बैजनाथ, उत्तराखण्ड
बैजनाथ (Baijnath) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के बागेश्वर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक व धार्मिक नगर है। यह गोमती नदी के तट पर बसा हुआ है।[1][2][3] यह अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विख्यात है, जिन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों के रूप में मान्यता प्राप्त है।[4][5] बैजनाथ उन चार स्थानों में से एक है, जिन्हें भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत 'शिव हेरिटेज सर्किट' से जोड़ा जाना है।[6][7]
बैजनाथ Baijnath | |
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ऊपर से नीचे: बैजनाथ दृश्य, बैजनाथ मन्दिर परिसर, बैजनाथ झील | |
निर्देशांक: 29°55′N 79°37′E / 29.92°N 79.62°Eनिर्देशांक: 29°55′N 79°37′E / 29.92°N 79.62°E | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तराखण्ड |
ज़िला | बागेश्वर ज़िला |
संस्थापक | नरसिंह देव |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी, कुमाऊँनी |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 263641 |
इतिहास
संपादित करेंबैजनाथ को प्राचीनकाल में "कार्तिकेयपुर" के नाम से जाना जाता था, और तब यह कत्यूरी राजवंश के शासकों की राजधानी थी। कत्यूरी राजा तब गढ़वाल, कुमाऊँ तथा डोटी क्षेत्रों तक राज करते थे। इस क्षेत्र के सबसे पुराने अवशेषों में करवीरपुर या कबीरपुर नामक एक शहर शामिल है.[8][9] इस शहर के खंडहरों का प्रयोग करके ही कत्यूरी राजा नरसिंह देव ने अपनी राजधानी यहाँ बसाई थी। ७वीं से १३वीं शताब्दी तक बैजनाथ कत्यूरी राजवंश की राजधानी थी, और तब इसे कार्तिकेयपुर कहा जाता था।[10][11]
नेपाली आक्रमणकारी क्रंचलदेव ने ११९१ में बैजनाथ पर आक्रमण कर कत्यूरी राजाओं को पराजित कर दिया।[12] इस आक्रमण से कमजोर हुआ कत्यूरी राज्य १३वीं शताब्दी तक ८ अलग अलग रियासतों में विघटित हो गया।[13] विघटन के बाद भी १५६५ तक बैजनाथ में कत्यूरी राजवंश के मूल वंशजों का ही शाशन रहा, और उन्हें बैजनाथ कत्यूर कहा जाने लगा। १५६५ में अल्मोड़ा के राजा बालो कल्याण चन्द ने बैजनाथ पर कब्ज़ा कर लिया और उसे अपने राज्य में ही मिला लिया।[14]
१७९१ में काली नदी के पूर्व की ओर अपने राज्य का विस्तार करते हुए गोरखा राजाओं ने अल्मोड़ा पर आक्रमण किया, और सम्पूर्ण कुमाऊं राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने १८१४ के आंग्ल-नेपाल युद्ध में गोरखाओं को हरा दिया, जिसके बाद १८१६ में सुगौली संधि के अनुसार यह अंग्रेजों को प्राप्त हुआ।[15]:594 [16] १९०१ में बैजनाथ १४८ की आबादी वाला एक छोटा सा गाँव था।[17][18][19][20][21][22]
भूगोल
संपादित करेंबैजनाथ बागेश्वर जनपद में 29°55′N 79°37′E / 29.92°N 79.62°E पर जनपद मुख्यालय के २० किमी उत्तर में स्थित है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई १,१३० मीटर (३,७०७ फीट) है। बैजनाथ कुमाऊँ हिमालय में स्थित कत्यूर घाटी में गोमती नदी के तट पर बसा है।
२००७-२००८ में मंदिर परिसर के पास एक कृत्रिम झील की घोषणा की गयी थी।[23] इस झील का उद्घाटन १४ जनवरी २०१६ को उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री, हरीश रावत ने किया। झील में मछलियां बहुतायत में हैं। हालांकि मछली पकड़ने पर सख्ती से प्रतिबंध है, परन्तु झील में ये एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण हैऔर पर्यटकों मछलियों को चना खिलाते हुए देखा जा सकता है। पास ही स्थित गरुड़ क्षेत्र के सबसे पुराने बाज़ारों में है।[24]
आवागमन
संपादित करेंपंतनगर में स्थित पंतनगर विमानक्षेत्र बैजनाथ से निकटतम हवाई अड्डा है, जबकि काठगोदाम रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है। बैजनाथ बागेश्वर-ग्वालदाम और अल्मोड़ा-गोपेश्वर सड़कों के तिराहे पर स्थित है। यह उत्तराखंड परिवहन निगम की 'कुमाऊं दर्शन' बस सेवा द्वारा हल्द्वानी, भीमताल, अल्मोड़ा और रानीखेत से जुड़ा हुआ है।[25]
टनकपुर से बागेश्वर तक एक रेल पटरी प्रस्तावित है, जिसके बन जाने के बाद २०२० से यह क्षेत्र और अधिक पर्यटकों को आकर्षित कर पायेगा।[26][27][28]
छवि गैलरी
संपादित करेंइन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
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- ↑ "Uttarakhand: Land and People," Sharad Singh Negi, MD Publications, 1995
- ↑ "Development of Uttarakhand: Issues and Perspectives," GS Mehta, APH Publishing, 1999, ISBN 9788176480994
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- ↑ "List of Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains of Uttranchal - Archaeological Survey of India". asi.nic.in. मूल से 21 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2016-11-18.
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