बौद्ध-दलित आंदोलन
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बौद्ध-दलित आंदोलन या नवबौद्ध आंदोलन यह हिंदू धर्म की वर्णाश्रम व्यवस्था में सबसे नीचे के पायदान पर रखे गए लोगों द्वारा अपनी सामाजिक स्थिति में परिवर्तन व मानवाधिकार दिलाने के लिए बीसबीं सदी में भारतीय नेता डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर द्वारा चलाया गया आंदोलन है। इसे भारतीय नेता डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर ने दलितों के उत्थान के लिए इसे चलाए था। आम्बेडकर मानते थे कि दलितों का हिंदू धर्म के भीतर रहकर सामाजिक उत्थान संभव नहीं हो सकता है, उन्होंने धर्म के रूप में वह विचारधारा अपनानी चाहिए जो उन्हें स्वातंत्र्य, समानता व बंधुत्व की शिक्षा दे। बौद्ध विचारधारा से प्रेरित होकर उन्होंने १४ अक्टूबर 1956 ई. को अपने करीब 10,00,000 अनुयायियों के साथ नागपुर में बौद्ध धर्म स्वीकार किया। उन्होंने अपने समर्थकों को 22 बौद्ध प्रतिज्ञाओं का अनुसरण करने की सलाह दी। इस आंदोलन को श्रीलंकाइ बौद्ध भिक्षुओं का भरपूर समर्थन मिला।[1]
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मे भी सच्चा भीमराव अम्बेडकर वादी पर मुझे लगता है की जय भीम एक सच्चा भारतीय ही बोल सकता और जय शब्द का एक बहुत ही खाश व्यक्ति के लिये लगाया जाता है और जो हमारे बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी थे और जो ब्बा साहेब को नही मानते उसे एक सच्चा भारतबाशी नही कहा जा सकता अगर बाबा साहेब जी नही होते तो आज भी हमारे भारत वाशी अग्रेजों के असुलो पर ही काम कर रहे होते चाहे वहआजाद ही क्यू न हो जाते। इसी लिये मेरा कहना है की जय शब्द केबल मेरे बाबा साहेब जी के आये ही होना चाहीये ,,, जय जय भीम बोलो जय जय भीम