रूसी क्रांति

20वीं सदी की क्रान्ति से रूसी राजतन्त्र का पतन हुआ।
(बोल्शेविक क्रान्ति से अनुप्रेषित)

सन 1917 की रूस की क्रान्ति विश्व इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इसके परिणामस्वरूप रूस से ज़ार के स्वेच्छाचारी शासन का अन्त हुआ तथा रूसी सोवियत संघात्मक समाजवादी गणराज्य (Russian Soviet Federative Socialist Republic) की स्थापना हुई। यह क्रान्ति दो भागों में हुई थी - मार्च 1917 में, तथा अक्टूबर 1917 में। पहली क्रांति के फलस्वरूप सम्राट को पद-त्याग के लिये विवश होना पड़ा तथा एक अस्थायी सरकार बनी। अक्टूबर की क्रान्ति के फलस्वरूप अस्थायी सरकार को हटाकर बोलसेविक सरकार (कम्युनिस्ट सरकार) की स्थापना की गयी।

रूसी क्रान्ति
प्रथम विश्वयुद्ध का भाग

विरोध करते हुए क्रान्तिकारी (फरवरी 1917)
तिथि 8 मार्च – 8 नवम्बर 1917
स्थान रूसी
परिणाम बोल्शेविकों की विजय
  • निकोलस द्वितीय का त्याग
  • शाही सरकार का पतनh
  • रूसी SFSR का निर्माण
  • रूसी गृह युद्ध की शुरुआत
योद्धा
शाही सरकार a
अंतरिम सरकार
पेट्रोग्रैड सोवियत
बोल्शेविकs
वामपंथी समाजवादियों
सेनानायक
निकोलस द्वितीय a
गेओग्य ल्वोव्
अलेक्षन्देर केरेन्स्क्य्
व्लादिमीर लेनिन
त्रोत्स्की
लेव कमेनेव्
शक्ति/क्षमता
इम्पीरियल रूसी सेना रेड गार्ड: 200,000
a. मार्च 1917 ,15 तक.

1917 की रूसी क्रांति बीसवीं सदी के विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना रही। 1789 ई. में फ्रांस की राज्यक्रांति ने स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व की भावना का प्रचार कर यूरोप के जनजीवन को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। रूसी क्रान्ति की व्यापकता अब तक की सभी राजनीतिक घटनाओं की तुलना में बहुत विस्तृत थी। इसने केवल निरंकुश, एकतन्त्री, स्वेच्छाचारी, ज़ारशाही शासन का ही अन्त नहीं किया बल्कि कुलीन जमींदारों, सामंतों, पूंजीपतियों आदि की आर्थिक और सामाजिक सत्ता को समाप्त करते हुए विश्व में मजदूर और किसानों की प्रथम सत्ता स्थापित की। मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक समाजवाद की विचारधारा को मूर्त रूप पहली बार रूसी क्रान्ति ने प्रदान किया। इस क्रान्ति ने समाजवादी व्यवस्था को स्थापित कर स्वयं को इस व्यवस्था के जनक के रूप में स्थापित किया। यह विचारधारा 1917 के पश्चात इतनी शक्तिशाली हो गई कि 1950 तक लगभग आधा विश्व इसके अन्तर्गत आ चुका था।क्रांति के बाद का विश्व इतिहास कुछ इस तरीके से गतिशील हुआ कि या तो वह इसके प्रसार के पक्ष में था अथवा इसके प्रसार के विरूद्ध। रूसी क्रान्ति का जनक लेनिन को कहा जाता है जिन्होंने रूस की क्रान्ति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

पृष्ठभूमि एवं कारण

संपादित करें
 
जार निकोलस और उसका परिवार

रूस की क्रांति का महत्व न केवल यूरोप के इतिहास में वरन् विश्व के इतिहास में है। जिस प्रकार 18वीं शताब्दी के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना फ्रांस की राज्य क्रांति है उसी प्रकार बीसवीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण घटना रूस की 1917 ई. की बोल्शेविक क्रांति थी। रूस में सामाजिक समानता का नितांत अभाव था। इस समय रूस का समस्त समाज तीन विभिन्न श्रेणियों में विभक्त था, जिनमें आपस में किसी भी प्रकार की सद्भावना विद्यमान नहीं थी। वे एक दूसरे को अपने से पूर्णतया भिन्न और पृथक समझती थीं।

  • 1. प्रथम श्रेणी में कुलीन वर्ग आता था। इसको राज्य की ओर से बहुत अधिकार प्राप्त थे।
  • 2. द्वितीय श्रेणी के अंतर्गत उच्च मध्यम वर्ग आता था, जिसमें व्यापारी छोटे जमींदार, पूंजीपति सम्मिलित थे।
  • 3. तृतीय श्रेणी के अंतर्गत कृषक, अर्द्धदास कृषक तथा श्रमिक सम्मिलित थे। इसके साथ राज्य तथा अन्य वर्गों का व्यवहार बहुत ही अमानुषिक था।

जार निकोलस पूर्ण निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासक था। यह जनता को किसी प्रकार का अधिकार प्रदान करने के पक्ष में नहीं था।

1917 की रूसी क्रांति के निम्नलिखित कारण थे-

औद्योगिक क्रान्ति और उसके परिणाम

संपादित करें

अन्य देशों के समान रूस में भी औद्योगिक क्रांति हुई, यद्यपि यहाँ पर क्रान्ति अन्य देशों की अपेक्षा काफी समय के उपरान्त हुई किन्तु इसके होने पर रूस में बहुत से कारखानों की स्थापना हो गई थी। इस प्रकार रूस का औद्योगीकरण होना आरम्भ हुआ। इसमें काम करने के कारण लाखों की संख्या में मजदूर देहातों और गाँवों से अपने घर - परिवार को छोड़कर उन नगरों तथा शहरों में निवास करने लगे, जिनमें कल कारखानों की स्थापना हुई थी। नगरों और शहरों में निवास करने के कारण अब वे पहले के समान सीधे-सादे नहीं रह गये थे। नगरों में रहने से उनमें न केवल चलता-पुर्जापन ही आ गया था, अपितु ये राजनीतिक मामलों में भी रूचि लेने लगे थे। इनको अपने राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकारों का भी ध्यान हुआ। इन्होंने अपने क्लबों का निर्माण किया, जहां ये सब प्रकार के मामलों पर विचार करते थे और आपस में वाद-विवाद करते थे। इनको यहाँ रहकर नवीन विचारधाराओं तथा प्रवृत्तियों का भी ज्ञान हुआ। इन्होंने श्रमिक संगठनों की स्थापना भी करनी आरम्भ की।[उद्धरण चाहिए]

1905 ई. की क्रांति

संपादित करें

रूस मे 1905 ई. में एक क्रांति हुई थी, जिसके द्वारा रूस में वैधानिक राजतंत्र की स्थापना करने का प्रयास किया गया था किन्तु पारस्परिक झगड़ों के कारण यह क्रांति सफल नहीं हो सकी और शासन पर पुनः जार का आधिपत्य स्थापित हो गया। इस क्रांति का स्पष्ट परिणाम यह हुआ कि उसने रूस की साधारण जनता को राजनीतिक अधिकारों का परिचय करा दिया था। उनको ज्ञात हो गया कि मत (वोट) का क्या अर्थ है? ड्यूमा या दूसरे शब्दों में पार्लियामेंट के सदस्यों का निर्वाचन किस प्रकार किया जाना चाहिये? सरकार को लोकमत के अनुसार अपनी नीति का निर्धारण कर जनहित के कार्यों को करने के लिये अग्रसर होना चाहिये। अपने राजनीतिक अधिकारों से परिचित हो जाने के कारण रूस की जनता समझ गई कि रूस में भी पूर्णतया लोकतंत्र शासन की स्थापना होनी चाहिये जहां साधारण जनता के हाथ में शासन सत्ता हो।

पश्चिमी यूरोप का प्रभाव

संपादित करें

पश्चिमी यूरोप के लोकतंत्र राज्यों का प्रभाव भी रूस पर पड़ा, यद्यपि रूस के सम्राटों ने पाश्चात्य प्रगतिशील विचारों का रूस में प्रचार रोकने के लिये विशेष रूप से प्रयत्न किया, किन्तु विचारों का रोकना बहुत ही कठिन कार्य है, क्योंकि विचार हवा के समान होते हैं। प्रथम विश्वयुद्ध के समय जर्मनी और उसके साथियों के विरूद्ध जो प्रचार-कार्य मित्र राष्ट्रों की ओर से किया जा रहा था, उसमें मुख्यतः यही कहा जाता था कि वे लोकतंत्र शासन, जनता की स्वतंत्रता और राष्ट्रीयता के आधार पर नवीन राष्ट्रों का निर्माण करने के अभिप्राय से युद्ध कर रहे हैं। रूस मित्र-राष्ट्रों के अंतर्गत था। अतः वहां की जनता पर भी इस प्रचार का बहुत असर पड़ा।

मध्यम वर्ग के विचारों में परिवर्तन

संपादित करें

रूसी में मध्य श्रेणी के व्यक्तियों में शिक्षा का प्रचार हो गया था। जिस प्रकार फ्रांस की क्रांति का श्रेय फ्रांस के दार्शनिक, शिक्षित वर्ग आदि को प्राप्त है उसी प्रकार रूस में भी क्रांति का वेग इसी श्रेणी के लोगों ने तीव्र किया। वे लोग नई-नई पुस्तकों का अध्ययन करते थे। पश्चिमी यूरोप के विचारों की लिखी हुई पुस्तकें रूसी भाषा में अनूदित हुई थीं। अनेक एशियन लेखकों ने भी अपने ग्रन्थों द्वारा नये तथा प्रगतिशील विचारों का प्रतिपादन किया। शिक्षित वर्ग पर उन नये विचारों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा, विशेषतः नवयुवक विद्यार्थी नये विचारों का अध्ययन कर यह भली-भांति समझने लगे थे कि उनका देश उन्नति की दौड़ में बहुत पिछड़ा हुआ है, जिसका प्रमुख कारण जार की निरंकुशता है। उनके हृदय में यह भावना जागृत हुई कि उनका कर्तव्य है कि वे अपने देश को उन्नत करने के लिये घोर प्रयत्न करें।

महायुद्ध का प्रभाव

संपादित करें

महायुद्ध में रूस मित्र राष्ट्रों की ओर से सम्मिलित हुआ। उनकी विशाल सेना ने युद्ध के आरंभ में बड़ी क्षमता तथा योग्यता का प्रदर्शन किया, परन्तु दो वर्ष तक निरंतर युद्ध करते हुये उसमें शिथिलता के चिन्ह स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगे। रूस की सेना बहादुर अवश्य थी, किन्तु उसमें देश-भक्ति और राष्ट्रीयता की वे भावनायें विद्यमान नहीं थी, जो अपूर्व त्याग और मर मिटने के लिये प्रेरणा प्रदान करती हैं। रूस की सेनायें संख्या की पूर्ति के लिये भरती की गई थीं। उनमें वीर सैनिकों की परम्परा अवश्य थी, पर उनके सम्मुख कोई आदर्श विशेष नहीं था। यही दशा रूस की नौकरशाही की थी। रूस के कर्मचारी यह नहीं समझते थे कि वे देश की उन्नति और राष्ट्र सेवा के लिये नियुक्त किये गये हैं। उनका आदर्श था सम्राट को प्रसन्न कर उच्च पदों पर आसीन होना। जब विश्वयुद्ध लम्बा होता गया और दो वर्ष की लड़ाई के उपरांत भी विजय के कोई चिन्ह प्रकट नहीं हुए तो रूस की सेना और नौकरशाही घबरा उठी। रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार आदि रूस में पहले से ही अपनी चरम सीमा को प्राप्त कर चुका था। गरीब लोगों के लिए गुजर कर सकना असंभव हो गया था।

क्रांति की घटनायें तथा परिणाम

संपादित करें
 
13 मार्च 1917 को पेत्रोग्राद में मारे गये लोगों की शवयात्रा

सेना द्वारा जनता पर गोली चलाने से इंकार

संपादित करें

अंत में 7 मार्च 1917 ई. को जनता की दशा बहुत ही शोचनीय हो गई थी। उसके पास न पहनने को कपड़ा था और न खाने को अनाज था। वह भूख और कपड़े से व्याकुल हो चुकी थी। परेशान होकर भूखे और ठण्ड से ठिठुरते हुए गरीब और मजबूरों ने 7 मार्च के दिन पेट्रोग्रेड की सड़कों पर घूमना आरंभ किया। रोटी की दुकानों पर ताजी और गरम रोटियों के ढेर लगे पड़े थे। भूखी जनता का मन ताजी और गरम चाय व रोटियों को देखकर ललचा गया और वह अपने आपको नियंत्रण में नहीं रख सकी। उन्होंने बाजार में लूट-मार करनी आरंभ कर दी। सरकार ने सेना को उन पर गोली चलाने का आदेश दिया कि वह गोली चलाकर लूटमार करने वालों को तितर-बितर कर दे, किन्तु सैनिकों ने गोली चलाने से साफ मना कर दिया क्योंकि उनको जनता से सहानुभूति थी। उनमें भी क्रांति की भावना प्रवेश कर चुकी थी। जब मजदूरों ने यह देखा कि सैनिक उन पर गोली चलाने को तैयार नहीं हैं, तो उनका साहस बहुत बढ़ गया। अतः अब क्रान्ति अवश्यम्भावी हो गई थी।

जार का शासन त्यागना

संपादित करें

दूसरी ओर ड्यूमा ने विसर्जित होने से मना कर दिया। उसका पेट्रोग्रेड सोवियत के समझौता हो गया, जिसके आधार पर 14 मार्च 1917 ई. को उदारवादी नेता जार्ज स्लाव की अध्यक्षता में एक सामाजिक सरकार की स्थापना की गई। उसने 14 मार्च को जार से शासन का परित्याग करने की मांग की। परिस्थिति से बाध्य होकर उसने उनकी मांग को स्वीकार कर शासन से त्यागपत्र दे दिया। इस प्रकार रूस में जारशाही का अंत हुआ। क्रांति में मजदूरों को सफलता प्राप्त हुई, किन्तु उन्होंने शासन की बागडोर को अपने हाथ में रखना उचित न समझ, समस्त शक्ति मध्य वर्ग के हाथ में सौंप दी।

रूसी क्रान्ति का संक्षिप्त काल-क्रम

संपादित करें
===तिथियाँ --घटनाएँ===
  • 1855 -- ज़ार अलेक्जेंडर द्वितीय के शासन का आरंभ
  • 1861 -- कृषि-दासों की मुक्ति
  • 1874-81 - सरकार-विरोधी आतंकवादी आंदोलन का विकास और सरकारी प्रतिक्रिया
  • 1881 -- क्रांतिकारियों द्वारा अलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या और अलेक्जेंडर तृतीय द्वारा उत्तराधिकार ग्रहण
  • 1883 -- प्रथम रूसी मार्क्सवादी समूह का गठन
  • 1894 -- निकोलस द्वितीय के शासन का आरंभ
  • 1898 -- रूसी सामाजिक प्रजातांत्रिक मजदूर दल का पहला सम्मेलन
  • 1900 -- समाजवादी क्रांतिकारी दल की स्थापना
  • 1903 -- रूसी सामाजिक प्रजातांत्रिक मजदूर दल का द्वितीय सम्मेलन ; बोल्शेविकों और मेन्शेविकों के मध्य विभाजन का आरम्भ
  • जनवरी - सेंट पीटर्सबर्ग में रक्तिम रविवार
  • मार्च -जार द्वारा सुधार की घोषणा
  • जून - काला सागर स्थित ओडेस्सा पर युद्धपोत पोतेमिकन की चढ़ार्इ
  • अक्टूबर - आम हड़ताल, सेंट पीटर्सबर्ग सोवियत का गठन, अक्टूबर घोषणा पत्र, राष्ट्रीय संसद (डयूमा) के चुनावों हेतु शाही समझौता
  • 1906 -- प्रथम राष्ट्रीय संसद, प्रधानमंत्री स्टालिपिन (Petr Stolypin), कृषि सुधारों का आरम्भ
  • 1907 -- तृतीय राष्ट्रीय संसद, 1912 तक
  • 1911 -- स्टालिपिन की हत्या
  • 1912 - चतुर्थ राष्ट्रीय संसद, 1917 तक। बोल्शेविक-मेन्शेविक विभाजन पूर्ण
  • 1914 - जर्मनी की रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा।
  • 1915 - गंभीर पराजयों का सिलसिला, निकोलस द्वितीय द्वारा स्वयं को मुख्य सेनापति घोषित करना, प्रगतिशील गुट का गठन
  • 1916 - अनाज और ईंधन की कमी और मूल्यों में वृद्धि
  • 1917 - हड़तालें, विद्रोह, सड़कों पर प्रदर्शन तथा इसके कारण तानाशाही का पतन

इन्हें भी देखें

संपादित करें