बुक बिल्डिंग वह प्रक्रिया होती है जिसके माध्यम से कोई कंपनी अपनी प्रतिभूतियों का प्रस्ताव मूल्य तय करती है।[1] इस प्रक्रिया के तहत कोई कंपनी अपने शेयरों को खरीदने के लिए मांग पैदा करती है जिसके माध्यम से प्रतिभूतियों की अच्छी कीमत पाई जा सकती है।[2] इस प्रक्रिया में जब शेयर बेचे जाते हैं तो निवेशकों से अलग-अलग कीमतों पर बिड (बोली) मांगी जाती है।[3] यह तल मूल्य (फ्लोर प्राइस) से ज्यादा और कम भी हो सकता है। अंतिम तिथि के बाद ही ऑफर प्राइस सुनिश्चित होती है। इसमें इश्यू खुले रहने तक हर दिन मांग के बारे में जाना जा सकता है। उससे ही पता चलता है कि इश्यू की कीमत कितनी होनी चाहिए।

जब कंपनी अपनी प्रतिभूतियों को खुले बाजार में लोगों के बीच ले जाती है तब बुक बिल्डिंग की आवश्यकता होती है। कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज में स्वयं को सूचिबद्ध कराने हेतु वह एक मूल्य पट्टी (प्राइज बैंड) निर्धारित करती है, जिसके लिए निवेशक शेयर की बोलियाँ लगाते हैं।[1] निवेशक को यह स्पष्ट करना होता है कि वह कितने शेयर लेना चाहता है और प्रत्येक शेयर के लिए वह कितना मूल्य देना चाहेगा। इस प्रकार बुक बिल्डिंग की परिभाषा है कि एक आई.पी.ओ(या अन्य सिक्योरिटियों के जारी करने के समय) के दौरान दक्ष मूल्य (एफ़िशियेंट प्राइज़ डिस्कवरी) के समर्थन में निवेशकों की प्रतिभूतियों की मांग के जनरेशन, कैप्चरिंग एवं अंकन (रिकॉर्डिंग) की प्रक्रिया को बुक बिल्डिंग कहते हैं।[4]

मूल्य पट्टी में नीचे के मूल्य को तल मूल्य (फ्लोर प्राइज) कहा जाता है और ऊपरी मूल्य को सीलिंग प्राइज कहा जाता है। इसके बाद कंपनी लोगों के बीच जाने हेतु एक अग्रणी मर्चेट बैंकर को नियुक्त करती है, जिसे बुक रनिंग लीड मैनेजर कहते हैं। ये मर्चेंट बैंकर एक सूचीपत्र (प्रॉस्पेक्टस) तैयार करता है और उसे नियामक संस्था भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के पास पंजीकृत कराता है। जब मूल्य पट्टी स्थायी होती है तो भावी निवेशकों को आमंत्रित किया जाता है कि वे कीमत तय करें। इस प्रक्रिया से शेयरों की मांग कितनी होगी, यह समझने में भी सहायता मिलती है।[3] यदि लीड मैनेजर को ये प्रतीत होता है, कि नीलामी की अधिक संभावना नहीं है तो वह इसे रद्द भी कर सकता है। विभिन्न कीमतों पर बोली का आकलन करने के बाद जारीकर्ता अंतिम कीमतों का निर्धारण करता है, जिस पर बिल्डिंग प्रक्रिया पूरी होने के बाद शेयरों को निवेशकों को जारी किया जाता है। इसको कट ऑफ मूल्य (कट ऑफ प्राइज) कहा जाता है। जो इसमें सफल रहते हैं उन्हें शेयरों का आवंटन कर दिया जाता है और शेष को उनकी राशि वापस कर दी जाती है।

खुली व बंद बुक बिल्डिंग

छोटे स्तर पर निवेश करने वाले निवेशकों को कम प्राइज बैंड पर बोली लगानी चाहिये। खुदरे निवेशक अधिकतम एक लाख रुपये का निवेश कर सकते हैं। अधिकतर कंपनियां खुदरे निवेशकों को फ्लोर प्राइज पर ५ प्रतिशत की छूट देती हैं। बुक–बिल्ट इश्यू में यह अनिवार्य होता है कि मांग और बोली अवधि के दौरान बोलियों का ऑनलाइन प्रदर्शन किया जा रहा हो। इसे खुली बुक प्रणाली (ओपेन बुक सिस्टम) के रूप में जाना जाता है। बंद बुक-बिल्डिंग के अंतर्गत, बुक सार्वजनिक नहीं होती है और बोली लगाने के लिए कॉल कर निवेशक अन्य बोलीदाताओं द्वारा प्रस्तुत बोली पर किसी भी जानकारी के बिना एक बोली लगाने की मंशा बना सकते हैं। सेबी के नियमानुसार इलेक्ट्रानिक सुविधा को प्रयोग करने की अनुमति केवल बुकबिल्डिंग के इश्यू में दी जाती है।[5]

सन्दर्भ

  1. बुक बिल्डिंग पर दोबारा विचार करने की तैयारी[मृत कड़ियाँ]। इकोनॉमिक टाइम्स। १३ अगस्त २००८
  2. जानिए क्या है आईपीओ और बुक बिल्डिंग[मृत कड़ियाँ]। बिज़नेस भास्कर। २ जुलाई २०१०
  3. बुक बिल्डिंग Archived 2010-07-17 at the वेबैक मशीन। हिन्दुस्तान लाइव। ५ जुलाई २०१०
  4. व्हॉट इज़ बुक बिल्डिंग ऑल अबाउट Archived 2010-03-16 at the वेबैक मशीन। रीडिफ़ बिज़नेस
  5. इश्यू मूल्य और बुक बिल्डिंग Archived 2010-06-05 at the वेबैक मशीन। अर्थ-काम। अनिल रघुराज। ३१ मार्च २०१०

बाहरी कड़ियाँ