बूँद और समुद्र (1956) साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित सुप्रसिद्ध हिन्दी उपन्यासकार अमृतलाल नागर का सर्वोत्कृष्ट उपन्यास माना जाता है। इस उपन्यास में लखनऊ को केंद्र में रखकर अपने देश के मध्यवर्गीय नागरिक और उनके गुण-दोष भरे जीवन का कलात्मक चित्रण किया गया है। पात्रों का सजीव चरित्रांकन इस उपन्यास में विशेषतया दृष्टिगोचर होता है।

परिचय संपादित करें

'बूँद और समुद्र' अमृतलाल नागर का आकार एवं विषय-वस्तु दोनों दृष्टियों से महान उपन्यास माना जाता है।[1] इसका प्रथम प्रकाशन 1956 ई० में किताब महल, इलाहाबाद से हुआ था। पुनः 1998 ई० में राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से पेपरबैक्स में इसका प्रकाशन हुआ।[2] यह नागर जी का विशुद्ध सामाजिक उपन्यास है जिसमें मुख्यतः निम्न मध्यवर्ग एवं कुछ हद तक मध्यवर्ग तथा उच्च मध्यवर्ग से निम्न की ओर झुके वर्ग का भी बारीक एवं उत्तम चित्रण विस्तार से हुआ है।[3]

विषय-वस्तु संपादित करें

'बूँद और समुद्र' में 'बूँद' व्यक्ति का और 'समुद्र' समाज का प्रतीक है। एक और रूप में इस नाम की प्रतीकात्मकता सार्थक सिद्ध होती है। लेखक ने इस उपन्यास में कथा क्षेत्र के लिए लखनऊ को चुना है और उसमें भी विशेष रूप से चौक के गली-कूचों को।[4] एक मोहल्ले के चित्र में लेखक ने भारतीय समाज के बहुत से रूपों के दर्शन करा दिये हैं। इस तरह 'बूँद' के परिचय के माध्यम से 'समुद्र' के परिचय का प्रयत्न प्रतीकित होता है। इस उपन्यास में व्यक्ति और समाज के अंतर्संबंधों की खोज व्यापक फलक पर हुआ है।

इस उपन्यास में वर्णित समाज देश की स्वाधीनता के तुरंत बाद का है। नागर जी ने चित्रण के लिए इसे लखनऊ के एक मोहल्ले चौक में केंद्रित किया है। इसकी कथा में मुख्य भाग निभाने वाले पात्र हैं-- सज्जन, वनकन्या, महिपाल और नगीन चंद जैन उर्फ कर्नल। सज्जन कलाकार है, चित्रकार। वनकन्या स्वच्छंद प्रवृत्ति की रूढ़ि विरोधिनी सक्रिय चेतनायुक्त नवयुवती है। महिपाल समाजवाद का दिखावा करने वाला निष्क्रिय लेखक है और नगीनचंद जैन उर्फ कर्नल व्यवसाई होते हुए भी दीन-दुखियों की सहायता में तत्पर रहने वाला सक्रिय कार्यकर्ता है। इन सबके साथ ही पुरातनता, अंधविश्वास एवं अत्यधिक तीखेपन के साथ-साथ निर्मल करुणा एवं अहैतुक रूप से औचित्य समर्थन की अद्भुत पात्रा ताई उपन्यास की धूरी रूप में है।[5] सज्जन खानदानी रईस है- सेठ कन्नोमल का पोता। आठ सौ रुपये महीने की किराए की आमदनी उसके कलाकार रूप के लिए सुरक्षा कवच की तरह है।[6] इसके अलावा ढेरों संपत्ति और जायदाद है, गाड़ी, बंगला और नौकरों की पूरी फौज है। फिर भी विलासिता के कुछ दबे संस्कारों के बावजूद वह विलासिता से हटकर भी काम करता है और मोहल्ले के जीवन का अध्ययन करके अपनी कला को नया आयाम देने की इच्छा से चौक में एक कमरा किराए पर लेकर रहता है। बाद में ताई के घनिष्ठ संपर्क में आने के बाद उसकी हवेली में भी जाता है। ताई सज्जन को पुत्रवत् और वनकन्या को आरंभिक विरोध के बावजूद बहू मानकर स्नेह देती है।[7] सज्जन विरासत में मिले अपने सामंती संस्कारों के बावजूद वनकन्या के संपर्क में आकर अपना पुनर्निर्माण करता है और सामाजिक विकास एवं परिवर्तन में अपना योगदान देता है। वनकन्या के संपर्क के कारण धीरे-धीरे उसमें अनेक बदलाव आते हैं। वनकन्या से उसने अंतर्जातीय विवाह किया था और विचारों के साथ-साथ घटनाक्रमों के कारण भी वह नारी की नियति एवं मानवीय आस्था के गंभीर सवालों तक पहुँचता है।

रचनात्मक गठन संपादित करें

इस उपन्यास के गठन में लेखक ने मानो 'बूँद' में 'समुद्र' को समा देने का कठिन और दुर्लभ प्रयत्न किया है। विभिन्न स्थितियों एवं विभिन्न स्तरों के पात्रों का इस उपन्यास में जैसे समूह उपस्थित है। सज्जन और वनकन्या के बिल्कुल सभ्य प्रेम'कहानी का सहारा लेते हुए इस उपन्यास में एक तरह से चरित्रों का वन उपस्थित कर दिया गया है और उन सबको कुशलतापूर्वक काफी हद तक सँभाला भी गया है। विभिन्न मान्यताओं, स्थितियों एवं स्तरों की स्त्रियों का भी चित्रात्मक संघटन देखते ही बनता है।[3][8] अल्प शिक्षित भारतीय समाज की स्थितियों का बारीक चित्रण इस उपन्यास के उद्देश्य का प्रमुख अंग है। रूढ़िग्रस्त समाज, जो बहुत कुछ से डरता है, प्रायः कायरता का परिचय देता है, वही अपनी रूढ़ियों पर खतरा देखकर किस प्रकार हिंसक हो जाता है, इसे अत्यंत विश्वसनीयता के साथ लेखक ने चित्रित किया है।[9] नवीन विचारों को अपनाने के प्रयत्न के बावजूद किस प्रकार सामंती संस्कार व्यक्ति को सार्थक दिशा एवं सक्रिय कदम अपनाने एवं उठाने से वंचित रखता है[10] इसका व्यावहारिक चित्रण उपन्यास की रचनात्मक कुशलता का परिचय देता है। लेखक महिपाल जैसे जीवन में असफल पात्र का चित्रण भी अत्यंत सजीव है और ताई का समग्र चरित्र-चित्रण तो इतना बहुरूपी, परिपूर्ण एवं सुसम्बद्ध है कि उसे हिन्दी कथा-साहित्य की अद्वितीय पात्र-सृष्टियों में से एक माना गया है।[11] मोहल्ले की बहुरूपी बोली-वाणियों का संग्रह[12] इस उपन्यास को भाषा विज्ञान के लिए एक उपादान स्रोत बना देता है।[13] विश्व कोशीय रूप लिए उपन्यास को सहजता पूर्वक रोचक कथात्मकता में ढाल देना उपन्यास के शिल्प-कौशल की सफलता का प्रमाण स्वतः प्रकट कर देता है।[14]

समीक्षकों की दृष्टि में संपादित करें

'बूँद और समुद्र' की सर्वाधिक संतुलित एवं काफी हद तक परिपूर्ण समीक्षा डॉ० रामविलास शर्मा ने लिखी है। यह समीक्षा सर्वप्रथम आलोचना (पत्रिका) के अंक-20 में छपी थी। फिर इसे भीष्म साहनी, रामजी मिश्र एवं भगवती प्रसाद निदारिया संपादित 'आधुनिक हिन्दी उपन्यास' में भी संकलित किया गया और फिर यही समीक्षा विभूति नारायण राय संपादित 'वर्तमान साहित्य' के शताब्दी कथा पर केंद्रित विशेषांक (पुस्तक रूप में 'कथा साहित्य के सौ बरस') में भी संकलित की गयी। इस समीक्षा में डॉ० शर्मा ने अपने प्रिय कथाकार के इस उपन्यास की खूबियों को दिखलाते हुए भी इसकी किसी कमी को नजरअंदाज नहीं किया है। इसकी ढेर विशेषताएँ दिखलाते हुए भी उन्होंने लेखक की वैचारिक भ्रांतियों, चित्रात्मक त्रुटियों एवं वर्णनात्मक बहुलताओं -- सभी कमियों का स्पष्ट उल्लेख किया है और संतुलित रुप में विचार करते हुए उपन्यास के महत्व को रेखांकित किया है। उनका मानना है कि इन सब दोषो के होते हुए भी 'बूँद और समुद्र' एक सुन्दर उपन्यास है। भारतीय समाज के ऊपर से आत्मसंतोष का पर्दा लेखक ने खींचकर उसके भीतर की वीभत्सता सबके सामने प्रकट कर दी है।[15] 'बूँद और समुद्र' में जितना सामाजिक अनुभव संचित है, वह उसे अपने ढंग का विश्वकोष बना देता है। उसे एक बार नहीं बार-बार पढ़ने को मन करेगा। कुछ स्थल ऐसे हैं जिन्हें बार-बार पढ़ने पर भी मन नहीं भरेगा। निस्संदेह स्वाधीन भारत का यह एक उत्तम उपन्यास है।[16]

नेमिचन्द्र जैन इसकी विभिन्न खूबियों एवं खामियों पर चर्चा के बाद यह निर्णय देते हैं कि 'बूँद और समुद्र' युद्धोत्तर हिन्दी उपन्यास की एक महत्त्वपूर्ण और सशक्त कृति है जो अपनी अपूर्व उपलब्धि के कारण ही मूल्यांकन के स्तर को अधिक ऊँचा और कठोर रखने की माँग करती है। वे इसे उस दौर की सर्वश्रेष्ठ कृति होने की सम्भावना से युक्त होते हुए भी वैसा न हो सकने वाला मानकर भी पिछले दस-पन्द्रह वर्षों के सबसे महत्त्वपूर्ण उपन्यासों में निस्सन्देह परिगण्य मानते हैं।[17]

मधुरेश जी का मानना है कि नागर जी के पिछले दोनों उपन्यासों में उनके आगामी विकास की संभावनाओं के बहुत से संकेत उपलब्ध होने पर भी 'बूँद और समुद्र' को उनकी एक रचनात्मक छलांग भी माना जा सकता है जिसका स्थापित रिकॉर्ड आगे चलकर स्वयं उनके लिए तोड़ पाना संभव नहीं हुआ-- अपनी सुदीर्घ रचना-यात्रा के बावजूद।[6]

विशेष संपादित करें

नागर जी को 'बूँद और समुद्र' पर नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी द्वारा 'बटुक प्रसाद पुरस्कार' एवं 'सुधाकर रजत पदक' प्रदान किया गया था।[18]

इस उपन्यास का रूसी में भी अनुवाद हुआ और उसका पहला संस्करण एक वर्ष के अंदर ही बिक गया था।[19]

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. डॉ० रामविलास शर्मा लिखित 'बूँद और समुद्र' की समीक्षा, आधुनिक हिन्दी उपन्यास, संपादक- भीष्म साहनी एवं अन्य, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-1980, पृष्ठ-178.
  2. बूँद और समुद्र, अमृतलाल नागर, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-1998, पृष्ठ-4.
  3. अधूरे साक्षात्कार, नेमिचन्द्र जैन, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2002, पृष्ठ-56.
  4. बूँद और समुद्र, अमृतलाल नागर, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-1998, पृष्ठ-5 (भूमिका)।
  5. डॉ० रामविलास शर्मा लिखित 'बूँद और समुद्र' की समीक्षा, आधुनिक हिन्दी उपन्यास, संपादक- भीष्म साहनी एवं अन्य, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-1980, पृष्ठ-179,182-184.
  6. अमृतलाल नागर : व्यक्तित्व और रचना-संसार, मधुरेश, साहित्य भंडार, चाहचंद रोड, इलाहाबाद, संस्करण-2016, पृष्ठ-54.
  7. बूँद और समुद्र, अमृतलाल नागर, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-1998, पृष्ठ-388-89.
  8. हिन्दी उपन्यास : एक अन्तर्यात्रा, रामदरश मिश्र, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2004, पृष्ठ-146-47.
  9. बूँद और समुद्र, अमृतलाल नागर, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-1998, पृष्ठ-239-40.
  10. आस्था और सौन्दर्य, डॉ० रामविलास शर्मा, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2009, पृष्ठ-114.
  11. अधूरे साक्षात्कार, नेमिचन्द्र जैन, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2002, पृष्ठ-59.
  12. अमृतलाल नागर : व्यक्तित्व और रचना-संसार, मधुरेश, साहित्य भंडार, चाहचंद रोड, इलाहाबाद, संस्करण-2016, पृष्ठ-60.
  13. आस्था और सौन्दर्य, डॉ० रामविलास शर्मा, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2009, पृष्ठ-110.
  14. आस्था और सौन्दर्य, पूर्ववत्, पृ०-120.
  15. डॉ० रामविलास शर्मा लिखित 'बूँद और समुद्र' की समीक्षा, आधुनिक हिन्दी उपन्यास, संपादक- भीष्म साहनी एवं अन्य, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-1980, पृष्ठ-191.
  16. डॉ० रामविलास शर्मा लिखित 'बूँद और समुद्र' की समीक्षा, आधुनिक हिन्दी उपन्यास, पूर्ववत्, पृष्ठ-192.
  17. अधूरे साक्षात्कार, नेमिचन्द्र जैन, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2002, पृष्ठ-68.
  18. हिन्दी साहित्य कोश, भाग-2, संपादक-धीरेंद्र वर्मा एवं अन्य, ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी, संस्करण-2011, पृ०-20.
  19. बूँद और समुद्र, अमृतलाल नागर, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-1998, पृष्ठ-6 (भूमिका)।

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें