीं समझा। ला मेट्री (1709-1751) ने कहा कि विचार की उत्पत्ति मस्तिष्क तथा स्नायुमंडल के परस्पर प्रभाव के फलस्वरूप होती है। डेकार्ट की ही भाँति उन्होंने भी मनुष्य को एक मशीन की तरह माना। उनका कहना था कि शरीर तथा मस्तिष्क की भाँति आत्मा भी नाशवान् है। आधुनिक मनोविज्ञान में प्रेरकों की बुनियाद डालते हुए ला मेट्री ने बताया कि सुखप्राप्ति ही जीवन का चरम लक्ष्य है।

जेम्स मिल (1773-1836) तथा बाद में उनके पुत्र जान स्टुअर्ट मिल (1806-1873) ने मानसिक रसायनी का विकास किया। इन दोनों विद्वानों ने साहचर्यवाद की प्रवृत्ति को औपचारिक रूप प्रदान किया और वुंट के लिये उपयुक्त पृष्ठभूमि तैयार की। बेन (1818-1903) के बारे में यही बात लागू होती है। कांट ने समस्याओं के समाधान में व्यक्तिनिष्ठावाद की विधि अपनाई कि बाह्य जगत् के प्रत्यक्षीकरण के सिद्धांत में जन्मजातवाद का समर्थन किया। हरबार्ट (1776-1841) ने मनोविज्ञान को एक स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूण्र योगदान किया। उनके मतानुसार मनोविज्ञान अनुभववाद पर आधारित एक तात्विक, मात्रात्मक तथा विश्लेषात्मक विज्ञान है। उन्होंने मनोविज्ञान को तात्विक के स्थान पर भौतिक आधार प्रदान किया और लॉत्से (1817-1881) ने इसी दिशा में ओर आगे प्रगति की।

मनोवैज्ञानिक समस्याओं के वैज्ञानिक अध्ययन का आरम्भ

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मनोवैज्ञानिक समस्याओं के वैज्ञानिक अध्ययन का शुभारंभ उनके औपचारिक स्वरूप आने के बाद पहले से हो चुका था। सन् 1834 में वेबर ने स्पर्शेन्द्रिय संबंधी अपने प्रयोगात्मक शोधकार्य को एक पुस्तक रूप में प्रकाशित किया। सन् 1831 में फेक्नर स्वयं एकदिश धारा विद्युत् के मापन के विषय पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित कर चुके थे। कुछ वर्षों बाद सन् 1847 में हेल्मो ने ऊर्जा सरंक्षण पर अपना वैज्ञानिक लेख लोगों के सामने रखा। इसके बाद सन् 1856 ई, 1860 ई तथा 1866 ईदृ में उन्होंने "आप्टिक" नामक पुस्तक तीन भागों में प्रकाशित की। सन् 1851 ई तथा सन् 1860 ई में फेक्नर ने भी मनोवैज्ञानिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण ग्रंथ (ज़ेंड आवेस्टा तथा एलिमेंटे डेयर साईकोफ़िजिक प्रकाशित किए।

सन् 1858 ई में वुंट हाइडलवर्ग विश्वविद्यालय में चिकित्सा विज्ञान में डाक्टर की उपधि प्राप्त कर चुके थे और सहकारी पद पर क्रियाविज्ञान के क्षेत्र में कार्य कर रहे थे। उसी वर्ष वहाँ बॉन से हेल्मोल्त्स भी आ गए। वुंट के लिये यह संपर्क अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि इसी के बाद उन्होंने क्रियाविज्ञान छोड़कर मनोविज्ञान को अपना कार्यक्षेत्र बनाया।

वुंट ने अनगिनत वैज्ञानिक लेख तथा अनेक महत्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित करके मनोविज्ञान को एक धुँधले एवं अस्पष्ट दार्शनिक वातावरण से बाहर निकाला। उसने केवल मनोवैज्ञानिक समस्याओं को वैज्ञानिक परिवेश में रखा और उनपर नए दृष्टिकोण से विचार एवं प्रयोग करने की प्रवृत्ति का उद्घाटन किया। उसके बाद से मनोविज्ञान को एक विज्ञान माना जाने लगा। तदनंतर जैसे-जैसे मरीज वैज्ञानिक प्रक्रियाओं पर प्रयोग किए गए वैसे-वैसे नई नई समस्याएँ सामने आईं।

आधुनिक मनोविज्ञान आधुनिक मनोविज्ञान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में इसके दो सुनिश्चित रूप दृष्टिगोचर होते हैं। एक तो वैज्ञानिक अनुसंधानों तथा आविष्कारों द्वारा प्रभावित वैज्ञानिक मनोविज्ञान तथा दूसरा दर्शनशास्त्र द्वारा प्रभावित दर्शन मनोविज्ञान। वैज्ञानिक मनोविज्ञान 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से आरंभ हुआ है। सन् 1860 ई में फेक्नर (1801-1887) ने जर्मन भाषा में "एलिमेंट्स आव साइकोफ़िज़िक्स" (इसका अंग्रेजी अनुवाद भी उपलब्ध है) नामक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें कि उन्होंने मनोवैज्ञानिक समस्याओं को वैज्ञानिक पद्धति के परिवेश में अध्ययन करने की तीन विशेष प्रणालियों का विधिवत् वर्णन किया: मध्य त्रुटि विधि, न्यूनतम परिवर्तन विधि तथा स्थिर उत्तेजक भेद विधि। आज भी मनोवैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में इन्हीं प्रणालियों के आधार पर अनेक महत्वपूर्ण अनुसंधान किए जाते हैं।

वैज्ञानिक मनोविज्ञान में फेक्नर के बाद दो अन्य महत्वपूर्ण नाम है: हेल्मोलत्स (1821-1894) तथा विल्हेम वुण्ट (1832-1920)। हेल्मोलत्स ने अनेक प्रयोगों द्वारा दृष्टीर्द्रिय विषयक महत्वपूर्ण नियमों का प्रतिपादन किया। इस संदर्भ में उन्होंने प्रत्यक्षीकरण पर अनुसंधान कार्य द्वारा मनोविज्ञान का वैज्ञानिक अस्तित्व ऊपर उठाया। वुंट का नाम मनोविज्ञान में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने सन् 1879 ई में लिपज़िग विश्वविद्यालय (जर्मनी) में मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला स्थापित की।[2] मनोविज्ञान का औपचारिक रूप परिभाषित किया। लाइपज़िग की प्रयोगशाला में वुंट तथा उनके सहयोगियों ने मनोविज्ञान की विभिन्न समस्याओं पर उल्लेखनीय प्रयोग किए, जिसमें समय-अभिक्रिया विषयक प्रयोग विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।

क्रियाविज्ञान के विद्वान् हेरिंग (1834-1918), भौतिकी के विद्वान् मैख (1838-1916) तथा जी ई म्यूलर (1850 से 1934) के नाम भी उल्लेखनीय हैं। हेरिंग घटना-क्रिया-विज्ञान के प्रमुख प्रवर्तकों में से थे और इस प्रवृत्ति का मनोविज्ञान पर प्रभाव डालने का काफी श्रेय उन्हें दिया जा सकता है। मैख ने शारीरिक परिभ्रमण के प्रत्यक्षीकरण पर अत्यंत प्रभावशाली प्रयोगात्मक अनुसंधान किए। उन्होंने साथ ही साथ आधुनिक प्रत्यक्षवाद की बुनियाद भी डाली। जी ई म्यूलर वास्तव में दर्शन तथा इतिहास के विद्यार्थी थे किंतु फेक्नर के साथ पत्रव्यवहार के फलस्वरूप उनका ध्यान मनोदैहिक समस्याओं की ओर गया। उन्होंने स्मृति तथा दृष्टींद्रिय के क्षेत्र में मनोदैहिकी विधियों द्वारा अनुसंधान कार्य किया। इसी संदर्भ में उन्होंने "जास्ट नियम" का भी पता लगाया अर्थात् अगर समान शक्ति के दो साहचर्य हों तो दुहराने के फलस्वरूप पुराना साहचर्य नए की अपेक्षा अधिक दृढ़ हो जाएगा ("जास्ट नियम" म्यूलर के एक विद्यार्थी एडाल्फ जास्ट के नाम पर है)।

सम्प्रदाय

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व्यवहार विषयक नियमों की खोज ही मनोविज्ञान का मुख्य ध्येय था। सैद्धांतिक स्तर पर विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए। मनोविज्ञान के क्षेत्र में सन् 1912 ई के आसपास संरचनावाद, क्रियावाद, व्यवहारवाद, गेस्टाल्टवाद तथा मनोविश्लेषण आदि मुख्य मुख्य शाखाओं का विकास हुआ। इन सभी वादों के प्रवर्तक इस विषय में एकमत थे कि मनुष्य के व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन ही मनोविज्ञान का उद्देश्य है। उनमें परस्पर मतभेद का विषय था कि इस उद्देश्य को प्राप्त करने का सबसे अच्छा ढंग कौन सा है। सरंचनावाद के अनुयायियों का मत था कि व्यवहार की व्याख्या के लिये उन शारीरिक संरचनाओं को समझना आवश्यक है जिनके द्वारा व्यवहार संभव होता है। क्रियावाद के माननेवालों का कहना था कि शारीरिक संरचना के स्थान पर प्रेक्षण योग्य तथा दृश्यमान व्यवहार पर अधिक जोर होना चाहिए। इसी आधार पर बाद में वाटसन ने व्यवहारवाद की स्थापना की। गेस्टाल्टवादियों ने प्रत्यक्षीकरण को व्यवहारविषयक समस्याओं का मूल आधार माना। व्यवहार में सुसंगठित रूप से व्यवस्था प्राप्त करने की प्रवृत्ति मुख्य है, ऐसा उनका मत था। फ्रायड ने मनोविश्लेषणवाद की स्थापना द्वारा यह बताने का प्रयास किया कि हमारे व्यवहार के अधिकांश कारण अचेतन प्रक्रियाओं द्वारा निर्धारित होते हैं।

मनोविज्ञान के सम्प्रदाय

आधुनिक मनोविज्ञान में इन सभी "वादों" का अब एकमात्र ऐतिहासिक महत्व रह गया है। इनके स्थान पर मनोविज्ञान में अध्ययन की सुविधा के लिये विभिन्न शाखाओं का विभाजन हो गया है।

प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में मुख्य रूप से उन्हीं समस्याओं का मनोवैज्ञानिक विधि से अध्ययन किया जाने लगा जिन्हें दार्शनिक पहले चिंतन अथवा विचारविमर्श द्वारा सुलझाते थे। अर्थात् संवेदना तथा प्रत्यक्षीकरण। बाद में इसके अंतर्गत सीखने की प्रक्रियाओं का अध्ययन भी होने लगा। प्रयोगात्मक मनोविज्ञान, आधुनिक मनोविज्ञान की प्राचीनतम शाखा है।

मनुष्य की अपेक्षा पशुओं को अधिक नियंत्रित परिस्थितियों में रखा जा सकता है, साथ ही साथ पशुओं की शारीरिक रचना भी मनुष्य की भाँति जटिल नहीं होती। पशुओं पर प्रयोग करके व्यवहार संबंधी नियमों का ज्ञान सुगमता से हो सकता है। सन् 1912 ई के लगभग थॉर्नडाइक ने पशुओं पर प्रयोग करके तुलनात्मक अथवा पशु मनोविज्ञान का विकास किया। किंतु पशुओं पर प्राप्त किए गए परिणाम कहाँ तक मनुष्यों के विषय में लागू हो सकते हैं, यह जानने के लिये विकासात्मक क्रम का ज्ञान भी आवश्यक था। इसके अतिरिक्त व्यवहार के नियमों का प्रतिपादन उसी दशा में संभव हो सकता है जब कि मनुष्य अथवा पशुओं के विकास का पूर्ण एवं उचित ज्ञान हो। इस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए विकासात्मक मनोविज्ञान का जन्म हुआ। सन् 1912 ई के कुछ ही बाद मैक्डूगल (1871-1938) के प्रयत्नों के फलस्वरूप समाज मनोविज्ञान की स्थापना हुई, यद्यपि इसकी बुनियाद समाज वैज्ञानिक हरबर्ट स्पेंसर (1820-1903) द्वारा बहुत पहले रखी जा चुकी थी। धीरे-धीरे ज्ञान की विभिन्न शाखाओं पर मनोविज्ञान का प्रभाव अनुभव किया जाने लगा। आशा व्यक्त की गई कि मनोविज्ञान अन्य विषयों की समस्याएँ सुलझाने में उपयोगी हो सकता है। साथ ही साथ, अध्ययन की जानेवाली समस्याओं के विभिन्न पक्ष सामने आए। परिणामस्वरूप मनोविज्ञान की नई-नई शाखाओं का विकास होता गया। इनमें से कुछ ने अभी हाल में ही जन्म लिया है, जिनमें प्रेरक मनोविज्ञान, सत्तात्मक मनोविज्ञान, गणितीय मनोविज्ञान विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

मनोविज्ञान की मूलभूत एवं अनुप्रयुक्त - दोनों प्रकार की शाखाएं हैं। इसकी महत्वपूर्ण शाखाएं सामाजिक एवं पर्यावरण मनोविज्ञान, संगठनात्मक व्यवहार/मनोविज्ञान, क्लीनिकल (निदानात्मक) मनोविज्ञान, मार्गदर्शन एवं परामर्श, औद्योगिक मनोविज्ञान, विकासात्मक, आपराधिक, प्रायोगिक परामर्श, पशु मनोविज्ञान आदि है। अलग-अलग होने के बावजूद ये शाखाएं परस्पर संबद्ध हैं।

नैदानिक मनोविज्ञान - न्यूरोटिसिज्म, साइकोन्यूरोसिस, साइकोसिस जैसी क्लीनिकल समस्याओं एवं शिजोफ्रेनिया, हिस्टीरिया, ऑब्सेसिव-कंपलसिव विकार जैसी समस्याओं के कारण क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। ऐसे मनोवज्ञानिक का प्रमुख कार्य रोगों का पता लगाना और निदानात्मक तथा विभिन्न उपचारात्मक तकनीकों का इस्तेमाल करना है।

विकास मनोविज्ञान में जीवन भर घटित होनेवाले मनोवैज्ञानिक संज्ञानात्मक तथा सामाजिक घटनाक्रम शामिल हैं। इसमें शैशवावस्था, बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था के दौरान व्यवहार या वयस्क से वृद्धावस्था तक होने वाले परिवर्तन का अध्ययन होता है। पहले इसे बाल मनोविज्ञान भी कहते थे।

आपराधिक मनोविज्ञान चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है, जहां अपराधियों के व्यवहार विशेष के संबंध में कार्य किया जाता है। अपराध शास्त्र, मनोविज्ञान आपराधिक विज्ञान की शाखा है, जो अपराध तथा संबंधित तथ्यों की तहकीकात से जुड़ी है।

पशु मनोविज्ञान एक अद्भुत शाखा है।

मनोविज्ञान की प्रमुख शाखाएँ हैं -

मनोविज्ञान का स्वरूप एवं कार्यक्षेत्र

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मनोविज्ञान के कार्यक्षेत्र को सही ढंग से समझने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण श्रेणी वह श्रेणी है जिससे यह पता चलता है कि मनोविज्ञानी क्या चाहते हैं ? किये गये कार्य के आधार पर मनोविज्ञानियों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है:

  • पहली श्रेणी में उन मनोविज्ञानियों को रखा जाता है जो शिक्षण कार्य में व्यस्त हैं,
  • दूसरी श्रेणी में उन मनोवैज्ञानियों को रखा जाता है जो मनोविज्ञानिक समस्याओं पर शोध करते हैं तथा
  • तीसरी श्रेणी में उन मनोविज्ञानियों को रखा जाता है जो मनोविज्ञानिक अध्ययनों से प्राप्त तथ्यों के आधार पर कौशलों एवं तकनीक का उपयोग वास्तविक परिस्थिति में करते हैं।

इस तरह से मनोविज्ञानियों का तीन प्रमुख कार्यक्षेत्र है—शिक्षण (teaching), शोध (research) तथा उपयोग (application)। इन तीनों कार्यक्षेत्रों से सम्बन्धित मुख्य तथ्यों का वर्णन निम्नांकित है—

शैक्षिक क्षेत्र (Academic areas)

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शिक्षण तथा शोध मनोविज्ञान का एक प्रमुख कार्य क्षेत्र है। इस दृष्टिकोण से इस क्षेत्र के तहत निम्नांकित शाखाओं में मनोविज्ञानी अपनी अभिरुचि दिखाते हैं—

(1) जीवन-अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान (Life-span development Psychology)
(2) मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Human experimental Psychology)
(3) पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Animal experimental Psychology)
(4) दैहिक मनोविज्ञान (Psychological Psychology)
(5) परिणात्मक मनोविज्ञान (Quantitative Psychology)
(6) व्यक्तित्व मनोविज्ञान (Personality Psychology)
(7) समाज मनोविज्ञान (Social Psychology)
(8) शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology)
(9) संज्ञात्मक मनोविज्ञान (Cognitive Psychology)
(10) असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal Psychology)

जीवन-अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान

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बाल मनोविज्ञान का प्रारंभिक संबंध मात्र बाल विकास के अध्ययन से था परंतु हाल के वर्षों में विकासात्मक मनोविज्ञान में किशोरावस्था, वयस्कावस्था तथा वृद्धावस्था के अध्ययन पर भी बल डाला गया है। यही कारण है कि इसे 'जीवन अवधि विकासात्मक मनोविज्ञान' कहा जाता है। विकासात्मक मनोविज्ञान में मनोविज्ञान मानव के लगभग प्रत्येक क्षेत्र जैसे—बुद्धि, पेशीय विकास, सांवेगिक विकास, सामाजिक विकास, खेल, भाषा विकास का अध्ययन विकासात्मक दृष्टिकोण से करते हैं। इसमें कुछ विशेष कारक जैसे—आनुवांशिकता, परिपक्वता, पारिवारिक पर्यावरण, सामाजिक-आर्थिक अन्तर का व्यवहार के विकास पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन किया जाता है। कुल मनोविज्ञानियों का 5% मनोवैज्ञानिक विकासात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत हैं।

मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान

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मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ मानव के उन सभी व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है जिस पर प्रयोग करना सम्भव है। सैद्धान्तिक रूप से ऐसे तो मानव व्यवहार के किसी भी पहलू पर प्रयोग किया जा सकता है परंतु मनोविज्ञानी उसी पहलू पर प्रयोग करने की कोशिश करते हैं जिसे पृथक किया जा सके तथा जिसके अध्ययन की प्रक्रिया सरल हो। इस तरह से दृष्टि, श्रवण, चिन्तन, सीखना आदि जैसे व्यवहारों का प्रयोगात्मक अध्ययन काफी अधिक किया गया है। मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में उन मनोवैज्ञानिकों ने भी काफी अभिरुचि दिखलाया है जिन्हें प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का संस्थापक कहा जाता है। इनमें विलियम वुण्ट, टिचेनर तथा वाटसन आदि के नाम अधिक प्रसिद्ध हैं।

पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान

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मनोविज्ञान का यह क्षेत्र मानव प्रयोगात्मक विज्ञान (Human experimental Psychology) के समान है। सिर्फ अन्तर इतना ही है कि यहाँ प्रयोग पशुओं जैसे—चूहों, बिल्लियों, कुत्तों, बन्दरों, वनमानुषों आदि पर किया जाता है। पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में अधिकतर शोध सीखने की प्रक्रिया तथा व्यवहार के जैविक पहलुओं के अध्ययन में किया गया है। पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में स्कीनर, गथरी, पैवलव, टॉलमैन आदि का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। सच्चाई यह है कि सीखने के आधुनिक सिद्घान्त तथा मानव व्यवहार के जैविक पहलू के बारे में हम आज जो कुछ भी जानते हैं, उसका आधार पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान ही है। इस मनोविज्ञान में पशुओं के व्यवहारों को समझने की कोशिश की जाती है। कुछ लोगों का मत है कि यदि मनोविज्ञान का मुख्य संबंध मानव व्यवहार के अध्ययन से है तो पशुओं के व्यवहारों का अध्ययन करना कोई अधिक तर्कसंगत बात नहीं दिखता। परंतु मनोविज्ञानियों के पास कुछ ऐसी बाध्यताएँ हैं जिनके कारण वे पशुओं के व्यवहार में अभिरुचि दिखलाते हैं। जैसे पशु व्यवहार का अध्ययन कम खर्चीला होता है। फिर कुछ ऐसे प्रयोग हैं जो मनुष्यों पर नैतिक दृष्टिकोण से करना संभव नहीं है तथा पशुओं का जीवन अवधि (life span) का लघु होना प्रमुख ऐसे कारण हैं। मानव एवं पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में कुछ मनोविज्ञानियों की संख्या का करीब 14% मनोविज्ञानी कार्यरत है।

दैहिक मनोविज्ञान

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दैहिक मनोविज्ञान में मनोविज्ञानियों का कार्यक्षेत्र प्राणी के व्यवहारों के दैहिक निर्धारकों (Physical determinants) तथा उनके प्रभावों का अध्ययन करना है। इस तरह के दैहिक मनोविज्ञान की एक ऐसी शाखा है जो जैविक विज्ञान (biological science) से काफी जुड़ा हुआ है। इसे मनोजीवविज्ञान (Psychobiology) भी कहा जाता है। आजकल मस्तिष्कीय कार्य (brain functioning) तथा व्यवहार के संबंधों के अध्ययन में मनोवैज्ञानिकों की रुचि अधिक हो गयी है। इससे एक नयी अन्तरविषयक विशिष्टता (interdisplinary specialty) का जन्म हुआ है जिसे ‘न्यूरोविज्ञान’ (neuroscience) कहा जाता है। इसी तरह के दैहिक मनोविज्ञान हारमोन्स (hormones) का व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन में भी अभिरुचि रखते हैं। आजकल विभिन्न तरह के औषध (drug) तथा उनका व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन दैहिक मनोविज्ञान में किया जा रहा है। इससे भी एक नयी विशिष्टता (new specialty) का जन्म हुआ है, जिसे मनोफर्माकोलॉजी (Psychopharmacology) कहा जाता है तथा जिसमें विभिन्न औषधों के व्यवहारात्मक प्रभाव (behavioural effects) से लेकर तंत्रीय तथा चयापचय (metabolic) प्रक्रियाओं में होने वाले आणविक शोध (molecular research) तक का अध्ययन किया जाता है।

प्रमुख मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त और उनके प्रतिपादक

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  • आधुनिक मनोविज्ञान के जनक : विलियम जेम्स
  • प्रकार्यवाद सम्प्रदाय के जनक : विलियम जेम्स
  • आत्म सम्प्रत्यय की अवधारणा : विलियम जेम्स
  • शिक्षा मनोविज्ञान के जनक : एडवर्ड थार्नडाइक
  • प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त : थार्नडाइक
  • प्रयत्न एवं भूल का सिद्धान्त : थार्नडाइक
  • संयोजनवाद का सिद्धान्त : थार्नडाइक
  • उद्दीपन अनुक्रिया का सिद्धान्त : थार्नडाइक
  • S-R थ्योरी के जन्मदाता : थार्नडाइक
  • अधिगम का बन्ध सिद्धान्त : थार्नडाइक
  • संबंधवाद का सिद्धान्त : थार्नडाइक
  • प्रशिक्षण अंतरण का सर्वसम अवयव का सिद्धान्त : थार्नडाइक
  • बहुखंड या बहुतत्व बुद्धि का सिद्धान्त : थार्नडाइक
  • बिने-साइमन बुद्धि परीक्षण के प्रतिपादक : अल्फ्रेडबिने एवं साइमन
  • बुद्धि परीक्षणों के जन्मदाता : अल्फ्रेडबिने
  • एकखंड बुद्धि का सिद्धान्त : अल्फ्रेडबिने
  • दो खंड बुद्धि का सिद्धान्त : स्पीयरमैन
  • तीन खंड बुद्धि का सिद्धान्त : स्पीयरमैन
  • सामान्य व विशिष्ट तत्वों के सिद्धान्त के प्रतिपादक : स्पीयरमैन
  • बुद्धि का द्वय शक्ति का सिद्धान्त : स्पीयरमैन
  • त्रि-आयाम बुद्धि का सिद्धान्त : गिलफोर्ड
  • बुद्धि संरचना का सिद्धान्त : गिलफोर्ड
  • समूह खंडबुद्धि का सिद्धान्त : थर्स्टन
  • युग्म तुलनात्मक निर्णय विधि के प्रतिपादक : थर्स्टन
  • क्रमबद्ध अंतराल विधि के प्रतिपादक : थर्स्टन
  • समदृष्टि अन्तर विधि के प्रतिपादक : थर्स्टन व चेव
  • न्यादर्श या प्रतिदर्श(वर्ग घटक) बुद्धि का सिद्धान्त : थॉमसन
  • पदानुक्रमिक (क्रमिक महत्व) बुद्धि का सिद्धान्त : बर्ट एवं वर्नन
  • तरल ठोस बुद्धि का सिद्धान्त : आर० बी०केटल
  • प्रतिकारक (विशेषक) सिद्धान्त के प्रतिपादक : आर० बी०केटल
  • बुद्धि 'क' और बुद्धि 'ख' का सिद्धान्त : हैब
  • बुद्धि इकाई का सिद्धान्त : स्टर्न एवं जॉनसन
  • बुद्धि लब्धि ज्ञात करने के सुत्र के प्रतिपादक : विलियम स्टर्न
  • संरचनावाद सम्प्रदाय के जनक : विल्हेल्म मैक्सिमिलियन वुण्ट (Wilhelm Maximilian Wundt) व शिष्य टिंचनर (Edward B. Titchener)
  • प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के जनक : विल्हेम वुण्ट-1879 में लिपजिग जर्मनी में पहली प्रयोगशाला
  • विकासात्मक मनोविज्ञान के प्रतिपादक : जीन पियाजे
  • संज्ञानात्मक विकास का सिद्धान्त : जीन पियाजे
  • मूल प्रवृत्तियों के सिद्धान्त के जन्मदाता : विलियम मैक्डूगल
  • हार्मिक का सिद्धांन्त : विलियम मैक्डूगल
  • मनोविज्ञान मन मस्तिष्क का विज्ञान : पोंपोनोजी
  • क्रिया-प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांन्त : BF स्किनर
  • सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांन्त : BF स्किनर
  • अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धान्त : इवान पेट्रोविच पावलव (IP Pavlov)
  • संबंध प्रत्यावर्तन का सिद्धान्त : पावलव
  • शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धान्त : इवान पेट्रोविच पावलव
  • प्रतिस्थापक का सिद्धान्त : इवान पेट्रोविच पावलव
  • प्रबलन (पुनर्बलन का सिद्धान्त : सी० एल० हल
  • व्यवस्थित व्यवहार का सिद्धान्त : सी० एल० हल
  • सबलीकरण का सिद्धान्त : सी० एल० हल
  • संपोषक का सिद्धान्त : सी० एल० हल
  • चालक / अंतनोंद (प्रणोद) का सिद्धान्त : सी० एल० हल
  • अधिगम का सूक्ष्म सिद्धान्त : कोहलर
  • सूझ या अन्तर्दृष्टि का सिद्धान्त : कोहलर, वर्दीमर, कोफ्का
  • गेस्टाल्टवाद सम्प्रदाय के जनक : कोहलर, वर्दीमर, कोफ्का
  • क्षेत्रीय सिद्धान्त : लेविन
  • तलरूप का सिद्धान्त : लेविन
  • समूह गतिशीलतासम्प्रत्यय के प्रतिपादक : लेविन
  • सामीप्य संबंधवाद का सिद्धान्त : गुथरी
  • साईन (चिह्न) का सिद्धान्त : टॉलमैन
  • सम्भावना सिद्धान्त के प्रतिपादक : टॉलमैन
  • अग्रिम संगठकप्रतिमान के प्रतिपादक : डेविड आसुबेल
  • भाषायीसापेक्षता प्राक्कल्पना के प्रतिपादक : व्हार्फ
  • मनोविज्ञान के व्यवहारवादी सम्प्रदाय के जनक : जोह्न बी० वाटसन
  • अधिगम या व्यवहार सिद्धान्त के प्रतिपादक : क्लार्क हल
  • सामाजिक अधिगम सिद्धान्त के प्रतिपादक : अल्बर्ट बण्डूरा
  • पुनरावृत्ति का सिद्धान्त : जी० स्टेनले हॉल
  • अधिगम सोपानकी के प्रतिपादक : गेने
  • मनोसामाजिकविकास का सिद्धान्त : एरिक एरिक्सन
  • प्रोजेक्ट प्रणाली से करके सीखना का सिद्धान्त : जान ड्यूवी
  • अधिगम मनोविज्ञान का जनक : हर्मन इबिन हॉस (Hermann Ebbinghaus)
  • आधुनिक मनोविज्ञान के प्रथम मनोवैज्ञानिक : डेकार्ट
  • किन्डरगार्टन विधि के प्रतिपादक : फ्रोबेल
  • डाल्टन विधि के प्रतिपादक : मिस हेलेन पार्कहर्स्ट
  • मांटेसरी विधि के प्रतिपादक : मैडम मारिया मांटेसरी
  • संज्ञानात्मक आन्दोलन के जनक : अल्बर्ट बांडूरा
  • गेस्टाल्टवाद (1912 ) : कोहलर, कोफ्का, वर्दीमर व लेविन
  • संरचनावाद (1879 ) : विलियम बुंट
  • व्यवहारवाद (1912) : जे० बी० वाटसन
  • मनोविश्लेषणवाद (1900) : सिगमंड फ्रायड
  • विकासात्मक/संज्ञानात्मक अधिगम की अवधारणा : जीन पियाजे
  • संरचनात्मक अधिगम की अवधारणा : जेरोम ब्रूनर
  • सामाजिक अधिगम सिद्धान्त (1986) : अल्बर्ट बांडूरा
  • संबंधवाद (1913) : थार्नडाइक
  • अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त (1904) : पावलव
  • क्रियाप्रसूत अनुबंधन सिद्धान्त (1938) : स्किनर
  • प्रबलन/पुनर्बलन सिद्धान्त (1915) : हल
  • अन्तर्दृष्टि / सूझ सिद्धान्त (1912) : कोहलर
  • विकास के सामाजिक प्रवर्तक : एरिक्सन
  • प्रोजेक्ट प्रणाली से करके सीखना का सिद्धान्त : जान ड्यूवी
  • अधिगम मनोविज्ञान का जनक : एविंग हास
  • अधिगम अवस्थाओं के प्रतिपादक : जेरोम ब्रूनर
  • संरचनात्मक अधिगम का सिद्धान्त : जेरोम ब्रूनर
  • सामान्यीकरण का सिद्धान्त : सी० एच० जड
  • शक्ति मनोविज्ञान का जनक : वॉल्फ
  • अधिगम अंतरण का मूल्यों के अभिज्ञान का सिद्धान्त : बर्गले
  • भाषा विकास का सिद्धान्त : चोमस्की
  • माँग-पूर्ति (आवश्यकता पदानुक्रम) का सिद्धान्त : मैस्लो (मास्लो)
  • स्व-यथार्थीकरण अभिप्रेरणा का सिद्धान्त : मैस्लो (मास्लो)
  • आत्मज्ञान का सिद्धान्त : मैस्लो (मास्लो)
  • उपलब्धि अभिप्रेरणा का सिद्धान्त : डेविड सी० मेक्लिएंड
  • प्रोत्साहन का सिद्धान्त : बोल्स व काफमैन
  • शील गुण (विशेषक) सिद्धान्त के प्रतिपादक : आलपोर्ट
  • व्यक्तित्व मापन का माँग का सिद्धान्त : हेनरी मुरे
  • कथानक बोध परीक्षण विधि के प्रतिपादक : मोर्गन व मुरे
  • प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण (TAT.) विधि के प्रतिपादक : मोर्गन व मुरे
  • बाल - अन्तर्बोध परीक्षण (CA.T.) विधि के प्रतिपादक : लियोपोल्ड बैलक
  • रोर्शा स्याही वा परीक्षण (I.B.T.) विधि के प्रतिपादक : हरमन रोश
  • वाक्य पूर्ति परीक्षण (S.C.T.) विधि के प्रतिपादक : पाईन व टेंडलर
  • व्यवहार परीक्षण विधि के प्रतिपादक : मे एवं हार्टशार्न
  • किंडरगार्टन (बालोद्यान) विधि के प्रतिपादक : फ्रोबेल
  • खेल प्रणाली के जन्मदाता : फ्रोबेल
  • मनोविश्लेषण विधि के जन्मदाता : सिगमंड फ्रायड
  • स्वप्न विश्लेषण विधि के प्रतिपादक : सिगमंड फ्रायड
  • प्रोजेक्ट विधि के प्रतिपादक : विलियम हेनरी क्लिपेट्रिक
  • मापनी भेदक विधि के प्रतिपादक : एडवर्ड्स व क्लिपेट्रिक
  • डाल्टन विधि की प्रतिपादक : मिस हेलेन पार्कहर्स्ट
  • मांटेसरी विधि की प्रतिपादक : मेडम मारिया मांटेसरी
  • डेक्रोली विधि के प्रतिपादक  : ओविड डेक्रोली
  • विनेटिका(इकाई) विधि के प्रतिपादक : कार्लटन वाशबर्न
  • ह्यूरिस्टिक विधि के प्रतिपादक : एच०ई० आर्मस्ट्रांग
  • समाजमिति विधि के प्रतिपादक : जे० एल० मोरेनो
  • योग निर्धारण विधि के प्रतिपादक : लिकर्ट
  • स्केलोग्राम विधि के प्रतिपादक : गटमैन
  • विभेद शाब्दिक विधि के प्रतिपादक : आसगुड
  • स्वतंत्र शब्द साहचर्य परीक्षण विधि के प्रतिपादक : फ्रांसिस गाल्टन
  • स्टेनफोर्ड बिने स्केल परीक्षण के प्रतिपादक : टरमन
  • पोरटियस भूल-भुलैया परीक्षण के प्रतिपादक : एस०डी० पोरटियस
  • वेश्लर- वेल्यूब बुद्धि परीक्षण के प्रतिपादक : डी० वेश्लवर
  • आर्मी अल्फा परीक्षण के प्रतिपादक : आर्थर एस० ओटिस
  • आर्मी बिटा परीक्षण के प्रतिपादक : आर्थर एस० ओटिस
  • हिन्दुस्तानी बिने क्रिया परीक्षण के प्रतिपादक : सी० एच० राइस
  • प्राथमिक वर्गीकरण परीक्षण के प्रतिपादक : जे० मनरो
  • बाल अपराध विज्ञान का जनक : सीजर लोम्ब्रसो
  • वंश सूत्र नियम के प्रतिपादक : मैडल
  • ब्रेल लिपि के प्रतिपादक : लुई ब्रेल
  • साहचर्य सिद्धान्त के प्रतिपादक : एलेक्जेंडर बैन
  • "सीखने के लिए सीखना" सिद्धान्त के प्रतिपादक : हल
  • शरीर रचना का सिद्धान्त : शैल्डन
  • व्यक्तित्व मापन के जीव सिद्धान्त के प्रतिपादक : गोल्डस्टीन
  • अधिगम का सूक्ष्म सिद्धान्त : कोहलर
  • क्षेत्रीय सिद्धान्त : लेविन
  • समूह गतिशीलता सम्प्रत्यय के प्रतिपादक : लेविन
  • तलरूप का सिद्धान्त : लेविन
  • सामीप्य संबंधवाद का सिद्धान्त : गुथरी
  1. "How does the APA define "psychology"?". Archived 2012-08-28 at the वेबैक मशीन Retrieved 15 November 2011.
  2. Schacter, D. L.; Gilbert, D. T. and Wegner, D. M. (2010). Psychology. 2nd Edition. Worth Publishers. ISBN 1429269677

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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